Ramzan ke Masail-1 | roza | imaan | ahtisaab

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🌙 रमज़ान के मसाइल-1: रोज़ा, ईमान और एहतिसाब


1. रमज़ान के रोज़े फर्ज क्यूँ किए गए? 

रमज़ान के रोज़े फर्ज किए गए ताकि हमारे अन्दर तक़वा पैदा हो, दुनिया में अल्लाह की नाफरमानी और आखिरत में जहन्नुम से बचने वाले बने। हमारे दुनिये में आने का जो मकसद है उसे पूरा करें। बुराई से बचे और भलाई की तरफ़ रुजू करें, लड़ाई झगड़ा, कता रहमी, झूठ, धोखा, फरेब, ग़ीबत, जीना जैसी बुराइयों से किनारा कर लें और अच्छे कामों में लगे रहे जिसका हमें हुक्म दिया गया है।

"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ कर दिये गए, जिस तरह तुमसे पहले नबियों के माननेवालों पर फ़र्ज़ किये गए थे। इससे उम्मीद है कि तुममें परहेज़गारी की सिफ़त [गुण] पैदा होगी।" 
[कुरान 2:183] 


2. रोज़े से मुतालिक ईमान और एहतिसाब का मतलब क्या है? 

ईमान: अल्लाह की बताई हुई हर बात पर यकीन ईमान है। रमज़ान में ईमान का मतलब, सवाब और अज्र की नीयत से नमाज़ (तरावी) पढ़े इस यकीन के साथ के अल्लाह ने उस पर जो नेकी रक्खी है वो उसे मिलेगी। 

एहतिसाब: ये अरबी लफ़्ज़ है जिसका लुगवी माना हैं "हिसाब किताब या हिसाब से हासिल होने वाला नतीज़ा"। जब यकीन हो के अल्लाह हर चीज़ पर का़दिर और देने वाला है तो उस चीज़ की तलब दिल में रख कर नेकी करे।

रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया कि जो कोई शबे-क़द्र मैं ईमान और एहतिसाब के साथ इबादत में खड़ा हो उसके तमाम पिछले गुनाह बख़्श दिये जाएँगे और जिसने रमज़ान के रोज़े ईमान और एहतिसाब के साथ रखे उसके अगले तमाम गुनाह माफ़ कर दिये जाएँगे।
[बुखारी 1901]


अबू हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत है, मैंने रसूलुल्लाह (सल्ल०) से सुना आप (सल्ल०) रमज़ान के फ़ज़ायल बयान फ़रमा रहे थे कि जो शख़्स भी उसमें ईमान और एहतिसाब के साथ (रात में) नमाज़ के लिये खड़ा हो उसके पिछले तमाम गुनाह माफ़ कर दिये जाएँगे।
[बुखारी 2008]




By Islamic Theology

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