Homosexuality: Islam Aur Science | LGBT

Homosexuality: Islam Aur Science | LGBT


Homosexuality / LGBTQ समलैंगिकता- इस्लाम और विज्ञान

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आज हम एक ऐसे मुश्किल दौर में जी रहे हैं जहां सच का सामना करना और कहना बहुत मुश्किल है वहीँ झूठ और धोखा चारो तरफ से हमें घेरे हुए है। मीडिया, सोशल मीडिया, टीवी, मैग्जीन और सिनेमा झूठ को सच साबित करने और ब्रैनवाश करने में बहुत ज़्यादा क़ामयाब हैं।

समलैंगिक विवाह भी एक फितना है जिसे आज के दौर में सच्चाई बता कर और ब्रैनवाश करके लोगों को उसे अपनाने और मान्यता देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जिस तरह आज के नए ज़माने के मॉर्डन लोग किसी बात पर तब तक विश्वास नहीं करते जब तक विज्ञान उसका सबूत ना खोज ले, मगर जब बात समलैंगिकता की आती है तो वैज्ञानिक आधार पर ना जाकर बस किसी के कहने भर से मान लिया जाता है के समलैंगिक लोग प्राकृतिक तौर पर पाए जाते हैं। ना सिर्फ़ उन लोगों को इससे कई तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पढ़ रहा है, मगर प्रोपेगैंडा की इन्तेहा इतनी है के लोग इस बात को स्वीकार करने मे भी डर रहें हैं।

कुछ पश्चिमी देशों में ये प्रोपेगैंडा स्कूल तक पहुंच चुका है। कच्ची उम्र के बच्चों को, जिन्हें अपना भला बुरा तक पता नहीं है उन्हें इस तरह की ट्रेनिंग स्कूल में दी जा रही है। उनके माता पिता को ये अधिकार भी नहीं के वे अपने बच्चों को इस चीज़ से दूर रखने की कोशिश भी करें। और हॉस्पिटल में यदि गलती से किसी ने इस बारे कोई भी पॉजिटिव बात कर दी तो डॉक्टर्स को हुकुम है के बच्चों को सेक्स बदलने के लिए उकसावे। और अगर किसी माता-पिता ने विरोध किया तो उन्हें उनके बच्चे से कानूनी तौर पे हमेशा के लिए अलग कर दिया जाएगा। 

इसके बहुत से कारण हैं जिसमें से दो मुख्य कारण हैं-

  1. सेक्स बदलना का ऑपरेशन और हार्मोंस की दवाइयाँ को बहुत बड़ा कारोबार है जिससे बेहिसाब कमाई के रूप में शुरू किया है।
  2. चूँकि LGBT प्राकृतिक रूप से नहीं होते, ये प्रजनन क्रिया में सक्षम नहीं, इसलिए इनका कुनबा या जनसंख्या बढ़ना सम्भव नहीं। इसलिए ये आम बिल्कुल अच्छे भले बच्चों का ब्रैनवाश करके अपनी जनसंख्या को बढ़ाना चाहते हैं।

अब अहम सवाल है- पश्चिमी देशों में ये समस्या है इससे हमें क्या दिक्कत?

इसका जवाब आज के मीडिया में है। आज भारत में सोशल मीडिया पर इससे बेहतरीन बता कर दिखाया जा रहा है। और ऐसी सिनेमा बना कर लोगों को समझाया जा रहा है के ये बिल्कुल अच्छी बात है,  मॉर्डन होने की निशानी है। और इसे आप टीवी, सिनेमा सब जगह आम तौर से देख सकते हैं। 

और तो और हर तरह के कपड़ों, खिलौनों, गिफ्ट आइटम, गानो के लिरिक्स, बच्चों के कार्टून सीरीज और आम इस्तेमाल की छोटी बड़ी चीज़ों को इस प्रोपेगंडा और फितना को आम करने और आम लोगों का , ख़ास तौर पे बच्चो का ब्रेन वाश करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।  ये इतना ज्यादा व्यापक तौर पे हो रहा है और सारी दुनिया में एक साथ  के कब इंसान इसको अपनी जिंदगी हिस्सा मान बैठा है और इस पर सवाल करना भी ज़रूरी नहीं समझ रहा।  बल्कि झूट की इन्तहा ये है के इस पर सवाल उठाने वालो को ही पिछड़ा , नैरो माइंडेड, बैक वर्ड और न जाने क्या क्या उपाधियाँ दी जा रही हैं।  दीन ए इस्लाम के अलावा और कोई दीन दुनिया में दूसरा ऐसा नहीं है जिसके पास ऐसी वाज़ेह किताब हो जो क़ायनात के रब्ब की तरफ से हो, हालाँकि सभी को कभी न कभी किताब और शरीयत दी गयी है, जिसको सबने पीठ पीछे डाल दिया है और अपनी मर्ज़ी के नए नए कानून बना डाले।  

ईसाई , यहूदी और हिन्दू धर्म की किताबों में इसके लिए साफ़ साफ़ लिखा है के ये गुनाह है, अधर्म है और इससे बचा जाये।  मगर कहते हैं न विनाशकारी विपरीत बुद्धि। 

एक मशहूर टीवी कॉमेडी शो है जिसमें फिल्मी सितारे इंटरव्यू देने और अपनी फिल्म प्रमोशन के लिए आते हैं। उस में सभी लड़के, ल़डकियों का भेस बना कर कॉमेडी करते हैं। उसमें सब मिलके महिलाओं की गरिमा का अपमान करते हैं और इसे इतना सामान्य समझा जाने लगा है के स्वयं एक महिला इस तरह की गरिमा के हनन पर बेतहाशा हस्ती है। और दूसरे ये बात भी लड़कों के दिमाग़ में बिठा दी गई है के लड़कों का ल़डकियों जैसा बनना बहुत मजेदार बात है।

इसी तरह चंडीगढ़ करे आशिकी, बधाई दो- फिल्म में इस तरह के कैरेक्टर का महिमामंडित किया गया। ये बताने का मक़सद ये है के भारत में इसकी शुरुआत हो चुकी है। हम आज अगर अपने बच्चों को सही और ग़लत नहीं बतायेंगे तो मीडिया और दूसरे लोग उन्हें झूठ को सच बना कर बतायेंगे। 

"ये क्या बात है कि तुम औरतों को छोड़ कर मर्दों के पास शहवत से आते हो? हक़ ये है कि तुम बड़ी ही नादानी कर रहे हो।" [कुरआन 27.55]


क्या कहता है विज्ञान?

यदि किसी इंसान का gender test किया जाए तो दो ही लिंग प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। स्त्री या पुरुष। यानी लेस्बियन को नॉर्मल लडकि से अलग  वैज्ञानिक रूप से साबित करना मुमकिन नहीं। biological, physical और chemical composition लेस्बियन की लडकियों जैसी ही है। और गे भी लड़कों जैसी। फिर?

ये ही मुश्किल है के ये बात सिर्फ नफ्सानी ख्वाहिशो को मान कर हकीकत से खिलवाड़ कर रहे हैं।


LGBT:- Lesbian, Gay, Bisexual & Transgender


1. लेस्बियन (Lesbian)

एक औरत का sexual attraction दूसरी औरत की तरफ़ होना होना।

लेस्बियन के नुकसानात वैज्ञानिक दृष्टिकोण - इस तरह की प्रैक्टिस आपको anxiety, depression and body ache ही नहीं बल्कि बहुत बड़ी बड़ी बीमारियों में मुबताला कर देता है जैसे: cervical Cancer, endometrium cancer (uterus) and breast cancer हो जाते हैं।

क्योंकि अल्लाह ने औरत को जिस फितरत पे क़ायम रखा है अगर वो उस हट कर कोई practice करती है तो उसका असर उसके दिमाग़ पे भी पड़ता जिससे hormonal imbalance  हो जाता या फिर वो hormones release होते हैं लेकिन functional ना होने से उनका deposition होने की वजह से cancer होने की संभावना बढ़ जाती है।


2. गे (Gay) 

एक मर्द का sexual attraction दूसरे मर्द की तरफ़ होना।

गे के नुकसानात वैज्ञानिक दृष्टिकोण - Depression, anxiety and bodyache ये सब तो बहुत मामूली बात है इस तरह की प्रैक्टिस से, इससे ऐसे ऐसे रोग होते हैं शायद ही प्रैक्टिस करने वालो ने सुना हो। कुछ जो बहुत ही हानिकारक हैं ना कि सिर्फ मानव के लिए बल्कि मानवता के लिए भी।

जैसे: इस तरह की practice(Oral anal intercourse) से गे (समलैंगिक पुरुष) में,  G lamblia, E histolytica, Shigella, Salmonella and Campylobacter species के द्वारा gastrointestinal infection होने की संभावना रहती है। 

Genital herpes simplex, hepatitis A, hepatitis b infection.

Eating disorder: anorexia and bulimia (life threatening).


"क्या तुम मर्दों के पास बदफाली के लिए आते हो और रास्ता बंद करते हो और अपनी आम महफ़िल में बेहायाई का काम करते हो।" [कुरआन 29.29]


3. बाइसेक्सुअल (Bisexual)

किसी (मर्द/औरत) का sexual attraction मर्द और औरत दोनों की तरफ़ होना। वैसे तो जीव विज्ञान में, ये term (Bisexual) उन जीवो के लिए प्रयोग किया जाता है जिसे रचयिता (creator) ने एक जीव (organism) पे दोनों (male & female) जनन अंग (reproductive organs) दिए हैं। जैसे: earthworm, leech etc. लेकिन रचयिता ने इंसानों को unisexual organism बनाया जिसे अपनी sexual needs अपने opposite gender से जायज़ तरीके से पुरा करना चाहिए और ये प्राकृति की अवधारणा (concept) भी है क्योंकि इसी तरह जनन प्रक्रिया (reproductive process) होती है लेकिन इन्सान अपनी ना जायज ख्वाहिशात की खातिर अपना नफा और नुक्सान (lose & benefits) भी भूल जाता है।


"फिर हमनें इन पर तुम्हारा गलबा दे कर तुम्हारे दिन फेरे और औलाद से तुम्हारी मदद की और तुम्हें बड़े जत्थे वाला बना दिया।" [कुरआन 17:6]

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने औलाद को नेमत और ताक़त बनाया आप ख़ुद सोचे अगर आपके माता पिता ने भी यही काम किया होता तो आप दुनिया में कैसे आते और ख़ुद को सही साबित करने के लिए अपनी तुलना जानवरो से कैसे करते? जबकि अल्लाह रब्बुल इज्ज़त फरमाता है,


"यकीनन हमनें औलादे आदम को बड़ी इज्ज़त दी और इन्हें खुश्की और तरी की सवारियां दी और इन्हें पाकीज़ा चीजों की रोज़ी दी और अपनी बहुत सी मखलूक पर इन्हें फजीलत अता फरमाई।" [कुरआन 17.70]

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने हमनें सिर्फ़ एक बेहतरीन मखलूक ही नहीं बल्कि हमें एक अजीम मकसद के लिए पैदा किया 


"मैंने जिन्नात और इन्सान को महज़ इस लिए पैदा किया कि वो सिर्फ़ मेरी इबादत करें।" [कुरआन 51.56]


और इबादत का मतलब सिर्फ़ ये नहीं होता कि नमाज़, रोज़े जकात और हज अदा कर लिया जाय बल्कि सारी जिंदगी अल्लाह रब्बुल इज्ज़त के हुक्म मुताबिक जीना इबादत है। 

और हम इंसानों ने क्या किया अपने जिंदगियों के मक़सद को भूला कर ख़ुद को गुनाहों के दलदल में ढकेल दिया और तो और अपने गुनाहों को सही साबित करने के लिए ख़ुद की तुलना जानवरों से करने लगे, जैसा कि समलैंगिक लोग दलील देते हैं कि "एक नर मछली मादा मछली की तरह स्वभाव करती है जिससे दूसरी नर मछलीयां उस मछली की तरफ़ आकर्षित होती है"

जीव जगत (animal kingdom) में एक और जीव (organism) का फ़ीचर है मादा मकड़ी, नर मकड़ी को mating  (sexual intercourse) के बाद नर को मार देती है। तो क्या आप इसे भी जीव जगत का फ़ीचर  कह कर इसकी भी प्रैक्टिस शुरू करोगे?

अगर कोई बुरे ख्याल आपके दिल या दिमाग़ में आए तो आप उसे इंसान का फ़ीचर समझ कर उसकी प्रैक्टिस ना करें और ना ख़ुद को सही साबित करने के लिए अपनी तुलना जानवरों से करने लग जाये।

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने इस दुनिया को इम्तेहान गाह बनाया और आपको पता है इम्तेहान में एक सही विकल्प के साथ साथ कई गलत विकल्प भी होते हैं कई बार तो वो आपस में इतने मिलते जुलते हैं कि लोग सही और गलत के चयन में उलझ जाते हैं जबकि अल्लाह ने इतना मुश्किल भी विकल्प नहीं रखा जिस तरह हर इम्तेहान कुछ सिद्धांतों पे आधारित होता है इसी तरह अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने भी हमें अपने सिद्धांत को बताने और सिखाने के लिए बा कायदा एक रहनुमा (ideal) भेजा जिन्होंने (नबी करीम) हमें हमारी फितरत के अनुसार ज़िंदगी के हर शोबे में रहती दुनिया तक के लिए हमारी तरबियत किया। जैसे:-


नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: 
"मुझे अपनी उम्मत में जिस चीज़ का सबसे ज़्यादा खौफ (fear) है वो है कौम ऐ लूत का।" 
[जामे तिरमिजी:1457]

नबी करीम ﷺ ने अपना डर भी हमारी फितरत की वाजह से ही ज़ाहिर किया और हमें इस किस्म की बुराई से रोकने के लिए हर चोर दरवाजों को बंद कर दिया।


नबी करीम ने फ़रमाया: 
"सबसे अफ़ज़ल जिहाद, इन्सान अपने नफ्स के खिलाफ़ जिहाद करे।" 
[सहीह अल जामि :1099]


यानी हमारे दिल या जाहेन में आने वाले बुरे ख्यालात से लड़ना और उसे ख़ुद हावी नहीं होने देना 


नबी करीम ने फ़रमाया: 
"जब आपका बच्चा दस साल का हो जाय तो उसका बिस्तर अलग कर दें।"
[सुन्न अबू दाऊद:495]

बचपन से ही हर वो रास्ता बंद कर दिया जो इस बुराई की तरफ़ ले जाय।


पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:-
"कोई मर्द किसी मर्द के सतर को न देखे और कोई औरत किसी औरत के सतर को न देखे। और न कोई, मर्द किसी मर्द के साथ एक कपड़े में लेटे और न कोई औरत, किसी औरत के साथ एक कपड़े में लेटे।"
[सुन्नअबू दाऊद : 4018]

और अगर ये जीव जगत का feature है तो फिर इसे जीव विज्ञान में पढ़ाया क्यों नहीं जाता है। बल्कि अगर आप एड्स के वायरस (HIV) के संक्रमण का इतिहास देखें तो आपको पता चलेगा कि homosexual लोगों ने heterosexuality में लाया और फिर इस तरह ये पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती (threat) बन गया।

जो कौम (लूत अलैहिस्सलाम) इस बुराई में थी उसका अंजाम भी जान लेना चाहिए। अल्लाह तआला फरमाता है -


"फिर जब हमारा हुक्म आ पहुंचा हमनें इस बस्ती को जेरो ज़बर कर दिया ऊपर का हिस्सा नीचे कर दिया और इन पर कांकरीले पत्थर बरसाए जो तह बा तह थे।" [कुरआन 11.8]

और ये इतना सख़्त अजाब था कि आज तक यहां कोई बस्ती नहीं बसी और रहती दुनिया तक के लिए इबरत बना दिया, अल्लाह तआला फरमाता है-


"अलबत्ता हमने इस बस्ती को सरीह (clear) इबरत (sign) बना दिया इन लोगों के लिए जो अकल रखते हैं।" [कुरआन 29:35]

मानव में एक ग्रन्थि (hypothalamus) होती है जिससे GnRH (Gonadotropin releasing hormone) निकलता है जो जनन प्रक्रिया कराता है जिसका आकार नर में मादा से बड़ा होता है लेकिन  में नर और मादा के बीच का हो जाता है जिसे पहले एक homosexual का feature बताया जाता था लेकिन अब ये भी गलत साबित हो गया। और भी बहुत सी theory दी गई इसे सही साबित करने के लिए लेकिन सब गलत साबित हो गई उन सब का ज़िक्र करना हमारा मक़सद नहीं हमारा मक़सद सिर्फ़ बुराइयों के परिणाम बता कर लोगों को बुराइयों से रोकना है।

आप लोग ख़ुद ही एक बार सोचे आप कर क्या रहे है? 

ये सब सिर्फ़ जवानी तक ही सही लगता जब उम्र ढलेगी तो फिर आपको ऐसी इन्सान की तलाश होगी जो आपको समझ सके आपका सहारा बने अब आप ही बताए आप जिसके तफ़री का सामान बने थे क्या वो आपको ये सब कुछ देगा उसे ख़ुद इन्हें चीजों की तलाश होगी तो फिर एक दुसरे दुश्मन बन जाओगे अभी भी वक्त तौबा कर लो और खुद को अपने रब के सुपुर्द ऐसा कर दो की आपके खयालात और आपकी तन्हाई भी पाकीज़ा हो जाय क्योंकि हर अमल के साथ साथ हमें अपनी तन्हाइयो का भी हिसाब देना है इस लिए हमें चाहिए कि हम अपनी तन्हाइयों को भी पाकीज़ा रखें और अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने भी हमारे लिए पाकीज़ा चीजों को जायज़ किया और वही कामयाब भी होंगे। अल्लाह तआला फरमाता है,

"बेशक इसने फलाह (success) पाई जो पाक हो गया।" [कुरआन 87:14]

किसी भी गलत अमल आज़ादी के नाम पे सही और लीगलाईज़  करने के लिए media (main stream media, social media and print media including entertainment industries) का सहारा लिया जाता और इसके(homosexuality) साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है।

जबकि हमनें इतने नकारात्मक प्रभाव (negative impact) देखा। पूरे जीव जगत कोई organism में तीन प्रकार के लिंग नहीं होते हैं और मानव भी जीव जगत का एक प्राणी है उसमें भी दो प्रकार के लिंग होते हैं। तीसरा chromosomal disorders होता है इसे भी समझेंगे।


समलैंगिकता की सज़ा (Punishment Of Homosexuality)

दुनिया के कानूनों के नज़र में भले ही ये इंसान की अपनी मर्ज़ी हो लेकिन वास्तव में ये एक बहुत ही बड़ी तबाही की तरफ़ ले जाने वाला अमल है जिसके परिणाम को हमनें समझा भी है और इस्लाम हमें हमारे फितरत के अनुसार एक कानून और सिद्धांत का पाबंद बनाता है जब कोई इस कानून के विरूद्ध काम करता है तो फिर वो सजा का हक़दार होगा। शरीया कानून में इसकी सजा मुर्त्युदण्ड है


ट्रांसजेंडर (Transgender)

जो लोग operation के ज़रिए अपना जींस (लिंग/gender) बदलते हैं उसे transgender कहते हैं। नबी करीम ﷺ के ज़माने में ये अमल तो नहीं होता था लेकिन जो लोग जाहिरी तौर पर ये काम करते थे तो उनके हवाले से हज़रत इब्न ए अब्बास (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) से रिवायत है:


"नबी करीम पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने उन मर्दों पर लानत भेजी जो औरतों जैसा चाल चलन इख्तियार करें उन औरतों पर लानत भेजी जो मर्दों जैसा चाल चलन इख्तियार करें।"
[सही बुखारी: 5885]


तो सोचे ये अमल कितना बुरा है की लोग सिर्फ़ अपनी फितरत इस लिए बदलते हैं क्योंकि उन्हें, उन्हीं के जैसे (हम जींस/same gender) से लगाव हो और ऐसे लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ लानत के हकदार हैं जो लोग अपनी जिंदगियों के मक़सद को भूला कर ख़ुद को सिर्फ़ किसी की तफ़री का सामान बना ले उनके हिस्से और आना भी चाहिए?

ऊपर ज़िक्र किये गए बातो पे गौर करें ये सब सिर्फ़ और सिर्फ़ वक्ति तौर पर ही सही लगता है बाद में आपको अनगिनत बीमारियों में मुबतला कर देता है। क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने हमें जिस फितरत पे क़ायम रखा है उसे बदलने में हमारा ही नुकसान है।


अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की वो फितरत जिस पे उसने लोगों को पैदा किया, उसको बदलना नहीं। [कुरआन 30:30]

सेक्स बदलना का ऑपरेशन और हार्मोंस की दवाइयाँ को बहुत बड़ा कारोबार है जिससे बेहिसाब कमाई के रूप में शुरु किया है 

इसका जवाब आज के मीडिया में है। आज भारत में सोशल मीडिया पर इससे बेहतरीन बता कर दिखाया जा रहा है। और ऐसी सिनेमा बना कर लोगों को समझाया जा रहा है के ये बिल्कुल अच्छी बात है,  मॉर्डन होने की निशानी है। और इसे आप टीवी, सिनेमा सब जगह आम तौर से देख सकते हैं। 


किन्नर (Intersex/मुखन्नास/ख्वाजा सरा)


इनके यौन अंग विकसित नहीं होते। यानी वैज्ञानिक दृष्टि से ये स्त्री और पुरूष दोनों से भिन्न होते हैं। ये बिल्कुल नॉर्मल हैं और इन्हें हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। लेकिन समाज में इन्हें सम्मान जनक दृष्टि से नहीं देखा जाता। 

ये एक तरह का chromosomal disorders, जो non disjunction (during gametes formation) से होता है यानि Allosomes (gender determining/sex chromosomes) अच्छे से अलग अलग नहीं हो पाते तो इस तरह की संभावना पैदा हो जाती है।

जैसे: Turner's Syndrome (44+X0 =45) इनमें gonads (ovary and mammary gland) का विकास नहीं होता है is लिए sterile होती हैं।

Klinfelter's syndrom (44 + XXY = 47) दो xx chromosomes होने की वजह से इनमें कुछ मादा (female) के लक्षण विकसित हो जाते हैं जिसे gynaecomatia कहते हैं।

आम तौर पे इंसान में chromosomes (44+XX=46) है मादा होगी और अगर (44+XY=46) नर होगा।


किन्नर (मुखन्नस) - इस्लाम की नज़र में

उम्मे सलमा (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهَا) से रिवायत है:

एक दफा रसूल ﷺ इनके घर में थे एक शख्स (मुखन्नास) उम्मे सलमा (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهَا) के भाई से कह रहा था, 
"कल तुम्हें तायफ पे फतह हासिल हो जाय तो मैं तुम्हें बिन्त गिलान (बादिया नामी) को दिखाऊंगा वो जब सामने आती तो (इसके मोटापे की वजह से) चार सलवाटे दिखाई देती हैं और जब पीठ फेरती है तो आठ सलवाटे दिखाई देती हैं।"

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया कि अब ये शख़्स (मुखन्नस) ना आया करे।
[सहीह बुखारी:5887]

इसको घर में दाख़िल होने से इस लिए मना किया क्योंकि ये बुरी तरह औरतों को देखता और उनकी बाते कर रहा था लेकिन इनसे पर्दा नहीं है और हरमैन (मस्जिद ऐ हरम) में ये लोग काम भी करते हैं जिससे आसानी हो जाती है ये मर्द और औरत दोनों में आ जा सकते हैं।


किन्नर (मुखन्नस) - का विरासत में हक़

अगर इनका स्वभाव (behaviour) मर्दों जैसा हो तो इन्हें मर्दों का हिस्सा मिलेगा और इनका स्वभाव औरतों जैसा हो तो इन्हें औरतों जितना हिस्सा मिलेगा।

इस्लाम इनसे एक आम इंसानों की तरह ही पेश आ रहा है तो हमें भी चाहिए की इन लोगों के साथ अपना स्वभाव वैसा ही रखें जैसा बाकियों के साथ रखते हैं। हमारा स्वभाव अच्छा ना होने की वजह से ये अपना समाज अलग बना कर नाच गाना और मांगने को अपना धंधा बना लिए हैं। 

बुराइयों को तो हम justify के लिए कई तरीके अपना लेते हैं लेकिन इन लोगों के लिए उफ्फ भी नहीं कोई करता, क्या ये इंसान नहीं?


निष्कर्ष 

जैसा के हम देख चुके के विज्ञान के अनुसार इतने सारे gender का अस्तित्व नहीं बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी को गर्त में पहुंचाने की योजना है। कई तरह की बीमारियों से दो चार होना पड़ता है। 

आज मंकी पाक्स गे सेक्स का नतीजा है। डिप्रेशन, Anxiety, HIV का हाई रिस्क पाया जा रहा है। 

Oral anal sex कि वजह से Gastrointestinal infection के बहुत अधिक चांस हैं। 

इसी तरह लेस्बियन में ब्रेस्ट और Endometrial कैंसर होने का रिस्क बहुत अधिक है। 

महिला के प्रजनन क्षमता का उपयोग ना होने से बहुत से प्रजनन अंग और हार्मोंस महिला ही के शरीर को नुकसान पहुचाने लगते हैं। जिससे कई बार कैंसर की शक़्ल अख्तियार में आती है।

अल्लाह ही ने इंसान को और सारे जानदार को पैदा किया, अल्लाह अपनी मखलूक का भला बुरा  और उसने हमे साफ़ तौर पे बता भी दिया है. यक़ीनन आज इस गुमराही से हमे खुद को और अपने बच्चो को इस फ़ितने से बचाना ही है।  

इंशाल्लाह 


-अहमद बज़्मी 




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