Ramzan ke Masail-5 | Musafir ka roza

Ramzan ke Masail-5 | Musafir ka roza


🌙 रमज़ान के मसाइल-5: मुसाफिर का रोज़ा


1. क्या मुसाफिर को सफर में रोज़ा रखना चाहिए? 

नहीं, मुसाफिर सफर में रोज़ा रखना चाहे तो रख सकता है और ना चाहे तो ना रखे। अगर वो ऐसा सफर कर रहा जिसमें उसे ना भूख लगेगी ना प्यास तब भी वो चाहे तो रखे ना चाहे तो छोड़ दे और बाद में इसकी क़ज़ा करे। 

हज़रत हमज़ा-बिन-उमर असलमी (रज़ि०) ने रसूलुल्लाह ﷺ से सफ़र में रोज़े रखने के बारे में पूछा तो आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि अगर तू चाहे तो रोज़ा रख ले और अगर तू चाहे तो रोज़ा इफ़्तार कर ले।
[मुस्लिम 1121]

हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि०) से रिवायत है। उन्होंने फ़रमाया कि न तो हम उसे ग़लत समझते हैं जो सफ़र में रोज़ा रखे और न ही उसे ग़लत समझते हैं जो सफ़र में रोज़ा न रखे। हक़ीक़त ये है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने सफ़र में रोज़ा भी रखा है और रोज़ा इफ़्तार भी किया है। 
[मुस्लिम 2611]


अल्लाह ताला ने फरमाया: अगर तुम में से कोई मरीज हो या सफर में हो तो उतने दिन गिन कर बाद में रोज़ रख ले। [सूरह बकराह (2) : 184]


2. क्या सफ़र में रोज़ा रखना कोई नेकी है? 

नहीं, सफ़र में रोज़ा रखना कोई नेकी नहीं है अगर रख सके तो रख सकता है। 

रसूलुल्लाह (सल्ल०) एक सफ़र (ग़ज़वा फ़तह) में थे आप (सल्ल०) ने देखा कि एक शख़्स पर लोगों ने साया कर रखा है आप (सल्ल०) ने पूछा कि क्या बात है? 
लोगों ने कहा कि एक रोज़ेदार है आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि सफ़र में रोज़ा रखना अच्छा काम नहीं है।
[बुखारी 1946]


3. क्या हराम सफर (जैसे घूमने की जगह, बेहयाई वाली जगह) में रोज़ा रखना जायज है? 

नहीं, हराम सफर में रोज़ा रखना जायज नहीं है। 

शेख इब्ने उसेमीन फरमाते हैं, "हराम सफर में (रमजान का फर्ज़) रोज़ा ना रखना जायज़ नहीं है।" 
[फतवा इब्ने मीन उसेमीन vol 1 पेज 480 "हराम सफर पर रोजा छोड़ना जायज नहीं"] 


4. अगर मुसाफिर आधे दिन बाद सफर शुरू करे और दिन में या शाम मे वापस आ जाए तो क्या वो रोज़ा जारी रखे? 

नहीं, किसी भी तरह से सफर किया जाए रोज़ा रखना ज़रूरी नहीं है। मुसाफिर को चाहिए के वो खाना खा ले फिर चाहे दिन के किसी भी हिस्से में सफर शुरू करे। और जब भी लौटे खाता पीता रहे। 

मुहम्मद-बिन-कअबी कहते हैं कि मैं रमज़ान में अनस-बिन-मालिक (रज़ि०) के पास आया वो सफ़र का इरादा कर रहे थे उन की सवारी पर कजावा कसा जा चुका था। और वो सफ़र के कपड़े पहन चुके थे उन्होंने खाना मँगाया और खाया; 
मैं ने उन से पूछा : ये सुन्नत है? 
कहा : हाँ सुन्नत है। 
फिर वो सवार हुए।
[तिर्मिज़ी 799]

शेख इब्ने उसेमीन फरमाते हैं, "अगर ऐसा मुसाफिर जिसने रोज़ा नहीं रखा है (सफर की वजह से) (अपने मका़म पर) वापस आता है तो उसे खाने पीने से नहीं रुकना है और उस रोज़े की कजा़ करनी है।" 
[अल शरह अल मुम्ताह Vol 6 पेज 344-345]


5. क्या रोज़ा रख कर सफर करने वाला मुसाफिर सफर की मुश्किलों की वजह से का बीच मे रोज़ा तोड़ सकता है? 

हाँ, तोड़ सकता है। 

हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि०) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ रमज़ान में एक सफ़र में थे, तो आप ﷺ ने रोज़ा रखा, जब आप ﷺ असफ़ान के मक़ाम पर पहुँचे तो आप ﷺ ने एक बर्तन मँगवाया। जिस में कोई पीने की चीज़ थी, आप ﷺ ने उसे दिन के वक़्त में पिया, ताकि लोग उसे देख लें। फिर आप ﷺ ने रोज़ा नहीं रखा, यहाँ तक कि आप ﷺ मक्का में दाख़िल हो गए। हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि०) फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने सफ़र के दौरान रोज़ा रखा भी और नहीं भी रखा; तो जो चाहे सफ़र में रोज़ा रख ले और जो चाहे रोज़ा न रखे।
[मुस्लिम 1114]


6. क्या गैर रोजे़दार का मजाक उड़ाना चाहिए? 

नहीं, ये एक गंदा अमल है जो इंसान की जहालत को दिखाता है। रोज़े का अमल खालिस अल्लाह के लिए है और वही इसका बदला देगा। हम ये नहीं जानते किस इंसान को क्या तकलीफ़ है जो वो रोज़े से नहीं है इसलिए हमें खुद के रोजेदार होने पर गुरूर नहीं करना चाहिए। 

नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, '' (कि अल्लाह तआला ने फ़रमाया) इब्ने-आदम का हर अमल उसका है सिवा रोज़े के कि ये मेरा है और मैं ख़ुद उसका बदला दूँगा और रोज़ेदार के मुँह के ख़ुशबू अल्लाह के नज़दीक मुश्क की ख़ुशबू से भी बढ़ कर है।''
[बुखारी 5927] 

हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०) से रिवायत है। उन्होंने फ़रमाया कि रसूलुल्लाह ﷺ के साथ सोलह रमज़ान को एक ग़ज़वा में गए तो हम में से कुछ लोग रोज़े से थे और कुछ बग़ैर रोज़े के। चुनांचे न तो रोज़ा रखने वालों ने न रखने वालों की मज़म्मत की और न ही न रखने वालों ने रखने वालों पर कोई नकीर की। 
[मुस्लिम 1116] 


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