Ex Muslim Movement- Hamare Gharo Me

Ex Muslim Movement in our home


इर्तिदाद के अड्डे कॉलेज या हमारे घर

मुर्तद होती हज़ारों मुस्लिम लड़कियों की कहानियां सामने आने के बाद आज तमाम मुसलमान स्कूल,कॉलेजों को मुर्तद होने के अड्डे बता रहे हैं, जो कि मोटे तौर पर देखने पर बिल्कुल सही भी लगता है, क्योंकि ग़ैरमुस्लिम इदारों को तो छोड़ ही दीजिये बल्कि उन मुस्लिम इदारों की हालत इतनी ख़राब है जिन पर मुसलमान फ़ख़्र करते हैं और अपनी बच्चे बच्चियों को वहाँ पढ़ाने को ज़िन्दगी के किसी भी नुक़सान को उठाने को तैयार रहते हैं, आज उन मुस्लिम इदारों में पढ़ रही 40-50% मुस्लिम लड़कियाँ खुलेआम शिर्क के हामियों के साथ ज़िना कर रही हैं, और 70% मुस्लिम लड़के एक शिर्क को अपना लेने से अलग दुनिया का हर बदतरीन गुनाह खुलेआम कर रहे हैं, और ख़ुद को फ़ख़्र से मॉडर्न कह रहे हैं... तो क्या वाक़ई ये स्कूल कॉलेज इर्तिदाद के अड्डे हैं या इसकी असल वजह कुछ और है..??

लेकिन पहले ये जान लीजिए कि मुर्तद होना ईमान से फिर जाने को कहते हैं लेकिन जिस तक ईमान पहुंचा ही न हो वो क्या मुर्तद होगा..?? और आज हिंदुस्तान में 30-40% मुस्लिम नौजवान ऐसे हैं जिनको हम मुसलमान समझते हैं लेकिन असल में तो वो बेचारे ख़ुद नहीं जानते कि मुसलमान कहते किसे हैं, और उन 30-40% की तरबियत भी ग़ैरइस्लामी मुआशरे और मोबाइल टी.वी. के ज़रिए शैतानी माहौल में हुई होती है, असल में तो उनका दीन ईमान से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता सिवाये उर्दू अरबी नाम के, वो बेचारे तो कलमे का भी मायना नहीं जानते और उनकी इस हालत के ज़िम्मेदारा उनके जहन्नमी वालिदैन होते हैं, इसलिए स्कूल कॉलेज को इर्तिदाद के अड्डे बता देना बहुत आसान तो है मगर सच नहीं है बल्कि ये अड्डे ख़ुद हमारे घर हैं.. आइये अब ईरतिदाद के बाक़ी अड्डे और मुर्तद लोगों की दूसरी पहचान जान लीजिए और समझ जाइये कि अभी इर्तिदाद की आँधी आने वाली है


👉 बड़ी बड़ी कंपनियों में नौकरियां और बड़े इदारों से PG और PhD कर रही लड़कियों को क्या कोई संघटन अपनी साजिश में फंसा सकता है..?? हरगिज़ नहीं... बल्कि हमने देखा कि इतनी लड़कियों की ज़िंदगी ख़राब हो जाने और बेशुमार मामले सामने आने के बाद भी ये पढ़ी लिखी अमीर घरों की लड़कियाँ मुशरिकों के साथ ज़िना करने में मसरूफ़ हैं तो उनके बारे में तहक़ीक़ की गई तो पाया गया कि वो लड़कियाँ ख़ुद किसी मुशरिक की गंदगी से पैदा थीं और उनके शजरे ही गंदे थे.. यानि ये गंदगी मुस्लिम मुआशरे में अचानक पैदा नहीं हुई है बल्कि इसकी जड़ें काफ़ी पुरानी हैं.. इनके वालिदैन पर दौलत तो बहुत थी लेकिन उनकी कोई कमाई बिना हराम (interest/ haram jobs) की दौलत के पूरी नहीं होती थी इसलिए हराम खाने वाले इन लोगों को हर हराम काम पसंद था.. इन लोगों को देख कर आसानी से समझा जा सकता है कि इस्लाम में हराम कमाई और हराम खाने से इतनी सख़्ती से क्यों रोका गया है, और इस बात में कोई शक नहीं कि आज बेशुमार मुसलमानों का ईमान पैसा बन चुका है फिर भले ही वो किसी भी ज़रिए से उनको हासिल हो उन पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता


👉 जिन लड़कियों को आप मुसलमान समझ रहे हैं उनमें बड़ी तादाद मुसलमान नहीं है आइये इस बात को समझते हैं.. कॉलेज में पढ़ रहीं ये लड़कियाँ 6-7 घंटे कॉलेज में और 3-4 घंटे कोचिंग में गुज़ारती हैं, इनका अपने घर में खाना खाने और रात को सोने के लिए आना होता है यानि घर इनके लिए सिर्फ़ एक सराय है, जब ये घर आती हैं तब ज़ेहनी तौर पर थकी होती हैं और किसी से ज़्यादा बात नहीं करतीं, खाना खाने, टीवी, मोबाइल देखने और पढ़ाई के लिए अलग कमरे में रहना इनका रूटीन होता है, घर में इनसे कोई दीन ईमान की एक बात करने या सिखाने वाला नहीं होता है क्योंकि सबको अपनी औलादें दुनियावी मामलात में आगे चाहियें, उसी घर के बाहर इनका अनपढ़ और आवारा भाई रात को दो बजे तक किसी से मोबाइल पर अय्याशी करने में मसरूफ़ होता है जिसको देख कर इन लड़कियों को अपनी अय्याशी जाइज़ लगने लगती है और अपना मुआशरा भी पिछड़ा लगने लगता है.. जिसकी वजह से ये लड़कियाँ कॉलेज और कोचिंग में मुशरिकों से हंसी मज़ाक़ और यारी दोस्ती करती हैं और बाहर खुल कर एन्जॉय करती हैं.. इनसे अलग बाहर रह कर पढ़ रहीं ज़्यादातर लड़कियां हो या नौकरी कर रहीं लड़कियां इनके लिए तो इनका घर एक सराय से ज़्यादा कुछ नहीं बल्कि इनकी तमाम परवरिश ग़ैरइस्लामी मुआशरे और शैतानीं ज़रिए मोबाइल और टीवी से हो रही है जिसका असर आज आप इनकी ज़िन्दगी पर साफ़ साफ़ देख सकते हैं। 


पांच दस हज़ार रुपये की प्राइवेट नौकरी कर रहीं लड़कियाँ सबसे ज़्यादा मुशरिकों के साथ ज़िना कर रही हैं, क्योंकि अमूमन उनकी नौकरी मुशरीकीन के यहाँ ही होती है और उनको वहाँ देखने वाला कोई अपना भी नहीं होता, साथ ही उनके बाप भाई हराम खाने के आदी होते हैं और अपनी बहन बेटी के जिस्म या ईमान बेच कर लाये जा रहे पैसे से ऐश करने पर उनको कोई दिक़्क़त नहीं होती, चंद ज़रूरतमंद लड़कियों को छोड़ दिया जाए तो आप पाएंगे कि आज बेशुमार मुस्लिम लड़कियां सिर्फ़ पैसा कमाने को नौकरियां कर रही हैं और उनके मर्द घरों में ख़ाली पड़े होते हैं और नशा व अय्याशियों में मुब्तिला होते हैं, पांच दस हज़ार की नौकरी करने वाली लड़की महाना 20-25 हज़ार कहाँ से ख़र्च करती है ये कोई उनसे पूछने वाला नहीं होता.. अगर ये कहा जाए कि आज बेशुमार बेदीन मुसलमानों ने अपनी बहन बेटियों को नौकरी के नाम पर ज़िना करने को खुला छोड़ दिया है तो ये ग़लत न होगा.. आप अगर उनको पूरे सबूत के साथ ये बताएं कि उनके घर की इज़्ज़त किसी मुशरिक के मोबाइल और सोशल मीडिया की ज़ीनत बनी हुई है तो वो उल्टा आपको भला बुरा कहेंगे और अपनी लड़की को ज़रा न समझाएंगे, क्योंकि उनको हराम इस दर्जा मुंह लग चुका होता है कि वो अब इसको किसी सूरत नहीं छोड़ सकते।  इन तमाम हालात में वो चंद लड़कियां ही इस गंदगी से बच पा रही हैं जिनकी तरबियत बहुत अच्छी और इस्लामी है या जो अपनी परेशानियों के सबब घरों से बाहर निकली हैं और उनको अपनी ज़िंदगी और अपने घर की इज़्ज़त और ख़ुदा के अज़ाब का ख़ौफ़ है। 


सिर्फ़ लड़कियां ही नहीं बेशुमार लड़के भी आज मुर्तद होने की कगार पर खड़े हैं उनके इक़रार न करने की सिर्फ़ तीन वजहें हैं पहली कि वो जुमा को थोड़ा बहुत दीनी तालीम से रू-ब-रू हो जाते हैं, दूसरी वो रोज़ किसी न किसी मुसलमान की मुशरिकों के हाथों दर्दनाक ख़बर सुन लेते हैं, और तीसरी ये कि उनको कोई मुशरिक हो जाने के ऐलान के बदले कुछ फायदा नहीं दे रहा वरना वो कब का मुशरिक हो जाने का ऐलान कर दें.. लेकिन आप देखेंगे कि आज कोई ऐसा मुस्लिम मुहल्ला नहीं मिलेगा जहाँ से कुछ नाम निहाद मुस्लिम ज़ालिमों के पावँ धो कर पीने तक आमादा न हों और वो अपने मुआशरे की मुखबरी न कर रहे हों.. यहाँ तक कि वो अपने छोटे छोटे मफ़ाद के बदले अपनी औरतों तक उन ज़ालिमों की रसाई कराते हैं और उनको अपने घरों में लाते हैं, और अपनी औरतों के साथ हंसी मज़ाक़ करवाते हैं, और आज उनके आधे रस्मों रिवाज भी मुशरिकों वाले हो चुके हैं। 


आज तमाम नाचने गाने वाले नाम निहाद मुसलमानों को ख़रीद कर उनकी शादियाँ ग़ैरमुस्लिमों से कराई जा रही हैं और उनके ज़रिए ग़ैरउल्लाह की इबादत करते हुए वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करने की बाढ़ सी ला दी गई है, साथ ही यूट्यूब पर EX-Muslim कंटेंट से एक बड़ा दज्जाली फ़ितना तैयार किया जा रहा है जिसमें आज 95% लोग फ़र्ज़ी मुस्लिम हैं जो ख़ुद के इस्लाम छोड़ने की झूठी कहानियाँ सुनाते हैं और खुलेआम इस्लाम को गालियाँ देते हैं, लेकिन ये काफ़ी तेज़ी से मुस्लिम नौजवानों को इस्लाम की ग़लत जानकारी दे कर गुमराही में खींच रहे हैं, और आने वाले दिनों में आप देखेंगे कि मुस्लिम नौजवानों की एक बड़ी तादाद इस फ़ितने की ज़द में आ कर खुद को शैतान का अलम्बरदार कह रही होगी और ख़ुद पर इस्लाम को छोड़ देने के बदले फ़ख़्र कर रही होगी, यानि वो दज्जाल की जन्नत की तरफ भाग रहे होंगे जो असल में दोज़ख़ होगी.. इस तमाम खेल को पूरा दज्जाली निज़ाम मिल कर अंजाम दे रहा है और इसके ख़िलाफ़ कभी कोई एक्शन नहीं लिया जाता.. आज सोशल मीडिया पर किसी भी डर्टी ग्रुप या पेज पर मुस्लिम नौजवानों की भारी तादाद आसानी से देखी जा सकती है.. यानि उनकी परवरिश पूरी तरह से शैतानी निज़ाम में हो रही है और उनके वालिदैन ने उनको दीन का एक अमल नहीं सिखाया होता है.. अब उन पर अल्लाह के हुक्मों की वही तो उतर नहीं रही जो वो दीन सीख जाएंगे, तो फिर हम उनको किस बिना पर मुसलमान समझ रहे हैं...?? 


इसी मामले का एक दूसरा पहलू ये भी है कि आज के दौर में जब सारी दुनिया मे इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ़ तारीख़ की सबसे बड़ी खुली जंग चल रही है तब उसी दौर में सारी दुनिया में इस्लाम क़ुबूल करने वालों की रफ़्तार भी सबसे तेज़ है, लेकिन हिंदुस्तान में मुर्तद होते लोगों को देख कर लगता है कि आज अल्लाह उन मुनाफ़िक़ों के चहरों से नक़ाब हटा रहा है जो मुशरिक़ थे मगर मुस्लिम होने का ढोंग कर रहे थे..  लेकिन आज के इन मुशरिकों को पहचानना बेहद मुश्किल था क्योंकि इनके दिलों में मुजस्सिमे हैं इसलिए अल्लाह ने क़ौम की इस गंदगी को सबके सामने ज़ाहिर कर दिया कि ये मुस्लिम नहीं मुशरिक हैं, इसलिये जहन्नम की तरफ़ भागते इन लोगों का ज़रा भी अफ़सोस न करो बल्कि अल्लाह का शुक्र अदा करो कि गंदगी छंट कर अलग हो गई वर्ना ये क़ौम के बीच रह कर न जाने कितने मुआशरे को सड़ा देती.. एक हदीस में आता है कि ज़माना ए आख़िर में कोई मुनाफ़िक़ नहीं होगा या तो लोग हक़ की जानिब खड़े होंगे या बातिल की जानिब..  वैसे भी जिसने अल्लाह के दीन के ख़िलाफ़ काम किया वो हमारे लिए किसी मरे हुए जानवर की सड़ती हुई लाश से भी बदतर है इसलिए हमको उसके साथ कोशिश तो करनी है लेकिन उसके बाद भी उनके मुर्तद हो जाने पर कोई अफ़सोस नहीं करना है क्योंकि अल्लाह की नज़र में वो जहन्नम का ही हक़दार है


 लेकिन इस सब के बावजूद हमको इस मसले पर बहुत मेहनत से काम करना है क्योंकि हमारे इदारों और रहनुमाओं की इस वक़्त में भी गुमशुदगी बता रही है कि जो करना है वो आम मुसलमानों को ही करना होगा, और अल्लाह का हुक्म है कि बुराई के ख़िलाफ़ पूरी क़ुव्वत से लड़ो, हमको इन जहन्नमी लोगों के लिए नहीं लड़ना है बल्कि इनकी वजह से हमारी क़ौम के नेक लोग गुमराह न हो जाएं इसलिए लड़ना है, और इन जहननामियों की पहचान क़ौम को करानी है, क्योंकि आज हम इनके ख़िलाफ़ खड़े नहीं हुए तो ये आग कल हमारे घरों तक भी पहुंच सकती है, हमको उनके लिए मेहनत करनी है जो सिर्फ़ दीन से दूर हैं लेकिन दिल से मुशरिक नहीं हैं, हमको उनको दीन की दावत देनी है ताकि वो किसी नाम निहाद मुसलमान की शैतानी चाल के शिकार न हो जाएं, हमको दीन से दूर होती क़ौम को उसकी ग़लती का एहसास कराना है क्योंकि मुसलमान होने के नाते हम पर ये फ़र्ज़ है, बाक़ी हिदायत देना तो अल्लाह का काम है.. और जिन लोगों के लिए अल्लाह ने हिदायत के रास्ते बंद कर दिए हों उनको हम तो क्या सारी दुनिया मिल कर हिदायत न दे पाएगी इसलिए जहन्नम की तरफ़ भागते लोगों का ज़रा अफ़सोस न करिये बस उनकी पहचान क़ौम को कराते रहिये जिस से नेक लोग हिदायत पा सकें और गुमराही से तौबा करते रहें..  वैसे भी इस्लाम वो समंदर है जिसमें से कुछ झाग निकाल दिए जाएं तो उसकी सफ़ाई तो हो सकती है लेकिन उसके पानी के दर्जे में ज़र्रे बराबर भी कमी नहीं आएगी। 




आपका दीनी भाई
मंसूर अदब पहसवी
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

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7 टिप्पणियाँ

  1. Jazakallah bhai jaankari dene ke liye

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  2. Jab Islam Ghar me ho to aisa kabhi nahi hoga pahle Ghar me Deen lao

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  3. बात बुलकुल. सत. प्रतिशत सही है 👍👍

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  4. Aise contents ko jab tak apne muslim ladkiyon tak nhi pahunchayi jaye, tab tak ummid na karen ki anhoni rukegi. Apne janne me jitni ladkiyan hon, apni bahan ya rishtedar me, insan ke sath ek group banaen, aur usme daily basis par aise information share karen

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  5. Ghar ka mard Deendar ho to ghar ki dehleez tak deen ata h or agar orat Deendar ho to naslon me deen utarta h

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  6. Allah ki rassi mazboot pakde to sab khair hoga

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