पैग़ाम ए निकाह
- निकाह का पैगाम
- पैगाम मिलने पर इस्तखारे की दुआ
- निकाह के लिए लड़की की रजामंदी
निकाह का पैगाम भेजना:
आइए निकाह के इस(पैग़ाम) बुनियादी पहलू को हदीस की रोशनी में देखते हैं...
हज़रत अबू हुरैरह रज़ि. से रिवायत है कि रसूलल्लाह ﷺ. ने फरमाया:
जब तुम्हारे पास कोई ऐसा शख्स निकाह का पैगाम भेजे जिस का दीन और अख्लाक तुम पसंद करते हो उससे निकाह कर दो।
अगर तुम ऐसा न करोगे तो जमीन में फ़ित्ना और बहुत बड़ा फसाद होगा।
(तिर्मिज़ी - 1084,1085, मिश्कात - 3090)
नोट: इस हदीस में नबी करीमﷺ ने नसीयत की है कि जब कभी भी किसी लड़की के वली को उसकी बेटी, बहन के लिए निकाह का पैग़ाम आए तो तो उस शख़्स में दीनदारी (धर्मपरायणता), उसके चरित्र, उसके अच्छे गुण को प्राथमिकता देते हुए उसे स्वीकार कर लेना चाहिए और अपनी बेटी का उससे निकाह कर देना चाहिए।
रिश्ते (निकाह) का पैगाम किसे भेजा जाएगा?
निकाह का पैगाम वली (संरक्षकों)को भेजा जायेगा।
हज़रत उरवा रज़ि. से रिवायत है कि रसूलल्लाह ﷺ ने. आयशा रज़ि. से निकाह करने के लिये हजरत अबू बक्र सिद्दीक रज़ि. से कहा।
सहीह बुखारी हदीस न०- 5081
एक रिश्ते पर दूसरा पैगाम भेजना?
एक रिश्ते पर दूसरा पैग़ाम भेजने की इजाज़त नहीं है।
हजरत अबू हुरैराह रिवायत करते हैं कि नबी ﷺ ने.फरमाया:
कोई शख्स अपने भाई के निकाह के पैगाम पर अपना पैगाम न भेजे, यहाँ तक कि वो (उस औरत) से निकाह कर ले या (निकाह का इरादा) छोड़ दे।
(सहीह बुखारी हदीस न०- 5144)
नोट :ऊपर की हदीस ये बात पता चलती है कि अगर किसी लड़की को कहीं और से निकाह का पैगाम मिल चुका हो, यानी उसके निकाह की बात कहीं और चल रही हो तो ऐसी लड़की को निकाह का एक और पैगाम भेजना ठीक नहीं है।
अब हमारे समाज में आज कल क्या हो रहा है कौम के लोग एक जगह रिश्ता तय कर के और दो चार जगह रिश्ते देख रहे होते हैं।
अब यहां इस बात का ख्याल भी ज़रूरी है ये कि दूसरा रिश्ता भेजने वाला मर्द अगर इस बात से अनजान हो की फ़्लाँ औरत का रिश्ता कहीं और हो गया है, तो ऐसे मर्द पर कोई गुनाह नहीं होगा। मगर जान बूझ कर ऐसा करना गलत है
लड़की की तरफ से निकाह का पैगाम भेजना कैसा है?
जब हज़रत हफ़्सा बिन्ते उमर बिन खत्ताब रज़ि. बेवा हो गयी तो उनके बाप हजरत उमर रज़ि. ने आपके रिश्ते की बात हजरत उस्मान रज़ि से की। कुछ दिन बाद जब हजरत उस्मान रज़ि. ने मना कर दिया तो आपने हजरत अबू बक्र रज़ि. को निकाह का पैगाम भेजा, इस पर हजरत अबू बक्र रज़ि. ने कुछ जवाब न दिया। इसके थोड़े दिन बाद नबी ﷺ. ने हजरत हफ्सा को निकाह का पैगाम भेजा, इस तरह हजरत हफ्सा रज़ि. का निकाह रसूल ﷺ. से हुआ।
(सहीह बुखारी - 4005, 5122,5129 , सुनन नसाई - 3250, 3261 )
अनस रज़ि से रिवायत है कि एक औरत नबी ﷺ. की खिदमत में खुद को पेश करने के लिये हाजिर हुई और उसने नबी सल्ल. से कहा, “या रसूलल्लाह ﷺ. क्या आपको मेरी जरूरत है (कि आप मुझसे निकाह करें)”
इस पर हजरत अनस रजी०की बेटी, जो आपके पास ही बैठी थी, बोल पड़ी, “वो कैसी बेशर्म औरत थी, हाय बेशर्मी! हाय बेशर्मी!”
अनस रज़ि ने अपनी बेटी को जवाब दिया, “वो औरत तुझसे बेहतर थी। वो नबी ﷺ. की तरफ रग़बत रखती थी(यानी आप ﷺ. को पसंद करती थी) इसलिये उसने अपने आप को नबी की खिदमत में पेश किया।…..
(सहीह बुखारी हदीस न०- 5120, 5121)
इसी हदीस में ये बयान भी मिलता है कि नबी ﷺ. ने उस औरत से निकाह नहीं किया और अपने एक सहाबी का निकाह उस औरत से करवा दिया।
(सहीह बुखारी हदीस न०- 5030)
वजाहत
- हदीस से साबित हो रहा है कि लड़की वालों की तरह से रिश्ता भेजना मना नहीं है हमारे मुआशरे के कुछ तबके में इसे ठीक नहीं समझा जाता मगर शरियत में इसकी कोई मनाही नहीं है।
- नबी करीम ﷺ. ने जैसे किसी मर्द को नेक बीवी से निकाह करने के लिय दीनदारी को प्राथमिकता देने की नसीहत की है वैसे ही एक मोमिना लड़की को शरियत पुरी आज़ादी देता है कि वो सबसे पहले अपने होने वाले शौहर में नेक और दीनदारी देखे फिर शक्ल सूरत और बाकी की चीजें जो एक अच्छे जीवन साथी में होने चाहिए।
- इस खास काम के लिए शरियत ने लड़की के वलियों को जिम्मेदारी सौंपी है की अपनी बेटियों और बहनों के लिय अच्छे अखलाक वाले रिश्ते तलाश करें।
- अगर किसी लड़की को कोई बाअखलाक और दीनदार लड़का पसंद है और ये की वो उस से निकाह की ख्वाहिश रखती है तो वो अपने वाली से इस बारे में बता सकती है।
जैसा की हजरत मूसा अलैहिस्सलाम के किस्से से हमें पता चलता है कि जब आप मिस्र छोड़ कर मदयन चले गए और उन्होंने वहाँ दो लड़कियों की मदद की तो हजरत मूसा अलैहिस्सलाम की बहादुरी और अख्लाक को देखकर एक लड़की ने अपने बाप से कहा:
“ऐ अब्बा जान! इस शख्स को नौकर रख लीजिये। बेहतरीन आदमी जिसे आप मुलाजिम रखें वही हो सकता है जो मजबूत और अमानतदार हो।”
इस पर उनके बाप ने मूसा अलैहिस्सलाम से कहा: “मैं चाहता हूँ कि अपनी दो बेटियों में से एक का निकाह तुम से कर दूं..”- सूरह 26 (कसस) आयत 26-27
यहां इस आयत से यह बात वाजेह होती है कि किसी लड़की को कोई नेक लड़का पसंद हो तो सबसे पहले अपने मां बाप को बताए।
फिर मां बाप का भी ये फर्ज़ बनता है कि अपने बच्चों के पसंद की कद्र करें।
निकाह का पैगाम मिलने पर इस्तेखारा करना।
इस्तखारा क्या है?
इस्तखारा को जानने के लिए चंद हदीस पर गौर करें...
जब जैनब रज़ि की इद्दत पूरी हो गई तो रसूलल्लाह ﷺ. ने उन्हें निकाह का पैगाम भेजा।
इस पर जैनब रज़ि ने जवाब दिया:
जब तक मैं अपने रब से मशवरा(सुझाव) न ले लूँ, तब तक मैं कुछ नहीं करूंगी।
यह कह कर वो अपने मुसल्ले(नमाज़ पढ़ने की जगह) पर इस्तेखारा की नमाज़ पढ़ने के लिये खड़ी हो गई।
सहीह मुस्लिम - 3502, सुनन नसाई - 3253
हजरत जाबिर रज़ि. कहते हैं कि रसूलल्लाह ﷺ. हमें(सहाबा-ए-किराम रज़ि को) अपने सभी कामों में इस्तेखारा करने की इसी तरह तालीम देते थे, जिस तरह आप क़ुरआन की कोई सूरत सिखाते थे।
आप ﷺ. फरमाते थे:
जब कोई अहम मामला तुम्हारे सामने हो तो फ़र्ज़ के अलावा दो रकअत नफ्ल नमाज़ पढ़ो और इसके बाद ये दुआ करो!
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَخِيرُكَ بِعِلْمَكَ
،وَأَسْتَقْدِرُكَ بِقُدْرَتِكَ،
وَأَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ الْعَظِيمِ،
فَإِنَّكَ تَقْدِرُ وَلَا أَقْدِرُ،
وَتَعْلَمُ، وَلَا أَعْلَمُ، وَأَنْتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ،
اللَّهُمَّ إِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الْأَمْرَ–
خَيْرٌ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي- عَاجِلِهِ وَآجِلِهِ-
فَاقْدُرْهُ لِي وَيَسِّرْهُ لِي ثُمَّ بَارِكْ لِي فِيهِ،
وَإِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الْأَمْرَ شَرٌّ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي- عَاجِلِهِ وَآجِلِهِ-
فَاصْرِفْهُ عَنِّي وَاصْرِفْنِي عَنْهُ
وَاقْدُرْ لِيَ الْخَيْرَ حَيْثُ كَانَ ثُمَّ أَرْضِنِي بِهِ
तर्जुमा:
ऐ अल्लाह!
मैं तुझसे तेरे इल्म के वास्ते से खैर तलब करता हूँ।
और तेरी कुदरत के जरिये तुझसे तेरे अजीम फ़ज़्ल का सवाल करता हूँ,
क्योंकि तू कुदरत रखता है, मैं कुदरत नहीं रखता।
तू इल्म वाला है, और मुझे इल्म नहीं और तू ग़ैब की सारी बातों को खूब जानता है।
ऐ अल्लाह!
अगर तेरे इल्म में ये काम मेरे दीन और दुनिया और अंजाम के लिहाज से बेहतर है, तो इसका मेरे हक़ में फैसला कर दे, और मेरे लिये इसे आसान कर दे, फिर इसे मेरे लिये बरकत वाला बना दे।
और अगर तेरे इल्म में ये काम मेरे दीन और दुनिया और अंजाम के लिहाज से बुरा है, तो इसे मुझसे दूर कर दे और मुझे इससे दूर कर दे, और मेरे लिए भलाई का फैसला कर दे जहाँ कहीं भी वो हो!!
फिर मुझे इस पर राजी कर दे।
هَذَا الْأَمْرَ/ ये काम
की जगह अपनी जरूरत का नाम लें या दिल में उसका ख्याल कर लें।
(सहीह बुखारी हदीस न०-1162,6382,7390 अबू दाऊद 1538तिर्मिज़ी 480 नसा-3255, इब्ने माजा - 1383)
इस्तिखारा का पूरा तरीका जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें।
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निकाह की फजीलत की अगली कड़ी में कुछ ख़ास बिंदु पर बात होगी " इंशा अल्लाह"
तब तक दुआओं में याद रखें।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त बातों को लिखने पढ़ने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए आमीन 🤲
आपकी दीनी बहन फिरोजा
1 टिप्पणियाँ
जी बिलकुल सही है
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।