Kya Deen e Haqq Par Chalna Mushkil Hai?

 

Kya Deen e Haqq Par Chalna Mushkil Hai?


क्या दीन ए हक पर चलना मुश्किल है?


अल्लाह तआला फ़रमाता है:

"हक़ीक़त में जो लोग अल्लाह से डरनेवाले हैं उनका हाल तो ये होता है कि कभी शैतान के असर से कोई बुरा ख़याल अगर उन्हें छू भी जाता है तो फ़ौरन चौकन्ने हो जाते हैं और फिर उन्हें साफ़ नज़र आने लगता है कि उनके लिये काम का सही तरीक़ा क्या है।" [क़ुरआन 7:201]


जब कभी भी हम अपने आप को एक बेहतर मुसलमान बनाने की कोशिश करते हैं, दीन पर सही प्रैक्टिस करने की कोशिश करते हैं, अक्सर हमारे चाहने वाले, दोस्त,रिश्तेदार कुछ नाराज से हो जाते हैं। इसकी वजह क्या हो सकती है? हममें और उनमें क्या फ़र्क आ गया होता है? 

जाहिर सी बात है, अब हमारे तौर तरीके उनसे अलग हो गए हैं। कुछ लोग तो इसलिए ना खुश होते हैं क्योंकि आप वह कर पा रहे हैं जो शायद उनसे ना हो सका और कुछ इसलिए खफा होते हैं क्योंकि वह इन बातों को गैर जरूरी या दीन का हिस्सा ही नहीं समझते है और कुछ तो  अल्लाह के बारे में अलग अलग सावल और तनकीद करते हैं। 

फिर हम उनसे किस तरह के बर्ताव की उम्मीद करें। हम तो वाकई इतनी सारी कमजोरियों के मालिक बन बैठे हैं। उनकी बातें हमारे दिलों पर असर करती है, छोटी छोटी बातों से हम परेशान हो जाते हैं। फिर ये कैसे हो सकता हैं कि लोग हमें ऐसे ही छोड़ देंगे। हम लोगों से क्या उम्मीद कर सकते हैं?

हम ने हक के रास्ते पर चलने का जो इरादा किया है, क्या वे हमारे इन्हीं वैल्यूज के साथ हमें स्वीकार कर लेंगे?

शायद कभी नहीं....

फिर हमें जरूर उनके तनकीद (आलोचना) का सामना करना ही पड़ेगा और यह तनकीद कभी-कभी बहुत ही तकलीफदेह और दिल तोड़ने वाली हो सकती है, हमें रहना तो इन्हीं लोगों के साथ है?


अगर आपको लोगों से तालुकात निभाते हैं, उनके हकूक अदा करने हैं, उनके दिल जीतते हैं तो इनकी आलोचना सुनने के लिए भी हमें तैयार रहना जरूरी है। ऐसा भी होता है कि जब हम दीन पढ़ने और सीखने लगते हैं तो वो लोग जो दीन से दूर हैं। एका एक हमें बुरे नज़र आने लगते हैं, हम उनसे नफ़रत करने लगते हैं, यहां हमें नर्मी और आजीजी से काम लेना चाहिए। लोगों को प्यार से समझाना चाहिए। हमें एक बात याद रखनी चाहिए कि हम भी पहले ऐसे ही थे फिर अल्लाह ने हमें हिदायत दी। अलहदुलिल्लाह!

  

जब तक हम जमीन में लोगों के दरमियान रह रहे हैं, उनकी कड़वी बातें उनके दिल तोड़ने वाले अल्फाज़ तो सुननी ही पड़ेगी। अब जरूरी हो जाता है कि हम जेहनी तौर पर इस बात के लिए तैयार रहें कि हम चाहे कितने अच्छे हो जाए लोग हमें हर्ट करेंगे, हमें बेइज्जत करेंगे और हमारी आलोचना करते रहेंगे। हमें उनके रवैया को इग्नोर करना है।

मगर सुकून की बात यह है कि जो शख्स जमीन पर बैठा हो क्या वह गिर सकता है, जिसे अल्लाह पर भरोसा हो उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है फिर हम क्यों ऐसे लोगों से उम्मीद लगाए हैं, सम्मान पाने को? सामने वाला हमसे तब तक राजी नहीं होगा जब तक हम उसको खुश करने के लिए अपनी अच्छी आदतों को, अपनी नेकियों को छोड़ ना दें।

अल्लाह ताला कुरान में फरमाते हैं-

"और तुम से ना तो यहूदी कभी खुश होंगे और ना ईसाई यहां तक के उनके मज़हब की पैरवी अख़्तियार कर लो (उन से कह दो कि अल्लाह की हिदायत यानी दीन ए इस्लाम ही हिदायत है) और ऐ नबी अगर तुम अपने पास इल्म (यानी वही अल्लाह) आ जानें पर भी तुम उनकी ख्वाहिशों पर चलोगे तो तुम को अजाब ए अल्लाह से बाचने वाला ना कोई दोस्त होगा ना कोई मददगार।" [कुरान 2:120]

मगर इंसान की फितरत भी कमाल की है।


कभी ऐसा भी होता है जब हम दीन की राह पर चल रहे होते हैं तो कुछ लोग दुनिया के लिए इतने जागरूक होते हैं कि अपने दीन को भूलाकर लोगों की खुशी के खातिर अपने आप को अयोग्य (worthless) बना लेते हैं और अपनी strength (ताकत) की कुर्बानी दे देते हैं। हम सोचते हैं, रहना इन्हीं लोगों में है तो फिर हम इन्हीं लोगों की तरह क्यों न करें"।

लेकिन जब हमारा ईमान पक्का हो जाता है और अल्लाह पर भरोसा हो जाता है तो फिर हम इन से निपटना भी सीख जाते हैं। अपने तरीकों में पहले से ज्यादा अटल हो जाते हैं लेकिन यह आसान नहीं है, बिल्कुल भी नहीं। लेकिन अल्लाह रब्बुल इज्जत कुरान में फरमाते हैं:


"क्या तुम यह गुमान करते हो की यूँही जन्नत मे चले जाओगे, हालांकि अब तक तुम पर वो हालात नही आये जो तुम से पहले के ईमान वाले लोगो पर गुजरे थे, उन लोगो पर कैसी-कैसी सख्तियाँ गुजरी, मुसीबते आईं, हिला-हिला दिये गये, यहाँ तक कि वक़्त का नबी रसूल  उनके साथी ईमान वाले चीख उठे और कहने लगे की अल्लाह की मदद कब आयेगी ?  उस वक़्त उन्हे तसल्ली दी गई की   हाँ अल्लाह की मदद करीब है।" [क़ुरआन 2:214]


फिर अल्लाह की राह हमारे लिए इतनी मुश्किल क्यों है? हमें कौन सी बद्र और उहद की जंग लड़नी है, कोई ज्यादा से ज्यादा आपका क्या बिगाड़ सकता है? कुछ सख्त अल्फाज, कुछ बेरुखी, कुछ मजाक उड़ाना वगैरह।

ऐसे लोगों से निपटने का एक ही तरीका है, ऐसे लोगों को इग्नोर करें। आप लोगों को चुप तो ना करा पाएंगे लेकिन आप अपने ईमान की मजबूती की वजह से जरूर इस रास्ते पर आगे बढ़ते चले जाएंगे क्योंकि यदि आप सभी के द्वारा स्वीकार किए जाने की इच्छा रखते हैं और सभी से प्यार करते हैं तो आपकी इच्छा अप्राप्य है।


याद रखें अगर आप अल्लाह की रज़ा के लिए हक़ बात करते हैं तो वह ज़रूर असर दिखाएगी, ये हो सकता है कि आपके सामने उसे ठुकरा दिया जाये। फिर भी बिना परेशान हुए अब आप अपनी आलोचनाओं को आप जिस चीज में विश्वास करते हैं, उस तक पहुंचने के लिए खुद को समर्पित कर दें और अल्लाह पर भरोसा रखें अल्लाह अपने बंदों को कभी मायूस नहीं करता, ना कभी अकेला छोड़ता है।

दुआ करें हम मुसलमानो की जिदंगी आसान हो और हम जो कुछ भी कर रहे हैं अल्लाह को पसंद आए।

आमीन



आपकी दीनी बहन
फ़िरोज़ा खान


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