आख़िरत का इनकार करने वाला जहन्नम में जायेगा!
जो शख्स भी आख़िरत का इनकार करता है तो उसका लाजिमन नतीजा यही है कि वो इस दुनिया की ज़िंदगी को ही असल समझेगा और इस दुनिया के फायदे हासिल करने के लिए वो हर बुराई में मुब्तिला होने से भी न बचेगा क्योंकि जब उसे दूसरी दुनिया का यकीन है ही नहीं, तो वह इस दुनिया के मजे क्यों छोड़ना चाहेगा?
आख़िरत का इनकार करने वाला असल में अपने रब की मुलाकात को झुटलाता है जिसकी वजह से वह खुद को इस दुनिया की ज़िंदगी में गैर जिम्मेदार और गैर जवाबदेह समझ लेता है। जिसका नतीजा सिर्फ यही होता है कि वह हर तरह की बुराई में मुब्तिला होता चला जाता है और आखिरकार उसके गुनाह इतने बढ़ जाते है कि उसकी सजा सिवाए जहन्नम के और कुछ नहीं होती है। इसलिए ही अल्लाह ने आख़िरत के इनकार करने वाले की सजा जहन्नम रखी है।
अल्लाह फरमाता है:
"हक़ीक़त ये है कि जो लोग हमसे मिलने की उम्मीद नहीं रखते और दुनिया की ज़िन्दगी ही पर राज़ी और मुतमइन हो गए हैं, और जो लोग हमारी निशानियों से ग़ाफ़िल हैं, उनका आख़िरी ठिकाना जहन्नम होगा, उन बुराइयों के बदले में जिन्हें वो (अपने इस ग़लत अक़ीदे और ग़लत रवैये की वजह से) करते रहे।"
[कुरआन 10:7-8]
यहाँ अल्लाह ने दावे के साथ-साथ उसकी दलील भी बयान कर दी गई है। दावा ये है कि आख़िरत के अक़ीदे के इनकार का लाज़िमी और क़तई नतीजा जहन्नम है, और दलील ये है कि इस अक़ीदे का इनकार करके या इसके बारे में ख़ाली ज़ेहन होकर इंसान वो बुराइयाँ कमाता है जिनकी सज़ा जहन्नम के सिवा और कुछ नहीं हो सकती। ये एक हक़ीक़त है और हज़ारों साल के इंसानी रवैये का तजरिबा इसपर गवाह है। जो लोग ख़ुदा के सामने अपने आपको ज़िम्मेदार और जवाबदेह नहीं समझते, जो इस बात का कोई अन्देशा नहीं रखते कि उन्हें आख़िरकार ख़ुदा को अपनी पूरी ज़िन्दगी के कामों का हिसाब देना है, जिनके नज़दीक कामयाबी व नाकामी का पैमाना सिर्फ़ ये है कि इस दुनिया में आदमी ने कितनी ज़्यादा ख़ुशहाली, आराम, शोहरत और ताक़त हासिल की, और जो अपने इन्हीं माद्दापरस्तीवाले (भौतिकवादी) ख़यालों की बुनियाद पर अल्लाह की आयतों (निशानियों) को ध्यान देने के क़ाबिल नहीं समझते, उनकी पूरी ज़िन्दगी ग़लत होकर रह जाती है। वो दुनिया में बेनकेल के ऊँट की तरह बनकर रहते हैं, उनके अख़लाक़ और सिफ़ात बहुत बुरी होती हैं, वो ख़ुदा की ज़मीन को ज़ुल्म और फ़साद और बुराइयों से भर देते हैं और इस बिना पर जहन्नम के हक़दार बन जाते हैं।
कुरआन में अल्लाह ने कहा है कि:
"जो कोई (इस दुनिया में) जल्दी हासिल होनेवाले फ़ायदों की ख़ाहिश रखता हो, उसे हम यहीं देते हैं जो कुछ भी जिसे देना चाहें, फिर उसकी क़िस्मत में जहन्नम लिख देते हैं जिसे वो तापेगा फिटकारा हुआ और रहमत से महरूम होकर।"
[कुरआन 17:18]
मतलब ये है कि जो शख़्स आख़िरत को नहीं मानता, या आख़िरत तक सब्र करने के लिये तैयार नहीं है और अपनी कोशिशों का मक़सद सिर्फ़ दुनिया और उसकी कामयाबियों और ख़ुशहालियों ही को बनाता है, उसे जो कुछ भी मिलेगा बस दुनिया में मिल जाएगा। आख़िरत में वो कुछ नहीं पा सकता। और बात सिर्फ़ यहीं तक न रहेगी कि उसे कोई ख़ुशहाली आख़िरत में नसीब न होगी, बल्कि इसके अलावा दुनियापरस्ती और आख़िरत की जवाबदेही व ज़िम्मेदारी से बेपरवाही उसके रवैये को बुनियादी तौर पर ऐसा ग़लत करके रख देगी कि आख़िरत में वो उल्टा जहन्नम का हक़दार होगा।
"असल बात ये है कि ये लोग उस घड़ी को झुठला चुके हैं- और जो उस घड़ी को झुठलाए उसके लिये हमने भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है।"
[कुरआन 25:11]
असल अरबी में लफ़्ज़ अस्साअत इस्तेमाल हुआ है। साअत का मतलब घड़ी और वक़्त है और अल उसपर अहद (दौर) का है, यानी वो ख़ास घड़ी जो आनेवाली है, जिसके बारे में हम पहले ही तुमको ख़बर दे चुके हैं। क़ुरआन मजीद में जगह-जगह ये लफ़्ज़ एक इस्तिलाह के तौर पर उस ख़ास वक़्त के लिये बोला गया है जबकि क़ियामत क़ायम होगी, तमाम पहले और बाद के लोग नए सिरे से ज़िन्दा करके उठाए जाएँगे, सबको इकठ्ठा करके अल्लाह हिसाब लेगा और हर एक को उसके अक़ीदे और अमल के लिहाज़ से इनाम या सज़ा देगा।
जहन्नम का अजाब बहुत सख्त और हमेशा रहने वाला है।
"फिर जब ये इनकारी लोग आग के सामने ला खड़े किये जाएँगे तो इनसे कहा जाएगा, “तुम अपने हिस्से की नेमतें अपनी दुनिया की ज़िन्दगी में ख़त्म कर चुके और उनका लुत्फ़ तुमने उठा लिया, अब जो घमण्ड तुम ज़मीन में किसी हक़ के बिना करते रहे और जो नाफ़रमानियाँ तुमने कीं, उनके बदले में आज तुमको ज़िल्लत (रुसवाई) का अज़ाब दिया जाएगा।"
[कुरआन 46:20]
"वो जब दूर से उनको देखेगी तो ये उसके ग़ुस्से और जोश की आवाजें सुन लेंगे। और जब ये हाथ-पैर बाँधकर उसमें एक तंग जगह ठूँसे जाएँगे तो अपनी मौत को पुकारने लगेंगे। (उस वक़्त उनसे कहा जाएगा कि) आज एक मौत को नहीं, बहुत-सी मौतों को पुकारो।"
[कुरआन 25:12-14]
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