Akhiri paigambar kon ho? | Paigambar kis Qaum ka ho?

Akhir paigambar kon ho?


आखिर पैगम्बर कौन हो? 
अजनबी इंसान या जाना पहचाना इंसान या कोई दूसरी मखलूक


इंसानों को खबरदार करने के लिए अल्लाह ने आसमान से कोई और मखलूक नहीं भेजी बल्कि इंसानों में से ही अपने पैगम्बर चुनकर उनको इस जिम्मेदारी पर लगाया की दूसरे इंसानों तक मेरा पैगाम पहुंचा दो और उन्हें खबरदार कर दो। और अल्लाह अपने पैगम्बर को जिस कौम में भी भेजता है उसी कौम में अपने पैगम्बर को पैदा करता है और वह पैगम्बर उन्हीं के बीच रहकर जिंदगी गुजारता है ताकि वह कौम अपने पैगम्बर को अच्छे से पहचान सकें और उसके सीरत और किरदार को देखकर जांच सकें कि वाकई ये शख्स खुदा का पैगम्बर है। लेकिन हमेशा से हुआ ये कि इनकार करने वालों ने इसी बात पर सवाल उठाया है कि ये शख्स पैगम्बर नहीं हो सकता है क्योंकि ये हमारे बीच रहता है, खाता है, पीता है, बीवी और बच्चे रखता है और हमारे साथ बाजारों में भी रहता है लिहाजा ये खुदा का पैगम्बर नहीं हो सकता है। 

क्या इनकार करने वालों की दलील ठीक है या अल्लाह की हिक्मत जिसके तहत अल्लाह ने इंसानों में से और उन्ही के बीच से हमेशा अपने पैगम्बर को पैगंबरी के लिए चुना? आईए इस सवाल का तहकीकी जायज़ा अल्लाह के आखिरी महफूज संदेश कुरान से करते है। जिसमे अल्लाह ने इनकार करने वालों के इसी ऐतराज को उठाया है और उन्हें मुनासिब जवाब भी दिया है।


ہُوَ الَّذِیۡ بَعَثَ فِی الۡاُمِّیّٖنَ رَسُوۡلًا مِّنۡہُمۡ یَتۡلُوۡا عَلَیۡہِمۡ اٰیٰتِہٖ وَ یُزَکِّیۡہِمۡ وَ یُعَلِّمُہُمُ الۡکِتٰبَ وَ الۡحِکۡمَۃَ ٭ وَ اِنۡ کَانُوۡا مِنۡ قَبۡلُ لَفِیۡ ضَلٰلٍ مُّبِیۡنٍ 
"वही है जिसने उम्मियों के अन्दर एक रसूल ख़ुद उन्ही में से उठाया, जो उन्हें उसकी आयात सुनाता है, उनकी ज़िन्दगी सँवारता है, और उनको किताब और हिकमत की तालीम देता है। हालाँकि इससे पहले वो खुली गुमराही में पड़े हुए थे।"
[कुरआन 62:2]


وَ عَجِبُوۡۤا اَنۡ جَآءَہُمۡ مُّنۡذِرٌ مِّنۡہُمۡ ۫ وَ قَالَ الۡکٰفِرُوۡنَ ہٰذَا سٰحِرٌ کَذَّابٌ ۖ
इन लोगों को इस बात पर बड़ी हैरत हुई कि एक डरानेवाला ख़ुद इन्हीं में से आ गया। इनकार करनेवाले कहने लगे कि “ये जादूगर है,बहुत झूठा है"।
[कुरआन 38:4]


यानी ये ऐसे बेवक़ूफ़ लोग हैं कि जब एक देखा-भाला आदमी ख़ुद इनकी अपनी प्रजाति, अपनी क़ौम और अपनी ही बिरादरी में से इनको ख़बरदार करने के लिये मुक़र्रर किया गया तो इनको ये अजीब बात लगी। हालाँकि अजीब बात अगर होती तो ये होती कि इन्सानों को ख़बरदार करने के लिये आसमान से कोई और जानदार भेज दिया जाता, या उनके बीच यकायक एक अजनबी आदमी कहीं बाहर से आ खड़ा होता और पैग़म्बरी करनी शुरू कर देता। उस हालत में तो बेशक ये लोग जाइज़ तौर पर कह सकते थे कि ये अजीब हरकत हमारे साथ की गई है, भला जो इन्सान ही नहीं है, वो हमारे हालात और जज़्बात और ज़रूरतों को क्या जानेगा कि हमारी रहनुमाई कर सके, या जो अजनबी आदमी अचानक हमारे बीच आ गया है, उसकी सच्चाई को आख़िर हम कैसे जाँचे और कैसे मालूम करें कि ये भरोसे के क़ाबिल आदमी है या नहीं, इसकी सीरत और किरदार को हमने कब देखा है कि इसकी बात का भरोसा करने या न करने का फ़ैसला कर सकें। 

पैगम्बर उसी कौम का आदमी होना चाहिए जिसमे वह भेजा गया है और वह अपनी कौम को उन्ही की ज़बान में अल्लाह का पैगाम सुनाए। ताकि उन्हें साफ साफ अल्लाह का पैगाम समझ आ जाए और अगर पैगम्बर कोई दूसरी आसमानी मखलूक होता या कोई ऐसा इंसान होता जिसकी कौम उसकी ज़बान ही न जानती हो तो वह कौम अल्लाह के पैगाम को कैसे समझ पाती ? इसलिए पैगम्बर की ज़बान भी वही होनी चाहिए जिस कौम की तरफ वह भेजा गया है। इसी बात को अल्लाह ने कुरआन में कहा है कि:


وَ مَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا بِلِسَانِ قَوۡمِہٖ لِیُبَیِّنَ لَہُمۡ ؕ فَیُضِلُّ اللّٰہُ مَنۡ یَّشَآءُ
"हमने अपना पैग़ाम देने के लिये जब कभी कोई रसूल भेजा है, उसने अपनी क़ौम ही की ज़बान में पैग़ाम दिया है, ताकि वो उन्हें अच्छी तरह खोलकर बात समझाए।"
[कुरआन 14:4]


हमेशा से पैगंबरों ने अपनी क़ौम ही की ज़बान में लोगों तक पैग़ाम पहुंचाया है इसके दो मतलब हैं-

1. अल्लाह ने जो नबी जिस क़ौम में भेजा उसपर उसी क़ौम की ज़बान में अपना कलाम उतारा, ताकि वो क़ौम उसे अच्छी तरह समझे, और उसे ये बहाना पेश करने का मौक़ा न मिल सके कि आपकी भेजी हुई तालीम तो हमारी समझ ही में न आती थी, फिर हम उसपर ईमान कैसे लाते।

2. अल्लाह ने सिर्फ़ मोजिज़ा दिखाने के लिये कभी ये नहीं किया कि रसूल तो भेजा अरब में और वो कलाम सुनाए चीनी जापानी ज़बान में। इस तरह के करिश्मे दिखाने और लोगों के अजीब और अद्भुत चीज़ों को पसन्द करने के मिज़ाज के मुताबिक़ काम करने के मुक़ाबले में अल्लाह की निगाह में तालीम और नसीहत और समझाने-बुझाने की अहमियत ज़्यादा रही है, जिसके लिये ज़रूरी था कि एक क़ौम को उसी ज़बान में पैग़ाम पहुँचाया जाए जिसे वो समझती हो।


इसलिए ही अकल का तकाज़ा यही है कि पैगम्बर उसी कौम का शख्स होना चाहिए जिसमे वह भेजा गया है। और इनकार करने वाले अगर आज इस बात को नहीं मानते है तो न मानें। वो दिन दूर नहीं है जिसमे अल्लाह सब इंसानों को जमा करके उनके बीच इंसाफ के साथ फैसला करेगा और ये इनकार करने वाले जब अपनी करतूतों की वजह से जहन्नम में जायेंगे तो अल्लाह इनसे यही सवाल करेगा कि क्या मेरी तरफ से खबरदार करने वालें तुम्ही में से नहीं आए थे? जैसाकी कुरआन में आया है कि:


یٰمَعۡشَرَ الۡجِنِّ وَ الۡاِنۡسِ اَلَمۡ یَاۡتِکُمۡ رُسُلٌ مِّنۡکُمۡ یَقُصُّوۡنَ عَلَیۡکُمۡ اٰیٰتِیۡ وَ یُنۡذِرُوۡنَکُمۡ لِقَآءَ یَوۡمِکُمۡ ہٰذَا ؕ قَالُوۡا شَہِدۡنَا عَلٰۤی اَنۡفُسِنَا وَ غَرَّتۡہُمُ الۡحَیٰوۃُ الدُّنۡیَا وَ شَہِدُوۡا عَلٰۤی اَنۡفُسِہِمۡ اَنَّہُمۡ کَانُوۡا کٰفِرِیۡنَ
[इस मौक़े पर अल्लाह उनसे ये भी पूछेगा कि] “ऐ जिन्नों और इनसानों के गरोह, क्या तुम्हारे पास ख़ुद तुम ही में से वो पैग़म्बर नहीं आए थे जो तुमको मेरी आयतें सुनाते और इस दिन के अंजाम से डराते थे?” 
वो कहेंगे, “हाँ, हम अपने ख़िलाफ़ ख़ुद गवाही देते हैं। आज दुनिया की ज़िन्दगी ने इन लोगों को धोखे में डाल रखा है, मगर उस वक़्त वो ख़ुद अपने ख़िलाफ़ गवाही देंगे कि वो इनकारी थे।"
 [कुरआन 6:130]


وَ سِیۡقَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡۤا اِلٰی جَہَنَّمَ زُمَرًا ؕ حَتّٰۤی اِذَا جَآءُوۡہَا فُتِحَتۡ اَبۡوَابُہَا وَ قَالَ لَہُمۡ خَزَنَتُہَاۤ اَلَمۡ یَاۡتِکُمۡ رُسُلٌ مِّنۡکُمۡ یَتۡلُوۡنَ عَلَیۡکُمۡ اٰیٰتِ رَبِّکُمۡ وَ یُنۡذِرُوۡنَکُمۡ لِقَآءَ یَوۡمِکُمۡ ہٰذَا ؕ قَالُوۡا بَلٰی وَ لٰکِنۡ حَقَّتۡ کَلِمَۃُ الۡعَذَابِ عَلَی الۡکٰفِرِیۡنَ
(इस फ़ैसले के बाद) वो लोग जिन्होंने कुफ़्र किया था, जहन्नम की तरफ़ गरोह-दर-गरोह हाँके जाएँगे, यहाँ तक कि जब वो वहाँ पहुँचेंगे तो उसके दरवाज़े खोले जाएँगे और उसके कर्मचारी उनसे कहेंगे, “क्या तुम्हारे पास तुम्हारे अपने लोगों में से ऐसे रसूल नहीं आए थे, जिन्होंने तुमको तुम्हारे रब की आयतें सुनाई हों और तुम्हें इस बात से डराया हो कि एक वक़्त तुम्हें ये दिन भी देखना होगा?” वो जवाब देंगे, “हाँ, आए थे, मगर अज़ाब का फ़ैसला (अल्लाह का) इनकार करनेवालों पर चिपक गया।”
[कुरआन 39:71]


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