🌙 रमज़ान के मसाइल-8: सेहरी (सुहूर) और इफ्तार
🔴 सेहरी (सुहूर) के मसाइल
1. सेहरी (सुहूर) क्या है?
वो खाना और पानी जो इंसान फज्र के तुलू होने से पहले रोज़ा रखने की नियत से खाता या पीता है। उसे सेहरी कहते हैं?
2. क्या रोज़ा रखने के लिए सेहरी करना ज़रूरी है?
रोज़ेदार के लिए सहरी करना मुस्तहब है। लेकिन रोज़े का फ़र्ज़ हिस्सा नहीं है। बगैर सेहरी के भी रोजा दुरुस्त है। रोज़े की सेहत (यानी रोज़े के सही होने) के लिए सहरी खाना ज़रूरी नहीं है लेकिन रसूल अल्लाह (ﷺ) की पैरवी करने और जैसा उन्होंने किया वैसा करने के लिए सेहरी खाना चाहिए।
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"रोज़ा रखने के लिए सहरी खा कर कुव्वत हासिल करो और दिन (यानी दो-पहर) के वक्त आराम करके रात की इबादत के लिए ताकत हासिल करो।"
[इब्ने माजा 1693, ज़ईफ़]
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"सेहरी बरकत की चीज़ हे जो अल्लाह तआला ने तुमको अता फरमाई है, इसे को मत छोड़ना।"
[नसाई 2472]
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया," जो शख़्स रोज़ा रखना चाहे वो किसी चीज़ से सेहरी करे।"[सिलसिला सहीहा 2264]
तीन चिजों को अल्लाह महबूब रखता है:1. इफ्तार में जल्दीii. सहरी में ताख़ीरiii. नमाज के कयाम में हाथ पर हाथ रखना[अतर्गीब वतरहीब, जिल्द-2, सफा-91, हदीस-4]
3. सेहरी की दुआ क्या है?
लोग इस दुआ को पढ़ कर रोज़े की नियत करते है जिसके अलफ़ाज़ किसी सहीह हदीस में नहीं मिलते-
وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ
"व बिसावमी ग़दीन्न नवाइतु मिन शहरी रमज़ान"
"मै रमजान महीने के कल के रोजे की नियत करता हूं।"
"व बिसावमी ग़दीन्न नवाइतु मिन शहरी रमज़ान"
"मै रमजान महीने के कल के रोजे की नियत करता हूं।"
इसके अलावा ये दुआएं भी पढ़ते है,
सेहरी खाने की कोई ख़ास दुआ भी रसूल अल्लाह (ﷺ) से सबित नहीं है इसलिए नाम लेकर अपने आमाल को बताने की जरूरत नहीं है। सेहरी से पहले बस रोज की नियत करनी है। सेहरी की नियत ज़ुबान से करना सबित नहीं है। नियत दिल के इरादे का नाम है हम दिल में फज्र के तुलू होने से पहले नियत करेंगे या रात में ही नियत करेंगे। अगर रात में नियत न हो तो कुछ लोग सहरी नहीं खाते, कुछ लोग रात का खाना सहरी समझ के खाते हैं और कुछ लोग आधी रात में उठ के खा लेने को सहरी समझते हैं।
नियत का तल्लुक दिल से है इसलिए अल्फाज़ के ज़रिये ज़बान से बोल कर नियत करना बिदअत है।
अमल की क़ुबूलियत के लिए ज़बानी अल्फाज़ की नहीं, सच्ची नियत (इखलास) और रसूल अल्लाह (ﷺ) की पैरवी करने की ज़रूरत है।
नहीं, पूरे रमजान की एक साथ नियत करना सही नहीं है बल्कि हर रोज़ की अलग अलग नियत करे। नियत का वक्त मग़रिब के बाद से फज्र तक है, इसके दौरन किसी भी वक़्त रोज़े की नियत कर लें।
1. मै कल का रोजा रखने की नियत करता हूं।
2. कल के रोज़ की नियत करता हूँ।
नियत के ये तीनों अल्फाज़ किसी हदीस से साबित नहीं है, इस तल्लुक़ से कोई ज़ईफ़ या मौज़ू रिवायत भी नहीं मिलती। नियत के अल्फाज़ में लफ़्ज़ “غَدٍ” (जो के कल के मतलब में) है) कैसे सही हो सकता है जबकी रोजा आज का होता है।
4. सेहरी की नियत कैसे करें?
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"तमाम आमाल का दारोमदार नियतों पर है।"[सहीह बुखारी 01]
"कह दीजिए कि क्या तुम अल्लाह को अपनी दीनदारी से आगाह कर रहे हो, अल्लाह हर चीज़ से जो आसमानो में या जमीन में है बखूबी आगाह है, और अल्लाह हर चीज का जाने वाला है?
[क़ुरआन 49: 16]
नियत का तल्लुक दिल से है इसलिए अल्फाज़ के ज़रिये ज़बान से बोल कर नियत करना बिदअत है।
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"हर बिदत गुमराही है और हर गुमराही आग (जहन्नम) में ले जाएगी।"
[नसाई 1578]
अमल की क़ुबूलियत के लिए ज़बानी अल्फाज़ की नहीं, सच्ची नियत (इखलास) और रसूल अल्लाह (ﷺ) की पैरवी करने की ज़रूरत है।
"तो जिसे भी अपने रब से मिलने की आरजू हो उसे चाहिए के नेक अमल करें और अपने रब की इबादत में किसी को भी शरीक न करें।"
[क़ुरआन 18:110]
5. क्या पूरे रमज़ान की नियत एक साथ कर सकते है?
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"जो शाख्स रात के वक़्त रोज़ की नियत न करे उसका रोज़ा नहीं।
[नसाई 2334, सहीह अल्बानी]
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,"जिस ने फज्र होने से पहले रोजे की नियत नहीं कि उसका रोजा नहीं होगा।"
[अबू दाऊद 2454, सहीह]
6. सेहरी क्यों करना चाहिए?
सेहरी करने को लेकर ये खास बातें हदीस में मिलती है:
i. सेहरी में बरकत है।
ii. सहरी करने वाले पर रहमत नाज़िल होती है।
iii. सेहरी का खाना मुबारक खाना है।
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"सहरी करें, क्योंकि सहरी में बरकत है।"
[सहीह बुखारी 1923; मुस्लिम 1095]
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
अल्लाह तआला और उसके फरिश्ते सहरी करने वाले पर रहमत भेजते है।"[सिलसिला सहीहा 2221]
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,"सेहरी का खाना लाज़मी खाओ क्यूंकि ये मुबारक खाना है।"[सिलसिला सहीहा 2244]
रसूल अल्लाह (ﷺ) अपने साथ जब किसी सहाबी को सहरी खाने के लिए बुलाते तो इरशाद फरमाते, "आओ बरकत का खाना खा लो।"[अबू दाऊद, 2344]
7. सहरी किन चीज़ों से की जा सकती है?
हर खाने पीने की चीज़ से कर सकते हैं चाहे वो थोड़ी ही क्यों ना हो। बस ख्याल रहे ऐसी चीज़ें न खाएं जो भूख और प्यास को बढ़ाये और तबियत को नासाज़ कर दे।
8. सेहरी में क्या खाना सुन्नत है?
रसूल अल्लाह (ﷺ) के ज़माने से सेहरी के लिए खजूर ईस्तेमाल किया जाता है क्यूंकि खजूर एक बेहतरीन ग़िज़ा है। यह सेहत के लिए बहुत अच्छे होते हैं क्योंकि इसमें नेचुरल शुगर होता है जो कि हमारी एनर्जी को बढ़ाता है। पोटेशियम कॉपर और मैग्नीज जैसे मिनरल्स होते हैं जिनमें फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है। ये पेट पर भी हल्का होता है और आसानी से पच जाता है।
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"मोमिन की सबसे प्यारी सहरी खजूर है।"
[अबू दाऊद 2345, सहीह]
हज़रत अनस रदी अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं,आप (ﷺ) सहरी के वक़्त मुझ से फरमाते, "मेरा रोज़ा रखने का इरादा है, मुझे कुछ खिलाओ! तो मैं कुछ खजूर और एक बरतन में पानी पेश करता।"
[सुनन अल-कुबरा, जिल्द-2, सफा-80, हदीस-2477]
अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फरमाया,"छुहारों (सूखी खजूरों) पर एक मोमिन की सहरी कितनी अच्छी है।"[अबू दाऊद, इब्न हिब्बान) (अस-सहीह 562) (सहीह)]
9. क्या एक घूँट पानी से भी सहरी करना जायज़ है?
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"सुहूर / सेहरी खाओ, चाहो तो एक घूँट पानी ही क्यों ना पी लो।"
[मुसनद अहमद 23968]
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"मेरी उम्मत के लिए उनकी सेहरी में बरकत है। तुम सेहरी खाया करो अगरचे एक घूंट पानी पी लो, एक खजूर या चंद दाने किशमिश के खा लो। बिलाशुबा फ़रिश्ते तुम्हारे ऊपर रेहमत नाज़िल करते है।"[मुसनद अहमद 23978]
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया,
"सहरी पूरी की पूरी बरकत है पस तुम ना छोड़ो चाहे यही हो कि तुम पानी का एक घूंट पी लो, बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते रहमत भेजते हैं सेहरी करने वालो पर।"
[मुसनद अहमद बिन हम्बल 11396]
10. क्या आधी रात में सेहरी खाना दुरुस्त है?
नहीं, रोज़ेदार को चाहिए कि इस मामले में नबी (ﷺ) की मिसाल पर चले और जल्दी सेहरी न खाए। अगर कोई शख़्स आधी रात में सेहरी खा लेता है, तो वह फज्र की नमाज़ से चूक सकता है क्योंकि खाना खाने के बाद नींद आने लगती है। इसके अलावा, सेहरी में देरी करना रोज़ेदार के लिए बेहतर क्यूंकि इससे शरीर को ज़्यादा एनर्जी मिलती है। क्योंकि सेहरी का मक़सद हमें रोज़े के लिए जिस्मानी ताक़त देना और अपनी एनर्जी को बचा के रखना है इसलिए इसमें देरी करनाअकलमंदी है।
11. क्या सेहरी में इतना खाना, खाना चाहिए के पूरा दिन भूख न लगे?
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,"आदमी पेट से बुरा कोई बर्तन नहीं भरता। आदमी को तो कुछ लुक़मे काफ़ी हैं जिनसे उसकी कमर सीधी रहे। अगर आदमी पर उसका नफ़्स ग़ालिब आ जाए (और वो ज़्यादा खाना चाहे) तो एक तिहाई खाने के लिये एक तिहाई पीने के लिये और एक तिहाई साँस के लिये (रख ले।) [इब्न माजा 3349, सहीह]
12. क्या सेहरी में ताख़ीर करना दुरुस्त है?
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,"इफ्तार में जल्दी करो और सेहरी में ताख़ीर करो।"
[सिलसिला सहीहा 2233]
13. सेहरी का अफजल वक्त कौन सा है या सेहरी का वक़्त कब ख़तम होता है?
सेहरी का अफजल वक्त फ़ज्र से ठीक पहले पहले होता है। फ़ज्र के बाद खाने पीने की इजाज़त नहीं है।
अनस रदी अल्लाहु अन्हु फरमाते है, नबी (ﷺ) और जैद बिन साबित रदी अल्लाहुअन्हु ने सहरी की और जब सहरी से फरिग हुए तो नबी (ﷺ) नमाज के लिए खड़े हुए और नमाज पढ़ी।रावि कहते हैं, हमने अनस रदी अल्लाहुअन्हु से पूछा, "दोनो के सेहरी करने में और नमाज पढ़ने के दरमियान कितना वक्फा था?आप रदी अल्लाहु अन्हु ने फरमाया, "इतना के एक आदमी 50 आयतें पढ़ ले।"[बुखारी 1134; मुस्लिम 1097]
इस हदीस से मालूम होता है कि सेहरी को फ़ज्र से ठीक पहले तक ताख़ीर करना मुस्तहब है। उस समय के बीच जब नबी (ﷺ) और ज़ैद इब्न साबित (रदी अल्लाहुअन्हु) ने अपना सुहूर (सेहरी) पूरा किया और नमाज़ पढ़ना शुरू किया, तो क़ुरआन की पचास आयतों को पढ़ने में जितना समय लगा। दरमियानी रफ़्तार (medium speed) से, न तेज न धीमी।
"और रातों को खाओ-पियो यहां तक की तुमको रात की स्याही की धारी से सुबह की सफ़ेद धारी साफ़ दिखाई दे जाये।"
[क़ुरआन 2:187]
14. अगर खाते हुए सहरी का वक्त खत्म होने का इल्म हो जाए तो क्या करें?
कुछ लोग अज़ान के आखिरी कलिमात तक या जिन मस्जिदों में अज़ान में ताख़ीर की जाती है उस अज़ान तक खाते पीते रहते है जो बिलकुल दुरुस्त नहीं है।
नोट:
i. इस ताख़ीर को आदत न बनाये।
ii. ध्यान रखें सेहरी का वक़्त सुबह सादिक़ तक है।
ii. अगर अज़ान तक खाते पीते है तो ये ज़रूरी नहीं के अज़ान सहीह वक़्त पे हो रही हो, हो सकता है मस्जिद में फज्र की अजान सही वक्त पर नहीं होती बल्कि ताख़ीर हो रही हो तो आपका रोज़ा सही नहीं होगा।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,"तुम में से जब कोई (फज्र) की अजान सूने और बरतन उस के हाथ में हो तो उसे रखे नहीं बल्की अपनी जरूरत पूरी कर ले।" [अबू दाऊद 2350 सहीह]
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,"जब तुम में से कोई अज़ान सुने और (पीने का) बरतन उसके हाथ में हो तो उस बरतन को रख ना दे बाल्की इस से अपनी हाजत के मुताबिक खा पी ले। [मुसनद अहमद, हाकिम, अबू दाऊद] रावी अबू हुरैरा [सहीह उल-जामी' 607, अस-सहीहाह 1394] (सहीह)
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,"जब तुम में से कोई अज़ान सुनता है और इस के हाथ में पानी का ग्लास हो तो इस्तेमाल करने के लिए ग्लास नीचे नहीं रखना चाहिए यहां तक की अपनी हाजत पूरी न कर ले।"[मुसनद अहमद, हाकिम, सही जामी' 607]
15. हमारे और अहले किताब (यहूदी और ईसाई) के रोज़े में फर्क?
अहले किताब रोज़ा रखने से पहले सेहरी नहीं करते थे जबकि उम्मत ए मुहम्मदिया (ﷺ) सेहरी का एहतेमाम करती है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,"हमारे और अहल ए किताब के रोज़ों के बीच यहीं फ़र्क है के हम सहरी खाते हैं।"[सहीह मुस्लिम 1096]
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,"सेहरी खाओ अगरचे एक लुक़्मा ही खा लो या एक घूंट पानी ही पी लो क्यूंकि ये (सेहरी) बाबरकत खाना है और यही तुम्हारे और अहले किताब के रोज़ों में फर्क है।"[मुसनद अहमद 23976]
16. क्या सेहरी के लिए तहारत (पाकी) शर्त है?
सैयदा आयशा सिद्दीक़ा (रज़ि०) फ़रमाती हैं कि रसूलुल्लाह (ﷺ) रमज़ान में जुन्बी (जिमा के बाद नापाकी की) हालत में बग़ैर एहतिलाम (नींद की हालत में वीर्य-पतन) के सुबह उठते फिर आप (ﷺ) ग़ुस्ल फ़रमाते और रोज़ा रखते (यानी ग़ुस्ल फज्र की नमाज से पहली सहरी का वक्त निकलने के बाद करते)।[बुखारी 1930; मुस्लिम 1109]
🔴 इफ्तार के मसाइल
17. इफ्तार का मसनून वक्त क्या है?
सहल बिन साद रदी अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:नबी (ﷺ) जब रोज़े रखते तो एक शख़्स को टीले (ऊँची जगह) पर भेज देते, जब वो कहता के सूरज गुरुब हुवा तो आप इफ्तार कर लेते।[हाकिम, इब्ने हिब्बन, इब्न खुजैमा] [अस-सहीहाह 2081] (सहीह) (हाकिम) रावी सहल बिन साद (तबरानी) रावी अबू अद-दर्दा [सहीह उल-जमी' 4772] (सहीह)
18. क्या रोजा इफ्तार में ताख़ीर करनी चाहिए?
नहीं, बल्कि रोजा इफ्तार में जल्दी करनी चाहिए क्यों की ये अल्लाह के रसूल (ﷺ) का तरीका है।
कुछ लोग वक़्त हो जाने पर ज़्यादा सवाब की नियत से रोज़ा नहीं खोलते बल्कि ताख़ीर करते है तो ऐसा नहीं करना चाहिए क्यूंकि ये अमल खिलाफ ए सुन्नत है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया,"मेरी उम्मत के लोगों में उस वक़्त तक खैर बाकी रहेगा जब तक वो इफ्तार में जल्दी करते रहेंगे।।"
[सहीह बुखारी 1957]
सहल बिन साद रदी अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फरमाया, "मेरी उम्मत मेरे तारीके पर बाकी रहेगी जब तक वो इफ्तार के लिए सितारों के तुलू का इंतजार ना करे।"[हाकिम, इब्ने हिब्बन, इब्न खुजैमा] [अस-सहीहाह 2081] (सहीह) (हाकिम) रावी सहल बिन साद (तबरानी) रावी अबू अद-दर्दा [सहीह उल-जमी' 4772] (सहीह)
19. किस चीज़ से इफ्तार करना अफज़ल है?
रसूल अल्लाह (ﷺ) के ज़माने से इफ्तार के लिए खजूर ईस्तेमाल किया जाता है क्यूंकि खजूर एक बेहतरीन ग़िज़ा है। यह सेहत के लिए बहुत अच्छे होते हैं क्योंकि इसमें नेचुरल शुगर होता है जो कि हमारी एनर्जी को बढ़ाता है। पोटेशियम कॉपर और मैग्नीज जैसे मिनरल्स होते हैं जिनमें फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है। ये पेट पर भी हल्का होता है और आसानी से पच जाता है।
कुछ लोग पानी और नमक से इफ्तार करते है जिसकी कोई दलील नहीं मिलती।
अनस बिन मालिक रदी अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं,
रसूलुल्लाह (ﷺ) नमाज पढ़ने से पहले तर (गीली) खजूर से इफ्तार करते अगर तर ना होती तो ख़ुश्क खजूर (छोहारे) से इफ्तार करते और जब ख़ुश्क खजूर ना होती तो चंद घूँट पानी पी लेते।"[तिर्मिज़ी 696]
20. इफ्तार के वक़्त क्या दुआ पढ़ें?
कुछ लोग इन दुआएं को पढ़तें है जो ज़ईफ़ है-
اَللّٰهُمَّ اِنَّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ
अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुम्तु वा बिका आमंतु वा अलयका तवाक्कल्तू वा अला रिज़किका अफ्तर्तु।
"ओ अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और मैं तुझ पर यक़ीन करता हूं और मैंनेतुझ पर यक़ीन किया है और मैं तेरे रिज़्क़ से अपना रोज़ा तोड़ता हूं।"
اللَّهُمَّ لَكَ صُمْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ
अल्लाहुम्मा लका सुम्तु वा अला रिज़किका अफ्तर्तु
ए अल्लाह मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरे ही रिज़्क़ पर खोल रहा हूँ।
[अबू दाऊद 2358, ज़ईफ़]
اَللّٰهُمَّ اِنَّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ
अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुम्तु वा बिका आमंतु वा अलयका तवाक्कल्तू वा अला रिज़किका अफ्तर्तु।
"ओ अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और मैं तुझ पर यक़ीन करता हूं और मैंनेतुझ पर यक़ीन किया है और मैं तेरे रिज़्क़ से अपना रोज़ा तोड़ता हूं।"
اللَّهُمَّ لَكَ صُمْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ
अल्लाहुम्मा लका सुम्तु वा अला रिज़किका अफ्तर्तु
ए अल्लाह मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तेरे ही रिज़्क़ पर खोल रहा हूँ।
[अबू दाऊद 2358, ज़ईफ़]
21. इफ्तार के वक़्त क्या कहना (पढ़ना) चाहिए?
रोज़ा खोलते वक़्त सिर्फ बिस्मिल्लाह कहना चाहिए।
"बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम" या "बिस्मिल्लाही व अला बरकतिल्लाह" कहना किसी भी हदीस से सबित नहीं है। ये सिर्फ रोज़ेदार के लिए नहीं बल्कि आम दिनों में भी कुछ खाने या पीने से पहले सिर्फ बिस्मिल्लाह कहें। 22. इफ्तार के बाद की कोई दुआ है?
हाँ, इफ्तार के बाद रसूल अल्लाह (ﷺ) ये दुआ पढ़ा करते थे-
ذَهَبَ الظَّمَأُ وَابْتَلَّتِ الْعُرُوقُ وَثَبَتَ الأَجْرُ إِنْ شَاءَ اللَّهُ
ज़हाबाज़ ज़मौ वब'तल्लातिल आउरु'कु वा सबताल अजरू इन शा अल्लाह
"प्यास बुझ गई, रगें नम हो गईं और अल्लाह ने चाहा तो अज्र भी साबित होगा।"
अब्दुल्ला इब्न उमर रदी अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के रसूल अल्लाह (ﷺ) जब रोज़ा खोलते तो कहते:"'ज़हाबाज़ ज़मौ वब'तल्लातिल आउरु'कु वा सबताल अजरू इन शा अल्लाह' प्यास बुझ गई, रगें नम हो गईं और अल्लाह ने चाहा तो अज्र भी साबित होगा।"[अबू दाऊद 2357, सहीह]
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