Ramzan ke baad ka musalmaan

Ramzan ke baad ka musalmaan


रमज़ान के बाद का मुसलमान 


इबादतों का सिलसिला

शाबान शुरू होते ही  कसरत से कजा़ रोजे रखे गए, कुरान की तिलावत की गई ताकि स्पीड बढ़ जाए और रमजा़न में कुरान मुकम्मल की जा सके, कुछ लोगों ने कपड़े बना लिए ताकि रमजा़न की इबादतों में खलल ना पड़े, कुछ ने घर भी पेंट करवा लिए, पर्दे बदलवा लिए, सामान इकट्ठा करके रख लिया और यह सब सिर्फ इसलिए ताकि अच्छी तरह इबादत की जा सके, अपनी मगफिरत करवाई जा सके माशा अल्लाह और कुछ ने कोई तैयारी नहीं की
रमज़ान भी आ गया अल्हम्दुलिल्लाह


रमज़ान का चांद 

रमज़ान का चांद नज़र आते ही रात से ही लोगों ने तैयारियां शुरू कर दी। 
रात में क्या खाना है, शहरी में क्या खाना है फिर कल इफ्तार में क्या खाना है, तरावीह पढ़नी है, क़ुरआन पढ़ना है, नफिल नमाज़ पढ़नी है  ज्यादा से ज्यादा तिलावत करना है। अल्हम्दुलिल्लाह 20 रमज़ान तक यह सिलसिला यूं ही चलता रहा।


शब ए क़द्र

कुछ ने तपतपाती धूप और गर्मी से थक कर रोजे छोड़ दिए और कुछ इबादत गुजार लोगों ने कसरत से इबादतों का दायरा बढ़ा दिया, कोई इतिकाफ करने चला गया, किसी ने अपने घर में ही 10 दिन इबादत कर ली, किसी ने 5 रातें, तो कुछ की इबादत सिर्फ एक रात जो कि फिक्सड करके रखी है 27वीं की रात। बहरहाल इबादत का सिलसिला पूरे महीने कसरत से चलता रहा।


ज़कात और सदका निकाला

कुछ मुसलमानों ने पाबंदी से गरीबों का हक़ अदा किया और कुछ तो गरीबों का भी हक खा गए। अगर देखा जाए तो जकात की रकम लाखो करोड़ो में आती है अगर सही से ये जरूरतमंदों तक पहुंचे तो कोई भी मुस्लमान भूखा न रहे अपनी बुनियादी जरुरत के लिय सूद या कर्ज़ न ले आह! कुछ का इससे कोई ताल्लुक नहीं था मानो उन पर फर्ज़ नहीं था।


ईद का चांद

ईद का चांद नज़र आते ही मानों खुशियों से सब झूम उठे ख्वा किसी ने इबादत की हो या ना की हो कुछ के लिए ईद सिर्फ़ इस लिय ही आता है की नए कपड़े बनवा ले, मस्ती कर लें खूब सारे पकवान और डिसेज का आनंद उठा लें।


ईद और नौजवान नस्ल की कैफियत

हमारे मुआसरे में, आज के कुछ नौजवान मनचले ईद का इंतज़ार सिर्फ़ इसलिये करते हैं कि खुबसूरत लड़कियों को देख कर फिरकी ले सके। आप को ये चीज़ ईद के दिन हर गली मुहल्ले में देखने को मिल जायेगी। बेह्याई का आलम बढ़ता ही जा रहा है। बिनते फातिमा कही जाने वाली बेटियां भी कम नहीं हैं अपनी नुमाईस का एक भी मौका जानें नहीं देती। अल्लाह माफ़ करें 

मर्द हजरात ने ईदगाह जाकर नमाज भी अदा कर ली, एक दूसरे को  मुबारकबाद भी दे दिया, और दूसरी चीज यह भी दिखाई दी औरतें ईद की नमाज से मेहरून रही है कुछ ने घर में पढ़ भी ली और कुछ जगह जहां पर एक गांव में औरतों के लिए इंतजाम किया गया वहां औरतें गई भी। बहरहाल औरतों का मस्जिद न जाना एक अलग टॉपिक है। 

ईद के महीने में शव्वाल के रोज़े

बहुत से मुसलमान तो यह जानते ही नहीं है कि शव्वाल के रोज़े होते क्या हैं, कैसे और क्यों रखा जाता है यह सुन्नत है भी या नहीं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें बताएं  इस पर हमने एक पोस्ट भी तैयार की है शव्वाल के 6 रोज़ो की फज़ीलत के नाम से। आप "शव्वाल के 6 रोज़ो की फज़ीलत" पर क्लिक करके इसे पढ़ सकते हैं इसलिए हम यहां पर शव्वाल के 6 रोज़ो का जिक्र नहीं करेंगे।
ईद के बाद ही इबादतों का सिलसिला कम हो जाता है चंद गिने चुने लोग हो मस्जिद जाते हैं मस्जिदें बीरान हो जाती है, हमारा हाल यह हो जाता है कि हम एक महीने के मुसलमान होते हैं उस दौरान हम गुनाहों से बचने की कोशिश करते हैं, नेकी के काम करते हैं, सदका़ व खैरात करते हैं और महीना गुजरते ही हम वापस से अपनी दुनियावी जिंदगी में मशगूल हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे हमारे दीन हमें यह इजाजत दी है कि हम सिर्फ एक महीना इबादत करें 

फिर किसी ने ठीक ही कहा है,

वाह री मुसलमां दिखावे की इबादत कर रहा है...
खुदा से भी सियासत कर रहा है!!
हम गौर वा फ़िक्र क्यों नहीं करते?
दीन पर कायम क्यों नहीं रह सकते? 

 जबकि अल्लाह ताआला कुरान में फरमाता है,

"और अपने परवर्दिगार की इबादत करते रहो, यहाँ तक कि तुम पर वह चीज़ आ जाये जिसका आना यक़ीनी है।" 
[कुरआन 15: 99]

यहां अल्लाह तआला इबादत करते रहने के लिए फरमा रहा है, यहां कोई महीना या दिन मुकर्रर नहीं किया गया है कि उस दिन या उस रात या उस घड़ी में हम इबादत करना छोड़ सकते हैं क्यों की दुनियां में आने का मक़सद ही अल्लाह की इबादत है... फिर हम गाफिल क्यों है?
हर वक्त हमें अल्लाह को याद करते रहना चाहिए जब तक कि मौत या कयामत ना आ जाए। मौत और कयामत सिर्फ ये दो ऐसी चीजें है जो हमें इबादत से रोकती है।
 

एक बड़ी अच्छी बात कही जाती है

"नमाज पढ़ो इससे पहले कि तुम्हारी नमाज ए जनाजा पढ़ा दी जा।" रमजान में ये बात कहने की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन उसके बाद शायद हर तीसरे घर में ये बात कही जाती है शायद आपके और मेरे घर में भी यही सिलसिला रहता है, बाकी घरों में इस पर कोई चर्चा ही नहीं की जाती मानो उन पर नमाज फर्ज़ ही ना हो। 
और कुछ लोगों से कहो नमाज़ पढ़ो तो कहते हैं कल से पढ़ेंगे। कल कब आता है मेरे भाइयों!


रमज़ान में गुनाह से बचने की पाबंदी

जहां रमजान में टीवी बंद कर दी जाती है पर मोबाइल का कितना चालू रहता है। जो काम टीवी पर नहीं हो सकता वह मोबाइल पर हो रहा होता है खैर, चांद दिखते ही टीवी स्टार्ट हो जाती है गाने, मूवीज़, सीरियल्स की आवाज मोहल्ले में सुनाई देने लग जाती है। अजा़न होती है तो होती रहे हमें इससे क्या? हमें तो बस सीरियल देखना है 1 सेकंड का भी सीन छूटने ना पाए। बाप भाई के सामने भी धड़ल्ले से सीरियल चल रहे होते हैं ना कोई शर्म ओ हया ना लिहाज़। आखिर शर्म हो भी तो क्यों जब घर के हाकिम पर कोई फर्क नहीं पड़ता तो भला बेटे-बेटियों पर क्या फर्क पड़ेगा। 

नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज ऐसे ही नहीं फर्ज़ किया गया है इसके पीछे अल्लाह की बहुत बड़ी हिकमत है। अगर ये चीजें फर्ज़ ना होती तो क्या इनमें से एक पल भी हम अमन से रह पाते? मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि कोई नमाज़ पढ़ता या कोई रोजा रखता या ज़कात देता। यह सारी चीजें सिर्फ रमजान तक ही महदूद रह जाती है शायद इसकी वजह यह है कि रमजान में शैतान कैद कर दिया जाता है। वल्लाहू आलम


खाली मस्जिदें

रमजान में मस्जिद इतनी भर जाती है कि नाजि़यों के लिए जगह नहीं रह जाती। देखा जाता है कि जुम्मा की नमाज़ में लोग सड़कों पर आकर नमाज पढ़ते हैं पर अफसोस ईद वाले दिन फजर की नमाज के लिए भी उस तादाद का एक हिस्सा भी नहीं आता। ईद का चांद देखते ही यंग जनरेशन ऐसे फारिग होती है जैसे नमाज से उसका कोई ताल्लुक ही ना हो। और ईद की नमाज़ होने के बाद तो ऐसे भूल जाती है जैसे मुसलमान पर नमाज़ फर्ज़ ही ना हो।


दीन से दूरी: रुसवाई

शैतान हमारी कमजोरी पर वार करता है और हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि हमने दीन को छोड़ दिया। वह तरह-तरह के हथकंडे अपना कर आपको दीन से दूर करता रहा और आप इतने नासमझ कि उसे उसके मकसद में कामयाब होने के लिए छोड़ दिए। सिर्फ इस छोटी सी गलती ने हमें रुसवाई के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया। आज देख लें हालात बद से बदतर है। अल्लाह ताला फरमाता है, 

हर शख्स के आगे और पीछे वे निगरां (फरीशते ) मुकर्रर है जो अल्लाह के हुक्म से बारी बारी उसकी हिफाजत करते हैं , "यकीन जानो की अल्लाह उस कौम की हालत नहीं बदलता जब तक वो अपने हालात में तब्दीली ना ले आये" और जब अल्लाह किसी कौम पर कोई आफ़त लाने का इरादा कर लेता है तो उसका टालना मुम्किन नहीं, और ऐसे लोगो का खुद उसके सिवा कोई रखवाला नहीं हो सकता ।
[क़ुरआन 13:11] 

अल्लाह से दुआ है हम मुसलमानो को हिदायत दे।

बातें तो बहुत हैं पर  जितना लिखा है अगर इन्हीं बातों पर इंसान अमल कर ले, इन्हें समझ ले, इन्हें दिल में बिठा ले तो हमारे जो हालात हैं इन शा अल्लाह सुधर जाएंगे। 


By: Islamic Theology

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