Kya walidain ke bulane par namaz tod sakte hain?

Kya walidain ke bulane par namaz tod sakte hain?


क्या वालिदेन के बुलाने पर नमाज़ तोड़ सकते हैं?

आपने बचपन में एक हदीस सुनी होगी की अगर हम नमाज़ पढ़ रहे है और वालिदेन अवाज़ दें तो नमाज़ तोड़ दो। 

आज हम इस हदीस के बारे मे जानने की कोशिश करेंगे की क्या वाक़यी ऐसा कुछ सहीह हदीस मे मिलता है?

चुनाँचे इसके मुताल्लिक एक हदीस पेश की जाती है मुलाहिज़ा फरमाए,

أخبرنا أبو الحسين بن بشران، أنا أبو جعفر الرزاز، نا يحيى بن جعفر، أنا زيد بن الحباب، نا ياسين بن معاذ، نا عبد الله بن مرثد، عن طلق بن علي، قال: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: " لو أدركت والدي أو أحدهما وأنا في صلاة العشاء، وقد قرأت فيها بفاتحة الكتاب تنادي: يا محمد، لأجبتها: لبيك'

सय्यदना तलक़ बिन अली रज़ि अन्हु से रिवायत है वो कहते हैं कि मैने नबी सल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना कि वो फरमा रहे थे की, "अगर मैं अपने वालिदेन को या इन में से किसी एक को इस हाल में पाता कि मैं नमाज इशा में होता और मैंने सूरह फातिहा भी पढ़ ली होती और वो पुकार रहे होते कि ए मोहम्मद तो मैं इनको जवाब देता (हालत ऐ नमाज़ मे ) कि मैं हाजिर हूं।" [शुएब उल ईमान 7497]


इसे इमाम बहिएक़ी रहिमाउल्लाह ने शुएब उल ईमान मे रिवायत किया और साथ ही फ़रमाया के इसमें रावी यासीन बिन मुआज़ ज़इफ है। 

"هذا موضوع على رسول الله صلى الله عليه وسلم، وفيه ياسين

قال يحيى: ليس حديثه بشئ.

وقال النسائي: متروك الحديث.

وقال ابن حبان: يروي الموضوعات عن الثقاة ويتفرد بالمعضلات عن الأثبات لا يجوز الاحتجاج به.


यानी ये हदीस मोज़ू (मनगढ़त) है क्यूंकि इस हदीस मे यासीन बिन मुआज़ रावी ज़इफ है। 

यहया बिन मुईन ने कहा की ये हदीस मे कुछ भी नहीं है। 

इमाम नसई ने कहा ये मतरूक उल हदीस है। 

इमाम इब्ने हिब्बान ने कहा ये (यासीन बिन मुआज़ ) सिक़ा रावियों की तरफ निस्बत करके मनघड़त हदीस बयान करता था ये मुअज़्ज़ल रिवायत को सिक़ा रावियों से बयान कर देता था दलील के तौर पे इससे हुज्जत पकड़ना जाएज़ नहीं। 


खुलासा: हदीस मोज़ू है। 


अगर कोई नमाज़ मे है और वालिदेन आवाज़ दें तो नमाज़ तोड़ना जाएज़ नहीं बल्कि अगर कोई आवाज़ दे तो क़िरात को ऊंचा कर दें जिससे पता चल जाए की नमाज़ पढ़ रहे हैं या नमाज़ को मुख़्तसर कर दें। 

हदीस मुलाहिज़ा फरमाए,

आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि, 

"मैं नमाज़ देर तक पढ़ने के इरादे से खड़ा होता हूँ। लेकिन किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुन कर नमाज़ को हलकी कर देता हूँ क्योंकि उसकी माँ को (जो नमाज़ में शरीक होगी) तकलीफ़ में डालना बुरा समझता हों।" [बुखारी शरीफ 707]


अल्लाह दीन समझने की तौफ़ीक़ दे। 


आपका दीनी भाई
मुहम्मद

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