पारा (29) तबारकल लज़ी
इस पारे में ग्यारह हिस्से है-
(2) सूरह (068) अल क़लम मुकम्मल
(3) सूरह (069) अल हाक़्क़ा मुकम्मल
(4) सूरह (070) अल मआरिज मुकम्मल
(5) सूरह (071) नूह मुकम्मल
(6) सूरह (072) अल जिन्न मुकम्मल
(7) सूरह (073) अल मुज़्ज़म्मिल मुकम्मल
(8) सूरह (074) अल मुद्दस्सिर मुकम्मल
(9) सूरह (075) अल क़यामह मुकम्मल
(10) सूरह (076) अद दहर (अल इंसान) मुकम्मल
(11) सूरह (077) अल मुरसिलात मकम्मल
(1) सूरह (067) अल मुल्क मुकम्मल
(i) मौत और ज़िंदगी का मक़सद
मौत और ज़िंदगी का मक़सद इंसान की आज़माइश है कि कौन अच्छे अमल करने वाला है। (2)
(ii) सोचने व ग़ौर करने की दावत
सात आसमान की अनोखी तख़लीक़, उसको सितारों से सजाना, शैतान की पहुंच से दूर रखना, ज़मीन को वश में करना, पक्षियों का पर फैला कर उड़ना और उन्हें समेट लेना, इंसान की पैदाइश और उसके कान, आँख और दिल जैसे अहम पार्ट। (3, 15, 19, 23)
(iii) जहन्नम के दारोग़ा का सवाल
जब कोई गिरोह जहन्नम में डाला जाएगा तो दारोग़ा उस से पूछेगा कि तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं आया फिर वह ख़ुद अपने ख़िलाफ़ गवाही देंगे। (8)
(iv) कौन है जो समस्याओं का समाधान कर सके
अगर अल्लाह तुम्हारे साथ ज़मीन को धंसा दे, आसमान से पत्थर बरसा दे, रिज़्क़ को रोक ले, पानी को ज़मीन की सतह से ग़ायब कर दे तो फिर कौन है जो इन समस्याओं का समाधान कर सके। (16, 17, 21, 30)
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(2) सूरह (068) अल क़लम मुकम्मल
(i) नबी के अख़लाक़ की गवाही
ऐ नबी! आप अपने रब के फ़ज़ल से मजनूं नहीं हैं, आपके लिए तो न ख़त्म होने वाला अज्र है, आप तो अख़लाक़ की अज़ीम बुलंदी पर विराजमान हैं। (2 से 4)
(ii) वलीद बिन मुग़ीरह की दस सिफ़ात
2. बहुत ज़्यादा क़समें खाने वाला
3. कमीन
4. ताने देने वाला
5. चुग़लखोर
6. भलाई से रोकने वाला
7. ज़ुल्म व ज़्यादती में हद से आगे बढ़ जाने वाला
8. बुरे अमल करने वाला
9.बहुत ज़्यादा मॉल व औलाद वाला,
10, बद असल (हरामी)
(8 से 15)
जब यह आयत नाज़िल हुई तो वलीद बिन मुग़ीरह ने अपनी माँ से जाकर कहा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मेरे बारे में दस बातें बताई हैं। नौ को मैं जानता हूँ कि मुझ में मौजूद हैं लेकिन दसवीं बात बदअस्ल (हरामी) होने की, इसका हाल मुझे मालूम नहीं। अब तू या तो मुझे सच सच बता दे वरना मैं तेरी गर्दन अभी उड़ा दूँगा। इस पर उसकी मां ने कहा कि तेरा पिता मुग़ीरह नपुंसक था मुझे अंदेशा हुआ कि वह मर जाएगा तो उसका माल दूसरे उड़ा ले जाएंगे तब मैंने एक चरवाहे को बूला लिया। तू उसी चरवाहे की औलाद है। (कंज़ुल ईमान फ़ी तरजमतिल क़ुरआन, हाशिया नईमुद्दीन मुरादाबादी तफ़्सीर सूरह अल क़लम)
(iii) बाग़ वालों का वाक़िआ
कुछ लोग जिन का एक बाग़ था जिसमें ख़ूब फल लगे हुए थे फिर फ़सल पक गई तो उन्होंने आपस में मशविरा किया कि वह कल सुबह फल तोड़ लेंगे। उनको इतना घमंड हो गया था कि इन शा अल्लाह भी नहीं कहा और नीयत इतनी ख़राब हो गई थी कि वह सुबह अंधेरे ही निकले तो एक दूसरे से यह कानाफूसी कर रहे थे कि आज हरगिज़ कोई मिस्कीन खेत में दाख़िल न होने पाए। इसका अंजाम यह हुआ कि अल्लाह ने रातों रात आफ़त भेज दी और वह पूरा बाग़ कटी हुई फ़सल की तरह हो गया। जब उन्होने बाग़ की यह हालत देखी तब उन्हें ख़ुदा याद आया। ऐसे ही अज़ाब आता है और आख़िरत का अज़ाब तो और भी सख़्त होगा। (17 से 33)
(iv) रसूल को नसीहत
◆ सब्र करें,
◆ मछली वाले (यूनुस अलैहिस्सलाम) की तरह जल्दबाज़ी न करें,
◆ काफ़िर तुम्हारे क़दम डगमगा न दें।
(48, 51)
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(3) सूरह (069) अल हाक़्क़ा मुकम्मल
(i) रसूल को झुठलाने का अंजाम
क़यामत को झुठलाने के नतीजे में क़ौमे समूद सख़्त ज़लज़ले से, क़ौमे आद को सात रात और आठ दिन चलने वाली तूफ़ानी आंधी से, फ़िरऔन को समुद्र में डुबो कर और क़ौमे नूह को तूफ़ानी बारिश से अल्लाह ने तबाह व बर्बाद कर दिया। (3 से 12)
(ii) क़यामत का नक़्शा
जब पहला सूर फूंका जायेगा तो ज़मीन और पहाड़ एक ही चोट में चूर चूर हो जाएंगे, आसमान फटेगा और उसकी पकड़ ढीली हो जाएगी, उस रोज़ आठ फ़रिश्ते रब का अर्श उठाये हुए होंगे। उस दिन किसी की कोई बात छुपी हुई न होगी। (13 से 18)
(iii) नेक लोगों का अंजाम
नेक लोगों का कर्म पत्र उनके दाहिने हाथ में दिया जाएगा, वह पसन्दीदा सुखमय जीवन में होगा। ऊँचे बाग़ में जिसके फल झुके पड़ रहे होंगे। उन से कहा जाएगा, खाओ और पियो आनन्दपूर्वक, उन कर्मों के बदले में जो तुमने बीते दिनों में किये हैं। (19 से 24)
(iv) बुरे लोगों का अंजाम
बुरे लोगों का कर्मपत्र उनके बाएं हाथ में दिया जाएगा, उनका वहां कोई जिगरी दोस्त नज़र नहीं आएगा। दुनिया में कमाया हुआ माल, और इक़्तेदार भी कुछ काम नहीं आ सकेगा। उसे पकड़ कर जहन्नम में झोंक दिया जाएगा और सत्तर गज़ लम्बी ज़ंजीर में जकड़ दिया जाएगा क्योंकि वह दुनिया में न तो अल्लाह पर ईमान रखता था और न मिस्कीन को खाना खिलाने पर उकसाता था। पीप और ज़ख़्मों का धोवन उसका खाना होगा। (25 से 37)
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(4) सूरह (070) अल मआरिज मुकम्मल
(i) क़यामत का आना
मांगने वालों ने जब अज़ाब ही मांगा है तो वह अल्लाह ज़िल मआरिज (बुलंद व बाला) की तरफ़ से आयेगा जहां पहुंचने में फ़रिश्तों और रूह यानी जिब्रील को पचास हज़ार साल लगते हैं। (1 से 4)
(ii) क़यामत का दृश्य
आसमान पिघली हुई चांदी और पहाड़ धुनी हुई रुई की तरह हो जाएगा। जिगरी दोस्त एक दुसरे को दिखाए जाएंगे लेकिन वह एक दूसरे से बात नहीं करेंगे। बल्कि मुजरिम तो अपनी बीवी, अपने भाई, अपने मोहसिन, और दुनिया के तमाम लोगों को बदले में दे कर बचना चाहेगा लेकिन वह तो आग की लिपट हो होगी जो चमड़ी तक उधेड़ देगी। (8 से 16)
(iii) इंसान तंगदिल है।
इंसान थुड़दिला (तांगदिल) पैदा किया गया है। जब मुसीबत आती है तो घबरा जाता है और जब ख़ुशहाली आती है तो नाशुक्रा हो जाता है। (19 से 21)
(iv) जन्नत के वारिस कौन
◆ जो पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं,
◆ अपने माल में मांगने वाले और न मांगने वाले ग़रीबों का हक़ समझते हैं,
◆ आख़िरत के दिन को सच जानते हैं,
◆ रब के अज़ाब से डरते हैं,
◆ शर्मगाह की हिफ़ाज़त करते हैं,
◆ अमानत में ख़यानत और वादा ख़िलाफ़ी नहीं करते,
◆ अपनी शहादत को क़ायम रख्ते हैं
◆ अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं।
(23 से 35)
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(5) सूरह (071) नूह मुकम्मल
(i) नूह अलैहिस्सलाम की दावत
ए मेरी क़ौम! मैं तुम्हें डराने वाला हूं, अल्लाह की इबादत करो, उसी का तक़वा इख़्तियार करो, मेरी बात मानो अल्लाह तुम्हारी ग़लतियों को माफ़ कर देगा। (2 से 4)
(ii) नूह अलैहिस्सलाम का अपनी क़ौम पर अफ़सोस
मैंने अपनी क़ौम को रात और दिन मुसलसल दावत दी। जब जब मैंने उनको दावत दी उन्होंने अपने कानों में उंगलियां ठूंस लीं, ज़िद पर अड़े रहे और घमंड किया, मैंने उन्हें दिन के उजाले में भी दावत दी और रात के अंधेरे में भी। और कहा अल्लाह से माफ़ी चाहो बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला है। अगर ऐसा करोगे तो आसमान से बारिश नाज़िल होगी और तुम्हारे माल और औलाद में बढ़ोतरी होगी, वह तुम्हारे लिए बाग़ात और नहरें बनाएगा। (5 से 12)
(iii) इंसान की तख़लीक़ के मराहिल
धूल, नर्म मिट्टी, गीली, लेसदार, चिकनी, ख़मीरी, बदबु वाली, सुखी, गर्मी से पकी हुई, नुत्फ़ा, अलका, मुज़ग़ा एज़ाम (हड्डी) गोश्त, बचपन, जवानी, अधेड़पन, बुढापा, (14)
(iv) नूह अलैहिस्सलाम की अपनी क़ौम के हक़ में बददुआ
ऐ मेरे पालनहार, मेरी क़ौम ने मेरा कहा न माना, बड़े षड़यन्त्र किए। उन्होंने अपने माबूदों को न छोड़ा और न वद्द, सुवाअ, यग़ूस, यऊक़ और नसर को छोड़ा। उन्होंने बहुत लोगों को भटका दिया और ख़ुद भी भटकते चले गए। ऐ मेरे रब तू इन नाफ़रमान लोगों में से किसी को भी धरती पर जीवित न छोड़। (21से 24, 26)
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(6) सूरह (072) अल जिन्न मुकम्मल
(i) जिन्नों का ईमान लाना
तायफ़ से वापसी में नबी करीम अलैहिस्सलाम नख़ला की वादी में क़ुरआन मजीद की तिलावत कर रहे थे कि जिन्नों के एक समूह का गुज़र हुआ तो उन्होंने क़ुरआन सुना और ईमान लाए और अहद किया कि अपने रब के साथ कभी किसी को साझी नहीं बनायेंगे। (1 से 3)
(ii) आख़िरी नबी होने की निशानी
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नबी बनाये जाने से पहले जिन्नात सुन गन लेने के लिए आसमान में घात लगाया करते थे लेकिन जब से आप नबी बनाये गए अब अगर कोई जिन्न सुन गुन लेने की कोशिश करता है तो एक चमकता हुआ सितारा (शहाबे साकिब) उसका पीछा करता है। (8 से 10)
(iii) मस्जिदें अल्लाह का घर हैं
मस्जिदें अल्लाह की इबादत के लिए हैं उनमें किसी और को न पुकारा जाय। (18)
(iv) ग़ैब का जानने वाला केवल अल्लाह है
कुछ इंसान जिन्नों की पनाह मांगते थे और उन्हें आलिमुल ग़ैब समझते थे तो यह मालूम होना चाहिए कि अल्लाह ही आलिमुल ग़ैब है वह अपने ग़ैब का इल्म अपने रसूलों के इलावा किसी को नहीं देता। उन्हें भी जितना चाहता है देता है। (6, 26, 27)
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(7) सूरह (073) अल मुज़्ज़म्मिल मुकम्मल
(i) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इबादत का बयान
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कभी आधी रात, कभी आधी रात से कम और कभी आधी रात से ज़्यादा इबादत करते थे लेकिन अब अल्लाह ने आप को सहूलत दे दी कि आप इतना जागें जितना आसानी से मुमकिन हो। (1 से 4, 20)
(ii) क़ुरआन को तरतील से पढ़ने से क्या मुराद है
◆ अहिस्ता पढ़ा जाय,
◆ रफ़्तार ज़्यादा न हो जैसे बाल काटने के लिए कैन्ची चलती है,
◆ इत्मीनान से पढ़ा जाय भागम भाग न हो,
◆ ठहर ठहर कर पढ़ा जाय ख़त्म करने की जल्दी न हो,
◆ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर आयत को अलग अलग पढ़ते थे।
◆ ख़ूबसूरत आवाज़ में पढ़ा जाय,
◆ आयत को बार बार दुहराया भी जा सकता है,
◆ जहां ज़रूरत हो रुक कर दुआ की जाय,
◆ जहां ज़रूरत हो तस्बीह की जाय और जहां ज़रूरत हो माफ़ी तलब की जाय। (4)
(iii) सब्र की नसीहत
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कुफ़्फ़ार की तरफ़ से तकलीफ़ पहुँचने पर सबरे जमील की नसीहत की गई। (10)
(iv) चार बातों का आदेश
◆ क़ुरआन मजीद में से जो आसान लगे उसे पढ़ने,
◆ नमाज़ क़ायम करने,
◆ सदक़ा करने, और
◆ क़र्ज़े हसना (खूबसूरत क़र्ज़) देने का हुक्म दिया गया है। (20)
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(8) सूरह (074) अल मुद्दस्सिर मुकम्मल
(i) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आम दावत का आदेश
◆ ऐ चादर लपेटने वाले उठो,
◆ लोगों को डराओ,
◆ अपने रब की बड़ाई बयान करो,
◆ अपने कपड़े पाक साफ़ रखो,
◆ गंदगी को दूर करो,
◆ ज़्यादा की तलब में एहसान न करो,
◆ अपने रब की रज़ा के लिए आने वाली तकलीफ़ पर सब्र करो। (1 से 7)
(यह दूसरी वही (وحی) है जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुई)।
(ii) वलीद बिन मुग़ीरह की गुमराही और उसको को दी गईं नेअमतें
◆ अल्लाह ने इकलौता पैदा किया,
◆ ख़ूब मदलदार बनाया,
◆ हाज़िर रहने वाले बेटे दिए,
◆ उसके लिए रियासत की राह बनाई।
लेकिन नाशुक्री और इस्लाम दुश्मनी में हद से गुज़र गया इसलिए अब उसका ठिकाना जहन्नम है। (11 से 30) (1)
(iii) जहन्नमियों का अपने जुर्म का इक़रार
◆ हम नमाज़ नहीं पढ़ते थे,
◆ मिस्कीन को खाना नहीं खिलाते थे,
◆ हक़ के ख़िलाफ़ बातें करने वालों के साथ हम भी बातें बनाते थे,
◆ आख़िरत के दिन को झुठलाते थे। (42 से 46)
(iv) कुछ अहम बातें
◆ कुफ़्र करने वाले जंगली गधे हैं जो शेर से भाग रहे हैं (50, 51)
◆ क़ुरआन एक नसीहत है जिसका दिल चाहे नसीहत हासिल करे,
◆ तक़वा और मग़फ़िरत के तलबगार ही नसीहत हासिल करते हैं। (54 से 56)
बदनसीब वलीद बिन मुगीरा
वलीद बिन मुगीरह का तअल्लुक़ क़बीला ए कुरैश की एक शाख़ बनी मख्ज़ूम से था। यह क़ुरैश का सबसे धनवान व्यक्ति था। उसकी वार्षिक आय एक करोड़ दीनार थी। मक्के से तायफ़ तक उसकी ज़मीनें थीं। एक दिन वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास गया उस समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़ुरआन की तिलावत कर रहे थे क़ुरआन सुनकर उसका दिल नरम हो गया। सूचना अबु जहल को पहुंची, वह फ़ौरन उसके पास आया और कहा तुम्हारी क़ौम चाहती है कि तुम्हारे लिए माल जमा करे। उसने कहा किस लिए? उसने कहा यह माल वह तुम्हें देना चाहती है क्योंकि तुम मुहम्मद के पास गए थे और तुम पर उसका असर हो गया है। वलीद ने कहा क़ुरैश को मालूम है कि मैं उन तमाम में मालदार व्यक्ति हूं। अबु जहल ने सोचा कि अगर वलीद बिन मुगीरह ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया तो फिर क़ुरैश का हर व्यक्ति मुसलमान हो जाएगा। इससे रोकने के लिए अबु जहल ने क़ुरैश के सरदारों की एक कॉन्फ्रेंस बुलाई जिसमें तय किया गया कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ख़िलाफ़ हज्ज के मौक़ा पर एक प्रोपेगैंडा शुरू कर दिया जाय। मीटिंग में कुछ लोगों ने राय दी कि हम मुहम्मद को काहिन कहेंगे। वलीद ने कहा, नहीं! अल्लाह की क़सम वह काहिन नहीं है। हमने काहिनों को देखा है जैसी वह बातें गुनगुनाते हैं और जिस तरह के जुमले जोड़ते हैं क़ुरआन को उनसे दूर की निस्बत भी नहीं है। कुछ बोले उन्हें मजनूं कहा जाए। वलीद ने कहा, वह मजनूं भी नहीं है। हमने दीवाने और पागल देखे हैं इस हालत में आदमी जैसी बहकी बहकी बातें और उल्टी सीधी हरकत करता है वह किसी से छुपी हुई नहीं है। कौन यक़ीन करेगा कि मुहम्मद जो कलाम पेश करते हैं वह दीवानगी की बड़ है या जुनून के दौरे में आदमी ऐसी बातें कर सकता है। लोगों ने कहा, अच्छा तो फिर हम शायर कहेंगे। वलीद ने कहा, शायर भी नहीं है, हम शायरी की तमाम अक़्साम से वाक़िफ़ हैं इस कलाम में शायरी की कोई क़िस्म भी नहीं पाई जाती। लोग बोले तो क्या उनको साहिर (जादुगर) कहा जाए। वलीद ने कहा वह साहिर भी नहीं है, जादूगरों को हम जानते हैं वह अपने जादू के लिए जो तऱीके इख़्तियार करते हैं उनसे भी हम वाक़िफ़ हैं, यह बात भी मुहम्मद पर चस्पां नहीं होती। फिर वलीद ने कहा इन बातों में जो बात भी तुम करोगे लोग उसको बिना वजह इल्ज़ाम समझेंगे। अल्लाह की क़सम इस कलाम में बड़ी मिठास है उसकी जड़ बड़ी गहरी है और उसकी डालियां बड़ी फलदार हैं इस पर अबू जहल वलीद के सिर हो गया कि तुम्हारी क़ौम तुमसे ख़ुश न होगी जब तक कि तुम मुहम्मद के बारे में कोई बात न करो, उसने कहा अच्छा, फिर सोच विचार में गुम हो गया और कुछ बात बनाने की कोशिश की, फिर नज़र उठाई, तेवरी चढ़ाई और मुंह बनाया, पलटा और घमंड सवार हो ही गया आख़िर बोल पड़ा, कि इसे इंसान की वाणी और जादू ही मशहूर कर दो जो बहुत जल्द असर कर जाता है।
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(9) सूरह (075) अल क़यामह मुकम्मल
(i) जब क़यामत क़ायम होगी
जब क़यामत क़ायम होगी तो निगाहें चकाचौंध हो जाएंगी, चांद गहना जायेगा, सूरज और चांद एक जगह इकट्ठे कर दिए जाएंगे, उस समय इंसान हैरान होकर कहेगा कि अब भागने की जगह ही कहाँ है? अब तो रब की पकड़ से कोई बचा ही नहीं सकता। उस दिन बहुत से चेहरे तरो ताज़ा (Fresh) होंगे और बहुत से चेहरों पर हवाईयां उड़ रही होगा। (1 से 11 और 22 से 24)
(ii) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नसीहत
जब वही (وحی) आती तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जल्दी जल्दी पढ़ने लगते कि कहीं भूल न जाएं उस पर अल्लाह ने फ़रमाया ऐ नबी आप जल्दी न करें बल्कि ग़ौर से सुनें इसको पढ़ाना और समझाना हमारी ज़िम्मेदारी है। (16 से 19)
(iii) इंसान इस संसार में बे नकेल का ऊंट नहीं है
इंसान को एहसास दिलाया गया है कि उसे पैदा करके बे नकेल का ऊंट बनाकर नहीं छोड़ दिया गया है बल्कि आख़िरत का मरहला रखा गया है ताकि दुनिया मे किये हुए कर्मो का हिसाब दे सके। (36)
(iv) इंसान के फिंगर प्रिंट्स
हम इस बात पर क़ादिर हैं कि पोर पोर को ठीक कर दें (بَلَىٰ قَٰدِرِينَ عَلَىٰٓ أَن نُّسَوِّيَ بَنَانَهُ) (finger prints के हवाले से इस आयत पर ग़ौर किया जा सकता है।
काफ़िर और नास्तिक यह आपत्ति जताते है कि कोई व्यक्ति मर जाने के बाद जब मिट्टी में मिल जाता है और उसकी हड्डियां तक सड़ गल जाती है तो यह कैसे संभव है कि क़यामत के दिन उसके शरीर का एक एक कण पुनः जोड़ कर पहले वाली (जीवित) हालत में वापस आ जाय और अगर ऐसा हो भी गया तो क़यामत के दिन उस व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकेगी? अल्लाह ने उक्त आयात में इस आपत्ति का स्पष्ट जवाब देते हुए कहा है कि वह (अल्लाह) केवल इसी पर शक्ति नहीं रखता कि बिखरी हुई छोटी छोटी हड्डियों को एकत्रित कर वापस जोड़ दे। बल्कि इस पर भी समर्थ है कि हमारी उँगलियों की पोरों (finger tips) तक पुनः पहले वाली स्थिति में ठीक ठीक ले आए।
सवाल यह है कि जब कुरआन मनुष्य की व्यक्तिगत पहचान की बात कर रहा है तो उँगलियों की पोरों की विशेष रूप से चर्चा क्यों कर रहा है? इस का पता उस समय लगा जब सर फ़्रानसिस गोल्ड (sir Frances Gold) के अनुसंधान (research) के बाद 1880 में उंगलियों के निशान (finger prints) को पहचान के वैज्ञानिक तरीक़े का दर्जा प्राप्त हुआ। आज हम यह जानते हैं कि इस दुनिया में कोई भी दो लोगों की उंगलियों के निशान का नमूना बिल्कुल एक जैसा नहीं हो सकता यहां तक कि एक जैसे जुड़वां (Twins) लोगों का भी नहीं, यही कारण है कि आज दुनिया भर में अपराधियों की पहचान के लिए उनकी उंगलियों के निशान ही इस्तेमाल किए जाते हैं क्या कोई बता सकता है कि आज से 1440 साल पहले किसे उंगली के निशान की विशिष्टता के बारे में पता था? निश्चित रूप से यह ज्ञान अल्लाह के सिवा किसी को नहीं हो सकता था। (आयत 4 के हवाले से)
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(10) सूरह (076) अद दहर (अल इंसान) मुकम्मल
(i) एक समय में इंसान कुछ भी न था
इंसान पर एक ऐसा दौर भी गुज़रा है जब वह कुछ भी न था फिर अल्लाह ने उसे मिश्रित बूंद से पैदा किया और हिदायत का रास्ता सामने रख दिया। अब जो चाहे शुक्र गुज़ार बने और जो चाहे कुफ़्र करे। अलबत्ता यह जान ले कि काफ़िरों के लिए बेड़ी, तौक़, और भड़कती हुई आग है और नेक लोगों के लिए तरह तरह की नेअमतें हैं। (01 से 04)
(ii) अल्लाह के नेक बंदों की विशेषताएं
◆ नज़रों (अल्लाह से मानी हुई मिन्नत) को पूरी करते हैं,
◆ आख़िरत के दिन से डरते हैं,
◆ मिस्कीन, यतीम और क़ैदियों को हंसी खुशी खाना खिलाते हैं,
◆ हर काम का मक़सूद सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा होती है क्योंकि वह अपनी नेकियों के बदले किसी शुक्रिया और बदले के तलबगार नहीं होते। (7 से 10)
(iii) जन्नतियों को दी जाने वाली नेअमतें
काफ़ूर और सोंठ के शर्बत, चमक (freshness) और ख़ुशी, बाग़ात , ऊंची मसनदें, गाऊ तकिया, न गर्मी की तकलीफ़ और न धूप की फ़िक्र, जन्नत की छाया, फलदार दरख्तों का झुकना, चांदी के बर्तन और शीशे के ख़ूबसूरत गिलास, सलसबील का चश्मा, बिखरे मोती की तरह हमेशा एक ही उम्र के रहने वाले ख़िदमतगार, बारीक रेशम के हरे लिबास, अतलस व दीबा के लिबास, चांदी के कंगन, स्वागत आदि। (05 से 22)
(iv) नबी को सब्र की तलक़ीन
◆ ऐ नबी! सब्र करें,
◆ काफ़िरों की न सुनें,
◆ सुबह शाम अपने रब का ज़िक्र करें,
◆ तहज्जुद व तस्बीह का एहतेमाम करें। (24 से 26)
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(11) सूरह (077) अल मुरसिलात मकम्मल
(i) जब क़यामत आएगी
लगातार चलने वाली और तूफ़ानी हवा जो बादलों को उठा कर फिर जुदा करके बारिश और इंसान के डर का कारण बनती हैं उनकी क़सम खा कर यक़ीन दिलाया गया कि क़यामत तो आकर रहेगी और उसकी निशानी यह होगी कि सितारे प्रकाश विहीन हो जायेंगे, आसमान फट जायेगा, पहाड़ चूर चूर कर दिये जायेंगे, पैग़म्बर निर्धारित समय पर एकत्र किये जायेंगे। (01 से 15)
(ii) तबाही है आज झुठलाने वालों के लिए
इस आयत को पूरी सूरह में दस बार दुहराया गया है। पिछले जुमलों में कही गई बात पर ज़ोर देने के लिए ऐसा किया गया है।
1, क़यामत के ज़िक्र के बाद,
2, पिछ्ली क़ौमों की हिलाकत,
3, इंसान की पैदाइश,
4, दुनिया मे अता की गई नेअमतें,
5, लोग क़यामत की तरफ़ बढ़ते जा रहे हैं,
6, क़यामत के दिन लोगों की हालत,
7, आज कोई मक्कारी करनी है तो कर लें,
8, परहेज़गार साये और चश्मों में होंगे, उनकी ख़्वाहिश के मुताबिक़ मेवे होंगे,
9, खाओ पियो और कुछ दिन ऐश कर लो तुम मुजरिम हो,
10, जब रुकूअ करने के लिए कहा जाएगा तो काफ़िर रुकूअ नहीं कर सकेंगे। (16 से 50)
(iii) क़यामत का इंकार करने वालों का अंजाम
तीन शाख़ों वाला साया जो न तो ठंढक पहुंचाएगा और न आग की लिपट से बचा सकेगा, वह तो महलों इतनी ऊंची चिंगारी फेंकेगा, जहन्नमी पीले ऊंटों की तरह होंगे, न यह बोलेंगे और न कोई बहाना (excuses) पेश कर सकेंगे। (35 से 38)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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