Namaz qurb e ilahi | Allah se nazdeeki

Namaz qurb e ilahi | Allah se nazdeeki


नमाज़ कि एहमियत (नमाज़ क़ुर्ब ए इलाही)

बात शुरु करने से पहले ये बात वाज़ेह कर दूं, ये बातें मेरी अपनी ज़ाती ज़िंदगी का मुशाहिदा (observation) है। जो मैंने ऑब्जर्व की हैं। नमाज़ का ये सबसे अहम हिस्सा और बहुत ही गहरा नुकता है लिहाज़ा बा गौर पढ़ें।

इंसान को इतनी ख़ुशी कभी कभी मिल जाती है कि वो फूले नहीं समाता, इसी कश्मकश में बड़ी ख़ुशी ख़ुशी पूरा दिन गुज़ार देता है, नमाज़ कज़ा कर लेता है। सोने से पहले अल्लाह तआला उसके ज़ेहन में डालता है कि तूने नमाज़ नहीं पढ़ी हड़बड़ाहत में वो उठ जाता है रब के सामने सजदे में गिर जाता हैं और कहता हैं अल्लाह माफ कर दे आज इतनी ख़ुशी में था कि तेरी इबादत भूल गया, तेरी इबादत ना कर सका, ग़ैब से आवाज़ आयी कि ये ना सोच नमाज़ तूने नहीं पढ़ी बल्कि सोच कौन सी ऐसी ख़ता हुई थी आज जिसकी वजह से तुझे तेरे रब ने मस्जिद में ना बुलाया।

हमारी नमाज़ रह जाती है हम सोचते हैं कि हम नमाज़ नहीं पढ़ पाए बल्कि हमें यह सोचना चाहिए कि हम से ऐसी कौन सी गलती हुई है जिस वजह से अल्लाह तआला ने अपने आगे हमें खड़ा नहीं किया।


क़ुर्ब ए इलाही (Closeness to Allah)

सोचने की बात हैं जब हमें किसी CCTV कैमरा के सामने नमाज़ पढ़ाई जाए और कहा जाए तुम्हें कुछ लोग देख रहें हैं नमाज़ पढ़ते हुए तो अंदाज़ा है मेरा वो नमाज़ बहुत ही खूबसूरत पढ़ेगा और हर STEP को बा खूबी अदा करेगा क्योंकि उसे पता हैं कि दूसरे लोग मेरी नमाज़ देख रहे हैं।

अब ज़रा यह सोचो दूसरे लोग देख रहे हैं के डर से नमाज़ को अच्छा कर लिया लेकिन अल्लाह तआला जो तुम्हें हमेशा देखता है उसके सामने तुम जल्दबाज़ी से नमाज़ पढ़ते हो, रुकु अच्छा नहीं होता, सज्दा अच्छा नहीं होता। क्या अल्लाह तबारक व तआला से भी बड़ा कोई ऐसा है जो अल्लाह की तरह देख सके है कोई CCTV?

नबी अलैहिस्सलाम ने एक सहाबी को नसीहत करते हुए फ़रमाया:


صَلِّ صَلَاةَ مُوَدِّع، فَإِنَّكَ إِنْ كُنْتَ لَا تَرَاهُ فَإِنَّهُ يَرَاكَ
"नमाज़ तुम उस तरह पढ़ा करो कि अभी तुम (दुनिया से रुख़सत होने वाले हो) बेशक यानी तू अल्लाह को नहीं देख रहा लेकिन अल्लाह तुझे देख रहा होता है।"
[सहीह अत तर्गीब 3350]


 इस हदीस से दो बातें पता चली,

(01) हमारी नमाज़ ऐसी होनी चाहिए कि हमें लगे कि यह हमारी आख़िरी नमाज़ होगी। अब ज़रा गौर करो, हमें पता चले कि हम मरने वाले हैं और अल्लाह के पास जाने वाले तो जाते-जाते हम नमाज़ कितनी अच्छी तरीक़े से पढ़ेंगे तो यह हम रोज़ाना क्यों नहीं पढ़ते?

(02) हम अल्लाह को नहीं देख सकते लेकिन अल्लाह हमें देख रहा होता है कि मेरा बंदा कैसे नमाज़ पढ़ रहा है सीसीटीवी के डर से तो नमाज़ को अच्छा कर लिया लेकिन अल्लाह के डर से नमाज़ का अच्छी होगी? क्या अल्लाह तुम्हें देख नहीं रहा?

अब हम आते हैं अपने असल मौजू की तरफ, 

      

नमाज़ क़ुर्ब ए इलाही कैसे हैं?

यह मेरा ख़ुद का एक्सपीरियंस है, जब हम सब किसी मुसीबत में होते हैं और दुनिया से हार चुके होते हैं हर जगह से हम मायूस हो जाते हैं तब आख़िरी तरीक़ा हमारे सामने आता कि क्यों ना अल्लाह से नमाज़ के ज़रिए कुछ काम करवा लूँ?

यक़ीन मानो जब बंदा दुनिया से मायूस होकर अल्लाह की तरफ़ जाता है मेरा रब उसको पसंद करता है और अल्लाह कहता पूरी ज़िंदगी तूने मेरी नारफ़मानी की आज तुझे मेरी याद आई, आजा मेरे बंदे तू आया तो सही चल अब आ ही गया है तो नमाज़ पढ़ ले।

वो बंदा अल्लाह के आगे इतना रोता है गोया सब कुछ थक हार कर अल्लाह के आगे सरेंडर कर दिया। यक़ीन मानो जब सब कुछ अपना अल्लाह के हवाले कर दो वो अल्लाह ऐसे रास्ता निकालता है जिसकी तुम्हें उम्मीद भी नहीं होती।

अल्लाह की नाफ़रमानी पूरी ज़िंदगी वो करता रहा, आख़िर मैंने उससे कह दिया कि इतने गुनाह कर ले की आसमान को छू जाएं और एक बार मुझसे कह दे माफ़ कर दे, मैं तेरे गुनाहों को माफ़ कर दूंगा।

मेरे दोस्तों, भाइयों, बहनों, बुजुर्गों और अज़ीज़ साथियों हम इतने रहम करने वाले अल्लाह को कैसे नाराज़ कर सकते हैं जो इतना रहीम है कि हमारे जिंदगी भर के गुनाह माफ़ कर देता है। 

आईए इसी सिलसिले में एक हदीस पढ़ते चले,

रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया, 

"अल्लाह तआला फ़रमाता है कि जिसने मेरे किसी वली से दुश्मनी की उसे मेरी तरफ़ से ऐलाने-जंग है और मेरा बन्दा जिन-जिन इबादतों से मेरा क़ुर्ब हासिल करता है और कोई इबादत मुझको इससे ज़्यादा पसन्द नहीं है जो मैंने उसपर फ़र्ज़ की है (यानी फ़रायज़ मुझको बहुत पसन्द हैं जैसे नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात) और मेरा बन्दा फ़र्ज़ अदा करने के बाद नफ़ल इबादतें करके मुझसे इतना नज़दीक हो जाता है कि मैं उससे मुहब्बत करने लग जाता हूँ। फिर जब मैं उससे मुहब्बत करने लग जाता हूँ तो मैं उसका कान बन जाता हूँ जिससे वो सुनता है, उसकी आँख बन जाता हूँ जिससे वो देखता है, उसका हाथ बन जाता हूँ जिससे वो पकड़ता है, उसका पाँव बन जाता हूँ जिससे वो चलता है, और अगर वो मुझसे माँगता है तो मैं उसे देता हूँ, अगर वो किसी दुश्मन या शैतान से मेरी पनाह माँगता है तो मैं उसे महफ़ूज़ रखता हूँ, और मैं जो काम करना चाहता हूँ उसमें मुझे इतना तरद्दुद नहीं होता जितना कि मुझे अपने मोमिन बन्दे की जान निकालने में होता है। वो तो मौत को जिस्मानी तकलीफ़ की वजह से पसन्द नहीं करता और मुझको भी उसे तकलीफ़ देना बुरा लगता है।"
[सहीह बुखारी 6502]


अल्लाह इंसान के आँख, कान, हाथ, पाँव बन जाता है का मतलब ये है कि यानि अल्लाह तआला आंख बन जाता है तो आंख से गुनाह होने नहीं देता, पैर बन जाता है तो पैर गलत जगह जाने नहीं देता, वगैरा वगैरा...

ये थी अल्लाह के अपने बंदे से नज़ीदीकी नमाज़ के ज़रिए से। सोचो अल्लाह तुमसे कितनी मोहब्बत करता है कि जब तुम नमाज़ के लिए अल्लाह के आगे खड़े होते हो तो अल्लाह तबारक व तआला तुम्हारा इस्तक़बाल करता है।

मेरा तजुर्बा है रोए जमीन की दौलत शोहरत इज़्ज़त यह सभी चीज़ तुमको मिल जाए और तुम मुस्लिम भी हो लेकिन बे नमाज़ी हो कभी भी सुकून नहीं पा सकते।

बड़ी-बड़ी किताबें लोगों ने नमाज़ के ऊपर पढ़ी, इधर से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया इस पोस्ट को पढ़ने के बाद थोड़ी देर तक तो यह आप पर असर करेगी कुछ दिन गुजरेंगे, पोस्ट भूल जाएंगे, नमाज़ भूल जाएंगे अल्लाह से वादा कर लो कि कभी नमाज़ नहीं छोड़ेंगे।

कल्पना कीजिए एक आम इंसान को कितनी तमन्ना रहती है कि उसका राब्ता एक कलेक्टर, पुलिस ऑफिसर, प्राइम मिनिस्टर से हो जाए फिर वह अर्जी लगवाता है। अपने किसी क़रीबी से कि मेरी एक बार इनसे मीटिंग करा दो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वो बहुत बड़े लोग हैं मेरा उनसे राबता हो गया तो बहुत से दुनियावी मामलात आसान हो जाएंगे। 

तो ज़रा बताएं क्या आप नहीं करेंगे ये सब?

जवाब होगा हां!

अब ज़रा सोचिए एक कलेक्टर पुलिस ऑफिसर प्राइम मिनिस्टर से मिलने के लिए आप अर्जी लगवा रहे हैं तो जो सबका प्राइम मिनिस्टर सुप्रीम बीइंग सबका मालिक अल्लाह उससे मिलने के लिए आप अर्जी क्यों नहीं लगाते?

क्या आपको यक़ीन नहीं है कि हम उससे मिलेंगे तो वह हमारे दुनिया के काम को आसान कर देगा तो वह हमें कहां मिलेगा?

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:


"बंदा सबसे ज़्यादा सज्दे में अल्लाह के क़रीब होता हैं।"
[सहीह मुस्लिम 482]


तो ये है अल्लाह से मिलने का तरीक़ा, इसमें आपको अर्जी लगाने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी बल्कि आप ख़ुद अल्लाह से रोज़ाना मिल सकते हैं और उससे अपने दुनिया और आख़िरत के मामलात को आसान करवा सकते हैं।

अल्लाह से दुआ है अल्लाह तआला हम सबको पांच वक्त का नमाज़ी बना दे।

जुड़े रहे आगे "नमाज़ रिज़क में बरकत हैं" पर बात होगी। 

इंशाअल्लाह


आपका दीनी भाई
मुहम्मद


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