क्या मनी (वीर्य) पाक है?
आधुनिक युग (modern age) में कुछ गिने चुने लोग ऐसे भी हैं जो मनी (वीर्य/Semen) को पाक बता कर पश्चिमी सभ्यता (Western civilization), अनैतिकता (immorality), बेहयाई और नंगेपन को फैलाना चाहते हैं और उनकी वजह से एक अच्छा ख़ासा तब्क़ा उस बेशर्मी के रास्ते पर चल पड़ा है।
आज जबकि दुनिया ग्लोबल विलेज (Global Village) बन चुकी है। दुनिया के किसी भाग में होने वाले वाक़िआत कुछ पल में हर भाग में ट्रांसफर हो जाते हैं। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण रोल मीडिया का है। प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक के सफ़र ने इंसान को बहुत कुछ सिखा दिया था लेकिन आजकल के सोशल मीडिया ने चंद वर्षों में जो कारनामा कर दिखाया है वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पिछले आधी शताब्दी में भी न कर सकी थी।
सोशल मीडिया ने जहां मानव को ज़िंदगी जीने का सलीक़ा सिखाया है, एक नया अंदाज़ अता किया है मुख़्तलिफ़ सतह पर लोगों को जागरूक किया है वहीं अश्लीलता के खेल खेलने वालों को अनैतिकता और नंगेपन के प्रचार का ख़ूब ख़ूब मौक़ा भी दिया है। और उसपर अश्लीलता, नंगापन, बेहयाई, बेशर्मी तथा बेग़ैरती ने इंसान से अज़मत (महानता) छीन ली है,अख़लाक़ का जनाज़ा निकाल कर रख दिया है। मानवीय मूल्य (Human values) आज के बदलते हुए समाज में सिसक रहे हैं।
इसी सोशल मीडिया की पैदावार आज वह महदूद तब्क़ा भी है जो मनी (वीर्य) को पाक बता कर ग़लत रास्ते पर चल पड़ा है और दूसरों को अल्लाह और उसके रसूल के फ़रमान से भटका रहा है।
अल्लाह तबारक व तआला ने मर्द व औरत को एक दूसरे के लिए सुकून का ज़रिआ क़रार दिया है इसलिए शादी का एक सिस्टम बना कर इंसान के लिए एक सीमा मुक़र्रर कर दिया है कि जिस्मानी सुकून केवल और केवल पति और पत्नी की सूरत में ही हो सकता है दूसरी सूरत में कभी नहीं और हरगिज़ नहीं हो सकता। फिर पति -पत्नी के आपसी सुकून के लिए रहनुमाई भी की गई है और उसके आदाब व हुदूद (सीमाएं) भी मुतअय्यन (definite) किए गए हैं।
पति-पत्नी के सुकून के लिए संभोग (intercourse) का तरीक़ा मुक़र्रर किया गया है कि पति अपने लिंग (penis) को पत्नी की योनि (vagina) में दाख़िल करे। इसके लिए कोई भी आसन इस्तेमाल किया जा सकता है इसकी दलील यह हदीस है जो क़ुरआन की इस आयत "तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेतियाँ हैं तुम जिस तरह चाहो अपनी खेती में जाओ।" [सूरह 02 अल बक़रह आयत 223] की प्रस्तावना (preface) भी है।
अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्हु अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए और कहा! "ऐ अल्लाह के रसूल मैं तो हलाक हो गया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा: किस चीज़ ने तुझे हलाक (बर्बाद) कर दिया है?
उन्होंने कहा: "मैंने पिछली रात को अपनी बीवी से पिछली तरफ़ से अगली शर्मगाह में जिमाअ (संभोग) कर लिया है।"
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया।
फिर अल्लाह ने अपने नबी की जानिब यह वही وحی नाज़िल की "तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं तुम जिस तरह चाहो जाओ" आगे से या पीछे से लेकिन पिछले हिस्से और हैज़ (मासिक धर्म) की हालत में जिमाअ (संभोग) से दूर रहो। [जामे तिर्मिज़ी 2980/अबवाबु तफ़सीरिल क़ुरआन, सुनन निसाई अल कुबरा 8977, मुसनद अहमद 8511/मुसनद बनी हाशिम, मुसनद अब्दुल्लाह बिन अब्बास]
लेकिन कुछ सरफिरे ऐसे हैं कि इतनी वज़ाहत के बावजूद बीवी को अपनी मिल्कियत समझ कर और क़ुरआन की इसी आयत "तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं तुम जिस तरह चाहो जाओ" का हवाला देकर और बीवी को मजबूर करके उसके साथ ग़ैर फ़ितरी (अप्राकृतिक) अमल करने की कोशिश करते हैं। कभी बीवी के पिछले हिस्से में तो कभी ओरल सेक्स करने की सहमति देते हैं जो कि पश्चिमी संस्कृति (western culture) की ज़ेहनी (मानसिक) ग़ुलामी है।
जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनकी नज़र में अल्लाह के रसुल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निम्नलिखित अहादीस ज़रूर रहनी चाहियें ताकि वह ख़ुद फ़ैसला कर सकें कि वह कहां और किधर जा रहे हैं-
(1) हम्माम कहते हैं कि इमाम क़तादह से उस शख़्स के बारे में सवाल किया गया जो अपनी पत्नी के पिछले हिस्से को इस्तेमाल करता है। उन्होंने ने जवाब में कहा हमें अम्र बिन शुऐब ने उन्हें उनके वालिद ने और उनके वालिद से उनके दादा ने बयान किया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "यह छोटे दर्ज़े का क़ौमे लूत का अमल है।" और क़तादह कहते हैं कि मुझसे उक़बा बिन वस्साज ने और उनसे अबू दर्दा ने बयान किया कि, "ऐसा अमल तो केवल क़ाफ़िर ही कर सकता है।" [मुसनद अहमद 7099/ मुसनदुल मुकसेरीन मिनस सहाबा, मुसनद अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु, सुनन निसाई अल कुबरा 8997]
(2) अबु हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "जो व्यक्ति अपनी पत्नी के पिछले हिस्से में संभोग करे वह लानती है।" [सुनन अबु दाऊद 2162/ किताबुन निकाह, निकाह के बयान में, मुसनद अहमद 7097/ मुसनदुल मुकसेरीन, मुसनद अबी हुरैरह]
(3) अबु हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "जो बीवी के पिछले हिस्से में संभोग करे क़यामत के दिन अल्लाह तआला उसकी की तरफ़ नहीं देखेगा।" [सुनन इब्ने माजा 1923/किताबुन निकाह, बीवी के पिछले भाग में संभोग से रोकने के बारे में, सुनन दारमी 1176/किताबुत तहारत, पिछले भाग में संभोग से रोकने के बारे में, मुसनद अहमद 7096/ मुसनदुल मुकसेरीन, मुसनद अबी हुरैरह]
(4) अबु हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "जो अपनी बीवी से हैज़ की हालत (मासिक धर्म) में या उसके पिछले हिस्से में संभोग करे या किसी काहिन (ज्योतिषी) के पास जाए और उसकी बातों को तस्दीक़ (यक़ीन) करे तो उसने उस चीज़ का इंकार किया जो मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर नाज़िल हुआ यानी क़ुरआन का इंकार किया।" [सुनन अबु दाऊद 3904/किताबुत तिब्ब, कहानत और बदशगूनी के बारे में, जामे तिर्मिज़ी 135/ किताबुत तहारह, हैज़ की हालत में बीवी से सुहबत से रोकने के बारे में, सुनन इब्ने माजा 639/किताबुत तहारह, हैज़ की हालत में बीवी से सुहबत से रोकने के बारे में, सुनन दारमी 1116/ किताबुत तहारह]
(5) अबु हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु से मरफुअन रिवायत है कि "जो अपनी बीवी के पिछले हिस्से में संभोग करे उसने कुफ्र किया।" [अल मुअजम अल कबीर 700/ अस सिलसिलतुस सहीहा 1984]
(6) अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَكَمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّى شِئْتُم की तफ़्सीर में फ़रमाया: "इस से मुराद एक सूराख़ में ही संभोग करना है।" [जामे तिर्मिज़ी 2979/अब्वाबु तफ़सीरिल क़ुरआन अन रसुलिल्लाह, मुसनद अहमद 8508/ बाक़ी मुसनदुल अंसार, हदीस उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा]
(7) असल क़िस्सा यूं है कि अंसार के एक क़बीले का एक यहूदी क़बीले के साथ मेल जोल था और अंसार यहूद को इल्म में अपने से बेहतर समझते थे और बहुत से मामलों में उन्हीं को अपना आइडियल मानते थे, यहूद का हाल यह था कि वह अपनी बीवियों से एक ही आसन यानी चित लिटा कर संभोग करते थे। इसमें औरत के लिए पर्दा दारी भी रहती थी। चुनांचे अंसार ने भी यहूदियों से यह तरीक़ा अपना लिया जबकि क़ुरैश के क़बीले का हाल यह था कि वह आगे से, पीछे से, चित लिटा कर, यानी मुख़्तलिफ़ आसन इस्तेमाल करते थे। मुहाजिरीन जब मदीना आए तो उनमें से एक शख़्स की शादी एक अंसारी औरत से हो गई। मुहाजिर ने मुख़्तलिफ़ आसन इस्तेमाल करना चाहा उस पर औरत ने एतेराज़ करते हुए कहा कि हमारे यहां तो एक ही आसन रायेज है इसलिए या तो वही आसन इख़्तियार करो या मुझसे दूर रहो। जब इस बात का चर्चा हुआ तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भो इसकी ख़बर पहुंची। चुनांचे अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल ने यह आयत نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّى شِئْتُمْ नाज़िल फ़रमाई, यानी आगे से, पीछे से या चित लिटा कर लेकिन वहीं पर जहाँ से बच्चा पैदा होता है। [सुनन अबु दाऊद 2164/ किताबुन निकाह, मुसनद अहमद 8510]
(8) इब्ने मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दस ख़सलतें (आदतें) नापसंद थीं-
- (1) मर्दों का ज़र्दी यानी ख़लूक़ लगाना,
- (2) सफ़ेद बालों को तब्दील (उखेड़ना या काला) करना,
- (3) इज़ार टख़नों से नीचे लटकाना,
- (4) मर्दों का सोने की अंगूठी पहनना,
- (5) बे मौक़ा व महल अजनबियों के सामने औरतों का बन ठन और सज संवर कर निकलना,
- (6) शतरंज (chess) खेलना,
- (7) मुअव्वेज़ात के इलावा झाड़ फूंक करना,
- (8) तावीज़ लटकाना,
- (9) नाजायज़ जगह मनी (वीर्य) गिराना
- (10) बच्चे को कमज़ोर करना वह इस तरह कि बच्चे के दूध पीने के दौरान उसकी मां से संभोग करना।
[नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बाद में इसकी इजाज़त दे दी थी, देखें: सुनन अबु दाऊद हदीस नंबर 3882, जामे तिर्मिज़ी 2076, 2077/ दूध पिलाने के दिनों में बीवी से संभोग करने का बयान]
अबु दाऊद कहते हैं कि, "यह हदीस सिर्फ़ बसरा वालों के यहां मिलती है।" लेकिन इमाम अल्बानी ने इसे सही क़रार दिया है। [सुनन अबु दाऊद हदीस नंबर 4222/ किताबुल लिबास, सोने की अंगूठी के बारे में، सुनन निसाई 5091/ किताबुज़ ज़ीना, पीला ख़िज़ाब लगाने के बारे में]
एनल और ओरल सेक्स
पश्चिमी संस्कृति की पूजा करने वाले कुछ महानुभाव ऐसे भी हैं जो अश्लीलता की सभी सीमाएं पार कर चुके हैं वह [ओरल (मौखिक) सेक्स] लिंग को पत्नी के मुंह में डालने की वकालत करते हैं और पत्नियों को इस अमल पर मजबूर करते हैं और इसके लिए यह दलील पेश करते हैं कि क़ुरआन व सुन्नत में इस अमल से कहीं भी मना नहीं किया गया है। ऐसे लोग क़ुरआन व सुन्नत को बदनाम करते हैं। उनको मालूम होना चाहिए कि लिंग चूसना शरअ से हराम है। मुंह मे डालना हर्गिज़ जाएज़ नहीं बल्कि यह कबीरह गुनाह है। किसी भी औरत के लिए अपने शौहर का लिंग चूसना किसी भी सूरत में जाएज़ नहीं और इसके हराम होने किसी शक की गुंजाइश नहीं। वकालत करने वाले क़ुरआन की इस आयत पर गौर क्यों नहीं करते है:
इस आयत में فَأْتُوهُنَّ مِنْ حَيْثُ أَمَرَكُمُ اللّهُ से बिल्कुल स्पष्ट है कि बच्चे की पैदाइश की जगह को छोड़कर किसी और जगह लिंग दाख़िल करना हराम है वरना हैज़ (मासिक धर्म) और निफ़ास के दिनों में संभोग करने से मना करने की क्या ज़रूरत थी। मुँह में दाख़िल करने की इजाज़त दे दी जाती आगे और भी वज़ाहत है कि अल्लाह पाक है और पाक लोगों से मुहब्बत करता है।
इससे अगली ही आयत نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّى شِئْتُمْ है जिसकी तावील करके पश्चिम के पुजारी यह साबित करने की कोशिश करते हैं।
क़ुरआन की इस आयत نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّى شِئْتُمْ का पसमंज़र और व्याख्या हदीस से बिल्कुल स्पष्ट हो चुकी है। एक नज़र फिर से इसपर डालने और ग़ौर करने की ज़रूरत है।
इस पाक आयत के दूसरे जुमले में बीवी से संभोग के उद्देश्य औलाद की प्राप्ति बताया जा रहा है और औरत के पिछले हिस्से (anal sex) और मुँह में संभोग (oral sex) करने से इस उद्देश्य की प्रप्ति नहीं हो सकती। इसलिए यह दोनों काम हराम हैं।
सैयद अबुल आला मौदूदी ने इसकी तफ़्सीर में लिखा है:
अल्लाह ने औरतों को मर्दों के लिए सैरगाह नहीं बनाया है बल्कि उन दोनों के दरमियान खेत और किसान का सा तअल्लुक़ है। खेत में किसान महज़ तफ़रीह के लिए नहीं जाता बल्कि इस लिए जाता है कि उससे पैदावार हासिल करे। नस्ले इंसानी के किसान को भी इंसानियत की खेती में इस लिए जाना चाहिए कि वह उससे पैदावार हासिल करे। अल्लाह की शरीअत को इससे बहस नहीं तुम उस खेत में काश्त करते हो, अलबत्ता उसका मुतालबा तुमसे यह है कि जाओ खेत में ही और इस ग़रज़ के लिए जाओ कि उससे पैदावार हासिल करनी है। [तफ़हीमूल क़ुरआन जिल्द 1/तफ़्सीर सुरह अल बक़रह आयत 223]
अगर ग़ैर फ़ितरी (unnatural) अमल anal और ओरल सेक्स जायज़ होता या इसकी इजाज़त होती तो फिर मर्द के लिए औरत और औरत के लिए मर्द की तख़लीक़ और लिंग भेद की क्या ज़रूरत थी, पति पत्नी को एक दूसरे का सुकून क्यों क़रार दिया जाता। समलैंगिकता (homosexuality) क्या बुरी चीज़ थी आख़िर क़ौम लूत को बार बार यह चेतावनी क्यों दी जाती कि,
"तुम ऐसे गंदे और बेहयाई के काम करते हो जो तुमसे पहले किसी ने नहीं किया। तुम औरतों को छोड़कर मर्दो से ख़्वाहिश पूरी करते हो हक़ीक़त में तुम हद से गुज़रे हुए लोग हो।" [सूरह 07 अल आराफ़ आयत 80, 81]
"और लूत को हमने ऐसी क़ौम की तरफ़ भेजा था जो बुरे और गंदे काम करते थे वास्तव में यह बुरे और फ़ासिक़ लोग थे।" (सूरह 21 अल अंबिया आयत 74)
"क्या तुम दुनिया की मख़लूक़ में से मर्दों के पास जाते हो और जिन्हें तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे लिए बनाया है उन्हें छोड़ देते हो, तुम लोग हक़ीक़त में तमाम सीमाएं पार कर चुके हो।" [सूरह अश शुअरा आयत 165, 166)"- (सूरह अश शुअरा आयत 165, 166]
"तुम तो ऐसे गंदे और बेहयाई के काम करते हो जो तुमसे पहले किसी ने भी नहीं किया, तुम्हारा तो हाल यह है कि मर्दों से ख़्वाहिश पूरी करते हो, रास्ते पर डाके डालते हो और अपनी महफ़िलों में बेहयाई और बुरे काम करते हो।" [सूरह 29 अल अंकबूत आयत 28, 29]
"क्या तुम खुल्लमखुल्ला गंदगी फैलाते हो, और तुम औरतों को छोड़कर मर्दों के पास ख़्वाहिश पूरी करने जाते हो वास्तव में तुम एक निरी जाहिल क़ौम हो।" [सूरह 27 अन नमल आयत 54, 55]
और जब बार बार समझाने और हर वक़्त नसीहत करने के बाद भी क़ौमे लूत ने अपने नबी लूत अलैहिस्सलाम की बात नहीं मानी और इस गंदे और घिनौने अमल को नहीं छोड़ा यहां तक कि और दिलेर होते चले गए, एहसासे ज़ियां मर गया तो अल्लाह तबारक व तआला ने इस क़ौम पर नामनेट पत्थर बरस कर ऐसा तबाह व बर्बाद कर दिया कि उनका नाम व निशान बाक़ी न रहा अलबत्ता मृत सागर dead sea मौजूद है जिसमें आज भी जीव जन्तु नहीं पाए जाते।
"फिर जब फ़ैसले का वक़्त आ पहुंचा तो हमने बस्ती को उलट पलट दिया और उनपर पकी हुई मिट्टी के पत्थर बरसाए, हर पत्थर तेरे रब के यहां से निशान ज़दह (नाम नेट) था और ज़ालिमों से यह अज़ाब दूर नहीं है।" [सूरह 11 हूद आयत 82, 83]
Conclusion/निष्कर्ष
पत्नी के मुंह में लिंग रखना किसी भी बुद्धिमान मर्द व औरत के लिए किसी सूरत में मुनासिब नहीं है क्योंकि मुँह खाने-पीने, ज़िक्र करने, क़ुरआन की तिलावत करने, भलाई का हुक़्म देने और बुराई से रोकने के लिए अता किया गया है, और लिंग के लिए उसकी मख़सूस जगह अल्लाह तआला ने बनाई है। चुनांचे अगर किसी शौहर का पत्नी को छूने या foreplay इरादा हो और वह लिंग को दोनों रान के अतिरिक्त कहीं रखना चाहे तो इसमें में किसी शक की गुंजाइश नहीं यह पश्चिमी संस्कृति द्वारा लाई गई इन्तेहाई घिनावनी आदत है जिसे उन अधर्म लोगों ने सिखाया है जिनका कोई दीन धर्म नहीं है।
आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
4 टिप्पणियाँ
Jajak allah kher
जवाब देंहटाएंMasha Allah Hazrat aap ne bhot achha mas Ala btaya Allah aapko Umar or ilm me barkaten ata farmay
जवाब देंहटाएंJazakallah khair
जवाब देंहटाएंGood explanation
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।