Nikah (part 5): Kab Aayega Wo Din

nikah me deri hone ki wajah, aur uski wajah se hone wale nukasaanat, nikah ko jaldi kyun karna chahiye, nikah karne ke kya fayede hain

कब आएगा वो दिन???

Table Of Content 

  1. निकाह में जल्दी
  2. निकाह में देर क्यों?
  3.  बिरादरी / खानदान
  4. माल/दौलत
  5. लड़को की जिम्मेदारियां और मजबूरियां
  6. दहेज

       

निकाह में जल्दी करना:

निकाह में जल्दी के हवाले से हम कुरान और हदीस से इसे समझने की कोशिश करेंगे


इर्शाद ए बारी तआला:

"तुममें जो (मर्द और औरत ) बेनिकाह हों और तुम्हारे ग़ुलामों और तुम्हारी कनीज़ों में जो नेक और क़ाबिल हों, उनका निकाह कर दो। अगर ये लोग मोहताज(गरीब) होंगे तो खुदा अपने फज़्ल (व करम) से उन्हें मालदार बना देगा और ख़ुदा तो बड़ी वुसअत वाला, जानने वाला है।"

[सूरह 24 (नूर) ॥ आयत 32]

उस निकाह पर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की मदद नाजिल होती है जो सुन्नत तरीके से होता है। हजरत अबू हुरैराह रज़ि. रिवायत करते हैं कि नबी ﷺ. ने फरमाया: 

तीन लोगो की मदद करना अल्लाह के जिम्मे है (यानी इनकी मदद अल्लाह जरूर करता है)-

  1. जो शख़्स अल्लाह के राह में जिहाद करे।
  2. रकम अदा करके आजाद होने का मुहायदा करने वाला गुलाम जो रकम अदा करना चाहता हो और रकम अदा करके आजाद होना चाहता हो।
  3. वो मोमिन जो निकाह कर के पाक दामनी की जिन्दगी जीना चाहता हो।
[मिश्कात - 3089 ,तिर्मिज़ी - 1655, इब्ने माज़ा - 2518]

वजाहत:

उपर की आयत से ये बात वाज़ेह होती है कि जब औलाद बलुगत की उम्र में पहुंच जाए तो शरीयत उनके निकाह का हुक्म देती है। साथ ही ये बात भी बताई गई है कि किसी खौफ की वजह से मसलन गरीबी के डर से निकाह में देरी नहीं करनी चाहिए, अल्लाह दिलों के हाल जानता है। अल्लाह अपने बन्दों पर बहुत मेहरबान है वो कभी उन्हें अकेला नहीं छोड़ता। हमारे समाज में लोग शादी सिर्फ़ इस वजह से नहीं करते, टालते रहते हैं कि लड़का अच्छी जॉब करने लगे।


खानदान

क्या इस्लाम में जाति/बिरादरी (Caste) की कोई बाध्यता है?

निकाह में खानदान जाति (Caste) जरूरी नहीं है।

आज हम देखते हैं कि हमारे समाज में  निकाह के लिए रिश्ता तय करने में जाति/ बिरादरी और खानदान अहम मसले बन कर हमारे सामने खड़े हैं इन मसलों को जरूरत से ज्यादा अहमियत दी जाती है जब कि इस्लाम में निकाह के लिए  जिस चीज को अहमतरीन खूबी करार दिया है वो दीनदारी है।

लेकिन आज, गैर खानदान या गैर बिरादरी में निकाह करने  को बहुत ही बुरा समझा जाता है इस लिय कई बार अच्छा रिश्ता हांथ से निकल जाता है। अक्सर कोई लड़का या लड़की अपनी पसंद की शादी किसी दुसरे बिरादरी में करना चाहें तो भी वालदेन ज़िद पर अड़ जाते हैं, जाति/बिरादारी उनकी अना (इगो) पर चोट करती है। नतीज़ा ये होता है कि बच्चे भाग कर शादियां कर लेते हैं या जान से हाथ धो बैठते हैं।

लोगों ने ख़ुद को ना जानें कितने तबके में बांट रखा है ये कुरेशी है, अंसारी है, मंसूरी, नाई,धोबी, और पठान वगैरह वगैरह और हर कोई ख़ुद को एक दूसरे से बड़ा और आला दर्जे का समझता है और इन सबसे बढ़ कर इंडिया के पठान हैं जो अपने आप को स्वर्ण राजपूतों के वंशज समझते हैं इनके आगे मुसलमानों की बाकी जातियां कोई एहमियत नहीं रखती। 

अब आइए देखें कि इस्लाम ने हमें इस हवाले से जो तालीमात दी है वो क्या हैं:

हम कुरान और हदीस की रोशनी में इसे देखेंगे,

इर्शाद ए बारी ताला है,

"ऐ लोगों! हमने तुम्हें एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और फिर तुम्हारे खानदान और कबीले(बिरादिरियां) बनाई ताकि एक दूसरे को पहचानो, इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक तुम सबमें ज्यादा इज्ज़त वाला वही है जो सबसे ज्यादा परहेज़गार हो बेशक ख़ुदा सब कुछ जानने वाला और बाख़बर है।"

[सूरह 49 हुजरात || आयत 13]


"मोमिनीन तो आपस में भाई भाई हैं।"

[सूरह 49 हुजरात || आयत 10]


अल्लाह के रसूल ﷺ. ने हज्जतुल विदाअ के खुत्बे में इरशाद फरमाया:

ऐ लोगों! तुम्हारा रब एक है और तुम्हारा बाप(यानी आदम अलै.) भी एक है। बेशक कोई अरबी किसी अज़मी से बड़ा नहीं, और ना कोई अज़मी किसी अरबी से बड़ा है, और ना कोई गोरा किसी काले से बेहतर है और ना कोई काला किसी गोरे से बेहतर है ; सिवाय तक़वे के (यानी खुदा से डरने वाला ही अल्लाह की नजर में मर्तबे में बड़ा और बेहतर है)

[मुसनद अहमद - 22978]


रसूल अल्लाह ﷺने फ़रमाया: लोगों! अल्लाह ताला ने तुम से जहलियत फख्र व गुरूर और खानदानी तकब्बुर खत्म कर दिया है अब लोग सिर्फ़ दो तरह के हैं-

  1. अल्लाह की नज़र में नेक मुत्तकी, करीम व शरीफ़ और 
  2. फाजिर बदबख्त, अल्लाह की नज़र में जलील वा कमज़ोर लोग सब के सब आदम अलैहिस्सलाम के औलाद हैं और आदम को अल्लाह ने मिट्टी से बनाया है।

[जामेअ तिर्मिज़ी- 3270]


वजाहत: 

उपर की आयात और अहादीस से पता चलता है कि सभी ईमान वाले अल्लाह की नजर में बराबर हैं।  किसी को कोई फजीलत हासिल है तो वो दौलत शोहरत, खानदान, हसब नसब, नस्ल, रंग, भाषा की बुनियाद पर नहीं बल्कि अल्लाह से तक़वा और परहेज़गारी की वजह से है।


 गैर खानदान–बिरादरी /जाति में निकाह

यदि किसी को अपने खानदान या बिरादरी में नेक और दीनदार रिश्ता न मिले तो इस्लाम गैर खानदान या बिरादरी में निकाह करने की इजाजत देता है।

अल हम दुलिल्लाह!

हमारे नबी मुहम्मदﷺ उम्मत के लिये  एक रोल मॉडल हैं,  आप ﷺ उम्मत के लिय एक बेहतरीन नमूना पेश करते हैं। निकाह  गैर खानदान या बिरादरी में किया जा सकता है, इसका सबूत भी हमें नबी ﷺ. की पाक जिंदगी से मिलता है। आइए इसे भी हम हदीस की रोशनी में देखते हैं- आप ﷺ. खुद बनी हाशिम कबीले से थे लेकिन आप ﷺ. ने अपने कबीले से बाहर कई निकाह किये:

  1. अम्मी खदीजा, बनू असद कबीले से थी।
  2. सौदा, आमिर बिन लुई कबीले से थी।
  3. अम्मी आयशा, बनी तैम कबीले से थी।
  4. हफ़्सा, बनू अदी कबीले से थी।
  5. अम्मी जैनब, बिन्ते खुमैजा बनू हिलाल कबीले से थी।
  6. अम्मी उम्मे सलमा, बनी मख्जूम कबीले से थी।
  7. अम्मी जैनब बिन्ते जहश बनू असद से थीं।
  8. अम्मी जुवैरिया, बनी मुस्तलिक कबीले से थी।
  9. अम्मी उम्मे हबीबा, बनू उमय्या कबीले से थी।
  10. अम्मी सफिया, बनू क़ुरैज़ा कबीले से थी, जो एक यहूदी कबीला था।
  11. अम्मी मैमुना बिन्ते हारिस बनू हुमैर से ।


ऐसी ही मिसाल हमें सहाबा किराम रज़ि. से भी मिलती है जिन्हों ने गैर बिरादरी में निकाह किये इसके सबूत हमें हदीस और तारीख की किताबों में मिलते हैं। जैसे नबी ﷺ. ने एक ऊंचे खानदान बनी बयादा के लोगों से कहा कि, "तुम लोग अपनी किसी लड़की का निकाह अबू हिन्द (यसार रज़ि.) से करवा दो जो एक गुलाम थे।" [सुनन अबू दाऊद हदीस न०- 2102]


माल-दौलत

क्या इस्लाम में निकाह के लिय माल/दौलत(धन, संपत्ति/बैंक बैलेंस) हैसियत बराबर होना ज़रूरी है?

इस्लाम में माली हैसियत बराबर होना, निकाह की कोई शर्त नहीं है, अपनी जिंदगी में नबी ﷺ की पाक सीरत से हमें यह मालूम होती है कि आप ﷺ ने अमीर और गरीब हर तरह की औरतों से निकाह किया। और साथ ही नबी ﷺ ने अपनी बेटीयों के निकाह में भी दामाद की माली हैसियत को कोई अहमियत नहीं दी। जैसे आप ﷺ ने अपनी दो बेटियों सय्यदा रुकय्या और उम्मे कुलसूम रज़ि का निकाह हजरत उस्मान रज़ि से किया जो बहुत मालदार सहाबी थे और अपनी सबसे चहेती बेटी सय्यदा फातिमा रज़ि का निकाह हजरत अली रज़ि से किया जो बहुत ही गरीब थे।


खुलासा

उपर्युक्त दलाइल से साबित होता है कि निकाह की असली बुनियाद दीन और अख्लाक है, न कि माल/दौलत।


लड़को की जिम्मेदारियां और मजबूरियां

आज निकाह में हो रही देरी  और ढलती हुई उम्र की बहुत सी समस्याएं हैं, ये दौड़ती भागती दुनियां जैसे लगता है इसकी चका चौंध की रोशनी ने हमारी आंखों पर पर्दा डाल दिया है।

दौलत शोहरतऔर बिलासिता पूर्ण लाइफ स्टाइल के चक्कर में हम दीन से कितने दूर होते जा रहे हैं जहां एक तरफ दहेज़ जैसी बला ने लड़कियों का जीना दुभर कर रखा हैं वहीं दूसरी तरफ लड़को की जिंदगी इससे अछूती नहीं है समाज में बढ़ती हुई गैर ज़रूरी रस्मों ने उनकी ज़िंदगी भी मुश्किलों से गुज़र रही होती है अक्सर हम लड़कियों की मजबूरी, उनकी परेशानी पर तो चर्चा करते हैं मगर लड़को की ज़िंदगी में चल रही मुश्किलों और परेशानियों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं

आज हम देखते हैं कि समाज में दौलत कमाने की होड़ सी मची हुई है लोग दौलत मंद और हाई स्टैंडर्ड जिंदगी जीने के लिए निकाह में देरी करते रहते हैं

हम अपने बच्चो से लंबी लंबी उम्मीदें लगा कर उन उम्मीदों के इंतज़ार में उनकी उम्र का ख्याल ही नहीं करते और निकाह में देरी होती रहती है आज ये सबसे बड़ी समस्या है देर से निकाह

घर बसने के अपने बड़े नुकसानात हैं। अपने बच्चों के निकाह  कानूनी उम्र पूरी होने के बाद जितना जल्दी हो सके अच्छा और दीनदार रिश्ता देखकर कर निकाह कर देना चाहिए ताकि उनका घर बसे।

अगर हम माजी (past) पर नज़र डालें तो आज से100-200साल पहले इंसान की जिंदगी 100-110 हुआ करती थी और आज़ादी से पहले इंडिया और दीगर मुल्कों में भी शादी की उम्र 13-16थी ये सिर्फ़ इस्लाम धर्म में ही नहीं बल्कि हर धर्म में था।

इंसान अपनी ज़िंदगी के 70-80अपने जीवन साथी के साथ खुशनुमा माहौल में गुजारता था, फिर यही दिन तो जिंदगी के सबसे बेहतरीन और सुनहरे पल होते हैं जब इंसान की जिंदगी में उसका सबसे ख़ास दोस्त साथ हो, शौहर और बीवी ही एक दूसरे के सच्चे और अच्छे दोस्त होते हैं जो एक दूसरे से सुकून हासिल करते हैं।

आज देखा जाए तो मर्द और औरत दोनों ही आला तालीम हासिल करने, कैरियर बनाने  और दूसरे कई बहाने से शादी को टालते रहते हैं इस तरह 30-35की उम्र ऐसे ही निकल जाती है और इंसान की औसत उम्र (average age)

60-65 है, यानी इंसान अपने जीवनसाथी के साथ सिर्फ़ 30-35 ही गुजारता है। उसमे भी मोबाइल,इंटरनेट, और सोशल मीडिया के इस दौर में नौजवानों की अक्सरियत पूरी रात कहीं और busy रहते हैं  ये जो लत और लज्जतें हम ले रहे हैं।अल्लाह ऐसी बलाओं  से बचाए।

नौजवानों पर मानसिक दवाब शादी में देरी की मजबूरियां।


लड़की वालों की डिमांड

लड़की वाले अपनी बेटी के लिए लड़को की सुंदरता और ability को इस पैमाने पर मापते हैं-

  • महीने का 10 हजार कमाने वाला - बदसूरत
  • 10 से 25 हजार:- ठीक दिखता है
  • 25-50 हजार :- एवरेज लुक्स
  • 50- 1लाख :- अच्छा दिखता है
  • 1-2 लाख :- लड़का सुंदर  है
  • 2 लाख से ऊपर- एक दम हीरो है हीरो

लड़को के वालदेन की तरफ़ से उम्मीदें

शादी में देरी की मजबूरियां

  1. खुद का higher स्टडी (अच्छी उम्र निकल गई) 
  2. एक अच्छी नौकरी की तलाश 
  3. बहने हैं तो पहले उसका निकाह करना
  4. बहनो के निकाह के लिए दहेज इकट्ठा करना 
  5. घर ना हो तो घर बनाना 
  6. फिर वालिदैन का अच्छी लड़की की तलाश में कई साल गुजार देना 

इसी पैमाने पर खरा उतरने के लिए आज नौजवान डिप्रेशन के शिकार हैं, गरीबों और मिडिल क्लास वालों के लड़कों से कोई निकाह नहीं करना चाहता है। मालदार तो छोड़ो, गरीब भी अपनी बेटियों  के लिए मालदार लड़का ही ढ़ूंढ़ता है और अपनी बेटी मालदारों को देता है। इतना ही नहीं यदि लड़का सिर्फ़ नाम का मुसलमान है और तमाम ऐब से भरा हो अगर उसके पास दौलत है तो लोग अपनी बेटी की शादी उसी से करना पसंद करते हैं, अच्छे अख्लाक और दीनदारी लोगों के लिए कोई मायने ही नहीं रखती।


यही हाल लड़कियों का भी है अपने होने वाले जीवन साथी में दीनदारी नहीं बल्कि एक ऐसा लड़का चाहिए जो दिखने में खूबसूरत हो। एकदम हीरो जैसा अच्छी सैलरी नहीं बल्कि बहुत अच्छी सैलरी हो, लड़का अकेला हो, माँ बाप भी रसूखदार और पैसे वाले हों, अच्छे अख़लाक़ वाला हो बिल्कुल फिल्म स्टार वाला अखलाक।

आज हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, हाई स्टेटस की उम्मीद में उम्र दराज हो रही है।

कुछ लड़कियां बेहतर की तालाश करते करते और अपना कैरियर बनाने  घर से बाहर कदम रखती हैं और इसी दौरान बहुत सी लडकियां चका चौंध की दुनियां में खो कर रह जाती हैं, फिर न तो वो अपने इमान की हिफाज़त कर पाती हैं न अपने आबरू की।


सही वक्त पर निकाह

अगर निकाह सही उम्र और सही वक्त पर किए जाएं तो, ज़िंदगी खुशनुमा बन जाती है इंसान बहुत से गुनाहों से बच जाता है, ज़िंदगी की जिम्मेदारियां एहसास करते हुए रोज़ी रोटी तालाश करता है, मेहनत मशक्कत करने से उसे अपनी सलाहियतें पता चलती हैं। ज़िंदगी की जिम्मेदारियां उठाते हुए उसे थोड़ी मुश्किल और परेशानी का सामना ज़रूर करना होता है, मगर उसे अल्लाह की मेहरबानी और मदद भी मिलती है।

हमारा रब बहुत मेहरबान है अपने बंदों को कभी अकेला नहीं छोड़ता, हमारे मुकद्दर लिखने वाला वही है, सारी परेशानियां, मुश्किलें बुरे हालात सब संवार देता है, ज़िंदगी को लेकर कभी भी मायूस न हों अपने रब पर भरोसा रखें। जिस रब ने ज़िंदगी दी है वो रिज्क भी देगा।

फरमान ए बारी ताला है:

"बेशक अल्लाह रज्जाक(रोजी देने वाला) है,बड़ी कुव्वत वाला, बड़ा जबरदस्त है।"

[सूरह 51 (जारिआत) || आयत 58]


"अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब रिज्क देता है।"

 [सूरह 2 बक़रा || आयत 212]


नबी ﷺ. ने फ़रमाया

"जब बच्चा अपनी माँ के पेट में होता है तो चार महीने की उम्र में ही उसका रिज़्क़ लिख दिया जाता है।"

[सहीह बुखारी हदीस न०- 6594]

आज दौर फितनों का है और मुसलमान इसके जद में है। लिहाजा ज्यादा हिसाब किताब से परहेज करें और सही वक्त पर निकाह करें।


दहेज़

क्या इस्लाम में दहेज़ की कोई शरई हैसियत है?

शरीयत में दहेज़ का कोई हैसियत नहीं है।


इस्लाम में माली (Financial) तौर पर दो हक़ औरतों को दिए गए हैं-

  1.  मेहर
  2. विरासत(मीरास) में हिस्सा


अल्लाह विरासत का कानून जिक्र करते हुये फरमाता है:

"ये (विरासत के) हिस्से अल्लाह ने मुक़र्रर किये हैं, बेशक अल्लाह ही इल्म वाला और हिक्मत वाला है।"

[सूरह 4 (निसा) || आयत 11-12]


आगे ईरशाद ए बारी ताला है :

"यह ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई हदें हैं और जो कोई ख़ुदा और रसूल की इताअत करेगा, उसे ख़ुदा आखिरत में ऐसे बाग़ों में दाखिल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी और वह उनमें हमेशा (चैन से) रहेंगे और यही तो बड़ी कामयाबी है।

और जिस शख्स से ख़ुदा व रसूल की नाफ़रमानी की और उसकी मुक़र्रर की हुई हदों से गुज़र गया तो ख़ुदा उसको जहन्नुम में दाख़िल करेगा, जिसमें वो हमेशा रहेगा और उसके लिये रुसवा करने वाला अज़ाब है।"

[सूरह 4 (निसा) || आयत 13-14]


उपर की आयतों से साफ़ होता है कि जो लोग दहेज़ का नाम पर अपनी बेटियों को विरासत में हिस्सा नहीं देते, उनके लिये अल्लाह ने हमेशा की जहन्नम की सजा तैयार कर रखी है।

दहेज़ एक ऐसा नासूर है जो मुस्लमान कौम को कुरान व सुन्नत के रास्ते से हटा कर लालच, मक्कारी और फिजूलखर्ची की तरह लोगों को माइल कर रहा है जिसके बेशुमार नुकसानात हैं खैर दहेज़ के विषय पर हम अलग आर्टिकल में विस्तृत चर्चा करेंगें

अभी हम निकाह के हवाले से कुरान और सुन्नत की रोशनी में समझते हैं,

नबी ﷺ और सहाबा के दौर में भी दहेज़ जैसी कुप्रथा की कोई मिसाल नहीं मिलती।

और आप ﷺ के बाद के दौर में भी कोई दलील नहीं मिलती, ये एक गैर इस्लामी प्रथा है जो प्राचीन काल में राजा महाराजा अपनी बेटी को उपहार दिया करते थे। और ये रस्म भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ही पाई जाती है।

अब दहेज़ के बारे में कुछ लोग नबी ﷺ पर ये इल्जाम लगाने हैं कि आप ﷺ ने अपनी प्यारी बेटी सय्यदा फातिमा रज़ि को दहेज़ दिया था। कुछ लोग इसे जहेज़ ए फातमी नाम देते हैं, जबकि सच बात ये है कि नबी ﷺ. ने जो सामान अपने दामाद हजरत अली रज़ि को दिया था वो उन्हीं के माल से दिया था। दरअसल हजरत अली रज़ि ने अपनी जो जिरह बेची थी उसकी कीमत से ये सामान खरीदा गया था।

अब यहां गौर करने की बात है  कि नबी ﷺ ने अपनी तीन और बेटियों का भी निकाह किया था, तो उन निकाहों के हवाले से हमें दहेज़ का कोई सबूत नहीं मिलता।

ये एक गैर इस्लामी रस्म है इसका बायकॉट किया जाना चाहिए।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ गो हूं की हम मुस्लिमो को सही दीन समझने और अमल करने की तौफीक अता फरमाए आमीन

निकाह की फजीलत की अगली कड़ी में कुछ ख़ास और अहम बुनियाद पर चर्चा होगी

इन शा अल्लाह

आप की दीनी बहन 
फिरोजा

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