सदक़ा ए फ़ित्र
हदीस (1)
عَنْ ابْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا قَالَ فَرَضَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ زَكَاةَ الْفِطْرِ صَاعًا مِنْ تَمْرٍ أَوْ صَاعًا مِنْ شَعِيرٍ عَلَى الْعَبْدِ وَالْحُرِّ وَالذَّكَرِ وَالْأُنْثَى وَالصَّغِيرِ وَالْكَبِيرِ مِنْ الْمُسْلِمِينَ وَأَمَرَ بِهَا أَنْ تُؤَدَّى قَبْلَ خُرُوجِ النَّاسِ إِلَى الصَّلَاةِ
(كتاب الزكاة » - فرض صدقة الفطر / كتاب الزكاة - زكاة الفطر على المسلمين من التمر والشعير)
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ग़ुलाम, आज़ाद, मर्द, औरत, छोटे ,बड़े तमाम मुसलमानों पर फ़ित्र की ज़कात (सदक़ा ए फ़ित्र) एक साअ (صاع) खुजूर या एक साअ (صاع) जौ फ़र्ज़ क़रार दिया था
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदेश था कि ईदगाह जाने से पहले पहले यह अदा कर दिया जाय।
(सही बुख़ारी हदीस नंबर 1503 / किताबुज़ ज़कात , मुसलमानों पर खुजूर और जौ के सदक़ा ए फ़ित्र के बयान में)
हदीस (2)
عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ كُنَّا نُعْطِيهَا فِي زَمَانِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ *صَاعًا مِنْ طَعَامٍ أَوْ صَاعًا مِنْ تَمْرٍ أَوْ صَاعًا مِنْ شَعِيرٍ أَوْ صَاعًا مِنْ زَبِيبٍ* فَلَمَّا جَاءَ مُعَاوِيَةُ وَجَاءَتْ السَّمْرَاءُ قَالَ أُرَى مُدًّا مِنْ هَذَا يَعْدِلُ مُدَّيْنِ
( الزكاة » صاع من زبيب)
अबु सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में सदक़ा ए फ़ित्र एक साअ अनाज या एक साअ खुजूर या एक साअ जौ या एक साअ किशमिश देते थे। फिर जब अमीर मुआविया रज़ि अल्लाहु अन्हु मदीना आये और गेहूँ की आमदनी हुई तो कहने लगे मेरी राय में गेंहू का एक मुद दूसरे अनाज के दो मुद के बराबर है।
(सही बुख़ारी हदीस नंबर 1508/ किताबुज़ ज़कात, किशमिश के सदक़े के बयान में)
और बुख़ारी 1506 नंबर हदीस में صَاعًا مِنْ أَقِطٍ यानी एक साअ पनीर भी आया है।
नोट: मर्द अपनी जानिब से और उन लोगों की तरफ़ से सदक़ा फ़ित्र अदा करे जिनकी किफ़ालत करता है जैसे, बीवी, औलाद,। जो बच्चा माँ के पेट में है उसका सदक़ा फ़ित्र नहीं अदा किया जायेगा।
हदीस (3)
عَنْ ابْنِ عَبَّاسٍ قَالَ فَرَضَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ زَكَاةَ الْفِطْرِ طُهْرَةً لِلصَّائِمِ مِنْ اللَّغْوِ وَالرَّفَثِ وَطُعْمَةً لِلْمَسَاكِينِ مَنْ أَدَّاهَا قَبْلَ الصَّلَاةِ فَهِيَ زَكَاةٌ مَقْبُولَةٌ وَمَنْ أَدَّاهَا بَعْدَ الصَّلَاةِ فَهِيَ صَدَقَةٌ مِنْ الصَّدَقَاتِ
(سنن ابی داؤد، کتاب الزكاة » صَدَقَةٌ مِنْ الصَّدَقَاتِ الزكاة » زكاة الفطر---- سنن ابن ماجة رقم الحديث 1827)
इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रोज़ों में बेकार (لغو) व गंदे अमल से पाकी हासिल करने के लिए और मिस्कीनों (निर्धन) के ख़ोराक के वास्ते फ़र्ज़ क़रार दिया। जिसने ईद की नमाज़ से पहले अदा किया उस की ज़कात मक़बूल हो गई और जिसने नमाज़ के बाद अदा किया तो यह एक सदक़ा ही है।
(सुनन अबु दाऊद, हदीस नंबर 1609/ किताबुज़ ज़कात , सदक़ा फ़ित्र के सिलसिले में --- सुनन इब्ने माजा हदीस नंबर 1827 )
हदीस (4)
عَنْ نَافِعٍ أَنَّ عَبْدَ اللَّهِ بْنَ عُمَرَ قَالَ إِنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَمَرَ بِزَكَاةِ الْفِطْرِ صَاعٍ مِنْ تَمْرٍ أَوْ صَاعٍ مِنْ شَعِيرٍ قَالَ ابْنُ عُمَرَ فَجَعَلَ النَّاسُ عَدْلَهُ مُدَّيْنِ مِنْ حِنْطَةٍ
صحیح بخاری کتاب الزكاة » - زكاة الفطر على المسلمين من التمر والشعير
नाफ़े कहते हैं कि अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु अन्हुमा ने बयान किया कि बेशक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सदक़ा फ़ित्र एक साअ खुजूर या एक साअ जौ निकालने का हुक्म दिया था। इब्ने उमर कहते हैं कि लोगों ने गेंहू के दो मुद को उस के बराबर ठहरा लिया।
(सही बुख़ारी हदीस नंबर 1507 / किताबुज़ ज़कात, सदक़ा फ़ित्र एक साअ है।
नोट :- एक साअ में 4 मुद होते हैं इसलिए 2 मुद निस्फ़ (आधे) साअ के बराबर हुआ।
हदीस (5)
عَنْ إِسْمَعِيلَ بْنِ أُمَيَّةَ قَالَ أَخْبَرَنِي عِيَاضُ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ سَعْدِ بْنِ أَبِي سَرْحٍ أَنَّهُ سَمِعَ أَبَا سَعِيدٍ الْخُدْرِيَّ يَقُولُا كُنَّا نُخْرِجُ زَكَاةَ الْفِطْرِ وَرَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِينَا عَنْ كُلِّ صَغِيرٍ وَكَبِيرٍ حُرٍّ وَمَمْلُوكٍ مِنْ ثَلَاثَةِ أَصْنَافٍ صَاعًا مِنْ تَمْرٍ صَاعًا مِنْ أَقِطٍ صَاعًا مِنْ شَعِيرٍ فَلَمْ نَزَلْ نُخْرِجُهُ كَذَلِكَ حَتَّى كَانَ مُعَاوِيَةُ *فَرَأَى أَنَّ مُدَّيْنِ مِنْ بُرٍّ تَعْدِلُ صَاعًا مِنْ تَمْرٍ قَالَ أَبُو سَعِيدٍ فَأَمَّا أَنَا فَلَا أَزَالُ أُخْرِجُهُ كَذَلِكَ
(صحيح مسلم- كتاب الزكاة » - زكاة الفطر على المسلمين من التمر والشعير)
अबु सईद ख़ुदरी रज़ि अल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में हम सदक़ा फ़ित्र हर छोटे बड़े, आज़ाद और गुलाम की तरफ़ से 3 क़िस्म की चीज़ें निकालते थे। खुजूर का एक साअ या पनीर का एक साअ या जौ का एक साअ। हम हमेशा इसी के मुताबिक़ निकालते रहे यहाँ तक कि अमीर मुआविया रज़िअल्लाहु अन्हु का दौर आ गया तो उन्होंने ने ख़्याल ज़ाहिर किया कि गेहूं के 2 मुद खुजूर के एक साअ के बराबर है। अबु सईद ख़ुदरी ने फिर कहा लेकिन मैं तो उसी पहले तरीक़े यानी एक साअ ही निकालता रहूंगा।
(सही मुस्लिम हदीस नंबर 2285/ किताबुज़ ज़कात मुसलमानों पर खुजूर और जौ के सदक़ा फ़ित्र के बयान में)
हदीस (6)
عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ أَنَّ مُعَاوِيَةَ لَمَّا جَعَلَ نِصْفَ الصَّاعِ مِنْ الْحِنْطَةِ عَدْلَ صَاعٍ مِنْ تَمْرٍ أَنْكَرَ ذَلِكَ أَبُو سَعِيدٍ وَقَالَ لَا أُخْرِجُ فِيهَا إِلَّا الَّذِي كُنْتُ أُخْرِجُ فِي عَهْدِ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ صَاعًا مِنْ تَمْرٍ أَوْ صَاعًا مِنْ زَبِيبٍ أَوْ صَاعًا مِنْ شَعِيرٍ أَوْ صَاعًا مِنْ أَقِطٍ
(صحيح مسلم- كتاب الزكاة - زكاة الفطر على المسلمين من التمر والشعير)
अबु सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब अमीर मुआविया रज़ि अल्लाहु अन्हु ने गेहूं के आधे साअ को खुजूर के एक साअ के बराबर क़रार दिया तो उन्होंने उसे मानने से इंकार कर दिया और कहा मैं सदक़ा फ़ित्र में वही निकलूंगा जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में निकाला करता था यानी खुजूर का एक साअ, या किशमिश का एक साअ या जौ का एक साअ या पनीर का एक साअ।
(सही मुस्लिम हदीस नंबर 2287/ मुसलमानों पर खुजूर और जौ के सदक़ा ए फ़ित्र के बयान में)
हदीस (7)
عَنْ ابْنِ عَبَّاسٍ قَالَ ذَكَرَ فِي صَدَقَةِ الْفِطْرِ قَالَ صَاعًا مِنْ بُرٍّ أَوْ صَاعًا مِنْ تَمْرِ أَوْ صَاعًا مِنْ شَعِيرٍ أَوْ صَاعًا مِنْ سُلْتٍ
(سنن نسائی کتاب الزكاة » مكيلة زكاة الفطر)
इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हुमा ने सदक़ा फ़ित्र का ज़िक्र करते हुए कहा एक साअ गेहूं या एक साअ खुजूर या एक साअ जौ या एक साअ सुल्त (जौ की एक क़िस्म)
(सुन्न निसाई हदीस नंबर 2511/ किताबुज़ ज़कात, सदक़ा ए फ़ित्र का पैमाना)
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◆ सदक़ा फ़ितर हर मुसलमान पर वाजिब है जो सहूलत से अदा कर सकता हो।
◆ अहनाफ़ के नज़दीक गेहूं निस्फ़ साअ) (آدھا صاع) और बाकी चीज़े एक साअ हैं लेकिन उनके नज़दीक साअ इराक़ी है जिसका वज़न मौजूदा दौर के पैमाने के अनुसार लगभग साढ़े तीन किलो है।
◆ अहनाफ़ के इलावा सभी के नज़दीक सदक़ा ए फ़ित्र तमाम चीज़ों में एक साअ है लेकिन उनके यहां साअ हिजाज़ी है जिसका वज़न मौजूदा दौर के पैमाने के अनुसार लगभग ढाई किलो है।
◆ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तअल्लुक़ मक्का मदीना यानी हिजाज़ से था और सहाबा रज़िअल्लाहु अन्हुम आप की पूरी ज़िंदगी और ख़िलाफ़त ए राशिदा में साअ हिजाज़ी से ही निकालते थे।
◆ ऊपर जिन अहादीस का जिक्र हुआ है इससे पता चलता है कि निम्नलिखित चीज़ें सदक़ा ए फ़ित्र में निकाली जाती थी
1 खुजूर
2 किशमिश या मुनक्का
3 पनीर
4 जौ
5 गेंहू
◆ आजकल बाजार में गेहूं की क़ीमत तमाम अजनास से कम है फिर अपने मुल्क भारत में गेहूं निकालने का रुझान ज़्यादा है क्या ग़रीब, क्या अमीर सभी आमतौर पर गेहूं ही सदक़ा में निकालते हैं हालांकि सदक़ा अपनी हैसियत के मुताबिक़ निकालना चाहिए। अगर किसी की हैसियत खुजूर, किशमिश, पनीर या मुनक्क़ा निकालने की है तो उसे वही चीज़ें या उसकी क़ीमत सदक़ा फ़ित्र में देना चाहिए। एक धनवान व्यक्ति भी गेहूं या जौ का सदक़ा निकाले यह बात समझ में नहीं आती । वह इतना तो निकाले कि किसी ग़रीब की मदद ठीक से की जा सके। अल्लाह के रास्ते में जो जितना ख़र्च करेगा उसका कई गुना अल्लाह के यहां उसका बदला पायेगा।
◆ एक मालदार व्यक्ति भी अगर गेहूं या जौ सदक़ा ए फ़ित्र में दे रहा है तो इसका मतलब यह है कि वह सदक़ा देकर सिर्फ़ एक बोझ उतार रहा है उसके यहां यक़ीनन ख़ुलूस की कमी है और अल्लाह के मुक़ाबले में माल से मुहब्बत अभी ज़्यादा है।
ज़कात व सदक़ात के मुस्तहिक़ कौन (तरतीब (sequence) के साथ)
1, क़रीबी (रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त = यह ना हो कि भाई की कोठियां तैयार हो रही हैं और बहन के पास रहने के लिए झोपड़ा भी न हो, चाचा के पास मोटरें हो और भतीजे के पास तांगा के पैसे भी मुयस्सर ना हो। ऐसा भी न हो कि एक भाई तो चंदे पर चंदे दे रहा हो, उमरे पे उमरे कर रहा हो, दूसरे इलाक़े के लोगों की भरपूर सहायता करता हो और ख़ुद उसके भाई, बहन, पड़ोसी और मित्र रोटी के एक एक टुकड़े को तरस रहे हों। इसलिए हर मालदार को सबसे पहले अपने रिश्तेदार ख़नदान, भाइयों, बहनों, भतीजों, भांजों और दूसरे क़रीबी लोगों की ख़बरगीरी करनी चाहिए) हदीस में है
قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ الصَّدَقَةُ عَلَى الْمِسْكِينِ صَدَقَةٌ وَعَلَى ذِي الْقَرَابَةِ اثْنَتَانِ صَدَقَةٌ وَصِلَةٌ
(سنن ابن ماجہ الزكاة » - فضل الصدقة)
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मिस्कीन को सदक़ा दिया जाना केवल सदक़ा है और रिश्तेदार को सदक़ा देने में दो फ़ायेदे हैं, एक तो सदक़ा है और दूसरा सिला रहमी (क़रीबी और रिश्तेदारों से नेक सुलूक) )
(सुनन इब्ने माजा 1844/ किताबुज़ ज़कात, सदक़ा की फ़ज़ीलत का बयान, सुनन निसाई 2583।
2, यतीम (orphans)
3, मिस्कीन (the needy) जो सख़्त ज़रूरतमंद होने के बावजूद शर्म व हया और ख़ुद्दारी की वजह से दूसरे के आगे हाथ न फैलाता हो)
4, फुक़रा (Poor people) (हर वह शख़्स है जो अपनी मईशत (रोज़ी रोटी) के लिए दूसरों की मदद का मुहताज हो)
5, ज़कात और सदक़ात की वसूली करने वाले (जिनका कोई दूसरा रोज़ी रोटी का जरिआ न हो)
6, तालीफ़े क़ल्ब (जिनका काम मन मोहना हो)
7, क़ैदियों को छुड़ाने के लिए
8, क़र्ज़दारों की मदद करने में (ऐसे क़र्ज़दार जो क़र्ज़ अदा करने की सकत न रखते हों
9, अल्लाह के रास्ते में (अल्लाह के दीन को फैलाने के लिए)
10, मुसाफ़िर
11, सवाल करने वाले
(देखें सूरह 002 अल बक़रह आयत 177, सूरह 004 अन निसा आयत 36 में الۡجَارِ ذِی الۡقُرۡبٰی नज़दीक के पड़ोसी وَ الۡجَارِ الۡجُنُبِ दूर के पड़ोसी وَ الصَّاحِبِ بِالۡجَنۡۢبِ दोस्त और सूरह 009 अत तौबा आयत 60)
आपका दीनी भाई
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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