क़ुर्बानी इसलिए की जाती है क्योंकि ये अल्लाह का हुक्म और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। ये अल्लाह की रज़ा के लिए अपनी महबूब चीज़ को कुर्बान करने का इज़हार है — और ये ईमान, तक़वा और फ़िदाकारी की अलामत है।
क़ुर्बानी क्यों की जाती है?
(मुख़सद और मक्सद)
1. अल्लाह के हुक्म की पैरवी में
अल्लाह ने क़ुरआन में साफ़ फ़रमाया:
“तो अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो।”
(Surah Al-Kawthar – आयत 2)
2. हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और इस्माईल (अ.स.) की याद में
अल्लाह ने उनकी यह आज़माइश देखकर एक दुम्बा भेजा और इंसानी क़ुर्बानी को रोक दिया।
“ऐ इब्राहीम! तूने ख्वाब को सच्चा कर दिखाया... और हमने एक बड़ी क़ुर्बानी से उसकी जगह बदल दी।”
(Surah As-Saffat – आयत 105-107)
3. तक़वा और सच्ची नियत दिखाने के लिए
“अल्लाह तक न इनका गोश्त पहुंचेगा न खून, बल्कि उसे तो तुम्हारा तक़वा पहुंचता है।”
(Surah Al-Hajj – आयत 37)
4. गरीबों, रिश्तेदारों को खाना खिलाने और खुशी बांटने के लिए
क़ुर्बानी का मक़सद सिर्फ़ जानवर ज़बह करना नहीं, बल्कि अल्लाह की रज़ा के लिए अपना माल और चाहत कुर्बान करना है — ताकि दिल से साबित हो कि अल्लाह हमें सबसे ज़्यादा अज़ीज़ है।
क़ुर्बानी किस पर वाजिब है?
क़ुर्बानी के बारे में उलमा का मत अलग-अलग है, लेकिन हनफी फ़िक़्ह के मुताबिक: क़ुर्बानी वाजिब है, सुन्नत नहीं।
विवरण:
1. हनफ़ी फ़िक़्ह के अनुसार:
क़ुर्बानी वाजिब है उस मुसलमान पर जो:
- मालदार हो (निसाब के बराबर माल रखता हो),
- बालिग़, अ़ाक़िल और मुक़ीम हो।
दलील (हदीस):
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
“जिसके पास क़ुर्बानी की ताक़त हो और वह फिर भी क़ुर्बानी न करे, वह हमारी ईदगाह के करीब भी न आए।”
(सुनन इब्ने माजह, हदीस 3123)
यह हदीस वुजूब (फ़र्ज़/वाजिब) पर ज़ोर देती है, सिर्फ़ सुन्नत नहीं।
2. शाफ़ई, मालिकी और हंबली फ़िक़्ह के अनुसार:
उनके नज़दीक क़ुर्बानी सुन्नत-ए-मुअक्कदा है, यानी बहुत पक्की सुन्नत — जिसे बिना वजह छोड़ना अच्छा नहीं।
सलफ़ी (Salafi) या अहले हदीस के नज़दीक क़ुर्बानी वाजिब नहीं, बल्कि सुन्नत-ए-मुअक्कदा है।
- क़ुर्बानी फ़र्ज़ या वाजिब नहीं
- लेकिन बहुत ज़ोरदार सुन्नत (मुअक्कदा) है
- तरगीब दी गई है, छोड़ा न जाए बग़ैर वजह
क़ुर्बानी के जानवर
क़ुर्बानी के जानवर के बारे में इस्लाम में बहुत साफ़ और मुकम्मल हिदायतें हैं। नीचे क़ुर्बानी के जानवरों की शर्तें, कौन से जानवर हलाल हैं और कौन नहीं, और इसके साथ क़ुरआन व हदीस से दलीलें दी गई हैं:
1. कौन-कौन से जानवर की क़ुर्बानी कर सकते हैं?
---
2. जानवर में क्या ऐब नहीं होना चाहिए? (दोष न हो)
हदीस से हुक्म:
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
“चार तरह के जानवरों की क़ुर्बानी जायज़ नहीं है:”
- एक आंख से अंधा (बहुत कम देखता हो)
- बीमार जानवर (जिसकी बीमारी ज़ाहिर हो)
- लंगड़ा (जिसका चलना भी मुश्किल हो)
- बहुत दुबला (जिसकी हड्डियां नज़र आएं)
---
3. जानवर के सींग, कान, दुम में कुछ कमी हो तो?
हल्का सा कटाव / ऐब हो तो क़ुर्बानी हो सकती है
लेकिन पूरी दुम, कान या सींग गायब हों तो क़ुर्बानी जायज़ नहीं
---
4. एक जानवर में कितने लोगों की क़ुर्बानी हो सकती है?
बकरा / बकरी / दुम्बा – सिर्फ़ 1 शख्स की तरफ़ से
गाय / ऊँट – 7 लोगों तक की नियत से क़ुर्बानी हो सकती है
---
5. जानवर पालतू और अच्छा होना चाहिए
क़ुरआन से दलील:
“हर उम्मत के लिए हमने क़ुर्बानी का अमल मुकर्रर किया ताकि अल्लाह का नाम लें उन जानवरों पर जो उसने उन्हें दिए हैं।”
(Surah Al-Hajj – आयत 34)
---
6. नहीं कर सकते इनकी क़ुर्बानी:
- मुर्दा जानवर
- किसी और का चुराया हुआ जानवर
- ऐसा जानवर जो बहुत बीमार, टांग टूटी हो, या खड़ा न हो सके
- जंगली जानवर, या ऐसे जानवर जो पालतू न हों
क़ुर्बानी के गोश्त की तक़सीम (बाँटना)
- 1/3 (एक तिहाई) – गरीबों और मोहताजों को देना
- 1/3 (एक तिहाई) – रिश्तेदारों और दोस्तों को देना (चाहे गरीब हों या अमीर)
- 1/3 (एक तिहाई) – खुद अपने लिए रखना और खाना
- गैर-मुस्लिमों को भी दे सकते हो, लेकिन मुस्लिम ग़रीब को तरजीह दी जाए
- क़ुर्बानी की खाल बेच कर उसका पैसा खुद नहीं रख सकते, वो भी सदक़ा करना होगा
- क़ुर्बानी के गोश्त या खाल के बदले में कसाई को मेहनताना देना हराम है
नमाज़ से पहले खाना???
ईद उल-अज़्हा में पहला निवाला क़ुर्बानी के गोश्त से हो — यह सुन्नत और अल्लाह की नेमत की क़द्र है।
इससे पहले कुछ भी न खाएं तो ज़्यादा अफ़ज़ल है (मगर ज़रूरत हो तो हल्का खा सकते हैं, ममनूअ नहीं है)
---
ईद की नमाज़ का वक़्त:
क़ुर्बानी का सुन्नती तरीका:
इस टॉपिक पर क्विज़ अटेम्प्ट करें 👇
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।