हज्जतुल-विदा खुत्बा
— पैगंबर (ﷺ) का ऐतिहासिक संदेश
हज्जतुल-विदा (10 हिजरी, 632 ईस्वी) में हुजूर नबी-ए-अकरम (ﷺ) ने अराफात के मैदान में 9 ज़िलहिज्जा को एक ऐसा ऐतिहासिक खुत्बा अता फ़रमाया जिसे इंसानी तारीख़ का पहला "मानवाधिकार घोषणा-पत्र" कहा जाता है।
(मुज़दलिफा में फज्र की नमाज़ के बाद कुछ तालीमात दीं, मगर मुख्य खुत्बा अराफात ही में हुआ।)
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📜 हज्जतुल-विदा के खुत्बे के मुख्य बिंदु (हदीसों की रौशनी में)
1. इस्लाम की पूर्णता की घोषणा
"आज के दिन मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया, और अपनी नेमत तुम पर पूरी कर दी।"
(कुरआन, सूरह अल-माइदा 5:3)
2. इंसानी हुक़ूक़ की हिफाज़त
जान, माल और इज़्ज़त की पवित्रता:
"तुम्हारी जानें, माल और इज़्ज़त एक-दूसरे पर हराम हैं, जैसे आज का दिन और यह महीना हराम हैं।" [सहीह बुखारी 67]
सूद (ब्याज) की ममनुअत:
"सूद का हर किस्म मैं खत्म करता हूँ। तुम्हारे लिए सिर्फ़ तुम्हारा असल माल है — न तुम ज़ुल्म करो, न तुम पर ज़ुल्म किया जाए।"
3. ख़वातीन (महिलाओं) के हुक़ूक़
"ख़वातीन के मामले में अल्लाह से डरो। उन्हें अल्लाह की अमानत के तौर पर पाया है।"
"उनके साथ हुस्न-ए-सुलूक (अच्छे बर्ताव) से पेश आओ।"
4. मुस्लिम उम्मत की बराबरी और भाईचारा
"तमाम मुसलमान आपस में भाई हैं।"
"किसी अरबी को
(गैर-अरबी) पर, न किसी अज़मी को अरबी पर, न किसी गोरे को काले पर और न काले को गोरे पर कोई फज़ीलत है — सिवाए तक़वा (परहेज़गारी) के।"
5. कुरआन और सुन्नत की पैरवी का हुक्म
"मैं तुम्हारे बीच दो चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूँ — अल्लाह की किताब (क़ुरआन) और मेरी सुन्नत। जब तक तुम इन दोनों को मजबूती से थामे रहोगे, हरगिज़ गुमराह नहीं होगे।"
6. अल्लाह की गवाही की तलब
"तुमसे पूछा जाएगा कि मैंने तालीमात पहुँचा दीं?"
सहाबा ने जवाब दिया: "जी हाँ, आप (ﷺ) ने पैग़ाम पहुँचा दिया, अमानत अदा कर दी, और उम्मत की भलाई की।"
फिर नबी (ﷺ) ने तीन बार फ़रमाया:
"ऐ अल्लाह! तू गवाह रहना।"
(तीन मर्तबा आसमान की तरफ उंगली उठाकर इशारा किया।)
[सही मुस्लिम 1218]
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📌 खुत्बे का तारीखी महत्व
गुलामी, नस्लपरस्ती, और जुल्म के खिलाफ ऐलान।
2. इस्लाम की तकमील:
इसके बाद कोई नया शरीअती हुक्म नहीं आया।
3. पैगंबर (ﷺ) का विदाई पैग़ाम:
आखिरी बार उम्मत को आम तालीमात दीं।
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🌍 सबक
- अद्ल (इंसाफ) और बराबरी को अपनाना।
- औरतों के हुक़ूक़ की हिफाज़त करना।
- जिंदगी के हर मोड़ पर कुरआन और सुन्नत को रहनुमा बनाना।
"जो इस खुत्बे को सुने, वह उसे दूसरों तक पहुँचाए। शायद वह सुनने वाला उस से ज़्यादा अच्छी तरह उसे समझे।"
(सुनन अत-तिर्मिज़ी, हदीस 1628)
अल्लाह तआला हमें इस मुबारक खुत्बे पर अमल करने की तौफीक़ अता फरमाए। आमीन!
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