Ramzan ke Masail-2 | hilal | roza | chaand | gawah

Ramzan ke Masail | hilal | roza | chaand | gawah


🌙 रमज़ान के मसाइल-2: हिलाल (चांद) से मुतालिक


1. क्या रमज़ान के 1 या 2 दिन पहले ऐहतियात के तौर पर रोज़ा रख सकते हैं? 

नहीं,  रमज़ान के 1 या 2 दिन पहले ऐहतियात के तौर पर रोज़ा नहीं रख सकते। 

नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, "तुममें से कोई शख़्स रमज़ान से पहले (शाबान की आख़िरी तारीख़ों में) एक या दो दिन के रोज़े न रखे अलबत्ता अगर किसी को उन मैं रोज़े रखने की आदत हो तो वो उस दिन भी रोज़ा रख ले।" 
[बुखारी 1914]


2. अगर शाबान की 29 को बादल साफ़ ना होने की वजह से चाँद ना दिखे तो क्या करें? 

चाँद ना दिखे तो तो रोजा नहीं रखेंगे।

नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया,"चाँद ही देख कर रोज़े शुरू करो और चाँद ही देख कर रोज़ा मौक़ूफ़ करो और अगर बादल हो जाए तो तीस दिन पूरे कर लो।"
[बुखारी 1909] 

रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया जब तुम चाँद देख लो तो रोज़ा रखो और जब चाँद देखो तो इफ़्तार (ईद) करो अगर तुम देखो कि आसमान में बादल हैं तो आप तीस दिनों के रोज़े रखो।
[मुस्लिम 1081]
नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि महीना इतने-इतने और इतने दिनों का होता है। आपकी मुराद तीस दिन से थी। फिर फ़रमाया और इतने-इतने और इतने दिनों का भी होता है। आपका इशारा उन्तीस दिनों की तरफ़ था। एक मर्तबा आप (सल्ल०) ने तीस की तरफ़ इशारा किया और दूसरी मर्तबा उन्तीस की तरफ़।
[बुखारी 5302]


3. रमज़ान के रोज़े शुरू और खत्म करने के लिए कितने गवाह चाहिए? (चाँद दिखा या नहीं इसकी गवाही) 

(i) एक गवाह कुबूल है - इमाम अहमद, इब्न मुबारक, शाफई की रिवायत के मुताबिक 
(ii) दो गवाह - इमाम मालिक, ज़ौहरी, औज़ाई और शाफई की रिवायत के मुताबिक  
(iii) अगर आसमान साफ़ है तो बड़ी तादाद में उसे देखना चाहिए, अगर आसमान में बादल छाए हैं, आसमान साफ़ नहीं है तो एक गवाह भी काफी है - अहनाफ (इमाम आबू हनीफा को मानने वाले) 
इब्न उमर से रिवायत है, "लोगों ने चाँद की तलाश की तो मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को इत्तला दी के मैंने चाँद देखा है। उन्होंने खुद रोज़ा रखा और लोगों को भी रोज़े रखने का हुक्म दिया।" 
[अबू दाऊद 2342]
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "चाँद देख कर रोज़े रखना शुरू करो और चाँद देख कर रोज़े रखना बन्द करो, और चाँद देख कर ही हज और क़ुरबानी करो। अगर चाँद नज़र न आए तो ( महीने के) तीस दिन पूरे कर लो, और अगर दो शख़्स चाँद देखने की गवाही दें तो भी रोज़े रखना शुरू या बन्द कर दो।"
[नसाई 2118 सहीह] 


4. क्या शक़ की बुनियाद पर रोज़ा रख सकते हैं? 

नहीं, शक़ की बुनियाद पर रोज़ा नहीं रख सकते। 

जनाब सिला बयान करते हैं कि हम हज़रत अम्मार (रज़ि०) की ख़िदमत में हाज़िर थे और वो दिन मशकूक था (चाँद होने की ख़बर वाज़ेह न हुई थी) तो बकरी का गोश्त पेश किया गया। इसलिये मजलिस में से कुछ लोग एक तरफ़ हो गए। हज़रत अम्मार (रज़ि०) ने कहा : जिसने इस दिन का रोज़ा रखा है उसने अबुल-क़ासिम ﷺ की नाफ़रमानी की है।
[अबू दाऊद 2334; सुन्नान अद दारमी 1724]


5. हिलाल देख कर कौन सी दुआ पढ़नी चाहिए? 

हिलाल: किसी भी माह के पहले चाँद को हिलाल कहते हैं। 

तलहा-बिन-उबैदुल्लाह से रिवायत है कि नबी (सल्ल०) जब चाँद देखते थे तो कहते थे: 
(اللهم أهلله علينا باليمن والإيمان والسلامة والإسلام ربي وربك الله)
"ऐ अल्लाह! मुबारक कर हमें ये चाँद बरकत और ईमान और सलामती और इस्लाम के साथ, (ऐ चाँद!) मेरा और तुम्हारा रब अल्लाह है।" 
[तिर्मिज़ी 3451 हसन ग़रीब] 


6. दिन के किसी हिस्से मे रोज़े रखने की खबर मिले तो क्या करें? 

जब रोज़े रखने की खबर मिले उसी वक्त से रोज़ा रख लें। जिन्होंने कुछ ना खाया पिया हो वो रोज़े की नियत करलें और जिन्होंने खा पी लिया हो वो बचे हुए दिन मे कुछ ना खाए। दोनों का रोज़ा कुबूल होगा चाहे वो असर के वक्त ही शुरू किया गया हो। 

आशूरा की सुबह नबी करीम (सल्ल०) ने अंसार के महलों मैं कहला भेजा कि, "सुबह जिसने खा पी लिया हो वो दिन का बाक़ी हिस्सा (रोज़ेदार की तरह) पूरे करे और जिसने कुछ खाया पिया न हो वो रोज़े से रहे।" 
[बुखारी 1960]


7. क्या दूसरे शहर या मुल्क मे चाँद देखे जाने पर हम रोज़ा रख सकते हैं? 

नहीं, हम जिस इलाके मे रह रहे हैं वहां के हिसाब से चलेंगे। अगर 29 का चाँद है और नहीं दिखा तो 30 दिन पूरे करेंगे।

क़ुरैब (ताबईन) बयान करते हैं, उम्मे फजल बिनते हारिस ने उन्हें (यानी क़ुरैब) को मुआविया (رضي الله عنه) के पास शाम सीरिया भेजा। वो कहते हैं, " मैं शाम पहुंचा और उनका काम खत्म किया। शाम में ही रमजान का महीना शुरू हो गया। मैंने जुम्मा को नया चांद (रमजान का) देखा। इसके बाद मैं महीने के आखिर में वापस मदीना आया।
अब्दुल्लाह बिन अब्बास (رضي الله عنه) ने मुझसे (रमजान के नए चांद के बारे में) पूछा और कहा, "तुमने चांद कब देखा?"
मैंने कहा, "हमने चांद जुम्मा (Friday) की रात देखा था।"
उन्होंने कहा, "(क्या) तुमने चांद खुद देखा?"
मैंने कहा, "हां, और लोगों ने भी उसे देखा और उन्होंने रोजा रखा और मुआविया (رضي الله عنه) ने भी रोजा रखा।"
इसके बाद उन्होंने कहा, "लेकिन हमने उसे हफ्ते (Saturday) की रात देखा। लिहाजा हम इस वक्त तक रोजा रखना जारी रखेंगे जब तक के 30 मुकम्मल ना हो जाए या हम उसे (सव्वाल का नया चांद) ना देख ले।"
मैंने कहा," क्या आपके लिए मुआविया (رضي الله عنه) की रिवायत काफी नहीं।"
उन्होंने कहा, "नहीं, रसूल अल्लाह (ﷺ) ने हमें इसी तरह हुक्म दिया है।"
[मुस्लिम 1087]




By Islamic Theology

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...