Ramzan: Roza, Sehri Aur Iftaar

 

Roza kis par farz hai, roza shuru karne ki niyat kaisi ho, sahi hadees aur quraan se sabit sehri aur aftaar ki dua, sahi sanad se aftaar ki dua

रोज़ा और क़ुरआन कयामत के दिन बंदे की सिफ़ारिश करेंगे


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:

रोज़ा और क़ुरआन क़यामत के दिन बंदे की सिफ़ारिश करेंगे रोज़ा कहेगा ऐ मेरे रब! मैंने उसे दिन में खाने पीने और शहवत के काम से रोके रखा था लिहाज़ा उसके बारे में मेरी शफाअत क़ुबूल फरमां। क़ुरआन कहेगा ऐ मेरे रब! मैंने उसे रात में सोने से रोका रखा था लिहाज़ा उसके बारे में मेरी शफाअत क़ुबूल फरमां। नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उन दोनों की सिफ़ारिश क़ुबूल फरमाएगा।(मिश्कात:1963)

रोज़े और क़ुरआन के ताल्लुक़ को हमें अपने लिए नफाबक्श बनाना चाहिए। 

रोज़ा किन पर फर्ज़ है?

ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़ा रखना फर्ज़ किया गया जिस तरह तुमसे पहले लोगों पर फर्ज़ किए गए थे ताकि तुम तक़वा इख्तियार करो।

क़ुरआन 2.183


  • बालिग हो, यानि ज़ेरे नाफ़ (private parts) के बाल आ हों। 
  • सेहतमंद (कोई बीमारी वगैरह ना हो) 
  • एक जगह हो (सफ़र में ना हो)।


किन पर रोज़ा फ़र्ज़ नहीं है:


  • पागल और मजनू पर रोज़े फर्ज़ नहीं हैं।
  • बच्चों पर रोज़ा फ़र्ज़ नहीं।
  • मुसाफिर पर रोज़ा फ़र्ज़ नहीं।
  • दूध पिलाने वाली मांये अपनी सेहत के मुताबिक़ रोज़ा रखे।
  • औरतों को हालाते हैज़ और निसाफ में रोज़ा रखना जायज़ नहीं।(इस बारे में इंशा अल्लाह अलग से बात करेंगे)


रोज़े की नियत


सबसे पहले हम जानने कि कोशिश करते हैं किसी भी अमल को करने से पहले नियत कि क्या एहमियत है? इस सिलसिले मे एक हदीस आती है


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: तमाम आमाल का दारोमदार नियतों पर है। और हर आमाल का नतीजा हर इन्सान को इसकी नियत के मुताबिक़ मिलेगा। (बुखारी शरीफ 01)


इस हदीस के मुताबिक़ इंसान को वही मिलता जिस नियत के साथ वो कोई अमल करता है हर अमल के लिए नियत ज़रूरी है बगैर नियत के कोई भी अमल काबिले ए क़ुबूल नहीं है | और रोज़ा भी एक अमल है। लिहाज़ा इसके लिए भी नियत ज़रूरी है। रोज़ा की नियत से मुतालिक  कुछ मसाइल समझ लेना चाहिए;


पहला मसला

नियत का वक्त- रोज़े की नियत फज्र से पहले:

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: जिसने फज्र से पहले रोज़े की नहीं की तो उसका रोज़ा नहीं है। सुन्न अबु दाऊद: 2454


दूसरा मसला :- हर रोज़े कि अलैहदा नियत; बाज़ लोग कहते हैं कि पूरे रमज़ान के रोज़ों के लिये एक ही नियत काफी है। और हर रोज़ा के लिये अलग अलग नियत करना ज़रूरी नहीं | लेकिन ये बात सहीह नहीं है बल्कि सहीह ये है कि हर दिन हर रोज़ा कि अलग अलग नियत करना ज़रूरी है।

दलाईल देखें:-

 (1) عَنْ عَبْدِ اللَّہِ بْنِ عُمَرَ أَنَّہُ کَانَ یَقُول لَا یَصُومُ ِلَّا مَنْ أَجْمَعَ الصِّیَامَ قَبْلَ الْفَجْرِ

अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अन्हु फरमाते हैं के रोज़ा सिर्फ़ वही रखे फज्र से पहले इसकी नियत कर ले।

[मुवत्ता इमाम मालिक रक़म 06]

मालूम हुआ की हर रोज़े के लिए अलग से नियत करना ज़रूरी है।

हर रोज़े की नियत का जो वक़्त है वो मगरिब बाद से लेकर फज्र तक है। बेहतर है की हर आदमी शाम को सोने से पहले अपने रोज़े की नियत कर ले लेकिन अगर शाम को नियत नहीं कर सका तो सुबह सेहरी के वक्त, बरहाल नियत कर ले और सेहरी के फवाईद में एक फायदा ये भी है कि जो शख्स शाम को नियत करना भूल जाता है उसे सेहरी के वक़्त नियत का मौक़ा मिल जाता है।

हाफ़िज़ इब्ने हजर असक़ालानी रहिमाउल्लाह सेहरी कि बरकत और इसके फायदे का तज़किरा करते हुए लिखते हैं:-

وَتَدَارُکُ نِیَّةِ الصَّوْمِ لِمَنْ أَغْفَلَہَا قَبْلَ أَنْ یَنَامَ


यानी सेहरी कि बरकत और इसका एक फायदा ये भी है कि जो शख्स सोने से पहले नियत करना भूल जाता है वो सेहरी के वक़्त रोज़े कि नियत कर लेता है। [फतह उल बारी रक़म 1923]

अलगर्ज़ रोज़े कि नियत का वक़्त ये है के शाम को सोने से पहले नियत कर ली जाए लेकिन अगर शाम को नियत ना हो सकी तो सुबह सेहरी के वक़्त नियत फज्र से पहले नियत हर हाल मे करना लाज़िम है।


सहरी की अहमियत: 

सहरी, यानि फज्र से पहले रोज़ा रखने के इरादे से कुछ भी (एक खुजूर और एक घुट पानी) खा पी लेना सहरी कहलाता है एक रिवायत के मुताबिक़ सहरी फलाह (कामयाबी) है, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सहरी में बरकत रखी है।

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: सहरी करें क्यों कि सहरी में बरकत है। (सहीह बुखारी:1923)


सहरी में कितना खाएं: 

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: कितना अच्छा है खुजुर मोमिन की सहरी में। (सुन्न अबु दाऊद: 2345)


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: सहरी करो चाहे वो एक घुट पानी ही क्यों ना हो। (इब्ने हिब्बान:3476)


सहरी मोहम्मद ﷺ (और उनकी उम्मत) और अहले किताब में फ़र्क करती है!


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: हमारे और अहले किताब के रोज़ो के बीच यही फर्क है कि हम सहरी खाते हैं। (सहीह मुस्लिम:1096A)


सहरी का सहीह वक्त: 


 और रातों को खाओ-पियो यहाँ तक कि तुमको रात की स्याही की धारी से सुबह की सफ़ेद धारी साफ़ दिखाई दे।अल क़ुरआन 2.187


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: “नबी ﷺ और जैद बिन साबित (रज़ी) ने सुहूर साथ किया और खाना खत्म करने के बाद, नबी ﷺ खड़े हुए नमाज़ पढ़ी। रावियों ने अनस से पूछा, उनके सूहूर को खत्म करने और नमाज़ शुरू करने में कितना वक्फा था? 

उन्होंने जवाब दिया, “दोनों के दरमियान वक्फा सिर्फ़ पचास आयत की तिलावत के लिए काफी था।” (सहीह बुखारी:567)


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: जब तुम में से कोई अज़ान सुनता है और उसके हाथ में पानी का गिलास हो तो उसे गिलास नीचे नहीं रखना चाहिए यहां तक कि वो अपनी हाजत ना पूरी कर ले। (अबु दाऊद:2350)


रोज़ा इफ्तार में जल्दी करना:

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:  जब तक लोग रोज़ा इफ्तार में जल्दी करेंगे तो लोग सीधे रास्ते पर रहेंगे। (सहीह मुस्लिम:1957)


इफ्तार किससे करें:

अनस बिन मालिक (रज़ी०) बयां करते है: नबी करीम ﷺ नमाज़ पढ़ने से पहले  तर खुजुर से इफ्तार करते अगर तर न होती तो खुश्क खुजूर से इफ्तार करते और जब खुश्क खुजूर न होती तो चंद घूट पानी पी लेते। (जामी अत तिर्मिज़ी 696)


रोज़ा इफ्तार से पहले कोई दुआ साबित सही सनद से साबित नहीं है


रोज़े इफ्तार से पहले कोई दुआ साबित नहीं है अपनी ज़ुबान में जो आपको मुनासिब लगे अल्लाह से कर सकते हैं इफ्तार करने से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ लें।


 इफ्तार के बाद कि दुआ

 ذَهَبَ الظَّمَأُ وَابْتَلَّتِ الْعُرُوقُ وَثَبَتَ الْأَجْرُ إِنْ شَاءَ اللَّهُ

ज़हबबज़्ज़माउ वबतल्लतिल उरूक़ु वसबतल अजरु इंशाअल्लाह

प्यास बुझ गयी और रगे तर हो गयीं और अल्लाह ने चाहा तो अज्र भी साबित हो गया। [अबू दाऊद: 2347]



इस्तक्बाल ए रमज़ान अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तरफ़ से

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: जब रमज़ान आता है तो जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम के दरवाज़े बंद कर दिय जाते हैं और श्यातीन बेड़ियों में जकड़ दिए जाते हैं। (सहीह मुस्लिम:2495)


  • अल्लाह रमज़ान के इस्तक्बाल में जन्नत के दरवाज़े खोल देता है ताकि हम अपनी नेकियों के ज़रिए जन्नत कमा सकें।
  • जहन्नुम के दरवाज़े बंद कर देता है ताकि उसके बंदे और बंदियां ख़ुद को जहन्नुम से बचा सकें।


बंद और खोले दरवाजों में से इन्सान किसमें दाखिल होगा?

  • श्यातीन को बेड़ियों में जकड़ देता है ताकि उसके बंदे ज़्यादा से ज़्यादा ख़ुद को उसकी बंदगी में मशगूल रखे, और ख़ुद को बाक़ी 11 महीनों के लिए बुराई से दूर रहने की practice (مشق)कर लें। 


खुलासा:- अब हम इंसानों को चाहिए कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की जानिब से हमारे लिए किए गए इस्तक्बाल को ख़ुद के लिए भी खूबसूरत इस्तक्बाल बनाए। यानि अपने अंदर के श्यातीन को भी कैद कर लें ख़ुद पे हावी नहीं होने दें। 


अक्सर लोग इस खूबसूरत मेहमान (रमज़ान) को कमाने गुज़ार देते हैं।

जबकी इंसान कुछ भी कर ले उसे मिलना उतना ही है जितना अल्लाह ने उसके हक में लिख दिया है। 

और इंसानों के लिए ये दुनिया असल ज़िंदगी नहीं है बल्कि आखिरत उसका अस्ल ठिकाना है जिसे कमाने के लिए अल्लाह ने ज़िंदगी दी और उसमें भी bonus के तौर पर एक महीना ऐसा दिया जिसमें हम अपने पिछले गुनाहों से तौबा कर लें और आखिरत में अपना मक़ाम बना सकें।


रोज़ा सदके की तरगीब देता है

जब हम रोज़ा रखते हैं तो इसके लफ्ज़ी माना के लिहाज़ से भूख प्यास की शिद्दत को महसूस करते हैं और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमें जो कुछ अता किया उस पर उसके शुक्र गुज़ार बनते हैं और जिन लोगों को अल्लाह ने कितना नहीं अता किया उनका एहसास (सदका और फितरा देते हैं) करते हैं। 


सबसे ज़्यादा अज्र किस रोज़ेदार का है?

नबी करीम ﷺ से पूछा गया रोज़ेदरों  में सबसे ज़्यादा अज्र किस रोज़ेदार का है? नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: जो रोज़ेदार अपने रोज़ो में सबसे ज़्यादा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का ज़िक्र करता हो।


हमारा हदफ रमज़ान के लिए


▪️ हमें अपना हदफ बनाना चाहिए!

जैसे:  कुरआन मजीद को समझ कर पढ़ने का।

कुरआन, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का पैग़ाम है। अगर कोई आपसे बेलौस बेइंतिहा मोहब्बत करे और उसका कोई पैग़ाम आप तक पहुंचे तो क्या आप उसे यूं छोड़ देंगे? नहीं ना! तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के पैग़ाम से दूरी क्यों? 

कुरआन तो हमारी सिफ़ारिश करेगा और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उसकी सिफ़ारिश हमारे हक़ कुबूल भी करेगा लेकिन उसके हमें कुरआन को पढ़ के समझ अपने हक़ उसे  सिफ़ारिशी बनाना होगा।


  • ज़्यादा अर्ज वाले रोज़ेदार बने यानि ज़िक्र अज़कार के लिए दुआ याद करें।
  • रमज़ान हमारे लिए सर्विसिंग का महीना है तो इसे लज़ीज़ पकवान में ज़ाया ना करें बल्कि इसके असल मकसद को पहचाने और जन्नत की राहें हमवार दी गईं हैं उसकी तरफ़ बढ़े।
  • जहन्नुम बंद कर दी गई है उसे अपने लिए हमेशा लिए बंद कर दें।
  • ये वो महीना है जिसमें आप अपने बच्चों को सब्र की तलकीन दे सकते हैं, गरीबों का एहसास करा सकते हैं।


रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, अगर कोई शख़्स झूट बोलना और दग़ा बाज़ी करना (रोज़े रख कर भी) न छोड़े तो अल्लाह तआला को उसकी कोई ज़रूरत नहीं कि वो अपना खाना पीना छोड़ दे।

बुखारी 1903

वरना कहने को यही बचेगा!


इस आरज़ू के बाद आया ना फूल।

अब के भी दिन बहार के यूं ही गुज़र गए।।


By अहमद बज़्मी 

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