मौत के बाद की ज़िंदगी पर 5 हकीकत की निशानियां
- क्या मरने के बाद जिंदगी है या नहीं?
- क्या अल्लाह सब इंसानों को मरने के बाद फिर जिंदगी देगा?
- क्या ये दुनिया हमेशा कायम रहेगी?
- क्या मरने के बाद जिंदगी का होना लॉजिकल है?
मरने के बाद की जिंदगी से मुतल्लिक सवालों के जवाब सिर्फ वही बता सकता है जिसने इस पूरी कायनात को और इसमें मौजूद इंसानों को बनाया है। इस कायनात का खालिक (creator) ही हमे लॉजिकल समझा सकता है कि आखिर उसने इंसानों को क्यों बनाया है? और क्या वह इंसानों को मरने के बाद फिर से जिंदगी देगा? मरने के बाद की जिंदगी क्यों जरूरी है? इन सब सवालों के जवाब अल्लाह अपने आखिरी संदेश कुरआन की 22 सूरह हज आयत 5-7 में देता है कि:
"लोगो, अगर तुम्हें मरने के बाद की ज़िन्दगी के बारे में कुछ शक है तो तुम्हें मालूम हो कि हमने तुमको मिट्टी से पैदा किया है; फिर नुत्फ़े (वीर्य की बूँद) से, फिर ख़ून के लोथड़े से, फिर गोश्त की बोटी से जो शक्लवाली भी होती है और बे-शक्ल भी। (ये हम इसलिये बता रहे हैं) ताकि तुमपर हक़ीक़त खोल दें। हम जिस (नुत्फ़े) को चाहते हैं एक ख़ास वक़्त तक रहमों (गर्भाशयों) में ठहराए रखते हैं। फिर तुमको एक बच्चे की सूरत में निकाल लाते हैं (फिर तुम्हें पालते हैं), ताकि तुम अपनी पूरी जवानी को पहुँचो। और तुममें से कोई पहले ही वापस बुला लिया जाता है और कोई बहुत बुरी उम्र की तरफ़ फेर दिया जाता है, ताकि सब कुछ जानने के बाद फिर कुछ न जाने। और तुम देखते हो कि ज़मीन सूखी पड़ी है, फिर जहाँ हमने उसपर मेंह बरसाया कि यकायक वो फबक उठी और फूल गई और उसने हर तरह की ख़ुशनुमा नबातात (वनस्पतियाँ) उगलनी शुरू कर दीं।"
[कुरआन 22:5]
"ये सब कुछ इस वजह से है कि अल्लाह ही हक़ है, और वो मुर्दों को ज़िन्दा करता है, और वो हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।"
[कुरआन 22:6]
"और ये (इस बात की दलील है) कि क़ियामत की घड़ी आकर रहेगी, इसमें किसी शक की गुंजाइश नहीं, और अल्लाह ज़रूर उन लोगों को उठाएगा जो क़ब्रों में जा चुके हैं।"
[कुरआन 22:7]
इन आयतों में अल्लाह तआला ने इन्सान की पैदाइश की अलग-अलग हालतों, ज़मीन पर बारिश के असरात और पेड़-पौधों की पैदावार को पाँच हक़ीक़तों की निशानदेही करनेवाली दलीलें ठहराया गया है-
1. ये कि अल्लाह ही हक़ है,
2. ये कि वो मुर्दों को ज़िन्दा करता है,
3. ये कि वो हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है,
4. ये कि क़ियामत की घड़ी आकर रहेगी, और
5. ये कि अल्लाह ज़रूर उन सब लोगों को ज़िन्दा करके उठाएगा जो मर चुके हैं।
1. अल्लाह ही हक़ है।
अब देखिये कि ये निशानियाँ उन पाँचों हक़ीक़तों की किस तरह निशानदेही करती हैं। कायनात के पूरे निज़ाम (व्यवस्था) को छोड़कर आदमी सिर्फ़ अपनी ही पैदाइश पर ग़ौर करे तो मालूम हो जाएगा कि एक-एक इन्सान के वुजूद में अल्लाह की हक़ीक़ी और वाक़ई तदबीर हर वक़्त अमली तौर पर काम कर रही है और हर एक के वुजूद और पलने बढ़ने का एक-एक मरहला उसके इरादी फ़ैसले पर ही तय होता है। कहनेवाले कहते हैं कि ये सब कुछ एक लगे-बंधे क़ानून पर हो रहा है जिसको एक अन्धी-बहरी बे-इल्म और बे-इरादा फ़ितरत चला रही है। लेकिन वो आँखे खोलकर देखें तो उन्हें नज़र आए कि एक-एक इन्सान जिस तरह वुजूद में आता है और फिर जिस तरह वो वुजूद के अलग-अलग मरहलों से गुज़रता है उसमें एक हिकमतवाली और क़ादिरे-मुतलक़ हस्ती का इरादी फ़ैसला किस शान से काम कर रहा है।
आदमी जो खाना खाता है उसमें कहीं इन्सानी बीज मौजूद नहीं होता, न उसमें कोई चीज़ ऐसी होती है जो इन्सानी जान की ख़ासियतें पैदा करती हो। ये खाना जिस्म में जाकर कहीं बाल, कहीं गोश्त और कहीं हड्डी बनता है, और एक ख़ास जगह पर पहुँचकर यही उस नुत्फ़े में तब्दील हो जाता है जिसके अन्दर इन्सान बनने की सलाहियत रखनेवाले बीज मौजूद होते हैं। इन बीजों (शुक्राणुओं) की ज़्यादती का हाल ये होता है कि एक वक़्त में एक मर्द से जितना नुत्फ़ा (वीर्य) निकलता है उसके अन्दर कई करोड़ बीज पाए जाते हैं और उनमें से हर एक बैज़ा-ए-उनसा (औरत के अंडाणु) से मिलकर इन्सान बन जाने की सलाहियत रखता है।
मगर ये किसी हिकमत और क़ुदरतवाले और हर चीज़ की ताक़त रखनेवाले हाकिम का फ़ैसला है जो इन अनगिनत उम्मीदवारों में से किसी एक को किसी ख़ास वक़्त पर छाँटकर औरत के अंडाणु से मिलने का मौक़ा देता है और इस तरह हमल (गर्भ) ठहरता है। फिर हमल ठहरने के वक़्त मर्द के बीज (sperm) और औरत के अंडाणु कोशों (Egg Cells) के मिलने से जो चीज़ शुरू में बनती है वो इतनी छोटी होती है कि सूक्ष्मदर्शी (Microscope) के बिना नहीं देखी जा सकती।
ये हक़ीर-सी चीज़ 9 महीने और कुछ दिन में पेट के अन्दर परवरिश पाकर जिन अनगिनत मरहलों से गुज़रती हुई एक जीते-जागते इन्सान की शक्ल इख़्तियार करती है उनमें से हर मरहले पर ग़ौर करो तो तुम्हारा दिल गवाही देगा कि यहाँ हर पल एक हिकमतवाली और निहायत सरगर्म हस्ती का इरादी फ़ैसला काम करता रहा है।
वही फ़ैसला करता है कि,
- किसे तकमील (पूर्णता) को पहुँचाना है और किसे ख़ून के लोथड़े, या गोश्त की बोटी, या अधूरे बच्चे की शक्ल में गिरा देना है।
- किसको ज़िन्दा निकालना है और किसे अनगिनत ग़ैर-मामूली सूरतों में से कोई सूरत दे देनी है।
- किसको सही-सलामत निकालना है और किसे अन्धा, गूँगा या टुंडा या लुंजा बनाकर फेंक देना है।
- किसको ख़ूबसूरत बनाना है और किसे बदसूरत।
- किसको मर्द बनाना है और किसको औरत।
- किसको आला दर्जे की क़ुव्वतें और सलाहियतें देकर भेजना है और किसे नासमझ और कम दिमाग़ बनाकर पैदा करना है।
ये पैदाइश और शक्ल देने का अमल जो हर दिन करोड़ों औरतों के पेटों में हो रहा है, इसके दौरान में किसी वक़्त किसी मरहले पर भी एक ख़ुदा के सिवा दुनिया की कोई ताक़त ज़र्रा बराबर अपना असर नहीं डाल सकती, बल्कि किसी को ये भी मालूम नहीं होता कि किस पेट में क्या चीज़ बन रही और और क्या बनकर निकलनेवाली है।
हालाँकि इन्सानी आबादियों की क़िस्मत के कम-से-कम 90 फ़ीसद फ़ैसले इन्हीं मरहलों में हो जाते हैं और यहीं लोगों ही के नहीं, क़ौमों के, बल्कि पूरी इन्सानी नस्ल के मुस्तक़बिल (भविष्य) की शक्ल बनाई और बिगाड़ी जाती है। इसके बाद जो बच्चे दुनिया में आते हैं, उनमें से हर एक के बारे में ये फ़ैसला कौन करता है कि किसे ज़िन्दगी की पहली साँस लेते ही ख़त्म हो जाना है, किसे बढ़कर जवान होना है और किसको क़ियामत के बोरिये समेटने हैं? यहाँ भी एक पूरी तरह हावी इरादा काम करता नज़र आता है और ग़ौर किया जाए तो महसूस होता है कि उसकी कारफ़रमाई किसी आलमगीर तदबीर और हिकमत के साथ हो रही है जिसके मुताबिक़ वो लोगों ही की नहीं, क़ौमों और देशों की क़िस्मत के भी फ़ैसले कर रहा है। ये सब कुछ देखकर भी अगर किसी को इस बात में शक है कि अल्लाह हक़ है और सिर्फ़ अल्लाह ही हक़ है तो बेशक वो अक़ल का अन्धा है।
2. अल्लाह मुर्दों को ज़िन्दा करता है।
दूसरी बात जो पेश की गई निशानियों से साबित होती है वो ये है कि अल्लाह मुर्दों को ज़िन्दा करता है। लोगों को तो ये सुनकर अचम्भा होता है कि अल्लाह किसी वक़्त मुर्दों को ज़िन्दा करेगा, मगर वो आँखें खोलकर देखें तो उन्हें दिखाई दे कि वो तो हर वक़्त मुर्दे जिला रहा है। जिन चीज़ों से आपका जिस्म बना है और जिन ग़िज़ाओं से वो पलता-बढ़ता है उनकी जाँच करके देख लीजिये।
कोयला, लोहा, चूना, कुछ नमकीन चीज़ें, कुछ हवाएँ, और ऐसी ही कुछ चीज़ें और हैं। इनमें से किसी चीज़ में भी ज़िन्दगी और इन्सान होने की ख़ासियतें मौजूद नहीं हैं। मगर इन्हीं मुर्दा-बेजान चीज़ों को जमा करके आपको जीता-जागता वुजूद बना दिया गया है। फिर इन्हीं माद्दों की ग़िज़ा आपके जिस्म में जाती है और वहाँ इससे मर्दों में वो बीज और औरतों में वो अंडाणु कोशिकाएँ बनती हैं जिनके मिलने से आप ही जैसे जीते-जागते इन्सान हर दिन बन-बनकर निकल रहे हैं।
इसके बाद ज़रा अपने आसपास की ज़मीन पर निगाह डालिये। अनगिनत अलग-अलग चीज़ों के बीज थे जिनको हवाओं और परिन्दों ने जगह-जगह फैला दिया था, और अनगिनत अलग-अलग चीज़ों की जड़ें थीं जो जगह-जगह मिट्टी में दबी पड़ी थीं। उनमें कहीं भी पेड़-पौधेवाली ज़िन्दगी का कोई निशान मौजूद न था। आपके आस-पास की सूखी ज़मीन उन लाखों मुर्दों की क़ब्र बनी हुई थी। मगर ज्यों ही कि पानी का एक छींटा पड़ा, हर तरफ़ ज़िन्दगी लहलहाने लगी, हर मुर्दा जड़ अपनी क़ब्र से जी उठी, और हर बेजान बीज ने एक ज़िन्दा पौधे का रूप ले लिया। ये मौत के बाद दोबारा ज़िन्दगी मिलने का अमल हर बरसात में आपकी आँखों के सामने होता है।
3. अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
तीसरी चीज़ जो इन मुशाहदों (अवलोकनों) से साबित होती है वो ये है कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है। सारी कायनात (सृष्टि) को छोड़कर सिर्फ़ अपनी इसी ज़मीन को ले लीजिये, और ज़मीन की भी तमाम हक़ीक़तों और वाक़िआत को छोड़कर सिर्फ़ इन्सान और पेड़-पौधों ही की ज़िन्दगी पर नज़र डालकर देख लीजिये। यहाँ उसकी क़ुदरत के जो करिश्मे आपको नज़र आते हैं, क्या उन्हें देखकर कोई अक़ल रखनेवाला आदमी ये बात कह सकता है कि ख़ुदा बस वही कुछ कर सकता है जो आज हम उसे करते हुए देख रहे हैं और कल अगर वो कुछ और करना चाहे तो नहीं कर सकता?
ख़ुदा तो ख़ैर बहुत बुलन्द और बड़ी हस्ती है, इन्सान के बारे में पिछली सदी तक लोगों के ये अन्दाज़े थे कि ये सिर्फ़ ज़मीन ही पर चलनेवाली गाड़ियाँ बना सकता है, हवा पर उड़नेवाली गाड़ियाँ बनाना इसके बस में नहीं है। मगर आज के हवाई जहाज़ों ने बता दिया कि इन्सान के इमकानात की हदें तय करने में उनके अन्दाज़े-कितने ग़लत थे। अब अगर कोई शख़्स ख़ुदा के लिये उसके सिर्फ़ आज के काम देखकर इमकानात की कुछ हदें तय कर देता है और कहता है कि जो कुछ वो कर रहा है उसके सिवा वो कुछ नहीं कर सकता तो वो सिर्फ़ अपने ही ज़ेहन की तंगी का सुबूत देता है, अल्लाह की क़ुदरत बहरहाल उसकी बाँधी हुई हदों में बन्द नहीं हो सकती।
4,5. क़ियामत की घड़ी आकर रहेगी और अल्लाह ज़रूर उन सब लोगों को ज़िन्दा करके उठाएगा जो मर चुके हैं।
चौथी और पाँचवीं बात, यानी ये कि क़ियामत की घड़ी आकर रहेगी और ये कि अल्लाह ज़रूर उन सब लोगों को ज़िन्दा करके उठाएगा जो मर चुके हैं, उन तीन इब्तिदाई बातों का अक़ली नतीजा है जो ऊपर बयान हुई हैं। अल्लाह के कामों को उनकी क़ुदरत के पहलू से देखिये तो दिल गवाही देगा कि वो जब चाहे क़ियामत ला सकता है और जब चाहे उन सब मरनेवालों को फिर से ज़िन्दा कर सकता है जिनको पहले उस वक़्त वुजूद में लाया था जबकि उनका कोई वुजूद ही नहीं था, और अगर उसके कामों को उसकी हिकमत के पहलू से देखिये तो अक़ल गवाही देगी कि ये दोनों काम भी वो ज़रूर करके रहेगा क्योंकि इनके बिना हिकमत के तक़ाज़े पूरे नहीं होते और एक हिकमतवाली हस्ती से ये नामुमकिन है कि वो उन तक़ाज़ों को पूरा न करे।
जो थोड़ी-सी हिकमत और समझदारी इन्सान को हासिल है, उसका ये नतीजा हम देखते हैं कि आदमी अपना माल या जायदाद या कारोबार जिसके सुपुर्द भी करता है उससे किसी-न-किसी वक़्त हिसाब ज़रूर लेता है। यानी अमानत और हिसाब लेने के बीच एक लाज़िमी अक़ली राबिता है जिसको इन्सान की महदूद हिकमत भी किसी हाल में नज़र अन्दाज़ नहीं करती। फिर इसी हिकमत की बुनियाद पर आदमी जान-बूझकर और अनजाने में किये गए कामों में फ़र्क़ करता है, इरादे के साथ किये गए कामों के साथ अख़लाक़ी ज़िम्मेदारी का तसव्वुर जोड़ता है, कामों में अच्छे और बुरे का फ़र्क़ करता है, अच्छे कामों का नतीजा तारीफ़ और इनाम की शक्ल में देखना चाहता है, और बुरे कामों पर सज़ा का तक़ाज़ा करता है, यहाँ तक कि ख़ुद एक अदालती निज़ाम इस मक़सद के लिये वुजूद में लाता है। ये हिकमत जिस पैदा करनेवाले ने इन्सान में पैदा की है,
- क्या ये समझा जा सकता है कि वो ख़ुद इस मक़सद से ख़ाली होगा?
- क्या माना जा सकता है कि अपनी इतनी बड़ी दुनिया, इतने सरो-सामान और इतने ज़्यादा इख़्तियारात के साथ, इन्सान के सुपुर्द करके वो भूल गया है?
- उसका हिसाब वो कभी न लेगा?
- क्या किसी सही दिमाग़ आदमी की अक़ल ये गवाही दे सकती है कि इन्सान के जो बुरे काम सज़ा से बच निकले हैं, या जिन बुराइयों की मुनासिब सज़ा उसे नहीं मिल सकी है उनकी पूछ-गच्छ के लिये कभी अदालत क़ायम न होगी? और
- जो भलाइयाँ अपने इन्साफ़ के मुताबिक़ इनाम से महरूम रह गई हैं वो हमेशा महरूम ही रहेंगी?
अगर ऐसा नहीं है तो क़ियामत और मरने के बाद की ज़िन्दगी हिकमतवाले ख़ुदा की हिकमत का एक लाज़िमी तक़ाज़ा है जिसका पूरा होना नहीं, बल्कि न पूरा होना सरासर अक़ल के ख़िलाफ़ बात है।
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