Nikah (part 11): Gair islami rasmein

Nikah (part 11): Gair islami rasmein


निकाह के मौके पर गैर ज़रूरी रस्में 


(xi). बारात

जैसे ही रिश्ता तय होता है वर पक्ष की तरफ़ से फरमाइशी लिस्ट जारी होने लगती है दहेज़ की डिमांड के बाद बारात में कितने लोग आएंगे 200,400, 800फिर इनके आव भगत के इंतजामात (arrangement) फिर बेटी का बाप दौड़-दौड़ कर बारातियों की फरमाइश पुरी करता है लोगों के सामने हाथ जोड़ कर जीहुजूरी करता है। 

मैंने बेटी के बाप से ज्यादा किसी इंसान को गरीब और मजबूर नहीं देखा जो अपने जिगर के टुकड़े और पुरी जिन्दगी की कमाई अजनबियों के हवाले करता फिर उनकी नजायेज डिमांड पर हांथ जोड़े फिरता है ये इसलाम की तालीम तो नहीं है और न ही इस तरह की रस्मों की कोई जगह है बारात में दो चार सौ लोगों को ले जाना एक गैर सरई रस्म है इस तरह की रस्म का बॉयकॉट करना चाहिए।


(xii). दावते तआम

बेटीयां रहमत है और अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हम ने अपनी बेटियों को बोझ बना दिया है बारात की आव भगत करने के साथ ही एक बेटी वाले को शहर और गांव वालों को भी दावत देनी पड़ती है एक तो वर पक्ष की फरमाइश पर बेटी के बाप का बाल बाल कर्ज़ में डूब जाता है उपर से अगर गांव जवार को न खिलाए तो ताने दिए जाते हैं दुल्हन पक्ष की तरफ़ से दावत का सरियत में कोई जगह नहीं है ये गैर ज़रूरी है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दीन को लोगों के लिए आसान बनाया है इस तरह निकाह मुश्किल होता जा रहा है 30/40 की उम्र पार हो रही है लाखों लड़के लड़कियां कुवारें बैठें है अल्लाह के वास्ते इन बेजा खर्चों से बाज़ आ जाएं। 


(xiii). सलाम कराई/बासी खवई

निकाह के बाद बेटी बिदा करने से पहले दुल्हन घर/ रिश्तेदार की तरफ़ से दूल्हा को सलाम कराई के तौर पर 1000/2000सलामी देनी पड़ती है खास कर सास से इस रस्म के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है। 

ये फिजूल खर्ची है। 


(xiv). खीर/मलीदा खवाही

इसी तरह से अलग अलग शहर में खीर या मालीदा खिलाने की रस्म अदायगी का रिवाज़ है दुल्हन की रूखसती से पहले दूल्हे को खीर या मलीदा पेश किया जाता है इस मौक़े पर तोहफा देने का भी चलन आम है साथ में दूल्हे को सोने की अंगूठी और चेन पहनाई जाती है जब की इसलाम में मर्द के लिए सोना और रेशम हराम है अगर दुल्हन की तरफ़ से इस तरह की कोई चीज़ न दी जाए तो सुसराल में उसे मुख्तलिफ किस्म के ताने सुनने पड़ते हैं। 

याद रखें रसुल्ल्लाह की हदीस में साफ़ तौर पर सोना को मर्द के लिए हराम फरमा दिया है। 

रसूलुल्लाह ﷺ ने एक शख्स की हाथ की उंगली में सोने की अंगूठी देखी आप ﷺ ने उसको उतार कर फेंक दिया और फरमाया तुम में से कोई शख्स आग का अंगारा उठाता है और उसे अपने हाथ में डाल लेता है!

[Sahi Muslim : 5472]

 

(xv) जूता छिपाई

खीर ख्वाई के वक्त ही दुल्हन की बहनें दूल्हा का जूता चुराती है और बदले में नेग और पैसे की डिमांड करती हैं और ऐसी महफ़िल में बेहूदा किस्म के हसी मज़ाक चलता है जूता तब तक वापस नहीं किया जाता जब तक मुंह मांगी रकम वसूली न हो जाए।  

जूता छिपाई हिन्दूओ की रस्म है, हम मुसलमानों को ग़ैर मुस्लिमों की रस्मों को इख़्तियार करने से बचना चाहिए।


(xvi). गौना की रस्म 

गौना की रस्म हिंदुओ की परंपरा है। इसे "फेरे" की रस्म भी कहा जाता है। इंडिया के मुख्तलिफ राज्यों में पहले जब कम उम्र में वर वधु की शादी होती थी तब शादी के बाद दुल्हन के व्यस्क (adult) होने तक अपने वालिद के घर रहती थी बाद में जब दूसरी बार जाती तो वह "गौना" कहलाता था। यह रस्म बाद में बड़ी आयु में शादी होने के बाद भी चलती रही। बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के कुछ जिलों में आज भी ये रस्म की जाती है। देखते देखते ये रस्म मुस्लिमों में भी आम हो गई। 

ये रस्म किसी ऐतबार से दुरुस्त नहीं है कि लड़की एक बार अपने शौहर के घर जाए फिर 2-3 साल उससे दूर रहे। ये रस्म बीवी और शौहर दोनों के साथ ज्यादती है जिसकी इस्लाम मे कोई जगह नहीं। 


(xvii). कुरान के साए में दुल्हन बिदा करना 

कुरान के साए तले दुल्हन को रुखसत करना कुरान करीम एक मुकदस और बा बरकत किताब है जिसकी दुनियां में कोई दूसरी मिशाल नहीं, जिसे देखना इबादत जिसे छूना इबादत जिसका एक एक लफ्ज़ हिदायत जिसे पढ़ कर रहनुमाई हासिल होती है कुरान के साए में अपनी बेटी या बहन को रूखस्त करने को अगर आप बरकत समझ रहे हैं तो सोचें कि जब निकाह कुरान के अहकाम के मुताबिक़ हो तो उसकी बरकत और रहमत का क्या पूछना और अफ़सोस है कि दौरान ए निकाह हम कुरान के एक लफ्ज़ पर भी गौर नहीं करते और फिर जब निकाह मुकम्मल हो जाता है तो लड़की का बाप या भाई रूखस्ती के वक्त उसे कुरान के साए में बिदा करता है ये अमल सुन्नत से साबित नहीं है और फिर माहौल देखें पुरी रात तो डीजे बजा खुराफाती काम किए गए और रूखसती में इतना रस होता है की घर की औरतों और दुल्हन की सहेलियां नंगे सिर अदाकाराओं वाले लिवास और साथ में मर्दों का भी हूजूम कहीं से भी ये नहीं लगाता कि ये मुस्लिमो की शादियां हैं ।हमारे जूर्मों की फेरिस्त इतनी लंबी की बस अल्लाह माफ़ कर दे ये सब देख कर रोना आता है।

इन शा अल्लाह अगली क़िस्त में दूसरी गैर इस्लामी रस्मों का ज़िक्र करेंगे। 

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हम सब को दीन की सही समझ अता फरमाए। 

आमीन


आप की दीनी बहन
फ़िरोज़ा

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