Ramzan ke Masail-7 | buzurg, bimar, hamila, murjiya ka roza

Ramzan ke Masail-7 | buzurg, bimar, hamila, murjiya ka roza, fidiya


🌙 रमज़ान के मसाइल-7: बुजुर्ग, बीमार, हामिला, मुर्जिया का रोज़ा


1. क्या उम्र दराज़ (बुजु़र्ग) मर्द और औरतों को भी रोज़ा रखना होगा? 

अगर वो इस उम्र को पहुंच चुके हैं के रोज़ा रखने मे उन्हें तकलीफ़ होती है तो वो रोज़ा नहीं रखेंगे ना उसकी कजा़ करेंगे बल्कि फिदिया देंगे। 

अता बयान करते हैं कि उन्होंने इब्ने-अब्बास (रज़ि०) को طَعام مسكين ) ( تفعیل से) ( فدية طَعام مسكين ) तिलावत करते हुए सुना, "जिनके लिए मुश्किल है रोज़ा रखना वो मिस्कीन को खाना खिलाए (फिदिया के तौर पर मिस्कीन को खाना खिलाना)
इब्ने-अब्बास (रज़ि०) ने कहा कि ये आयत मंसूख़ नहीं है। इससे मुराद बहुत बूढ़ा मर्द या बहुत बूढ़ी औरत है। जो रोज़े की ताक़त न रखती हो उन्हें चाहिये कि हर रोज़े के बदले एक मिस्कीन को खाना खिला दें।
[बुखारी 4505]


2. बीमार के लिए रोज़े का क्या हुक्म है? क्या उसे कजा़ करना होगा?

वो इंसान जो इस हालत मे ना हो के रोज़ा रख सके वो ना रखें पर बीमारी के ठीक होने के बाद उसकी कजा़ करे। लेकिन जिन्हें हल्का ज़ुकाम, सिर दर्द, दांत दर्द या ऐसी की कोई और तकलीफ है तो वो रोज़ा रखेगा। 

अल्लाह ताला ने फरमाया:
"और जो कोई बीमार हो या सफ़र पर हो, तो वो दूसरे दिनों में रोज़ों की गिनती पूरी करे।" 
[कुरान 2:185]

शेख उसेमीन कहते हैं, 
1. अगर मरीज़ रोज़े से मुतासिर नहीं होता है तो उसके लिए रोज़ा न रखना जायज़ नहीं है।
2. और रोज़ा न रखना बेहतर लगे तो रोज़ा न रखना अफ़ज़ल है।
3. अगर रोजा रखना मुश्किल हो लेकिन नुक्सान दे ना हो तो रोजा रखना मकरूह (नापसंद दीदा) और छोड़ना मसनून है।
4. अगर रोजा रखना मुश्किल हो और नुक्सान दे भी हो तो रोजा रखना हराम है। जैसे रोज़ा रखने से शिफ़ा याबी में ताख़ीर होने का सबब (कारण) बने या तकलीफ़ हो, या जानकर या क़ाबिल ऐतेमाद डॉक्टर ये कहे के रोजा़ रखने से तकलीफ होगी और डॉक्टर के लिए मुसलमान होना जरूरी नहीं। 
[अल मजमू अल थमीन, इब्न उथैमीन : पेज 126] 


3. वो बीमार (मरीज़) जिनकी शिफा की उम्मीद नहीं है यानि जिसे डॉ कह चुका हो के ये बीमारी जिंदगीभर रहेगी और रोज़ा रखने से मरीज़ को तकलीफ होगी) वो रोज़ा कैसे रखे? 

वो बीमार (मरीज़) जिनकी शिफा की उम्मीद नही है वो रोज़ा नहीं रखेंगे बल्कि फिदिया देंगे। 


"कुछ मुक़र्रर [ निश्चित] दिनों के रोज़े हैं। अगर तुममें से कोई बीमार हो या सफ़र पर हो, तो दूसरे दिनों में इतनी गिनती पूरी कर ले। और जो लोग रोज़ा रखने की ताक़त रखते हों, [ फिर न रखें] तो वो फ़िदिया दें। एक रोज़े का फ़िदिया एक मोहताज को खाना खिलाना है।" 
[कुरान 2:184]
इब्न अब्बास (रज़ि०) ने क़ुरआन की आयत की तफ़सीर में फरमाया, क़ुरआन 2:184 "और उन लोगों के लिए जो मुश्किल से रोज़ा रख सकते हैं" (मिसाल के तौर पर बुजुर्ग मर्द), इसका मतलब है कि वो मुश्किल से रोजा रख सकते हैं। 
क़ुरआन 2:284 "फ़िदिया दो मिस्कीन" मतलब एक गरीब को हर रोज के बदले में खाना खिलाना
कुरान 2:284 "फ़िर जो शक्स नेकी में सबकत करे" मतलब दो गरीब को हर रोज के बदले में खाना खिलाना”
ये आयत मनसुख नहीं है “वो हमारे लिए बेहतर है, लेकिन तुम्हारे हक में बेहतर है”
इस में रुख़सत नहीं सिवाए उन लोगों के लिए जो रोज़ा बहुत मुश्किल से रख पायें या ऐसे मरीज़ के लिए जिनके मर्ज़ की शिफ़ा नहीं।”
[सुनन अन नासाई 2317, सहीह अल्बानी] 


4. क्या एक साथ सारे छूटे हुए रोज़ों का फ़िदिया दे सकते हैं? क्या एक साथ 30 मिस्कीन को खाना खिला सकते है?

हाँ, दे सकते हैं। हम चाहे तो रोज़ाना एक मिस्कीन को खाना खिलाए पर वैसा ही खाना जैसा हम खुद खाते हैं और चाहें तो एक महीने का राशन किट दे सकते हैं या फिर एक साथ 30 मिस्कीन को खाना खिला दें। 

अनस बिन मलिक रदीअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि:
वो एक साल रोज़ रखने से मजबूर हो गए तो उन्हें एक बर्तन में सलीब (गोस्त और रोटी को मिला कर) बनवाया और तीस (30) मिस्कीनो को दावत दी और भर पेट खिला दिया। 
(दारकुत्नी) [इरवा उल-ग़लील जिल्द 4 सफ़ा 21 तहत रक़म 912]


5. हामिला और मुर्जि़या (दुध पिलाने वाली) अगर रमज़ान के रोज़े ना रख सके तो क्या करे? 

अगर हामिला औरत को अंदेशा हो कि रोज़ा रखने से इसे या बच्चे को तकलीफ नहीं होगा तो इसके लिए रोज रखना जायज़ है लेकिन अगर अपने आप या बच्चों के हलाक होने का या ज्यादा तकलीफ होने का डर हो तो इस सूरत में इस पर रोज छोड़ना वाजिब है। वो रोज़ा नहीं रखेगी, वो फ़िदिया दे सकती है।  

हज़रत अनस-बिन-मालिक क़ुशैरी (रज़ि०) से नक़ल हुई है कि मैं नबी ﷺ के पास मदीना मुनव्वरह आया। आप खाना खा रहे थे। आपने मुझ से फ़रमाया: आओ खाना खाओ। मैंने कहा : मैं रोज़े से हूँ। नबी ﷺ ने फ़रमाया: अल्लाह ने मुसाफ़िर को रोज़ा और आधी नमाज़ माफ़ फ़रमा दी है। और हामला और बच्चे को दूध पिलाने वाली को भी। 
[नसाई 2317]

इब्न अब्बास (रज़ि०) ने फरमाया, “अगर हमारा औरत अपने लिए ख़ौफ़ ज़दा है और दूध पिलाने वाली और रमजान में अपने बच्चे के लिए डरती है”
इब्न अब्बास (रज़ि०) ने फरमाया, "तो वो फ़िदिया दे सकती है।
(एक गरीब को खाना खिला सकती है), और वो रोज़ा कजा़ नहीं करेगी। 
[तफसीर अल-तबारी अल-बकराह 184 अल-अलबानी फरमाते हैं : इसका सिलसिला एक मुस्लिम हलथ के मुताबिक सही है] 

शेख इब्न उथैमीन ने कहा, आगर हामिला हो या दूध पिलाना मजबूत/तंदुरुस्त हो, ऐसी ताकत हो उसमें की रोज़े के दौरान मुश्किलें ना पैदा होंगी, तो उसके लिए जरूरी है के वो रोज़ा रखे।
[फतवा इब्न उथैमीन/vol-1 पेज -487] 

सईद बिन जुबैर से रिवायत है कि इब्न अब्बास रदी अल्लाहु अन्हु ने अपनी उम्मे वालादा (बंदी जिस से औलाद हो) से कहा जो हमिला या मुर्ज़िया (दूध पिलाने वाली) थी: तुम उन लोगों में से हो जो रोजे की क़ुव्वत नहीं राखती, तुम पर रोज का बदला (फ़िदिया) है कजा नहीं।
(दारकुत्नी) [इर्वा'उल-ग़लील (4/19)] (इस्नाद सहीह)


6. क्या रोज़े की कजा़ लगातार (रमज़ान के तुरंत बाद रोज़ों को कजा़ एक ही महीने में बिन गैप किए) करना ज़रूरी है?

नहीं, ज़रूरी नही रोज़े की कजा़ लगातार करें। जब जैसे चाहे कर सकते हैं एक साथ भी और हर महीने एक या दो भी रख कर सकते हैं। 

अल्लाह ताला ने फरमाया:
"अगर तुम में से कोई मरीज़ हो या सफर में हो तो उतने दिन गिन कर बाद में रोजा रख ले।"
[कुरान 2: 184]

इब्न अब्बास रदी अल्लाहु अन्हु फरमाते है, "अल्लाह के फरमान के मुताबिक (فَعِدَّۃٌ مِّنۡ اَیَّامٍ اُخَرَ) रोज़ों की क़ज़ा लगतार करना ज़रूरी नहीं।" 
[बुखारी तलिक़न: अस-सौम: बाब माता युक़्ज़ा क़ज़ायुह रमज़ान?]


7. गरीब फिदिया कैसे और कितना देगा?

अक्सर एक सवाल ये भी उठता है के गरीब आदमी फिदिया कैसे देगा तो फिदिया के लिए शर्त ये है के जैसा वो खाता हो वैसा या उससे अच्छा खिलाये उससे कमतर नहीं। तो गरीब जैसा खाता है वैसा ही खिलायेगा तो उसका फिदिया भी काम हो जायेगा। यही अगर वो एक वक़्त में 5o रूपये का खाना खता है तो 5o रुपये का खिलाये। 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...