Khulasa e Qur'an - Para 28 (qad samiullahu)

Khulasa e Qur'an - Para 28 (qad samiullahu)


क़ुरआन सारांश [खुलासा क़ुरआन]
अट्ठाईसवां पारा - क़द समेअ अल्लाहु
[सूरह अल मुजादिला से अत तहरीम तक]


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
(अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है)


पारा (28) क़द समेअ अल्लाहु


इस पारे में नौ हिस्से है-

(1) सूरह (058) अल मुजादिला मुकम्मल 
(2) सूरह (059) अल हशर मुकम्मल
(3) सूरह (060) अल मुमतहिना मुकम्मल
 (4) सूरह (061) अस सफ़्फ़ मुकम्मल
(5) सूरह (062) अल जुमुआ मुकम्मल
(6) सूरह (063) अल मुनाफ़िक़ून मुकम्मल
(7) सूरह (064) अत तग़ाबुन मुकम्मल
(8) सूरह (065) अत तलाक़ मुकम्मल
(9) सूरह (066) अत तहरीम मुकम्मल


(1) सूरह (058) अल मुजादिला मुकम्मल 


(i) ज़िहार और उसका बदला

क़बीला खज़रज की एक महिला ख़ौला बिन्ते सअलबा थीं जिनका विवाह क़बीला औस के सरदार उबादह बिन सामित के भाई औस बिन सामित से हुआ था। अरब में एक बुरा रिवाज यह था कि वह अपनी बीवी को "तुम मुझ पर मेरे मां की पीठ या पेट की तरह हो कह देते थे" जिसका मतलब यह था कि जिस तरह मां से संभोग हराम है उसी तरह उनकी बीवियां उनपर हराम हो गईं गोया कि यह तलाक़ से भी ज़्यादा सख़्त मामला था। चुनांचे औस बिन सामित ने भी ज़िहार कर लिया। ख़ौला बिन्ते सअलबा अल्लाह के रसूल के पास अपनी शिकायत लेकर पहुंचीं। पहले तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़ामोश रहे। उन्होंने बच्चों का वास्ता दिया कि उनकी जिंदगी ख़राब होगी लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यही जवाब दिया कि मेरा ख़्याल है कि तुम अपने शौहर पर हराम हो गईं। यह सुनकर ख़ौला ने अल्लाह से शिकायत की और बार-बार शिकायत की। चुनांचे अल्लाह ने उनकी शिकायत सुन ली और यह सूरह नाज़िल हुई जिसमें ज़िहार को एक झूठ और गंदा अमल क़रार दिया गया और उसके लिए कफ़्फ़ारह का ज़िक्र किया गया। 

 ◆ ग़ुलाम आज़ाद किया जाय 

◆ या दो महीने लगातार रोज़ा रखा जाय, 

◆ या साठ मिस्कीनों को खाना खिलाया जाय। (1 से 6 तक)


(ii) आदाब

◆ अगर किसी मजलिस में हों तो कानाफूसी न की जाय यह शैतानी काम है। 

◆ यहूदी और मुनाफ़ेक़ीन सलाम करते तो अस सामु अलैकुम (तुम को मौत आ जाए) कहते इसलिए अस्सलामु अलैकुम (तुमपर सलामती हो) कहा जाय। 

◆ जब मजलिस में कुशादगी इख़्तियार करने को कहा जाय तो जगह कुशादह कर दिया जाय और जब रुख़सत होने को कहा जाय तो रुख़सत हो जाना चाहिए। (7, 8, 11)


(iii) शैतानी पार्टी

जिनके दिलों पर शैतान ने अपना कब्ज़ा जमा लिया है और अल्लाह की याद उनके दिल से भूला दी है इसीलिए यह लोग क़समें खा खा कर यक़ीन दिलाते हैं और अल्लाह व उसके रसुल से जंग करते हैं। दर हक़ीक़त यह शैतान की पार्टी के लोग हैं और शैतानी पार्टी ही नुक़सान में है। (19)


(iii) अल्लाह की पार्टी 

जो लोग अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखते हैं वह अल्लाह और उसके रसूल के दुश्मनों से मुहब्बत नहीं करते चाहे वह उनके अपने बाप, भाई, बेटे, ख़ानदान ही क्यों न हो। यह अल्लाह की पार्टी वाले हैं। और अल्लाह की पार्टी वाले ही कामयाब हैं। (22)

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(2) सूरह (059) अल हशर मुकम्मल


(i) बनी नज़ीर का निष्कासन

मदीने में यहूदियों के तीन क़बीले आबाद थे, बनी क़ैनक़ाअ, बनी नज़ीर और बनी क़ुरैज़ा, बनी क़ैनक़ाअ का निष्कासन 2 हिजरी में जंगें बदर में मुआहिदे तोड़ने के कारण हो चुका था, अब बनी नज़ीर ने सिर उठाना शुरू किया और नबी अलैहिस्सलाम के क़त्ल की साज़िश करने लगे तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनपर चढ़ाई की। क़ई दिनों की घेराबंदी के बाद वह लोग वहां से निकलने पर मजबूरन तैयार हुए चुनाँचे उन्हें निष्काषित कर दिया गया। यह पहली जिलावतनी थी वह ख़ैबर की तरफ़ गए। बाद में उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में उन्हें शाम (सीरिया) की तरफ़ निकाल दिया गया। (2 से 3)


(ii) माले फ़ै

जंग में लड़ाई के दौरान दुश्मन का जो माल हाथ लगे उसे माले ग़नीमत, और जो बेग़ैर जंग लड़े हाथ आ जाये उसे "माले फ़ै" कहते हैं। माले फ़ै पर केवल अल्लाह, रसूल, रसूल के क़रीबी, यतीम, मिस्कीन, और मुसाफ़िर का हक़ है। (6, 7)


(iii) रसूल के हुक्म के विषय में

जो कुछ रसूल तुम को दें उसे ले लो और जिस से रोक दें उस से रुक जाओ। (7)


(iv) मुहाजिर और अंसार की तारीफ़

मुहाजिर जिन्होंने अल्लाह की रज़ा और उसकी ख़ुशी के लिए घर बार छोड़ा और अंसार ने तंगदस्त होने के बावजूद मुहाजिरीन को अपने पर तरजीह दी। यह कामयाब लोग हैं। अबु तल्हा अंसारी ने अपने बीवी बच्चों को भूखा रख कर नबी अलैहिस्सलाम के एक मेहमान को खाना खिलाया उसपर यह आयत "वह खुद पर दूसरों को तरजीह देते है अगरचे तंगदस्त हैं" नाज़िल हुई क्योकि ईसार (preference) का यह अमल अल्लाह को बहुत पसंद आया। (ब हवाला सही मुस्लिम 5359 से 5361) (8, 9)


(v) शैतान इंसान के लिए एक धोखा है

शैतान इंसान को कुफ़्र के लिए उभारता है लेकिन जब इंसान कुफ़्र कर बैठता है तो वही शैतान यह कह कर अलग हो जाता है कि मैं तो अल्लाह रब्बुल आलमीन से डरता हूँ। (16)


(vi) एहतेसाब (अपना जायज़ा लेना) ज़रूरी है

इंसान को हर समय अपने आमाल का जायज़ा लेते रहना चाहिए कि उसने आने वाले कल यानी आख़िरत के लिए क्या सामान किया है। (17) 


(vii) क़ुरआन कोई मामूली किताब नहीं है 

इंसान क़ुरआन को मामूली किताब समझता है और उसके नुज़ूल के मक़सद से नावाक़िफ़ है। अल्लाह तआला तो फ़रमाता है कि क़ुरआन ऐसी अज़ीम किताब है कि अगर उसे हम किसी पहाड़ पर नाज़िल कर देते तो वह अल्लाह के डर से टुकड़े टुकड़े हो कर गिर पड़ता। (21)


(viii) अल्लाह की मुख़्तलिफ़ सिफ़ात का बयान

अल्लाह की 14 सिफ़ात यहां बयान की गई हैं-

(i) अर रहमान, 
(ii) अर रहीम, 
(iii) अल मलिक, 
(iv) अलकुद्दूस, 
(v) अस्सलाम, 
(vi) अल मोमिन 
(vii) अल मुहैमिन, 
(viii) अल अज़ीज़, 
(ix) अल जब्बार, 
(x) अल मुतकब्बिर, 
(xi) अल ख़ालिक़, 
(xii) अल बारी, 
(xiii) अल मुसव्विर, 
(xiv) अल हकीम 

(22 से 24)

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(3) सूरह (060) अल मुमतहिना मुकम्मल


(i) इस्लाम दुश्मनों को हमराज़ न बनाया जाय

उन ग़ैर मुस्लिमों को दोस्त बनाया जा सकता है जिन से तुम्हारी जंग न चल रही हो। पहली आयत हातिब बिन अबी बलतआ रज़ियल्लाहु अन्हु के सिलसिले में नाज़िल हुई जब उन्होंने मक्का पर हमले का राज़ ज़ाहिर कर दिया था लेकिन फ़ौरन आप अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने बा ख़बर कर दिया। (1, 8)


(ii) सुलह हुदैबिया

सुलह हुदैबिया में एक शर्त यह थी कि अगर मक्का से कोई व्यक्ति ईमान ला कर मदीना जाय तो उसे कुफ़्फ़ार को वापस कर दिया जाएगा। लेकिन जब उम्मे कुलसूम बिन्ते उक़बा बिन मुईत पहुंची तो औरतों को इस शर्त से अलग रखा गया क्योंकि यह शर्त मर्दों के लिए ख़ास थी। (10)


(iii) मोमिन औरतों से बैअत

मोमिन औरतों से निम्न शर्तो के साथ बैअत लेने का हुक्म दिया गया

◆ शिर्क नहीं करेंगी, 

◆ चोरी नहीं करेंगी, 

◆ ज़िना नहीं करेंगी, 

◆ औलाद को क़त्ल नहीं करेंगी, 

◆ न हाथ और पैरों के दरमियान से कोई बुहतान घड़ कर लाएंगी, 

◆ भले कामों में नाफ़रमानी नहीं करेंगी। (12)


(iv) कुछ अहम बातें

◆ किसी मुशरिक के लिए मग़फ़िरत की दुआ नहीं की जा सकती। (4) 

◆ जिसे अल्लाह और आख़िरत पर यक़ीन हो उसके लिए रसूल की जिंदगी ही बेहतरीन नमूना (model) है। (6) 

◆ मोमिन औरतें कुफ़्फ़ार के लिए हलाल नहीं है और न कुफ़्फ़ार की औरतें मोमिनों के लिए हलाल है। (10)

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 (4) सूरह (061) अस सफ़्फ़ मुकम्मल


(i) क़ौल व अमल

क़ौल व अमल में तज़ाद (विरोधाभास) अल्लाह को सख़्त ना पसंद है। (2, 3)


(ii) अल्लाह किस से मुहब्बत करता है?

अल्लाह उनसे मुहब्बत करता है जो सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर जद्दोजहद करते हैं। (4)


(iii) मोमिन कैसा हो?

मोमिन अपने रसूल और दीन के साथ ऐसे न हों जैसे कि बनी इस्राईल मूसा अलैहिस्सलाम को तंग करते रहे और ईसा अलैहिस्सलाम को खुली निशानियां देखने के बावजूद झुठलाते रहे। (5, 6)


(iv) ज़ालिम कौन

बड़ा ज़ालिम वह है जिसको इस्लाम की दावत दी जाय और वह उसे झुठला दे। (7)


(v) फूंको से यह चिराग़ बुझाना

फूंको से यह चिराग़ बुझाया न जाएगा बल्कि अल्लाह अपने नूर को पूरा कर के रहेगा। (8)


(vi) अल्लाह ने रसूल को क्यों भेजा?

अल्लाह ने अपने रसूल को हिदायत और दीने हक़ के साथ भेजा है ताकि तमाम अदयान पर ग़ालिब करदे। (9)


(vii) सबसे अच्छी तिजारत जिसका बदला जन्नत और अल्लाह की रज़ा है

◆ अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान, 

◆ जान व माल से अल्लाह की राह में संघर्ष करना। (11, 12)


(viii) अल्लाह की मदद का ऐलान

ईमान वाले अल्लाह की मदद का वैसे ही ऐलान करें जैसे ईसा अलैहिस्सलाम के हुवारियों ने ऐलान किया था कि "हम हैं अल्लाह के रास्ते में आप के मददगार" (14)

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(5) सूरह (062) अल जुमुआ मुकम्मल


(i) रसूल भेजने का मक़सद

अल्लाह की आयात की तिलावत (पढ़ना और लोगों को सुनाना)' तज़किया (पाक) करना, किताब व हिकमत की तालीम देना। (2)


(ii) रिसालत अल्लाह का फ़ज़ल है जिसे चाहता है देता है

यहूदी यह समझते थे कि नबूवत उनकी जागीर है, उनकी क़ौम के बाहर का जो व्यक्ति भी नबूवत का दावा करे वह झूठा है। उम्मियों में कोई रसूल नहीं हो सकता। उनका जवाब दिया गया है कि रिसालत किसी की जागीर नहीं बल्कि यह तो अल्लाह का फ़ज़ल है जिसे चाहता है देता है। (4)


(iii) बे अमल उलेमा की मिसाल

बे अमल उलेमा की मिसाल उस गधे जैसी है जिसपर किताबें तो ख़ूब लदी होती हैं लेकिन उसे नहीं मालूम होता कि उसमें क्या है? (5)


(iv) जुमुआ की फ़ज़ीलत

एक बार नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़ुत्बा दे रहे थे कि कुछ ताजिर आ गए उनके ढोल ताशे की आवाज़ सुन कर 12 लोगों के इलावा सभी क़ाफ़िले की तरफ़ दौड़ पड़े। इस पर यह दूसरा रुकूअ नाज़िल हुआ। जिसमें कहा गया कि जब जुमुआ की अज़ान हो जाय तो तमाम काम छोड़ कर अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ दौड़ पड़ो क्योंकि अल्लाह ही बेहतरीन राज़िक़ है। अलबत्ता जब नमाज़ मुकम्मल हो जाये तो रिज़्क़ की तलाश में निकल सकते हो। (9 से 11)

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(6) सूरह (063) अल मुनाफ़िक़ून मुकम्मल


(i) मुनाफ़ेक़ीन की सिफ़ात 

ज़ाहिर और बातिन में फ़र्क़, ज़बान से इस्लाम का दावा और दिल में कुफ़्र, झूठी क़सम खाना, घमंड, लोगों को अल्लाह की राह में ख़र्च करने से रोकना, मौक़ा मिलते ही किसी की इज़्ज़ते नफ़्स पर हमला। (1 से 3, 7)


(ii) मुनाफ़ेक़ीन का अंजाम

अल्लाह मुनाफ़ेक़ीन की हरगिज़ मग़फ़िरत नहीं करेगा चाहे अल्लाह के रसूल ही क्यों न उनके लिए इस्तेग़फ़ार करें। (6) सूरह अत तौबा आयत 80 में है कि अगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन के लिए सत्तर बार भी मग़फ़िरत की दुआ करेंगे तो भी अल्लाह उन्हें हरगिज़ माफ़ नहीं करेगा।


(iii) इज़्ज़त वाला ज़िल्लत वाले को निकाल बाहर करेगा

ग़ज़वा ए बनी मुस्तलिक़ से वापसी के मौक़ा पर मुनाफ़ेक़ीन के सरदार अब्दुल्लाह बिन उबई ने कहा था कि मदीना पहुंचते ही हम में से इज़्ज़त वाला ज़िल्लत वाले को निकाल बाहर करेगा। उसका जवाब दिया है कि इज़्ज़त तो अल्लाह और उसके रसूल और मोमिनीन के लिए है। (8)


(iv) माल व औलाद आज़माइश हैं

माल व औलाद इंसान को अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न कर दे जो ऐसा करेगा वह नुक़सान में होगा। (9)


(v) मौत से पहले मौत की तैयारी

मौत से पहले मौत की तैयारी करें क्योंकि जब मौत का वक़्त आ जायेगा तो फिर मुहलत नहीं मिलेगी। (11)

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(7) सूरह (064) अत तग़ाबुन मुकम्मल


(i) चार वास्तविकताएँ 

◆ यह ब्रह्माण्ड जिसमें मानव रहते हैं इसका का एक ख़ुदा है और वह ऐसा है कि जिसके पूर्ण और बेऐब होने की गवाही इस कायनात की हर वस्तु दे रही है। 

◆ यह कायनात बेकार और बग़ैर हिकमत के नहीं बनाई गई है अल्लाह ने इसे बरहक़ (सच) पैदा किया है। 

◆ मानव को अल्लाह ने सर्वश्रेष्ठ सुरत दी है और कुफ़्र व ईमान के इख़्तियार की आज़ादी दी है इसका उद्देश्य यह है कि मानव अपने इख़्तियार को कैसे इस्तेमाल करता है। 

◆ मानव इस धरती पर बे नकेल का ऊंट नहीं है। उसे अल्लाह की तरफ़ पलट कर जाना ही है। जो खुले छुपे तमाम कामों से भलीभांति वाक़िफ़ है। (1 से 7)


(ii) कमी बेशी का दिन (یَوۡمُ التَّغَابُنِ) 

क़यामत के दिन का ज़िक्र मुख़्तलिफ़ नामों से हुआ है उसमें एक "यौमुत तग़ाबुन" भी है जो सबसे ज़्यादा भरपूर लफ़्ज़ है कि वहां जाकर पता चलेगा कि कौन नुक़सान में है और किसने फ़ायदा उठाया, किसका हिस्सा किसे मिल गया और कौन अपने हिस्से से महरूम रह गया, धोखा किसने खाया और कौन होशियार निकला। (9)


(iii) बीवियां और औलाद तुम्हारे दुश्मन 

तुम्हारी बीवियां और औलाद तुम्हारे दुश्मन हैं उन से बचो, यानी अल्लाह के हुक़ूक़ की अदायगी में यह रुकावट न बनें। माल व औलाद तो इंसान की आज़माइश के लिए है। (14)


(iv) क़र्ज़े हसन

जो किसी ज़ाती ग़रज़ के बग़ैर ख़ालिस नियत के साथ दिया जाय, किसी क़िस्म का दिखावा और शुहरत व नामवरी की तलब शामिल न हो, उसे दे कर किसी पर एहसान न जताया जाय, सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए हो उसके इलावा किसी और से अज्र व ख़ुशी की उम्मीद न की जाय। इस क़र्ज़ के मुतअल्लिक़ अल्लाह के दो वादे हैं। 1, उस को कई गुना बढ़ा कर वापस करेगा, 2, अपनी तरफ़ से बेहतरीन अज्र अता फ़रमाएगा। (18)


(v) कुछ अहम बातें

◆ हर मुसीबत अल्लाह के हुक्म से होती है इसलिए सब्र किया जाय। 

◆ अल्लाह और उसके रसूल की इताअत शर्त है, रसूल पर तो केवल पैग़ाम पहुंचा देने की ज़िम्मेदारी है। (11, 12)

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(8) सूरह (065) अत तलाक़ मुकम्मल


(i) तलाक़ के नियम

तलाक़ इद्दत के लिए दी जाय, इद्दत का हिसाब रखा जाय, इद्दत के दौरान औरत को न घर से निकाला जाय और न वह ख़ुद निकलें। जब इद्दत पूरी होने के क़रीब हो तो शौहर चाहे तो बीवी को रोक ले और चाहे तो भले तरीक़े से अलग कर दे, उसपर गवाही क़ायम की जाय। इद्दत के दौरान वहां रखे जहां शौहर ख़ुद रहता हो। जुदाई के बाद भी अगर औरत को गर्भ है तो बच्चे के पैदा होने तक उसे ख़र्च दिया जाय, पैदाइश के बाद अगर औरत दूध पिलाये तो उसका ख़र्च शौहर पर देना अनिवार्य है। (1, 2, 6)


(ii) इद्दत पांच तरह से है

◆ वह औरतें जिन्हें तलाक़ दी गई हो उन की इद्दत तीन मासिक धर्म (हैज़) है। (अल बक़रह आयत 228)

◆ बेवा की इद्दत चार महीने दस दिन है। (अल बक़रह आयत 234)

◆ वह तलाक़ शुदा औरतें जिन को मासिक धर्म (हैज़) आना बंद हो गया हो उनकी इद्दत तीन महीने है।

◆ वह तलाक़ शुदा औरतें जिन को मासिक धर्म (हैज़) आया ही न हो उनकी इद्दत भी तीन महीने है।

◆ तलाक़ शुदा हो या बेवा औररतें अगर उसे हमल (pregnancy) है तो उनकी इद्दत बच्चे के पैदा होने तक है। (4)


(iii) रब की नाफ़रमानी का अंजाम

जब कोई क़ौम अपने रब की नाफ़रमानी में मुब्तिला हो जाती है तो उसपर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल होता है। (8, 9)


(iv) सात आसमान और सात ज़मीन

अल्लाह ही है जिसने सात आसमान बनाये और उसी के समान ज़मीन बनाई। (12)

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(9) सूरह (066) अत तहरीम मुकम्मल


(i) नबी का इख़्तियार

अल्लाह की हराम व हलाल की हुई चीज़ों में नबी को भी कोई इख़्तियार नहीं है। (1)


(ii) अज़वाज ए मुतहहरात को तंबीह

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उम्मुल मोमेनीन ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ि अल्लाहु अन्हा के पास कुछ देर ठहरते और वहां शहद पीते थे, उम्मुल मोमेनीन आएशा और हफ़सा रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने वहां ज़्यादा देर ठहरने से रोकने के लिए एक योजना बनाई कि उनमें से जिस के पास भी अल्लाह के रसूल आएं तो कहे कि आप के मूंह से मग़ाफ़ीर की बू आती है (मग़ाफ़ीर एक क़िस्म का फूल होता है जिसमें कुछ महक होती है और अगर शहद की मक्खी उस से शहद हासिल कर ले तो उसके अन्दर भी वह महक आने लगती है) चुनाँचे उन्होंने ऐसा ही किया। आपने जवाब में फ़रमाया, मैंने तो ज़ैनब के यहां सिर्फ़ शहद पिया है अब मैं क़सम खाता हूं कि कभी शहद नहीं पियूँगा लेकिन यह बात किसी को मत बताना। मगर यह बात एक ने दूसरे से बता दी उसपर अल्लाह ने तंबीह की कि तुम दोनों तौबा करो नहीं तो हो सकता है कि रसूल तुम्हें तलाक़ दे दे और अल्लाह तुम्हारे बदले मोमिन, फ़रमाबरदार, तौबा करने वाली , इबादत गुज़ार, रोज़ादार, बेवा और कुंवारी बीवियां अता कर दे। (3 से 5, सही बुख़ारी 4912, 6691)


(iii) सच्ची तौबा

मोमिन को ऐसी तौबा करना चाहिए कि उसके बाद गुनाह के क़रीब न फटके। ऐसी तौबा का बदला जन्नत है। (4)

हदीस में है, जिसने तन्हाई में अल्लाह को याद किया और आंखों से आंसू जारी हो गए वह क़यामत के दिन अल्लाह के साये में होगा। (सही बुख़ारी 660) 


(iv) जहन्नम की आग

लोगों पर वाजिब है कि ख़ुद को और अपने बीवी बच्चों को जहन्नम की आग से बचाने की फ़िक्र करें। (6)


(v) इस्लाम किसी की जागीर नहीं

नूह और लूत अलैहिमस्सलाम की बीवियां काफ़िर थीं जबकि फ़िरऔन की बीवी आसिया मुस्लिम और जन्नत में औरतों की सरदार होंगी ("मरियम बिन्त इमरान के बाद जन्नत में औरतों की सरदार फातिमा, ख़दीजा और आसिया हैं।" सिलसिलातुस सहीह 3507)। ऐसे ही मरयम अलैहस्सलाम की पाकीज़गी की गवाही दी गई है। (10 से 12)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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