Main maans nahin, jeev hoon

Main maans nahin, jeev hoon


मैं मांस नहीं हूँ जीव हूँ।

हम वो बात नहीं कर रहे हैं जो आमतौर पर होती आई हैं। 

मसलन: इसेंशियल एमिनो एसिडस (essential amino acids) मिलती हैं, पेड़ भी जीव हैं। बहुत से जानवर सवारी या बोझ ढोने के लिए इस्तेमाल होते हैं ये भी उन पर ज़ुल्म हैं। और हमारे अंदर वो एंजाइम्स (enzymes) पाई जाती है जो उसे हज़म कर सके और हमारे दांत हेट्रोडॉन्ट (heterodont) हैं वगैरह वगैरह।

आज हम आप सब के बजा फिक्र मंदी को मद्दे नज़र रखते हुए इकोसिस्टम (ecosystem) के नज़रिए (point of view) से बात करेंगे। इंशाअल्लाह, लेकिन पोशीदा हक़ीक़त को बेनकाब करते हुए, जैसा कि आप सब को पता है मुस्लिम के लिए जो जानवर ज़बीहा हैं वो गाय, भैंस (RUMINANTS), बकरा और ऊंट वगैरह।

अब सवाल ये है कि इन जानवरों के ज़बह करने से (Ecosystem) पर कोई फर्क पड़ता है तो जवाब यही होगा "नहीं, क्योंकि ये जानवर (Herbivores) होते हैं और इन पर (Omnivores) का इन्हेसार होता है। (Ecosystem) में से एक जिंदगी का इन्हेसार दूसरी जिंदगी पर होता है और इंसानों का शुमार (Omnivorous) में ही होता है, यानी इंसानों की ग़िज़ा बनने से इन जानवरों का खात्मा नहीं होगा बल्कि इनका खत्मा उनके खत्म होने से होगा जिसपर इनका इन्हेसार है यानी (Vegetations)।

दूसरी अहम बात जानवरों के लिए खतरा तब बनता है जब हम उनके (Habitats) के साथ छेड़ छाड़ करें। यानी उनके आशियानों को उजाड़ दिया जाए। इसे मिसाल से समझे; हम ज़मीन पर रहने वाले हैं और अगर कोई हमें पानी में फेंक दिया तो हमारा (Survival) कितनी देर तक मुमकिन होगा?

तो बताए जो ज़बीहा हैं हम उनके habitat में कोई अमल दख़ल करते हैं? आपको भी पता है वो पालतू जानवर हैं यानि हम और आप ही उन्हें पालते हैं अपने ज़ाति मफ़ाद के लिए।

अब बारी है आपको थोड़ा झिंझोड़ने की, अगर बात समझ में ना आए तो सवाल करना चाहिए सवाल उठाना नहीं चाहिए। सवाल उठाने वाला खुद अपना ही दुश्मन होता है क्युकी वो असल हकीकत से बेखबर होकर झुंड का हिस्सा बन जाता है।

उन जानवरो के लिए नरमी हमदर्दी का परचम बुलंद करें, जिनके आशियाने उजाड़ कर उनकी नस्ल को ही खत्म किया जा रहा है। ऊपर बयान हो चुका कोई ज़िन्दगी ऐसी नहीं जो तन्हा इस दुनिया में रह सके, एक दूसरे की किसी ना किसी ज़ाविय से ज़रूरत होती है। ऐसी बहुत सी मिसालें मिल जाएंगी जो इंसानों की बेजा मुदाखलत से जानवरो की नस्ल ही खत्म हो गई और कुछ जानवर ऐसे भी हैं जिन्हें आईयूसीएन रेड लिस्ट थ्रेटेंड स्पीशीज (IUCN Red list threaten species) ये एक इंटरनेशनली उन तमाम जानवरो की फहरिस्त है जो खतरे या बहुत खतरे में हैं। 👇🏻

आईयूसीएन रेड लिस्ट में स्पीशीज की तादाद (2024 के मुताबिक)

  • कुल आंकी गई प्रजातियाँ: 1,57,190
  • अत्यधिक संकटग्रस्त (Critically Endangered): 9,760
  • संकटग्रस्त (Endangered): 10,031
  • कमज़ोर स्थिति (Vulnerable): 15,914
  • कुल संकटग्रस्त प्रजातियाँ (अत्यधिक संकटग्रस्त CR + संकटग्रस्त EN + कमज़ोर स्थिति VU): 35,705

ये तीनो कैटिगरीज ज़्यादा ख़तरे वाली हैं।

बाक़ी जो नंबर 157190-35705 =121458 ये लिस्ट कॉन्सर्न वाली स्पीशीज हैं। यानि इन्हें बचाया जा सकता है। 

नेशनली या रीजनली रेड डाटा बुक (Red data book) बनायी गयी है और उसमे एक क्राइटेरिया बनाया गया है क्रिटिकल एंडेंजर्ड, एंडेंजर्ड, वलनरेबल और एक्सटिंक्ट इन सब को पढ़ें! 👇🏻

रेड डाटा बुक 2024 के मुताबिक.

  • कुल आंकी गई प्रजातियाँ: 1,69,420
  • संकटग्रस्त प्रजातियाँ (अत्यधिक संकटग्रस्त + संकटग्रस्त + कमज़ोर स्थिति): 47,187

  • क्रिटिकली एंडेंजर्ड (critical endangered) बिल्कुल ख़तम होने के क़रीब। जैसे: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
  • एंडेंजर्ड (endangered) तेज़ी से कम हो रहे, लेकिन कुछ चांस है। जैसे: बंगाल टाइगर
  • वलनरेबल (Vulnerable) धीरे धीरे खत्म हो रहे हैं लेकिन वक्त है बचाने का। जैसे: एशियन एलिफेंट
  • विलुप्त (Extinct) पूरी तरह से ख़तम हो गए हैं। जैसे: डायनासोर और पैसेंजर पीजों

इंडिया में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 () Wild life protection Act 1972) को शेड्यूल (schedule) एक से ले कर पाँच तक में विभाजित (classified) किया गया है। क्या अब ये सवाल नहीं उठता है कि इन सब की ज़रूरत क्यू पड़ी? जिसे हम लोग जू (Zoo) और पार्क (park) के नामो से जानते हैं, असल में वो जानवरों और पेड़ पौधों का संग्रहालय (conserve) होता है यानि एक बोटेनिकल (botanical) और दुसरा जूलॉजिकल (zoological) पार्क होता है। जिसमें उन्हें एक कृत्रिम (artificial habitat) दिया जाता है उनके आशियाने उझाड़ कर उन्हे नुमाइशई बनाया जाता है जिसे आप और हम हमारे लिए तफ़रीह गाह (picnic spot) समझते हैं इसके क़ुसूर वार कौन हैं?

आप लोगो को सिर्फ़ डायनासोर के बारे में ही पता होगा की वो एक्सटिंक्ट (विलुप्त) हो गए। ये तो बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है कि जो हमारा इल्म और फ़हम हो वही पूरी हकीकत हो? 

अक्सर ऐसा ही होता है कि हमारी ला इल्मी और ना अहली का कुछ मुफाद परस्त लोगो के लिए हम भीड़तंत्र बन जाते हैं। भीड़तंत्र, टीआरपी और व्यूज बनाना, या सियासत दानों के गलीज़ सियासत का आलम। आखिरी विकल्प (option) ये हो सकता है कि अपने अक्ल और फ़हम को किसी का असीर (बंधक) का ना बनने दें। बाकी सोचने समझने के लिए आप पर छोड़ते हैं।


By Islamic Theology

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