Kya Isa As (Jesus) Namumkin Kaamo Ko Anjam Dete thein

  ईसा अलैहिस्सलाम की बाबत शक़ूक़ का ईज़ाला (पार्ट- 4)

Kya Isa As (Jesus) Namumkin Kaamo Ko Anjam Dete thein



Table Of Content

मोअज़ज़्ज़ा किसे कहते है?
ईसा अ० के कुछ मारूफ मोअज़ज़्ज़ात
अम्बियाओं के मोअज़ज़्ज़ात से मुताल्लिक दुनियाँ वालों की सुन्नत
ईसा अ० के मोअज़ज़्ज़ात की शरई हैसियत वा हक़ीक़त


क्या ईसा अलैहिस्सलाम नामुमकिन कामों (मोअज़ज़्ज़ात) को अंज़ाम देने पे कादिर थे?

इस मुद्दे पे चर्चा शुरू करने से पहले हम ये समझ ले कि -


मोअज़ज़्ज़ा किसे कहते है?


वों Incidents (घटनायें) जो,

 दुनियाबी वसाईल से Create ना किये जा सकते हो।
• दुनियाँ वालों की नज़रों में नामुमकिन हो।
• इंसानी तसव्वुर वा ताक़त से परे हो।
• इंसान जिसे देखके भौचक्का रह जाये।
• जिसके आगे इंसान की गर्दने झुक जाये या वों सजदारेज़ हो जाये।
• जिसे देखके नास्तिक भी किसी सुप्रीम पावर के बारे में सोचने को मजबूर हो जाये।
• आज की साइंस और टेक्नोलॉजी भी जिसका जवाब ना दे सके।


इत्यादि... उन्हें हिंदी में चमत्कार, इंग्लिश में Miracle और अरबी में मोअज़ज़्ज़ा कहते है।


ईसा अ० के कुछ मारूफ मोअज़्ज़ज़े


ईसा अ० के कुछ मारूफ मोअज़ज़्ज़ो का जिक्र हमें क़ुरआन में मिलता है। मसलन:-


 تُکَلِّمُ النَّاسَ فِی الۡمَہۡدِ وَ کَہۡلًا
1. "लोगों से बातें करना गोद मे भी और लड़कपन में भी।"

 تَخۡلُقُ مِنَ الطِّیۡنِ کَہَیۡئَۃِ الطَّیۡرِ فَتَنۡفُخُ فِیۡہَا فَتَکُوۡنُ طَیۡرًۢا
2. "बनाते थे मिट्टी से परिंदे के पुतले को और इसमें फूँक मार कर उसे जिंदा कर देते थे।"

 تُبۡرِیُٔ الۡاَکۡمَہَ وَ الۡاَبۡرَصَ
3. "अंधे और कोढ़ी को ठीक कर देना।"

 تُخۡرِجُ الۡمَوۡتٰی 
4. "मुर्दे को जिंदा कर उठाते थे।" 


[क़ुरान 5:110] इत्यादि... इन्हीं मोअज़ज़्ज़ो को हाई लाइट करके मसीही प्रीचर्स अपने फॉलोवर्स के जेहनों में Son of God वाला अक़ीदा बैठाते रहते है। उनका कहना है कि,


माई मरियम के बदन से साक्षात उस बालक ने जन्म लिया था, जिसमें वों तमाम शक्तियां थी जो अल्लाह में है। यानी ईसा अ० पैदाइशी कुन की पावर से लैस थे। जिस वजह से वों गोद की उम्र से ही हर नामुमकिन काम को अंजाम दे दिया करते थे और ऊपर दर्ज मोअज़्ज़ज़े इसी बात का सबूत है। तो हुए ना वों अल्लाह के बेटे और इस नुक्ते की गवाही के तौर पर वो क़ुरआन की दर्जे जील आयत पेश करते है,


اِذۡ قَالَتِ الۡمَلٰٓئِکَۃُ یٰمَرۡیَمُ اِنَّ اللّٰہَ یُبَشِّرُکِ بِکَلِمَۃٍ مِّنۡہُ ٭ۖ اسۡمُہُ الۡمَسِیۡحُ عِیۡسَی ابۡنُ مَرۡیَمَ وَجِیۡہًا فِی الدُّنۡیَا وَ الۡاٰخِرَۃِ وَ مِنَ الۡمُقَرَّبِیۡنَ
"जब फरिश्ता बोला ऐ मरियम! यक़ीनन अल्लाह तुझे अपनी जानिब से एक कलमें की खुशखबरी देता है। उसका नाम मसीह इब्ने मरियम होंगा। वों दुनियाँ और आखरत में इज़्ज़त वाला और मेरे मुक़र्रबीन में से होंगा।" 
[क़ुरान 3:45]


ईसा अ० के कुछ मारूफ मोअज़ज़्ज़ात


अब हम बारी-बारी ईसा अ० के मशहूर मोअज़ज़्ज़ात पर चर्चा करेंगे-


1- माँ की गोद से बातें करना:-
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ईसा अ० की विलादत से क़ब्ल, दुध मुँहे बच्चों का गहवारे (माँ की गोद) से कलाम करना इन बनी इस्राइलियों के लिये कोई नया हैरतअंगेज कारनामा ना था। खुद इन अहले-किताब की इज़राईली रवायतों में कई बच्चों के माँ की गोद या पालने से कलाम करने का जिक्र मिलता है। मसलन,


☆ ईसा अ० के गोद से बोलने का जिक्र
☆एक इस्राइली आलिम ज़रीह की बेगुनाही का सबूत देता एक दुध मुँहा बच्चा
☆ एक इस्राइली औरत की गोद से अपनी माँ की दुआँओं के खिलाफ दुआँ करता एक दुध मुँहा बच्चा


इनका जिक्र नबी स० की दर्जे जील हदीसों में भी मिलता है...[सही बुखारी:3436, सही मुस्लिम:6509, मुसनद अहमद:10434, 10435]


☆ यूसुफ अ० की बेगुनाही का सबूत, जुलेखा के कमरे में पालने में लेटे बच्चे ने दिया। [इस्राइली रवायत]


जब ये बात इतनी common थी तो क्यों इसे सिर्फ ईसा अ० के ही साथ मख़सूस करके मशहूर किया जा रहा है?


2-मिट्टी से परिंदा बना कर जिंदा कर देना:-
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☆ ऐसा ही मोअज़ज़्जा हम आदम अ० की तखलीक के वक़्त भी देख चुके है,


"उसकी निशानियों में से ये है कि उसने तुमको मिटटी से पैदा किया। फिर यकायक तुम बशर (इन्सान) हो कि (ज़मीन में) फैलते चले जा रहे हो।" 
[क़ुरान 30:20]


☆ फिर समूदियों ने जब पत्थर की एक चट्टान पर एक हामिला ऊँटनी को तराश कर बना दिया था तो सालेह अ० की दुआँओं से वो जिंदा ऊँटनी बन गयी थी,


"तुम्हारे पास तुम्हारे रब की खुली दलील आ गई है। ये अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिये एक निशानी के तौर पर है।"
[क़ुरान 7:73]


"और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! देखो ये अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिये एक निशानी है। इसे अल्लाह की ज़मीन में चरने के लिये आज़ाद छोड़ दो। इसे ज़रा भी ना छेड़ना, वरना कुछ ज़्यादा देर ना गुज़रेगी कि तुम पर अल्लाह का अज़ाब आ जाएगा।” 
[क़ुरान 11:64]


जब ईसा अ० से पहले से ऐसे मोअज़्ज़ज़ों का वज़ूद अहले किताब की तारीख में मौजूद है तो ईसा अ० के मोअज़्ज़ज़े को इतनी हैरत से क्यों देखा जा रहा है?


3- अंधे और कोढ़ी को ठीक कर देना:-
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क्या तारीख में, ईसा अ० से क़ब्ल कोई अंधा या कोढ़ी चमत्कारी अंदाज़ में ठीक नहीं हुआ?


☆ युसुफ अ० का कुर्ता चेहरे पे पड़ते ही याक़ूब अ० की आँखों की बिनाई वापस आ गयी,


"फिर जब ख़ुशख़बरी लाने वाला आया तो उसने यूसुफ़ अ० की क़मीज याक़ूब अ० के चेहरे पर डाल दी और यकायक उसकी आँखों की रौशनी लौट आई।"
[क़ुरान 12:96]


☆ ऐड़ी पटखने से जमीन से पैदा हुए 2 चश्मों के पानी पीकर और और उसमें नहा कर, अय्यूब अ० का कोढ़ ठीक हुआ,


"अपना पाँव ज़मीन पर मार, ये है ठण्डा पानी नहाने के लिये और पीने के लिये। हमने उसे उसके घर वाले वापस दिये और उनके साथ उतने ही और अपनी तरफ़ से रहमत के तौर पर और सोच-समझ रखने वालों के लिये नसीहत के तौर पर।"
[क़ुरान 38:42 & 43]


4- मुर्दे को जिंदा कर देना:-
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क्या अहले किताब की तारीख में ईसा अ० से क़ब्ल किसी और नबी अ० के दौर में मुर्दे जिंदा नहीं हुए थे?


☆ इब्राहिम अ० के साथ मुर्दा जिंदा होने का मोअज़ज़्ज़ा जुड़ा है,


"और वो वाक़िआ भी सामने रहे, जब इब्राहिम अ० ने कहा था कि “मेरे मालिक ! मुझे दिखा दे, तू मुर्दों को कैसे ज़िन्दा करता है?” कहा, “क्या तू ईमान नहीं रखता ?” उसने अर्ज़ किया, “ईमान तो रखता हूँ, मगर दिल का इत्मीनान चाहता हूँ।” कहा, “अच्छा, तो चार परिंदे ले और उनको अपने से हिला-मिला ले। फिर उनका एक-एक हिस्सा एक-एक पहाड़ पर रख दे, फिर उनको पुकार, वो तेरे पास दौड़े चले आएँगे। ख़ूब जान ले कि अल्लाह बड़े इक़्तिदार वाला और हिकमत वाला है।”
[क़ुरान 2:260]


☆ मूसा अ० के साथ मुर्दा जिंदा होने के 2 मोअज़्ज़ज़े जुड़े है,


(i)- जब एक बूढ़े के कत्ल का मामला मूसा अ० की अदालत में आया तो एक गाय जिबह कराके, उसके गोश्त के टुकड़े को मकतूल की लाश से छुवा कर मुर्दा जिंदा किया,


"उस वक़्त हमने हुक्म दिया कि मक़तूल [क़त्ल किये गए आदमी] की लाश पर उसके (जिबह किये हुए जानवर के) एक हिस्से से चोट लगाओ। देखो, इस तरह अल्लाह मुर्दों को ज़िन्दगी देता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो।"
[क़ुरान 2:73]


(ii)- जब मूसा अ० के साथ 70 सरदारान ऐ कौम कोहतूर पे अल्लाह को देखने की ख्वाहिश लेके गये, तो सामने वाले पहाड़ पर सिर्फ एक तजल्ली नाज़िल हुई और वों धमाके से फट गया और ये सब मर कर गिर पड़े। फिर मूसा अ० की दुआँ पर अल्लाह ने इन्हें दोबारा जिंदा कर दिया,


"तुम बेजान होकर गिर चुके थे, मगर फिर हमने तुमको जिला उठाया, शायद कि इस एहसान के बाद तुम शुक्रगुज़ार बन जाओ।"
[क़ुरान 2:56]


इस तरह हमनें देखा कि अल्लाह पाक ने, दिगर अम्बियाओं के दौर में भी, ईसा अ० के मोअज़्ज़ज़ों की मानिंद मोअज़्ज़ज़े दिखा कर पहले से ही बनी आदम को अपनी कुदरत, अपनी हक़्क़ानियत और अपनी रुबूबियत का परिचय दिया हुआ है।


अम्बियाओं के मोअज़ज़्ज़ात से मुताल्लिक दुनियाँ वालों की सुन्नत


क़ुरआन शाहिद है कि अल्लाह पाक ने जब कभी भी अपना कोई नबी ओ रसूल किसी कौम के दरमियान भेजा तो कौम ने सीधे-सीधे उसे मिन जानिब अल्लाह तस्लीम नहीं किया। हमेशा उससे उसकी सदाकत को साबित करने के लिये मोअज़ज़्ज़ात तलब किये,


"तू हम जैसे एक इन्सान के सिवाय और क्या है। ला कोई निशानी अगर तू सच्चा है।”
[क़ुरान 26:154]


"ये लोग कहते हैं कि “क्यों ना उतारी गईं इस शख़्स पर निशानियाँ इसके रब की तरफ़ से?” कहो, “निशानियाँ तो अल्लाह के पास हैं और मैं सिर्फ़ ख़बरदार करने वाला हूँ खोल-खोलकर।”
[क़ुरान 29:50, 20:133]


और मोअज़्ज़ात के नाम पर अजीबोग़रीब काम करके दिखाने को कहा। मसलन,


"और उन्होंने कहा, “हम तेरी बात ना मानेंगे, जब तक कि तू हमारे लिये ज़मीन को फाड़कर एक चश्मा ना जारी कर दे।

या तेरे लिये खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ पैदा हो और तू उसमें नहरें बहा दे।

या तू आसमान को टुकड़े-टुकड़े करके हमारे ऊपर गिरा दे, जैसा कि तेरा दावा है। या अल्लाह और फ़रिश्तों को रू-ब-रू हमारे सामने ले आये।

या तेरे लिये सोने का एक घर बन जाए, या तू आसमान पर चढ़ जाए और तेरे चढ़ने का भी हम यक़ीन ना करेंगे, जब तक कि तू हमारे ऊपर एक ऐसी किताब ना उतार लाये जिसे हम पढ़ें।” – ऐ नबी! इनसे कहो, “पाक है मेरा परवरदिगार, क्या मैं एक पैग़ाम लाने वाले इन्सान के सिवाय और भी कुछ हूँ?”
[क़ुरान 17:90-93 तक, 26:187]


"क्यों इस पर सोने के कंगन ना उतारे गए? या फ़रिश्तों का एक दस्ता इसकी अर्दली में क्यों ना आया?”
[क़ुरान 43:53]


"और जब हमारी साफ़-साफ़ आयतें इन्हें सुनाई जाती हैं तो इनके पास कोई दलील इसके सिवाय नहीं होती कि उठा लाओ (यानी जिंदा कर दो) हमारे बाप-दादा को अगर तुम सच्चे हो।"
[क़ुरान 45:25]


"जो लोग कहते हैं कि “अल्लाह ने हमको हिदायत कर दी है कि हम किसी को रसूल तस्लीम ना करें, जब तक हमारे सामने ऐसी क़ुरबानी ना करे जिसे [ग़ैब से आकर] आग खा ले।” उनसे कहो, “तुम्हारे पास मुझसे पहले बहुत-से रसूल आ चुके हैं, जो बहुत-सी रौशन निशानियाँ [खुले-खुले मोअज़्ज़ज़े] लाये थे और वो निशानी भी लाए थे जिसका ज़िक्र तुम करते हो, फिर अगर [ईमान लाने के लिये ये शर्त पेश करने में] तुम सच्चे हो तो उन रसूलों को तुमने क्यों क़त्ल किया?”
[क़ुरान 3:183]


ये तो थी दुनियावालों की मोअज़्ज़ज़ों के मुताल्लिक एक मुस्तकिल सुन्नत। अल्लाह पाक ने आदम अ० से लेकर ईसा अ० तक अनगिनत बार, अनगिनत मोअज़्ज़ज़े बनी आदम को दिखाये, वक़्ती तौर पे कुछ लोग इससे मुतास्सिर भी हुए, कुछ लोग ईमान भी ले आये और राहे-रास्त पे आ गये मगर अक्सरियत ने हमेशा इन मोअज़ज़्ज़ात को नकार दिया और इनको जादू का नाम दिया।


मुहम्मद ﷺ भी जब हक़ (क़ुरआन) लेकर, बतौर ऐ रसूल मक्का की सरजमींन पर मबऊस किये गये तो मुश्रिकाने मक्का भी अपनी पुरानी सुन्नत (रविश) के चलते मुहम्मद ﷺ से भी मोअज़ज़्ज़ात तलब करने लगे तो अल्लाह पाक ने मुहम्मद ﷺ को इनकी पुरानी तारीख बता कर समझाया,


"और क्या हो जाता अगर कोई ऐसा क़ुरआन उतार दिया जाता जिसके ज़ोर से पहाड़ चलने लगते, या ज़मीन फट जाती, या मुर्दे क़ब्रों से निकलकर बोलने लगते? [इस तरह की निशानियाँ दिखा देना कुछ मुश्किल नहीं है] बल्कि सारा अधिकार ही अल्लाह के हाथ में है। फिर क्या ईमान वाले [अभी तक इनकार करने वाले की तलब के जवाब में किसी निशानी के ज़ाहिर होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं और वो ये जानकर] मायूस नहीं हो गए कि अगर अल्लाह चाहता तो सारे इंसानों को हिदायत दे देता?"
[क़ुरान 13:31]


★ इस दौड़ में अहले किताब भी पीछे ना रहे, इन लोगों ने भी मुश्रिकिने मक्का की तरह अपना ये ऑब्जेक्शन पेश किया -

  • अगर ये मिन जानिब अल्लाह नबी ओ रसूल है तो इनके पास मूसा अ० की तरह चमत्कारी लाठी क्यों नहीं है?
  • या ये उनकी तरह के चमत्कार क्यों नहीं दिखाते है? यानी ये भी अपनी सदाकत को उनके जैसे मोअज़्ज़ज़े दिखा कर हमें साबित करें।


इनका ये ऑब्जेक्शन और इनके इस ऑब्जेक्शन का जवाब क़ुरआन ने दर्जे जील आयत में पेश किया है,


"मगर जब हमारे यहाँ से हक़ उनके पास आ गया तो वो कहने लगे, “क्यों ना दिया गया इसको वही कुछ जो मूसा अ० को दिया गया था?”
क्या ये लोग उसका इनकार नहीं कर चुके हैं जो इससे पहले मूसा अ० को दिया गया था? उन्होंने कहा, “दोनों जादूगर हैं, जो एक-दूसरे की मदद करते हैं।” और कहा, “हम किसी को नहीं मानते।”
[क़ुरान 28:48]


मूसा अ० की लाठी का सच के नाम से मैंने एक पोस्ट लिखी थी। जिसमें उनकी लाठी के जरिये होने वाले मोअज़ज़्ज़ात की हक़ीक़त बयान की थी। मोअज़ज़्ज़ात की शरई हक़ीक़त को समझने के लिए जरूर पढ़ें।


 जिस तरह मसीही हज़रात को उनके प्रीचर्स ने ये समझाया है कि ईसा अ० के पास लफ्ज़ ऐ कुन की पावर थी, जिसकी मदद से वों अप्राकृतिक घटनाये अंज़ाम दे दिया करते थे।

तो भला इस दौड़ में, हमारें चोर-चोर मौसेरे भाई B-Group के उलेमा, नक्काली से कैसे पीछे रह जाते? इन लोगों ने भी अपने फॉलोवर्स को ये अक़ीदा परोसा कि - "हमारे नबी स० को भी अल्लाह ने कायनात में तसर्रुफ़ का हक़ दिया है। वों भी जो चाहे तसर्रुफ़ कर सकते है।" और जब किसी थोड़ा सा इल्म रखने वाले ने इनसें इस दावे की शरई दलील माँग ली तो तुरंत उसे चाँद के 2 टुकड़े हो जाने वाले किस्से को चाँदी का वर्क लगाकर पेश कर दिया।

इनके इस दावे का पोस्टमार्टम मैंने अपनी एक पुरानी पोस्ट में तफसील के साथ किया है और चाँद के 2 टुकड़े में तक़सीम हो जाने की भी शरई हक़ीक़त पेश की है। जिन साहब को मज़ीद मालूमात हासिल करनी हो वों चाँद के दो टुकड़े होजाने की शरई हकीकत पे क्लिक करके पूरी तफ़सीलात पढ़ सकता है।


क्या अम्बियाँ अ० अज़मईन पब्लिक के मुँह माँगे मोअज़ज़्ज़ात दिखाने पे कादिर थे?


अम्बियाँ अ० के मोअज़ज़्ज़ातों के मुताल्लिक जो मुगालते, मुबालगे और भ्रम, उम्मत में फैलाए गये है, जब उनकी शरई हैसियत और हक़ीक़त को समझने के लिये हम क़ुरान ऐ करीम की पनाह में पहुँचे तो हमें अम्बियाओं के उस वक़्त के रिऐक्शन या रिप्लाईज़ पढ़ने को मिले, जब उनकी कौम ने अम्बियाओं से मुँह माँगे मोअज़्ज़ज़े तलब किये थे। पब्लिक की डिमांड पर अम्बियाओं के दर्जेजील रिएक्शन्स सामने आये,


★ अपनी लाचारी (असमर्थता) का इज़हार किया।


قُلۡ سُبۡحَانَ رَبِّیۡ ہَلۡ کُنۡتُ اِلَّا بَشَرًا رَّسُوۡلًا
"ऐ नबी! इनसे कहो, “पाक है मेरा परवरदिगार, क्या मैं एक पैग़ाम लाने वाले इन्सान के सिवाय और भी कुछ हूँ?”
[क़ुरान 17:93]


وَ مَاۤ اَنَا اِلَّا نَذِیۡرٌ مُّبِیۡنٌ
"और नहीं हूँ मैं सिवाय इसके कि एक खुला-खुला डराने वाला।" 
[क़ुरान46:9]


"ये लोग कहते हैं कि “क्यों ना उतारी गईं इस शख़्स पर निशानियाँ (मोअज़ज़्ज़ात) इसके रब की तरफ़ से?” 
कहो, “निशानियाँ तो अल्लाह के पास हैं और मैं सिर्फ़ ख़बरदार करने वाला हूँ खोल-खोल कर।” 
[क़ुरान29:50]


لَّاۤ اَمۡلِکُ لِنَفۡسِیۡ نَفۡعًا وَّ لَا ضَرًّا اِلَّا مَا شَآءَ اللّٰہُ
" नहीं अख्तियार रखता हूँ अपनी नफ़्स के वास्ते किसी नफे या किसी नुकसान का, सिवाय इसके कि अल्लाह जो चाहे।" 
[क़ुरान 7:188]


★ अल्लाह की जानिब रुजू होकर दुआँ गों हो गये।

जैसे जब ईसा अ० के हवारियों ने, उनसे आसमान से एक दस्तरख्वान [जिसमें तमाम हलाल अशिया मौजूद हों] नाज़िल करने की तलब की तो ईसा अ० अल्लाह की बारगाह में रुजू हो गये और अपने मददगारों की इस डिमांड को पूरा करने के लिये अल्लाह से दुआँ करने लगे,


"हवारियों के सिलसिले में ये वाक़िआ भी याद रहे कि जब हवारियों ने कहा, “ऐ मरियम के बेटे ईसा! क्या आपका रब हम पर आसमान से खाने का एक दस्तरख़ान उतार सकता है?” तो ईसा अ० ने कहा : अल्लाह से डरो, अगर तुम ईमान वाले हो।

उन्होंने कहा : हम बस ये चाहते हैं कि उस दस्तरख़ान से खाना खाएँ और हमारे दिल मुतमईन हों और हमें मालूम हो जाए कि आपने जो कुछ हम से कहा है वो सच है और हम उस पर गवाह हों।

इस पर मरियम के बेटे ईसा ने दुआँ की, “ऐ हमारे रब! हम पर आसमान से एक दस्तरख़ान उतार जो हमारे लिये और हमारे अगलों-पिछलों के लिये ख़ुशी का मौक़ा ठहरे और तेरी तरफ़ से एक निशानी हो, हमको रोज़ी दे और तू बेहतरीन रोज़ी देने वाला है।”

अल्लाह ने जवाब दिया, “मैं उसको तुमपर उतारने वाला हूँ मगर इसके बाद जो तुममें से कुफ़्र करेगा उसे मैं ऐसी सज़ा दूँगा जो दुनिया में किसी को ना दी होगी।” 
[क़ुरान 5:112-115 तक]


★ किसी नबी अ० ने कभी भी ये कुबूल नहीं किया कि वों किसी भी मोअज़्ज़ज़े को जाहिर करने की इस्तेताअत रखते है,


وَ مَا کَانَ لَنَاۤ اَنۡ نَّاۡتِیَکُمۡ بِسُلۡطٰنٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰہِ ...
1. "उनके रसूलों ने उनसे कहा, “सच में हम कुछ नहीं हैं मगर तुम ही जैसे इंसान, लेकिन अल्लाह अपने बन्दों में से जिसे चाहता है, नवाज़ता है और ये हमारे अधिकार में नहीं है कि तुम्हें कोई मोअज़ज़्ज़ा ला दिखाए। मोअज़ज़्ज़ा तो अल्लाह ही की इजाज़त से ही रूनुमा हो सकता है, और अल्लाह ही पर ईमान वालों को भरोसा करना चाहिए।"
[क़ुरान 14:11]


وَ مَا کَانَ لِرَسُوۡلٍ اَنۡ یَّاۡتِیَ بِاٰیَۃٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰہِ
2. "और किसी रसूल की भी ये ताक़त ना थी कि अल्लाह की इजाज़त के बिना कोई निशानी (मोअज़ज़्ज़ा ) ख़ुद ला दिखाता।"
[क़ुरान 13:38]


وَ مَا کَانَ لِرَسُوۡلٍ اَنۡ یَّاۡتِیَ بِاٰیَۃٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰہِ
3. "किसी रसूल की भी ये ताक़त ना थी कि अल्लाह के हुक्म के बिना ख़ुद कोई निशानी ले आता। "
[क़ुरान 40:78]


इन तीनो आयतों की रोशनी में हमने जाना कि एक नबी या रसूल लोगो की मांग के मुताबिक या अपनी मर्जी से किसी भी मोअज़्ज़ज़े को दिखाने पे कादिर नही होता।


■ कई बार मुहम्मद ﷺ में बहुत शदीद ख्वाहिश जागी कि अल्लाह इन कुफ्फार के मुँह मांगे मोअज़्ज़ज़े उनके हाथ पे सादिर करके दिखा दे तब शायद ये कुफ्फार ईमान ले आये। इसके लिए वों बहुत ख्वाहिश मंद और दुआँ गों भी रहे। लेकिन अल्लाह का जवाब क्या आया, आप साहबान खुद ही मुलाहिज़ा फरमाए--


"फिर भी अगर उन लोगों की बेरुख़ी तुम से बर्दाश्त नहीं होती तो अगर तुम में कुछ इस्तेताअत (ताक़त) है तो ज़मीन में कोई सुरंग ढूँढो या आसमान में सीढ़ी लगाओ और उनके पास कोई निशानी (मोअज़ज़्जा) लाने की कोशिश करो। अगर अल्लाह चाहता तो उन सबको हिदायत पर जमा कर सकता था, इसलिए नादान मत बनो।"
[क़ुरान 6:35]


देखा आपने नबी स० अल्लाह के आगे कितने असहाय, कितनेे बेबस, कितने मजबूर थे। अल्लाह अपनी मर्जी का बादशाह है, उसकी मदद के बगैर नबी स० भी कुछ नही कर सकते थे।

अल्लाह रब्बुल आलमीन का तो ऐलान है:-

"तुम सब मोहताज हो उसके आगे, तन्हे-तन्हा अल्लाह ही गनी (इक़्तेदार का मालिक) और हमीद (सारी तारीफों के लायक) है।"
[क़ुरान 35:15, 47:38]


■ इसी वजह से हर दौर में, कौम बार-बार अजीबोगरीब करिश्में, अल्लाह का अज़ाब या कयामत वाकेय करने का मुतालबा करती रहीं, पर कोई भी नबी अ० कभी भी उनकी डिमांड को बिना अज़न इलाही के पूरा ना कर सका ...


لَوۡ مَا تَاۡتِیۡنَا بِالۡمَلٰٓئِکَۃِ اِنۡ کُنۡتَ مِنَ الصّٰدِقِیۡنَ
"क्यों नहीं लाता फ़रिश्तों को हमारे पास, अगर तू सच्चा है।"
[क़ुरान 15:7]


فَاۡتُوۡا بِاٰبَآئِنَاۤ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ
"ले आओ हमारे बाप-दादाओं को (जिंदा करके हमारे सामने), अगर तुम सच्चे हों।"
[क़ुरान 44:36, 45:25, 56:87]


فَاَسۡقِطۡ عَلَیۡنَا کِسَفًا مِّنَ السَّمَآءِ اِنۡ کُنۡتَ مِنَ الصّٰدِقِیۡنَ
"पस गिरा दे हमारे ऊपर आसमान के टुकड़े, अगर तू सच्चा है।"
[क़ुरान 26:187]


فَاۡتِنَا بِمَا تَعِدُنَاۤ اِنۡ کُنۡتَ مِنَ الصّٰدِقِیۡنَ
"पस मंगवा दो, उसको (अज़ाब को) जिसका तुम हमसें वायदा करते हो, अगर तुम सच्चे हो।"
[क़ुरान 7:70, 11:32]


ائۡتِنَا بِعَذَابِ اللّٰہِ اِنۡ کُنۡتَ مِنَ الصّٰدِقِیۡنَ
"ले आओ अल्लाह का अज़ाब, अगर तुम सच्चे हों।"
[क़ुरान 29:29]


ائۡتِنَا بِمَا تَعِدُنَاۤ اِنۡ کُنۡتَ مِنَ الۡمُرۡسَلِیۡنَ
"लाके दिखाओ (कयामत को) जिसका तुम वायदा करते हो, अगर रसूलों में से हो।"
[क़ुरान 7:70, 11:32, 46:32]


अम्बियाओं के हाथों पे सादिर होने वाले मोअज़ज़्ज़ात के साथ दुनियाँ वालों का क्या रवैय्या रहा। कभी लोगों ने इसे सीरियसली नहीं लिया। हमेशा मज़ाक बनाया और जादू का नाम दिया। 


अब यहाँ एक सवाल खड़ा होता है कि - अल्लाह पाक बनी आदम के उसलूब को अच्छी तरह जानते-समझते हुए भी मोअज़ज़्ज़ात क्यों दिखाता है?


अल्लाह लोगों के मुँहमाँगे मोअज़्ज़ज़े इसलिये दिखाता है ताकि -

  • अपनी रुबूबियत, हक़्क़ानियत, अज़मत [All in All Image] को दुनियाँ वालों के दरमियान, इसके जरिये से Establish कर सके। [यानी जो बार-बार उसने क़ुरआन में कहा है कि वों हर शय पे कादिर है। इस बात को प्रैक्टिकली प्रूफ कर सके।]
  • अपनी ताकत के मुज़ाहिरे से बनी आदम के दिल मे अपनी क़द्र, अपना वकार और अपना खौफ पैदा कर सके। 
  • वक़्त के नबी अ० की सदाकत को साबित कर सके। 
  • जादू वा हक़ में फर्क वाज़ेह कर सके। 


इसीलिये बनी-आदम के दिमाग मे उठने वाले एक-एक तसव्वुर या सोच को उसने अम्बियाओं के मार्फत मोअज़्ज़ज़ों की शक्ल में सच करके दिखाया।


ईसा अ० के मोअज़ज़्ज़ात की शरई हैसियत वा हक़ीक़त


■ मोअज़ज़्ज़ातों के मुताल्लिक अल्लाह पाक की सदा से ये सुन्नत रही है कि जिस दौर में जो टेक्नोलॉजी उरूज़ पे रही, अल्लाह पाक ने उसी से रिलेटेड मोअज़्ज़ज़े उस दौर के अम्बियाँ के हाथों पे सादिर किये है।


जिस दौर में ईसा अ० की विलादत हुई , उस वक़्त बनी-इस्राइल को अपनी चिकित्सा पद्धति पर बड़ा नाज़ था। उस वक़्त इनकी चिकित्सा पद्धति अपनी चरम सीमा पर थी। तो उनकी चिकित्सा ने जिन मरीज़ों को ला-ईलाज़ घोषित कर दिया था, अल्लाह ने उन्हीं मरीज़ों को अपनी शक्ति से शिफा दे दी और बतौर ऐ जरिया ईसा अ० को बीच मे हॉयल कर लिया। ताकि दुनियाँ वालों के दरमियान उनकों अपने रसूल की हैसियत से Established कर दे। दुनियाँ वालों को दिख रहा था कि-

  • ईसा अ० ने एक जन्मजात अंधे (जिसकी चिकित्सा के जरिये आँखों की रोशनी लाना इम्पॉसिबल था) की आँखों पे हाथ फेरा और वों देखने लग गया।
  • ईसा अ० ने एक ला-ईलाज़ कोढ़ी के जिस्म पे हाथ फेरा तो वों भला-चंगा हो गया।
  • ईसा अ० ने एक ने मिट्टी से एक परिंदा बनाया और उसमें फूँक दिया तो वों उड़ने लगा।
  • ईसा अ० ने एक मुर्दे को आवाज़ दी कि जिंदा हो जा तो वों जीता जागता इंसान बन गया।

ये सारे काम उनकी चिकित्सा पद्धति के जरिये होना इम्पॉसिबल था। लिहाज़ा अल्लाह पाक ने इन इम्पॉसिबल कामों को अपनी ताकत के मुज़ाहिरे से पॉसिबल बना के दुनियाँ वालों को गोया ये संदेश दिया कि जों तुम लोगों के लिये इम्पॉसिबल है वों सब मेरे लिये पॉसिबल है। लिहाज़ा मुझे रब मानो, मेरी क़द्र करो, मेरे हुक्मों का पालन करों और मुझसे डरो।


■ ये मोअज़्ज़ज़े अल्लाह के अज़न (ईज़ाज़त) से रुनुमा हुए थे इसका सबूत क़ुरआन की दर्जे जील आयतों में साफ दिखाई देता है,


"और बनी-इसराईल की तरफ़ अपना रसूल मुक़र्रर करेगा।” [और जब वो रसूल की हैसियत से बनी-इसराईल के पास आया तो उसने कहा] “मैं तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारे पास निशानी (मोअज़्ज़ज़े) लेकर आया हूँ। मैं तुम्हारे सामने मिट्टी से परिन्दे की शक्ल का एक मुजस्समा बनाता हूँ और उसमें फूँक मारता हूँ, वो अल्लाह के हुक्म से परिन्दा बन जाता है। मैं अल्लाह के हुक्म से जन्मजात अन्धे और कोढ़ी को अच्छा करता हूँ और मुर्दे को ज़िन्दा करता हूँ। मैं तुम्हें बताता हूँ कि तुम क्या खाते हो और क्या अपने घरों में जमा करके रखते हो। इसमें तुम्हारे लिये काफ़ी निशानी है अगर तुम ईमान लाने वाले हो।" 
[क़ुरान 3:49]


"फिर तसव्वुर करो उस मौक़े का जब अल्लाह कहेगा कि “ऐ मरियम के बेटे ईसा! याद कर मेरी उस नेमत को जो मैंने तुझे और तेरी माँ को दी थी, मैंने पाक रूह से तेरी मदद की, तू पालने में भी लोगों से बात करता था और बड़ी उम्र को पहुँचकर भी। मैंने तुझको किताब और हिकमत और तौरात और इंजील की तालीम दी, तू मेरे हुक्म से मिट्टी का पुतला परिन्दे की शक्ल का बनाता और उसमें फूँकता था और वो मेरे हुक्म से परिन्दा बन जाता था, तू पैदाइशी अन्धे और कोढ़ी को मेरे हुक्म से अच्छा करता था, तू मुर्दों को मेरे हुक्म से निकालता था, फिर जब तू बनी-इसराईल के पास खुली-खुली निशानियाँ लेकर पहुँचा और जो लोग उनमें से हक़ का इनकार करने वाले थे, उन्होंने कहा कि ये निशानियाँ जादूगरी के सिवाय और कुछ नहीं हैं।" 
[क़ुरान 5:110]


इन दोनों आयतों में हमनें एक जुज़ बार-बार पढ़ा - بِاِذۡنِ اللّٰہِ - यानी अल्लाह की ईज़ाज़त से ... जिसे अल्लाह पाक ने खुसूसी तौर पे हर मोअज़्ज़ज़े के साथ मेंशन करके गोया दुनियाँ वालों को ये जताया है कि यें खिलाफ ऐ फितरत काम जो बाजाहिर तुम्हें ईसा अ० का कारनामा लग रहे है , यें दरअसल मेरी ताक़त से सम्पन्न हुए है। इस कायनात के जर्रे-जर्रे पे सिर्फ मेरा हुक्म चलता है। अगर मैं ईज़ाज़त ना देता तो ईसा अ० कयामत तक अंधे की आँखों और कोढ़ी के जिस्म पर हाथ फेरते रहते, कोई तब्दीली ना होती, ना मिट्टी का कबूतर उड़ता और ना मुर्दे में जान वापस आती। लिहाज़ा इन कामों के क्रेडिट का असल हकदार ईसा अ० नहीं बल्कि मैं हूँ। और यहीं Universal Truth है।


■ आइये जरा بِاِذۡنِ اللّٰہِ (अल्लाह की ईज़ाज़त) से होने वाले कुछ और काम भी हम जान ले, जिनका क़ुरआन ने ज़िक्र किया है,


★ आखरत में अल्लाह की बारगाह में किसी की शफ़ाअत भी कोई अल्लाह की मर्जी के बगैर नहीं कर सकता,


مَنۡ ذَا الَّذِیۡ یَشۡفَعُ عِنۡدَہٗۤ اِلَّا بِاِذۡنِہٖ
" अल्लाह के नज़दीक कौन बिना उसकी ईज़ाज़त के (किसी की) सिफारिश कर सके।"
[क़ुरान 2:255, 10:3]


★अल्लाह की ईज़ाज़त के बगैर कोई इंसान खुदकुशी करने में भी कामयाब नहीं हो सकता है,


 وَ مَا کَانَ لِنَفۡسٍ اَنۡ تَمُوۡتَ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰہِ 
" और नहीं है मुमकिन किसी इंसान के लिये कि वों मर जाये सिवाय अल्लाह की इज़ाज़त से।" 
[क़ुरान 3:145]


★ हर रसूल अ० की ईताअत अल्लाह की इज़ाज़त से ही की जाती है,


وَ مَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ رَّسُوۡلٍ اِلَّا لِیُطَاعَ بِاِذۡنِ اللّٰہِ 
" और नहीं भेजा कोई भी रसूल सिवाय इसलिये कि इसकी ईताअत की जाये, अल्लाह की ईज़ाजत से।" 
[क़ुरान 4:64]


★ अल्लाह जब तक बन्दे की सच्ची तलब और ज़ुस्तजू नहीं देख लेता, उसे ईमान लाने की तौफ़ीक़ नहीं देता है,


وَ مَا کَانَ لِنَفۡسٍ اَنۡ تُؤۡمِنَ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰہِ ؕ 
" और नहीं है मुमकिन किसी इंसान के लिये कि ईमान ले आये सिवाय अल्लाह की ईज़ाजत से।" 
[क़ुरान 10:100]


★ हश्र के मैदान में कोई भी इंसान अल्लाह की ईज़ाज़त के बगैर अपने होंठों को भी ना हिला पायेंगा,


یَوۡمَ یَاۡتِ لَا تَکَلَّمُ نَفۡسٌ اِلَّا بِاِذۡنِہٖ ۚ فَمِنۡہُمۡ شَقِیٌّ وَّ سَعِیۡدٌ 
"हश्र के रोज़ नहीं बोल सकेंगा कोई नफ़्स भी सिवाय अल्लाह की इज़ाज़त से, फिर चाहे वों बुरा हो या अच्छा।" [क़ुरान 11:105]


★ अल्लाह के ही हुक्म से ये आसमान धरती के ऊपर छाया हुआ है,


یُمۡسِکُ السَّمَآءَ اَنۡ تَقَعَ عَلَی الۡاَرۡضِ اِلَّا بِاِذۡنِہٖ 
"थामे हुए है आसमान को कि गिर ना पड़े जमीन पर सिवाय अल्लाह की ईज़ाज़त के।" 
[क़ुरान 22:65]


★ सुलेमान अ० के ताँबेय जो जिन्नात थे वों अल्लाह के हुक्म से ही सुलेमान अ० की ताबेदारी करते थे,


وَ مِنَ الۡجِنِّ مَنۡ یَّعۡمَلُ بَیۡنَ یَدَیۡہِ بِاِذۡنِ رَبِّہٖ 
" जिन्न जो काम करते थे उसके (सुलेमान अ० के) हाथ के नीचे, उसके रब की ईज़ाज़त से।" 
[क़ुरान 34:12]


★ इंसान को कोई भी मुसीबत बिना अल्लाह की मर्जी के छू भी नहीं सकती है,


مَاۤ اَصَابَ مِنۡ مُّصِیۡبَۃٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰہِ
" कोई भी मुसीबत अल्लाह की ईज़ाज़त के बगैर नहीं आती।" 
[क़ुरान 64:11]


★ किसी किस्म का कोई भी जादू अल्लाह के चाहे बगैर किसी इंसान को कोई भी नुकसान पहुँचा ही नहीं सकता है,


وَ مَا ہُمۡ بِضَآرِّیۡنَ بِہٖ مِنۡ اَحَدٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰہِ 
" और नहीं नुकसान पहुँचा सकते थे किसी को इसके (जादू के) जरिये, सिवाय अल्लाह की इज़ाज़त के।" 
[क़ुरान 2:102, 58:10]


★फ़रिश्ते भी अल्लाह की ईज़ाज़त के बगैर जमीन पर नहीं उतरते है,


تَنَزَّلُ الۡمَلٰٓئِکَۃُ وَ الرُّوۡحُ فِیۡہَا بِاِذۡنِ رَبِّہِمۡ ۚ مِنۡ کُلِّ اَمۡرٍ
" नाज़िल होते है फ़रिश्ते और रूहुल अमीन (जिब्रील अ०) इसमें (लैलतुल क़द्र में) उनके रब की ईज़ाज़त से, पूरे हुक्म के साथ।" 
[क़ुरान 97:4]


इतनी मिसालों में हमनें देखा कि कोई भी गैबी काम चाहे दुनियाबी हो या आखरत से जुड़ा, अल्लाह की ईज़ाज़त के बगैर रुनुमा नहीं होता। तो फिर ईसा अ० के हाथों हुए मोअज़्ज़ज़े बिना रब की ईज़ाज़त के कैसे वज़ूद में आ सकते थे?


इतनी तफ़सीलात देने के बाद भी अगर कोई जिद्दी इंसान इस हक़ीक़त को तस्लीम ना करें और इस मौक़ूफ़ पे जमा रहे कि ईसा अ० के पास लफ्ज़ ऐ कुन की पावर थी जिसकी मदद से वों हर किस्म के मोअज़्ज़ज़े दिखाने पे कादिर थे तो उस इंसान से मेरा एक सवाल है कि -

जब ईसा अ० के हवारियों ने उनसे आसमान से एक दस्तरख्वान नाज़िल करने की तलब पेश की तो क्यों उन्होंने डायरेक्ट अपनी लफ्ज़ ऐ कुन की ताकत से उनका मतलूब दस्तरख्वान नाज़िल नहीं कर दिया? क्यों इस काम के लिये वों अल्लाह की बारगाह में दस्त दराज़ करके फरियाद करने लगे?


देखये दर्जे जील आयत,


"जब हवारियों ने कहा, “ऐ मरियम के बेटे ईसा! क्या आपका रब हम पर आसमान से खाने का एक दस्तरख़ान उतार सकता है?” तो ईसा ने कहा : अल्लाह से डरो, अगर तुम ईमान वाले हो।

उन्होंने कहा : हम बस ये चाहते हैं कि उस दस्तरख़ान से खाना खाएँ और हमारे दिल मुतमईन हों और हमें मालूम हो जाए कि आपने जो कुछ हम से कहा है वो सच है और हम उस पर गवाह हों।

इस पर मरियम के बेटे ईसा ने दुआँ की, “ऐ हमारे रब! हम पर आसमान से एक दस्तरख़ान उतार जो हमारे लिये और हमारे अगलों-पिछलों के लिये ख़ुशी का मौक़ा ठहरे और तेरी तरफ़ से एक निशानी हो, हमको रोज़ी दे और तू बेहतरीन रोज़ी देने वाला है।” 
[क़ुरान 5:112 - 114 तक]


तवालत के पेशेनज़र इस पार्ट को यहीं मोअख्खर करता हूँ,

जुड़े रहे...

ये चर्चा इंशा अल्लाह यूँ ही जारी रहेगी...

अल्लाह से दुआँ गों हूँ कि मालिक दुनियाँ वालों को इस मामले में सही अक़ीदा कायम करने और क़ुरआनी सच पे ईमान लाने की तौफ़ीक़ अता फरमाये!

आमीन या रब्बुल आलमीन



आपका दीनी भाई
इम्तियाज़ हुसैन


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