दुनिया का बनाया जाना: एक मकसद या खेल?
क्या हमारी दुनिया का बनाया जाना एक मकसद के तहत है? या सिर्फ एक खेल के तौर पर इसके बनाने वाले ने इसे बना दिया है? इस सवाल का जवाब वही दे सकता है जिसने इस दुनिया को बनाया है। तो आइए हम देखते है अल्लाह के आखिरी महफूज संदेश कुरआन में कि इस दुनिया के बनाने वाले ने दुनिया के बारे में क्या बताया है-
"वही (अल्लाह ही) है जिसने आसमान और ज़मीन को बामक़सद पैदा किया है।"
[कुरआन 6:73]
क़ुरआन में ये बात जगह-जगह बयान की गई है कि अल्लाह ने ज़मीन और आसमानों को हक़ पर पैदा किया है या हक़ के साथ पैदा किया है। ये इरशाद अपने अन्दर बहुत-से मानी रखता है।
1. पहला मतलब: हिकमत और सूझ-बूझ
इसका एक मतलब ये है कि ज़मीन और आसमानों की पैदाइश सिर्फ़ खेल के तौर पर नहीं हुई है। ये ईश्वर जी की लीला नहीं है। ये किसी बच्चे का खिलौना नहीं है कि सिर्फ़ दिल बहलाने के लिये वो इससे खेलता रहे और फिर यूँ ही उसे तोड़-फोड़कर फेंक दे। असल में ये एक बहुत ही संजीदा काम है जो हिकमत और सूझ-बूझ की बुनियाद पर किया गया है। एक बहुत बड़ा मक़सद इसके अन्दर काम कर रहा है और इसका एक दौर गुज़र जाने के बाद ज़रूरी है कि बनानेवाला उस पूरे काम का हिसाब ले, जो उस दौर में अंजाम पाया हो और उसी दौर के नतीजों पर दूसरे दौर की बुनियाद रखे। यही बात है जो क़ुरआन में दूसरी जगहों पर इस तरह बयान की गई है-
[कुरआन 3:191]
"हमने आसमान और ज़मीन और उन चीज़ों को जो आसमान और ज़मीन के दरमियान हैं खेल के तौर पर पैदा नहीं किया है।"
[कुरआन 21:16]
"क्या तुमने ये समझ रखा था कि हमने तुम्हें बेकार ही पैदा किया है और तुम्हें हमारी तरफ़ कभी पलटना ही नहीं हैं?"
[कुरआन 23:115]
"हमने ज़मीन और आसमानों को और उनकी सब मौजूद चीज़ों को हक़ के सिवा किसी और बुनियाद पर पैदा नहीं किया है।"
[कुरआन 15:85]
"हमने ज़मीन और आसमानों को और उन सारी चीज़ों को, जो उनके बीच हैं हक़ के साथ और एक ख़ास मुद्दत तक के लिये पैदा किया है। मगर ये इनकार करनेवाले लोग उस हक़ीक़त से मुँह मोड़े हुए हैं जिससे इनको ख़बरदार किया गया है।"
[कुरआन 46:3]
2. दूसरा मतलब: कायनात का निज़ाम
दूसरा मतलब ये है कि अल्लाह ने कायनात का ये सारा निज़ाम हक़ की ठोस बुनियादों पर क़ायम किया है। इन्साफ़ और हिकमत और सच्चाई के क़ानूनों पर उसकी हर चीज़ का दारोमदार है। बातिल (असत्य) के लिये हक़ीक़त में इस निज़ाम में जड़ पकड़ने और फलने-फूलने की कोई गुंजाइश ही नहीं है। ये और बात है कि अल्लाह बातिलपरस्तों को मौक़ा दे दे कि वो अगर अपने झूठ, ज़ुल्म और ग़लत बात को फैलाना और बढ़ाना चाहते हैं तो अपनी कोशिश करके देखें। लेकिन आख़िरकार ज़मीन बातिल के हर बीज को उगल कर फेंक देगी और आख़िरी हिसाब के चिट्ठे में हर बातिलपरस्त देख लेगा कि जो कोशिशें उसने इस ख़बीस (बुरे) पौधे की खेती करने और सींचने में लगाईं वो सब बर्बाद हो गईं।
"अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को हक़ (सत्य और मक़सद) के साथ पैदा किया है, हक़ीक़त में इसमें एक निशानी है ईमानवालों के लिये।"
[कुरआन 29:44]
यानी कायनात का ये निज़ाम हक़ पर क़ायम है, न कि बातिल पर। इस निज़ाम पर जो शख़्स भी साफ़ ज़ेहन के साथ ग़ौर करेगा उसपर ये बात खुल जाएगी कि ये ज़मीन और आसमान अंधविश्वासों और ख़याली बातों पर नहीं बल्कि हक़ीक़त की बुनियाद पर खड़े हैं। यहाँ इस बात का कोई इमकान नहीं है कि हर शख़्स अपनी जगह जो कुछ भी समझ बैठे और अपनी अटकलों से जो फ़लसफ़ा भी गढ़े वो ठीक बैठ जाए। यहाँ तो सिर्फ़ वही चीज़ कामयाब हो सकती है और टिकी और ठहरी रह सकती है जो हक़ीक़त और सच्चाई के मुताबिक़ हो।
हक़ीक़त के ख़िलाफ़ अन्दाज़ों और अटकलों पर जो इमारत भी खड़ी की जाएगी वो आख़िरकार हक़ीक़त से टकराकर चूर-चूर हो जाएगी। कायनात का ये निज़ाम साफ़ गवाही दे रहा है कि एक ख़ुदा इसका पैदा करनेवाला है और एक ही ख़ुदा इसका मालिक और चलानेवाला है।
इस सच्चाई के ख़िलाफ़ अगर कोई शख़्स इस मनगढ़ंत तसव्वुर पर काम करता है कि इस दुनिया का कोई ख़ुदा नहीं है, या ये मानकर चलता है कि इसके बहुत से ख़ुदा हैं जो मन्नतों और चढ़ावों का माल खाकर अपने अक़ीदतमन्दों को यहाँ सबकुछ करने की आज़ादी और ख़ैरियत से रहने की ज़मानत देते हैं, तो हक़ीक़त उसके इन मनगढ़ंत तसव्वुरात की वजह से ज़र्रा बराबर भी नहीं बदलेगी, बल्कि वो ख़ुद ही किसी वक़्त एक बहुत बड़े सदमे से दोचार होगा।
3. तीसरा मतलब: हक़ की बुनियाद
तीसरा मतलब ये है कि ख़ुदा ने इस सारी कायनात को हक़ की बुनियाद पर क़ायम किया है और अपने ज़ाती हक़ की बुनियाद पर ही वो इस पर हुकूमत कर रहा है। उसका हुक्म यहाँ इसलिये चलता है कि वही अपनी पैदा की हुई कायनात में हुक्मरानी का हक़ रखता है। दूसरों का हुक्म अगर बज़ाहिर चलता नज़र भी आता हो तो उससे धोखा न खाओ, हक़ीक़त में न उनका हुक्म चलता है, न चल सकता है, क्योंकि कायनात की किसी चीज़ पर भी उनका कोई हक़ नहीं है कि वो इस पर अपना हुक्म चलाएँ।
जो शख़्स भी मौत के बाद की ज़िन्दगी और आख़िरत के इनाम और सज़ा का इनकार करता है, वो असल में दुनिया के इस कारख़ाने को खिलौना और उसके पैदा करनेवाले को नादान बच्चा समझता है। इसी वजह से उसने ये राय क़ायम की है कि इन्सान दुनिया में हर तरह के हंगामे बरपा करके एक दिन बस यूँ ही मिटटी में रल-मिल जाएगा और उसके किसी अच्छे या बुरे काम का कोई नतीजा न निकलेगा। हालाँकि ये कायनात किसी खिलंडरे की नहीं, बल्कि एक ऐसे पैदा करनेवाले ख़ुदा की बनाई हुई है जो बड़ी हिकमतवाला है और किसी हिकमतवाले से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो कोई बेमक़सद काम करेगा। आख़िरत के इनकार के जवाब में ये दलील क़ुरआन में कई जगहों पर दी गई है। जैसाकी सूरह दुखान आयत 39-40 में कहा गया है कि:
"उनको हमने हक़ के साथ पैदा किया है, मगर इनमें से अक्सर लोग जानते नहीं हैं।"
[कुरआन 44:39]
"इन सबके उठाए जाने के लिये तय हो चुका फ़ैसले का दिन है।"
[कुरआन 44:40]
आयत 40 में अल्लाह ने उन लोगों को जवाब दिया है कि जो मरने के बाद की दूसरी जिंदगी को नहीं मानते है और कहते है कि उठा लाओ हमारे बाप-दादा को अगर तुम सच्चे हो। उनके जवाब में अल्लाह ने कहा कि सबके उठाए जाने का एक वक्त तय है जिसमे सबका फैसला सुना दिया जायेगा।
मतलब ये है कि मरने के बाद की ज़िन्दगी कोई तमाशा तो नहीं है कि जहाँ कोई इससे इनकार करे, फ़ौरन एक मुर्दा क़ब्रिस्तान से उठाकर उसके सामने ला खड़ा किया जाए। इसके लिये तो सारे जहानों के रब ने एक वक़्त तय कर दिया है जब तमाम अगलों-पिछलों को वो दोबारा ज़िंदा करके अपनी अदालत में इकट्ठा करेगा और उनके मुक़द्दमों का फ़ैसला करेगा। तुम मानो, चाहे न मानो, ये काम बहरहाल अपने मुक़र्रर वक़्त पर ही होगा। तुम मानोगे तो अपना ही भला करोगे, क्योंकि इस तरह वक़्त से पहले ख़बरदार होकर उस अदालत से कामयाब निकलने की तैयारी कर सकोगे। न मानोगे तो अपना ही नुक़सान करोगे, क्योंकि अपनी सारी उम्र इस ग़लतफ़हमी में खपा दोगे कि बुराई और अच्छाई जो कुछ भी है, बस इसी दुनिया की ज़िन्दगी तक है, मरने के बाद फिर कोई अदालत नहीं होनी है जिसमें हमारे अच्छे या बुरे आमाल का कोई मुस्तक़िल नतीजा निकलना हो।
जवाब: अल्लाह ने आसमानों और जमीन को एक मकसद के तहत इसलिए बनाया है कि ताकि अल्लाह अपनी मखलूक का इम्तिहान ले सकें नेक लोगों को ईनाम से नवाजे और मुजरिमों को सख्त सजा दें।
"अल्लाह ने तो आसमानों और ज़मीन को हक़ (मक़सद) के साथ पैदा किया है और इसलिये किया है कि हर जानदार को उसकी कमाई का बदला दिया जाए। लोगों पर ज़ुल्म हरगिज़ न किया जाएगा।"
[कुरआन 45:22]
यानी अल्लाह ने ज़मीन और आसमान को खेल के तौर पर नहीं बनाया है, बल्कि ये एक बामक़सद हिकमत भरा निज़ाम है। इस निज़ाम में इस बात के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता कि अल्लाह के दिए अधिकारों और ज़राए-वसायल (साधन-संसाधनों) को सही तरीक़े से इस्तेमाल करके जिन लोगों ने अच्छा कारनामा अंजाम दिया हो और उन्हें ग़लत तरीक़े से इस्तेमाल करके जिन दूसरे लोगों ने ज़ुल्म और बिगाड़ पैदा किया हो, ये दोनों तरह के इन्सान आख़िरकार मरकर मिटटी हो जाएँ और उस मौत के बाद कोई दूसरी ज़िन्दगी न हो जिसमें इन्साफ़ के मुताबिक़ उनके अच्छे और बुरे आमाल का कोई अच्छा या बुरा नतीजा निकले। अगर ऐसा हो तो ये कायनात एक खिलंडरे का खिलौना होगी न कि एक हिकमतवाले (तत्वदर्शी) का बनाया हुआ बामक़सद निज़ाम।
इस मौक़ा-महल में यह कहना कि हर जानदार को उसकी कमाई का बदला दिया जाए। लोगों पर ज़ुल्म हरगिज़ न किया जाएगा। यह कहना का साफ़ मतलब ये है कि अगर नेक इन्सानों को उनकी नेकी का इनाम न मिले और ज़ालिमों को उनके ज़ुल्म की सज़ा न दी जाए और मज़लूमों की कभी फ़रियाद न सुनी जाए तो ये ज़ुल्म होगा। ख़ुदा की ख़ुदाई में ऐसा ज़ुल्म हरगिज़ नहीं हो सकता। इसी तरह ख़ुदा के यहाँ ज़ुल्म की ये दूसरी सूरत भी कभी ज़ाहिर नहीं हो सकती कि किसी नेक इन्सान को उसके हक़ से कम इनाम दिया जाए, या किसी बुरे इन्सान को उसके हक़ से ज़्यादा सज़ा दे दी जाए।
पैगंबरों की दावत पर ध्यान न देने की असल वजह भी दुनिया को खेल समझना ही है
जो लोग पैगंबरों की दावत पर ध्यान न देते थे। उनका ख़याल ये था कि इन्सान दुनिया में बस यूँ ही आज़ाद छोड़ दिया गया है। जो कुछ चाहे करे और जिस तरह चाहे जिये, कोई पूछ-गच्छ उससे नहीं होनी है। किसी को उसे हिसाब नहीं देना है। कुछ दिनों की भली-बुरी ज़िन्दगी गुज़ारकर सबको बस यूँ ही मिट जाना है। कोई दूसरी ज़िन्दगी नहीं है जिसमें भलाई का इनाम और बुराई की सज़ा हो। ये ख़याल असल में इस बात की हममाना (समानार्थी) था कि कायनात (सृष्टि) का ये सारा निज़ाम (व्यवस्था) महज़ किसी खिलंडरे का खेल है जिसका कोई संजीदा मक़सद नहीं है। और यही ख़याल पैग़म्बर की दावत की तरफ़ उनके ध्यान न देने का असल वजह था। और इसी के जवाब में अल्लाह ने कुरआन में कहा है कि:
"हमने इस आसमान और ज़मीन को और जो कुछ भी इनमें है, कुछ खेल के तौर पर नहीं बनाया है।"
[कुरआन 21:16]
"अगर हम कोई खिलौना बनाना चाहते और बस यही कुछ हमें करना होता तो अपने ही पास से कर लेते।"
[कुरआन 21:17]
यानी अल्लाह फरमा रहे है कि हमें खेलना ही होता तो खिलौने बनाकर हम ख़ुद ही खेल लेते। इस सूरत में ये ज़ुल्म तो हरगिज़ न किया जाता कि ख़ाहमख़ाह एक शुऊर और एहसास रखनेवाली ज़िम्मेदार मख़लूक़ (सृष्टि) को पैदा कर डाला जाता उसके बीच हक़ (सत्य) और बातिल (असत्य) की ये कशमकश और खींचातानियाँ कराई जातीं, और सिर्फ़ अपने मज़े और मनोरंजन के लिये हम दूसरों को बेवजह तकलीफ़ों में डालते। तुम्हारे ख़ुदा ने ये दुनिया कुछ रूमी अखाड़े (Colosseum) के तौर पर नहीं बनाई है कि बन्दों को दरिन्दों से लड़वाकर और उनकी बोटियाँ नुचवाकर ख़ुशी के ठट्ठे लगाए।
"मगर हम तो बातिल (असत्य) पर हक़ (सत्य) की चोट लगाते हैं जो उसका सर तोड़ देती है और वो देखते-देखते मिट जाता है और तुम्हारे लिये तबाही है उन बातों की वजह से जो तुम बनाते हो।"
[कुरआन 21:18]
यहां अल्लाह फरमा रहे है कि हम बाज़ीगर नहीं है, न हमारा काम खेल-तमाशा करना है। हमारी ये दुनिया एक संजीदा निज़ाम (गम्भीर व्यवस्था) है जिसमें कोई बातिल चीज़ नहीं जम सकती। बातिल यहाँ जब भी सर उठाता है, हक़ीक़त से उसका टकराव होकर रहता है और आख़िरकार वो मिटकर ही रहता है।
इस दुनिया को अगर तुम तमाशागाह समझकर जियोगे, या हक़ीक़त के ख़िलाफ़ खोखले नज़रियात पर काम करोगे तो नतीजा तुम्हारी अपनी ही तबाही होगा। इन्सानों का इतिहास उठाकर देख लो कि दुनिया को सिर्फ़ एक तमाशागाह, सिर्फ़ नेमतों से भरा एक थाल, सिर्फ़ ऐश करने की एक जगह समझकर जीनेवाली और नबियों की बताई हुई हक़ीक़त से मुँह मोड़कर बातिल नज़रियों पर काम करनेवाली क़ौमें एक के बाद एक किस अंजाम से दोचार होती रही हैं। फिर ये कौन-सी अक़लमंदी है कि जब समझानेवाला समझाए तो उसका मज़ाक़ उड़ाओ, और जब अपने ही किये करतूतों के नतीजे अल्लाह के अज़ाब की शक्ल में सर पर आ जाएँ तो चीख़ने लगो कि हाय हमारी कमबख़्ती, बेशक हम ख़ताकार थे।
जो लोग मरने के बाद फिर से जिंदा होने का इनकार करते है और फिर से जिंदा होने को नामुमकिन समझते है, उनको अल्लाह का जवाब,
"और क्या इन लोगों को ये सुझाई नहीं देता कि जिस ख़ुदा ने ये ज़मीन और आसमान पैदा किये हैं और उनको बनाते हुए जो न थका, वो ज़रूर इसकी क़ुदरत रखता है कि मुर्दों को जिला उठाए? क्यों नहीं, यक़ीनन वो हर चीज़ की क़ुदरत रखता है।"
[कुरआन 46:33]
3 टिप्पणियाँ
Very good answer
जवाब देंहटाएंJazak ALLAH Khair
जवाब देंहटाएंGood post
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।