Istikhara Kya Hai? Ise Kab Aur Kaise Karein?

 

इस्तिखारा क्या है?

Table Of Content


1. इस्तिखारा क्या है?


इस्तिखारा استخارة लफ्ज़ अरबी ज़ुबान के असल लफ्ज़ (root word) خ ی ر से बना है जो कि नरमी, मेहरबानी और मिलान पर दलालत करता हैं। इस्तिखारा का मानी दो कामों मे से अपने लिए बेहतर तलब करना हैं, इस्तअताफ यानी नरमी और मेहरबानी तलब करना, अच्छी चीज की तलाश करना" है।

जब भी कोई मुसलमान अपनी जिंदगी के बारे में या उससे जुड़े किसी काम के बारे में सही फैसला करने में दुश्वारी महसूस करें तो उसे चाहिए कि अल्लाह से रुजू करें, उससे रहनुमाई तलब करें। अल्लाह सबसे ज्यादा रहम करने वाला है, आपको दुनिया में सबसे बेहतर रहनुमाई करने की ताकत रखता है। और इसी वजह से हमारे नबी रसूल अल्लाह (ﷺ) ने हर मुसलमान को इस्तिखारा कर के अल्लाह से मशवरा करने का हुक्म दिया। 


2. सलातुल इस्तिखारा


(इस्तिखारे की नमाज़) एक ताकतवर अमल है जिसमें एक मुसलमान अल्लाह ताला से रहनुमाई मांगता है और हर मुसलमान को चाहिए कि वह हर मामले में उससे रहनुमाई तलब करे। अपनी जिंदगी में छोटा या बड़ा कोई भी काम करने से पहले इस्तखारा करने में हिचकिचाहट महसूस नहीं करनी चाहिए।

इस दुआ को इख़लास के साथ अदा करना जरूरी है। हमारे दिलों में सिर्फ अल्लाह ही हमें वह रहनुमाई दे सकता है जिसकी हम तलाश करते हैं और उस हिदायत पर अमल करना है जो वह हमें देता है चाहे वह हमारी ख्वाहिश के खिलाफ हो।

हमें यह दुआ पूरे यकीन के साथ पढ़नी चाहिए, बल्कि अल्लाह से साफ तौर पर हिदायत मांगना चाहिए।


3. इस्तिखारे से मुताल्लिक़ हदीस


रसूल अल्लाह (ﷺ) हमें तमाम मालूमात में इस्तिखारा की तालीम देते थे, कुरान की सूरत की तरफ (नबी करीम ﷺ ने फरमाया) जब तुम में से कोई शख्स किसी काम का इरादा करें तो दो रकत (नफील) नमाज़ पढ़े उसके बाद इस तरह दुआ करें के,

"ऐ अल्लाह! मैं भलाई मांगता हूं (इस्तिखारा) तेरी भलाई से, तू इल्म वाला है, मुझे इल्म नहीं और तू तमाम पोशीदा बातों को जानने वाला है

ऐ अल्लाह! अगर तू जानता है कि यह काम मेरे लिए बेहतर है, मेरे दीन के एतबार से, मेरी दुनिया और मेरे अंजाम के ऐतबार से या दुआ में ये अल्फ़ाज़ कहें फी अजिली अमरी, वा अजिलिहि तू उसे मेरे लिए मुकद्दर कर दे और अगर तू जानता है कि यह काम मेरे लिए बुरा है मेरे दीन के लिए, मेरी जिंदगी के लिए और मेरी मौत के लिए या ये लफ्ज़ फरमायें फी अजिली अमरी, वा अजिलिहि तो मुझे उससे फेर दे और मेरे लिए भलाई मुक़द्दर कर दे कहीं भी वह हो और फिर मुझे उससे मुत्मइन कर दे।"

(यह दुआ करते वक्त) अपनी ज़रूरत का बयान कर देना चाहिए। 

सहीह बुखारी-6382,7390; 
इब्न माजा-1383, सहीह; 
सुनान नसई-1383, सहीह


4. शादी के लिए इस्तिखारा कैसे करें?


अक्सर रिश्ता करने से पहले आप कुछ लोगों से सुनते हैं "हम इस्तिखारा करके बताएंगे" और जिन लोगों को इसका इल्म नहीं वो सोच में पढ़ जाते हैं, ये क्या होता है? ये कैसे होता है? क्यों होता है?

कोई भी छोटा बड़ा काम हम लोगों की राय से करते है ये सोच के की कही इसमें कोई मुश्किल न आ जाये, हमें बाद में पछताना न पड़े। इसी तरह शादी से पहले दोनों परिवारों को इस्तिखारा करने की सलाह दी जाती है ताकि इस फैसले में अल्लाह ताला की राय जान ली जाये और उस राय के मुताबिक अगला कदम उठाया जाये। 

हमारे मुआशरे में इस्तिखारा को शादी के नाम से मशहूर कर दिया गया है, रिश्ता तय करते वक़्त लोगो को इस अमल का ख्याल आता है जबकि इस्तिखारा सिर्फ शादी के लिए नहीं बल्कि हर छोटे बड़े काम को करने से पहले किया जाना चाहिए। 


5. इस्तिखारा करने का वक़्त 

सहीह अहादीस से वक़्त मुक़र्रर नहीं है। जैसा के मकरूह वक़्त में नमाज़ पढ़ना मन है इसलिए अपनी सहूलत के हिसाब ये वक़्त छोड़ के किसी भी वक़्त इस्तिखारा किया जाये मसलन चास्त, ज़ोहर, मग़रिब या ईशा के बाद या तहज्जुद में।

 

6. इस्तिखारा करने का तरीका या इस्तिखारा कैसे करें? 


1. सबसे पहले अच्छी तरह वुज़ू करें।

2. दो रकत नफिल नमाज (5 फर्ज नमाज़ो के अलावा नमाज) पढ़ें।

3. हर रकत में सूरह फातिहा के बाद जो सूरत पढ़ना चाहते हैं पढ़ें (रसूल अल्लाह (ﷺ) की तरफ से कोई सूरत तयशुदा नहीं है)।

4. सलाम फेरने के बाद इस्तिखारे की दुआ अरबी में पढ़ें।

5. फिर जिस ज़बान में आप चाहे अपनी जरूरत का इज़हार करें। इसके बाद किसी दूसरी दुआ की जरूरत नहीं है।  


7. इस्तिखारे की दुआ 


अरबी मे:


اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَخِيرُكَ بِعِلْمِكَ ، وَأَسْتَقْدِرُكَ بِقُدْرَتِكَ، وَأَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ الْعَظِيمِ ، فَإِنَّكَ تَقْدِرُ وَلَا أَقْدِرُ ، وَتَعْلَمُ وَلَا أَعْلَمُ ، وَأَنْتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ، اللَّهُمَّ إِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الْأَمْرَ خَيْرٌ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي، أَوْ قَالَ فِي عَاجِلِ أَمْرِي، وَآجِلِهِ ، فَاقْدُرْهُ لِي، وَإِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الْأَمْرَ شَرٌّ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي ، أَوْ قَالَ فِي عَاجِلِ أَمْرِي ، وَآجِلِهِ ، فَاصْرِفْهُ عَنِّي وَاصْرِفْنِي عَنْهُ ، وَاقْدُرْ لي الْخَيْرَ حَيْثُ كَانَ ، ثُمَّ رَضِّنِي بِهِ

हिंदी मे:

अल्लाहुम्मा इन्नी अस्तखीरुका बि'इल्मिका, वा 'अस्तकदिरुका बिक़ुदरतिका, वा' अस अलुका मिन फादलिकल-' अज़ीमी (अधीमी), फा'इनका तक़दिरु वा ला 'अक्दिरु, वा ता'लामू, वा ला 'ए'लामू, वा 'अंता' अल्लामुल- .ग़ुयूब,अल्लाहुम्मा 'इन कुंता ता'लामु' अन्ना हाज़ल-'अमरा ख़ईरुन ली फ़ी दीनी वमाआशी वा 'आक़िबती' अमरी, अव क़ाला फी आजिली अमरी, वा आजिलिहि, फक़ुदरुहु ली, वा इन कुंता ता'लामु' अन्ना हाज़ल-'अमरा शररुन ली फी दीनी वा मा'आशी वा' आक़िबती 'अमरी, अव क़ाला फी अजिली अमरी, वा अजिलिहि, फसरिफहु अन्नी वसरिफ्नी 'अन्हु, वक़दुर लि'ल-ख़ैरा हैसु काना, सुम्मा' रज़िनी बिही।

अंग्रेजी (English Transliteration) मे:

'Allahumma inni astakhiruka bi'ilmika, wa astaqdiruka biqudratika, wa as'aluka min fadlika-l-'azim, fa innaka taqdiru wala aqdiru, wa ta'lamu wala a'lamu, wa anta'allamu-l-ghuyub. Allahumma in kunta ta'lamu anna Ha-za-l-amra khairun li fi dini wa ma'ashi wa 'aqibati `Amri, 'aw qaala fi 'ajili `Amri, fa-qdurhu li, Wa in kunta ta'lamu anna Ha-za-l-amra sharrun li fi dini wa ma'ashi wa 'aqibati `Amri, 'aw qaala fi ajili `Amri, wa ajilihi, fasrifhu 'anni was-rifni 'anhu wa aqdur li alkhaira haithu kana, summa' Razini bihi


तर्जुमा: "ऐ अल्लाह! मैं भलाई मांगता हूं (इस्तिखारा) तेरी भलाई से, तू इल्म वाला है, मुझे इल्म नहीं और तू तमाम पोशीदा बातों को जानने वाला है।
ऐ अल्लाह! अगर तू जानता है कि यह काम मेरे लिए बेहतर है, मेरे दीन के एतबार से, मेरी दुनिया और मेरे अंजाम के ऐतबार से तू उसे मेरे लिए मुकद्दर कर दे और अगर तू जानता है कि यह काम मेरे लिए बुरा है मेरे दीन के लिए, मेरी जिंदगी के लिए और मेरी मौत के लिए तो मुझे उससे फेर दे और मेरे लिए भलाई मुक़द्दर कर दे कहीं भी वह हो और फिर मुझे उससे मुत्मइन कर दे।"

नोट: 

  1. दुआ करते वक्त अपना मामला या फैसला "هَذَا الْأَمْرَ (हाज़ल-'अमरा/Ha-za-l-amra)" की जगह ज़िक्र किया जाए। 
  2. ये अल्फाज इस पूरी दुआ में दो बार आते हैं और दोनों जगह अपना मामला रखें। 
  3. अगर यह दुआ आपको याद नहीं है तो इसे किताब, किसी काग़ज़ या अपने फोन से पढ़ें।
  4. किसी भी दुआ को अरबी ज़ुबान में पढ़ना बेहतर और अफ़ज़ल माना गया है क्यूंकि दूसरी ज़ुबान में इसका सही मतलब नहीं निकलता। 


8. इस्तिखारे का नतीजा कैसे निकलेगा?


कुछ किताबों (जैसे पंसुरा) के मुताबिक लोग ईशा में इस्तिखारा करते है और बिना किसी से बात किये सो जाते है के उन्हें ख्वाब में सफ़ेद रंग  दिखेगा जिसका मतलब है वो जिस मकसद के लिए इस्तिखारा कर रहे है वो काम कर सकते है और अगर स्याह रंग दिखा तो वो काम नहीं करना चाहिए और ऐसे ख्वाब के इंतज़ार में लोग कई रात इस्तिखारा करते है, कुछ तीन दिन तो कुछ सात दिन।

जरूरी नहीं कि आप ख्वाब/ रंग/निशान वगैरा देखेंगे। अल्लाह ताला आपके दिल में अमल करने या ना करने की तरफ थोड़ा सा झुकाव पैदा करेगा। अगर वह काम करना चाहिए तो आप उस काम को लेकर मुत्मइन होंगे और अगर वह काम करना आपके हक में नहीं है तो बार-बार आप उस काम के बारे में सोचते रहेंगे। आपका दिल उस काम को करने की गवाही नहीं देगा।

बाद में अपने फैसले पर पछतावा ना करें क्योंकि ऐसा करना अल्लाह की हिदायत पर पछतावा और शक करना है। यहां तक कि अगर आपका फैसला गलत साबित होता है जिसके बारे में आपने सोचा भी नहीं था तो जान ले के यह आपके लिए बेहतर था और ये की इसमें बरकत है जो आपको उस वक्त नहीं बल्कि आगे चलकर समझ आएगा।


नोट: हराम आमाल (क्या उस लड़का/लड़की से बात करना चाहिए?, क्या मुझे यह शराब पीनी चाहिए? वगैरह) या वाजिब आमाल (जैसे क्या आज ईशा की नमाज़ पढ़नी चाहिए?) के लिए कोई इस्तखारा नहीं है।


9. इस्तिखारा करने के बाद क्या करें?


दुआ करने के बाद बेसब्री नहीं करनी चाहिए। हमें चाहिए कि हम सिर्फ अपनी दुआएं करें और भरोसा रखे के अल्लाह ने हमारी सुन ली है और हमें उस तरीके से जवाब देगा जो बेहतरीन है। रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया,

 "हर एक की दुआ उस वक्त तक कबूल होती है जब तक के वह जल्दबाजी ना करें और यह ना कहे कि उसने दुआ की लेकिन कबूल नहीं हुई।" [सहीह  बुखारी 6340; सहीह मुस्लिम 2735]



Posted By: Islamic Theology


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...