Kya Isa As (Jesus) Ki Maut Ho Chuki Hai?

  ईसा अलैहिस्सलाम की बाबत शक़ूक़ का ईज़ाला (पार्ट- 5)


5. Kya Isa As (Jesus) Ki Maut Ho Chuki Hai?



Table Of Content

ईसा अ० को सूली पे क्यों टाँगा गया था?ईसा अ० को अल्लाह पाक ने आसमानों में जिंदा (मय-जिस्म के) उठा लिया था
ईसा अ० का नींद से बेदार होना
 

ईसा अ० को सूली पे क्यों टाँगा गया था? | उनके साथ क्या मामला हुआ था? | क्या ईसा अलैहिस्सलाम की मौत हो चुकी है?


दुनियाँ में मशहूर है कि ईसा अ० को यहूदियों ने सूली पे टाँग दिया था जिसमें उनकी मौत वाक़ेय हो गयी थी। क़ब्ल इसके की हम अपने मौज़ू की जानिब आगे बढ़े, हमारा एक नुक्ते को समझना भी निहायत जरूरी है कि -


ईसा अ० को सूली पे क्यों टाँगा गया था?


इस जिम्न में, इनकी किताबों और इनके मुआशरे में मशहूर बहुत सी वजहें मज़कूरा है। जिनका हम बहुत शार्ट में जिक्र करेंगे-


1. यहूदियों की ईसा अ० से नफरत की एक वजह तो ये थी कि ये एक बिन ब्याही लड़की (मरियम) के पेट से पैदा हुए थे। और ये लोग किसी ऐसे इंसान की नुबूवत को तस्लीम करने को तैयार नहीं थे कि जिसके हसब-नसब का पता ना हो।


2. ईसा अ० नसरानी कबीले से ताल्लुक रखते थे जो इनके 12 आला यहूदी कबीलों में से नहीं था। और इन लोगों में नस्ली तअस्सुब कूट-कूट के भरा है। ये बिल्कुल ऐसा ही है जैसे मुहम्मद ﷺ इब्राहिम अ० की आल बनी- ईस्माइल से नबी बनकर मबऊस हुए थे तो बनी इसहाक से ना होने के तअस्सुब की वजह से इन लोगों ने उनकी नुबूवत को तस्लीम नहीं किया था। तो कौमी तअस्सुब भी इनसे नफरत की एक मुख्य वजह रहा है।

इस नुक्ते की ताईद में भी हमें क़ुरआन में एक आयात मौसूल होती है, "जब उनसे कहा जाता है कि जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उस पर ईमान लाओ तो वो कहते हैं, “हम तो सिर्फ़ उस चीज़ पर ईमान लाते हैं जो हमारे यहाँ [यानी इसराईल की नस्ल में] उतरी है।” इस दायरे के बाहर जो कुछ आया है उसे मानने से वो इनकार करते हैं, हालाँकि वो हक़ है और उस तालीम की तसदीक़ और ताईद कर रहा है जो उनके यहाँ पहले से मौजूद थी। अच्छा, उनसे कहो, अगर तुम उस तालीम ही पर ईमान रखने वाले हो जो तुम्हारे पास आई थी, तो उससे पहले अल्लाह के उन पैग़म्बरों को [जो ख़ुद बनी-इसराईल में पैदा हुए थे] क्यों क़त्ल करते रहे?"
[क़ुरआन 2:91]


3. यहूदी चाहे आज के हो या कदीमी, इनका असल पेशा सूदी निज़ाम पे मबनी कारोबार रहा है। जिसकी बदौलत ये, हर दौर में दुनियाँ के सरमायादारों और पावरफुल लोगों में शुमार होते रहे है और दुनियाँ पे इनकी हुक्मरानी रही है। ईसा अ० के दौर में भी सूरत ऐ हाल कुछ यूँ ही थी।

ईसा अ० अपने उम्दा इखलाक, किताबुल्लाह की तालीम और मोअज़ज़्ज़ात की वजह से तत्कालीन समाज मे बहुत मक़बूलियत हासिल कर चुके थे, उनके अनुयायियों की तादाद दिनोदिन बढ़ती जा रही थी। ईसा अ० एक नबी होने की वजह से किताबुल्लाह की तालीम की तब्लीग कर रहे थे जो इनके सूदी निज़ाम के सरासर खिलाफ थी। जों वक़्त के यहूदियों (सरमायादारों) पर भारी गुज़र रही थी। जिसकी वजह से, पहले उन्हें झुठलाने की भरपूर कोशिशें की गई और जब ये कोशिशें नाकामयाब रही तों वों लोग हुक़ूमत के कान भरने लगे कि ये इंसान कौम में हुक़ूमत के खिलाफ प्रोपेगंडा कर रहा है। इसका इरादा हुक़ूमत का तख्ता पलटने का लगता है।


4. उस दौर में बनी इस्राइल पे इनके रिब्बियों का तगड़ा दबदबा था। यें रिब्बी जों कह देते थे, पब्लिक और हुक़ूमत उसी को मानती थी।

ईसा अ० की मक़बूलियत की वजह से यहूदी रिब्बियों का असर (दबदबा) मुआशरे से खत्म सा होने लगा था। लिहाज़ा रिब्बियों का ये ग्रुप भी उनके खिलाफ हो गया था। यहूदी सरमायाकारों ने इन रिब्बियों को भी अपनी तरफ मिला लिया और इन्हीं की मार्फत ईसा अ० के ऊपर ये फतवा निकलवा दिया कि ये इंसान (ईसा अ०) मुर्तद है और एक बड़ा जादूगर है जो खुद को और अपनी माँ (मरियम को) इलाहा करार देता है। - और ये बनी-इस्राइल की शरीयत के ऐतबार से काबिल ऐ सलीब जुर्म था। जिसके नतीजे में उन्हें सलीब पे टाँग देने का हुक़ूमत ने फैसला सुना दिया था ।


इन वजहों के अलावा, एक और वजह का सुबूत हमें क़ुरआन की चंद आयतों में मिलता है,

बनी इस्राइल की हिस्ट्री में नबियों का कत्ल कोई नया काम नहीं था। क्योंकि इनके उलेमा जिन्हें रिब्बी कहा जाता है वों लोग शैतानी रविश का शिकार होकर, किताबुल्लाह की तालीमात को पशे पुश्त फेंक के, ख्वाहिश ऐ नफ़्स के मुताबिक अमल करने लग गये थे। इन लोगों ने इस्लामी शरीयत के समानांतर एक मनचाही शरीयत बना ली थी जिसमें उनके तय करदा इबादतें और हराम-हलाल चलते थे। फिर जब भी कोई नबी अ० इनकी खुद साख्ता शरीयत को मिटाने की कोशिश करता था तो ये पहले-पहल तो यें उसे झुठलाने की भरपूर कोशिशें करते थे, उसे डराते-धमकाते थे, उसे अज़ीयतें पहुँचाते थे, लेकिन जब वों नबी अ० इनके प्रेशर में नहीं आता था तो फिर उस नबी अ० के कत्ल की जुस्तजूं में लग जाते थे। इसी कोशिश के नतीजे में इन लोगों ने जकरिया अ० और याह्या अ० को कत्ल तक कर डाला और अपनी जानिब से तक़रीबन ईसा अ० को सलीब पे टाँग तक दिया था।

[बिज़्ज़बत ऐसा ही रवैय्या पैगम्बर मुहम्मद ﷺ की लाइफ हिस्ट्री में भी देखने को मिलता है।]


■ क़ुरान की चंद आयतों में इस बात के दलाइल मुलाहिज़ा फरमाईये,


"हमने बनी इस्राइल से पुख़्ता अहद लिया और उनकी तरफ़ बहुत से रसूल भेजे, मगर जब कभी उनके पास कोई रसूल उनके मन की ख्वाहिशों के ख़िलाफ़ कुछ लेकर आया तो किसी को उन्होंने झुठलाया और किसी को क़त्ल कर दिया।" 
[क़ुरआन 5:70]


"हमने मूसा अ० को किताब दी, उसके बाद पे-दर-पे रसूल भेजे, आख़िर में मरियम के बेटे ईसा अ० को रौशन निशानियाँ देकर भेजा और पाक रूह से उसकी मदद की। फिर ये तुम्हारा क्या ढंग है कि जब भी कोई रसूल तुम्हारे नफ़्स की ख़ाहिशों के ख़िलाफ़ कोई चीज़ लेकर तुम्हारे पास आया तो तुमने उसके मुक़ाबले में सरकशी ही की; किसी को झुठलाया और किसी को क़त्ल कर डाला!" 
[क़ुरआन 2:87]


■ क़ुरआन इनके लिये अम्बियाओं को कत्ल करने की सज़ा का भी ऐलान करता है,


"जो लोग अल्लाह के अहकामात और हिदायतों को मानने से इनकार करते हैं और उसके पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करते हैं और ऐसे लोगों की जान लेने के पीछे पड़ जाते हैं जो अल्लाह के बन्दों में से इंसाफ और सच्चाई का हुक्म देने के लिये उठें, उनको दर्दनाक सज़ा की ख़ुशख़बरी सुना दो।" 
[क़ुरआन 3:21]


"ये जहाँ भी पाए गए इन पर ज़िल्लत की मार ही पड़ी। कहीं अल्लाह के ज़िम्मे या इनसानों के ज़िम्मे में पनाह मिल गई तो ये और बात है। ये अल्लाह के ग़ज़ब में घिर चुके हैं, इन पर मुहताजी और मग़लूबी मुसल्लत कर दी गई है और ये सब कुछ सिर्फ़ इस वजह से हुआ है कि ये अल्लाह की आयतों से इनकार करते रहे और इन्होंने पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल किया। ये इनकी नाफ़रमानियों और ज़्यादतियों का अंजाम है।" 
[क़ुरआन 3:112]


क्या ईसा अ० की सलीब पे मौत वाकेय हो चुकी है?


यहूदियों वा नसरानियों का ये मानना है कि ईसा अ० की सलीब पे मौत वाकेय हो चुकी है। अगर इस मौत की तस्दीक हम क़ुरआन से करना चाहे तो हमें एक आयत मौसूल होती है,


قَوۡلِہِمۡ اِنَّا قَتَلۡنَا الۡمَسِیۡحَ عِیۡسَی ابۡنَ مَرۡیَمَ رَسُوۡلَ اللّٰہِ ۚ وَ مَا قَتَلُوۡہُ وَ مَا صَلَبُوۡہُ وَ لٰکِنۡ شُبِّہَ لَہُمۡ ؕ وَ اِنَّ الَّذِیۡنَ اخۡتَلَفُوۡا فِیۡہِ لَفِیۡ شَکٍّ مِّنۡہُ ؕ مَا لَہُمۡ بِہٖ مِنۡ عِلۡمٍ اِلَّا اتِّبَاعَ الظَّنِّ ۚ وَ مَا قَتَلُوۡہُ یَقِیۡنًۢا
" और उनका कौल है कि हमनें मसीह, मरियम के बेटे ईसा, अल्लाह के रसूल, का क़त्ल कर दिया है – (हालाँकि सही बात ये है कि) उन्होंने ना उसको क़त्ल किया, ना सूली पर चढ़ाया, बल्कि मामला उनके लिये मुश्तबह (मशकूक) कर दिया गया। और जिन लोगों ने इसके बारे में इख़्तिलाफ़ किया है वो भी हक़ीक़त में शक में पड़े हुए हैं। उनके पास इस मामले में कोई इल्म नहीं है, सिर्फ़ अटकल पर चलते रहे हैं। उन्होंने मसीह को यक़ीनन क़त्ल नहीं किया।" 
[क़ुरआन 4:157]


इस आयत में इब्तेदा में तो अल्लाह पाक इन लोगों का एक दावा पेश कर रहा है कि देखो कितनी बेशर्मी और बेग़ैरती से ये लोग एक ऐसे इंसान के मर्डर का चार्ज अपने ऊपर ले रहे है जो मुआशरे में एक मासूम, रहम दिल इंसान, कौम का खैरख्वाह और अल्लाह के रसूल की हैसियत से रहता था। इनके इस दावे से इनकी क्रूरता और जुल्म का पता चलता है।

और फिर आयत के दूसरे जुज़ में, अल्लाह पाक उतने ही पुरजोर अंदाज़ में, इनके इस दावे का खंडन करते हुए फ़रमा रहे है कि ईसा अ० के बारे में मुआशरे में जो ये बात मशहूर है कि - उन्हें सलीब पे मौत आ गयी थी। या सलीब से उतारने के बाद, जिंदा पाये जाने पर, हाथ-पांव तोड़ने के बहाने, उन्हें कत्ल कर दिया गया था।

ये दोनों दावे क़ुरआन की इस नस ऐ शरई की बुनियाद पे बातिल ठहरते है।


ईसा अ० की मौत को लेकर अहले किताब का शक 


मगर इसी आयत के तीसरे जुज़ में, ये भी बताया गया है कि - ईसा अ० की मौत इन अहले किताब के लिये मुस्तबेह (संदिग्ध) बन गयी थी - ये शक़ इनमें कैसे क्रिएट हुआ? - आइये थोड़ा इस पर भी चर्चा कर ली जाये,


■ यहूदी तो इस मामले में Dead Sure है कि मसीह इब्ने मरियम की मौत सूली पे वाकेय हो चुकी है। क्योंकि उन लोगों ने (अपनी जानिब में) अपने हाथों से उन्हें सलीब पे चढ़ाया था और सलीब से उतारने के बाद उनकी डेथ को Certify भी किया था। तभी वों लोग इतने दावे से कह रहे है कि -


"और उनका कौल है कि हमनें मसीह, मरियम के बेटे ईसा, अल्लाह के रसूल, का क़त्ल कर दिया है।" 
[क़ुरआन 4:157]


लेकिन आयत के तीसरे जुज़ कि ईसा अ० का crucifixion, बाद में इनके लिये मशकूक हो गया। - इस शक़ की वजह क्या थी?

इस crucifixion के बाद उनके मुआशरे में बड़ी तेजी से कुछ बातें फैली कि जिसे सूली पे चढ़ाया गया वों असली ईसा अ० नहीं थे। बल्कि उनकी जगह कोई और सूली चढ़ गया है।

तो फिर सवाल ये पैदा हुआ कि वों बन्दा जो ईसा अ० की बदले सूली पे चढ़ाया गया था वों कौन था? - इस बारे में कई इस्राइली रवायतें पढ़ने को मिलती है-


1. जब ईसा अ० को अरेस्ट करने के लिये उनकी घेरा बंदी की गयी तो इनके हवारियों में से एक ने अपनी कुर्बानी दी, वों बाहर निकले और अपने आप को ईसा अ० डिक्लेअर किया। अल्लाह पाक ने, अपनी कुदरत से इस शिष्य की शक्ल बिल्कुल ईसा अ० की तरह बना दी थी जिसे रूमी सिपाही अरेस्ट करके ले गये और सूली पे चढ़ा दिया।


2. एक दूसरी रवायत में ये मिलता है कि - जो शख्स ईसा अ० की जासूसी करते हुए, उनको गिरफ्तार करने के लिये आया था जब वों उनके खेमे में दाखिल हुआ तो अल्लाह पाक ने उसकी शक़्ल हूबहू ईसा अ० की शक्ल जैसी तब्दील कर दी। फिर जब वों खेमे से बाहर निकला तो रूमी सिपाहियों ने उसे ईसा अ० के धोखे में अरेस्ट कर लिया और बाद में उसी को सलीब पे टाँगा गया था।


जाहिरन तो यहूदी यहीं समझते है कि इन्होंने ईसा अ० को सूली पे मौत दे दी थी मगर मुआशरे में मशहूर रवायतों की बुनियाद पर वों लोग भी शक़ में गिरफ्तार है।


 मसीही हज़रात के दरमियान इस मुद्दे पे बहुत से मुख्तलिफ स्टेटमेंट्स पाये जाते है,


1. कोई कहता है कि सलीब पे जो चढ़ाया गया वों मसीह इब्ने मरियम नहीं बल्कि उनका कोई हमशक्ल था, जिसे यहूदी और रूमी सिपाहियों ने पहले काँटों का ताज पहनाया और फिर बड़ी जिल्लत के साथ सूली पे चढ़ा दिया था और मसीह अ० वहीं कहीं भीड़ में खड़े, ये सब होता देख, उनकी हिमाकत पे हँस रहे थे।


2. कोई कहता है कि सूली पे चढ़ाया तो मसीह अ० को ही गया था। मगर सूली पे उनकी वफात नहीं हुई थी, सूली से उतारे जाने के बाद उनमें जान बाकी थी।


【सूली पे चढ़ाये जाने का एक कानून था। कि सूली पे सज़ा याफ्ता को सिर्फ 24 घंटे तक लटका रहने दिया जाता था। 24 घंटे बाद उसे उतारा जाता था और जिंदा पाया जाने पर, उसके हाथ-पांव तोड़ कर उसे जिंदा छोड़ दिया जाता था। Mostly 99.9% cases में crucifixion के दौरान excess bleeding की वजह से victim की death हो जाती थी। लेकिन ईसा अ० उतारे जाने पर जिंदा पाये गये थे।】


3. कोई कहता है कि इन्होंने सूली पे ही वफात पाई और उतारे जाने के बाद फिर जी उठे और कमोबेश 10 मर्तबा वों अपने मुख्तलिफ हवारियों से मिले और उन्हें अपने commandments दिये। जो आज उनके अलग-अलग शिष्य से 10 Gospels की सूरत में पाये जाते है।


4. कोई कहता है कि सलीब की मौत मसीह के जिस्म पे वाकेय हुई थी और उसी जिस्म को दफन किया गया था। मगर उनके अंदर जो अलवहियत की रूह थी, उसे आसमानों पे उठा लिया गया था।


5. कोई कहता है कि सूली पे मरने ले बाद मसीह अ० जिस्म समेत जिंदा हो गये और उन्हें जिस्म के साथ ही आसमानों में उठा लिया गया।


जाहिर है कि अगर इन लोगों के पास हक़ीक़त का इल्म होता तो इतनी मुख्तलिफ बातें इनमें मशहूर ना होती। इसलिये ये लोग उनकी मौत को लेकर आज भी शक़ में जी रहे है।


ईसा अ० साथ क्या मामला हुआ था?


अब अगर क़ुरआन की तस्दीक को सच मान लिया जाये तो अगला सवाल ये उठता है कि अगर मसीह इब्ने मरियम ना सलीब पे मरे और ना किसी और तरीके से कत्ल किये गये तो फिर उनके साथ क्या मामला हुआ था?

Crucifixion Incident के बाद, वों लोगों के दरमियान दोबारा दिखाई क्यों ना दिये?




इन सवालों के जवाब में कुछ लोगों का ये कहना है कि Crucifixion Incident के बाद, ईसा अ० हिज़रत करके India आ गये थे। श्रीनगर-कश्मीर में उन्होंने अपनी जिंदगी के बाकी दिन गुज़ारे और यहीं उनकी Natural Death हुई और यहीं श्रीनगर में रोज़ा बेला नामक स्थान पे आज भी उनकी समाधि बनी हुई है। जिसकी जियारत के लिये मसीही फॉरेनर्स बहुत तादाद में यहाँ आते है।

【इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो मेरा अल्लाह जाने】


एक क़ुरआन-सुन्नत का स्कॉलर होने के नाते मेरा अक़ीदा तो सिर्फ उन्हीं फैक्ट्स पे है जो क़ुरआन प्रोवाइड करता है। और क़ुरआन ने इस सवाल का जवाब इसी आयत के तुरंत बाद वाली आयत में दिया है,


بَلۡ رَّفَعَہُ اللّٰہُ اِلَیۡہِ ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ عَزِیۡزًا حَکِیۡمًا
"बल्कि अल्लाह ने उन्हें अपनी जानिब (आसमानों में) उठा लिया और जबरदस्त कूवत और हिकमत वाला (उसके हर काम मे बहुत हिकमते पोशीदा है।) है।" 
[क़ुरआन 4:158]


ईसा अ० को अल्लाह पाक ने आसमानों में जिंदा (मय-जिस्म के) उठा लिया था


आज इंटरनेट के इस दौर में, इस मौज़ू पर, Youtube पे बहुत से गुमराहकुन आलिमों की तक़रीरें मौजूद है जो हमारें नवजवानों को Misguide कर रहे है।

【ईसा अ० को अल्लाह पाक ने आसमानों में जिंदा (मय-जिस्म के) उठा लिया था】 - ये बात इन गुमराहकुन आलिमों को हजम नहीं होती है। उनका मानना ये है कि ऊपर उठा लेने का मतलब फ़रिश्ते का उनके जिस्म से, सिर्फ उनकी रूह को कब्ज़ करके ऊपर आसमानी दुनियाँ (यानी बरजख) में ले जाना है।


इन लोगों से मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि - अव्वल तो ईसा अ० पहले वों नबी नहीं थे जिन्हें जिंदा आसमानों में उठा लिया गया था। ईसा अ० से पहले इदरीस अ० के साथ भी ये मामला पेश आ चुका था। दलील मुलाहिज़ा फरमाये,


وَ اذۡکُرۡ فِی الۡکِتٰبِ اِدۡرِیۡسَ ۫ اِنَّہٗ کَانَ صِدِّیۡقًا نَّبِیًّا. وَّ رَفَعۡنٰہُ مَکَانًا عَلِیًّا
"और किताबुल्लाह में इदरीस अ० का भी जिक्र (मौजूद) है। यक़ीनन वों एक सच्चे पैगम्बर थे और हमनें उसे आली मकान (सबसे ऊँची जगह - यानी आसमानों पे) उठा लिया था।"
[क़ुरआन 19:56-57]


और ईसा अ० को आसमानों में उठाये जाने के बाद, पैगम्बर मुहम्मद ﷺ को भी मेराज़ की रात जिंदा (मय-जिस्म के) आसमानों पे उठाया गया था और आसमानी दुनियाँ की सैर कराई गई थी। जहाँ उन्होंने ईसा अ० समेत दिगर अम्बियाओं के दीदार भी किये थे।

【क्या इससे ये साबित नहीं होता कि अल्लाह का नबियों को मय-जिस्म के आसमानों पे उठाना कुछ नया काम नहीं है?】


अब समझते है उस पूरे घटनाक्रम को जिसके फलस्वरूप ईसा अ० को आसमानों पे उठाया गया-

★ जब ईसा अ० को गिरफ्तार करने के लिये, उनका मुहासरा (घेराबंदी) किया गया तो उन्होंने अपने हवारियों से पूछा,


فَلَمَّاۤ اَحَسَّ عِیۡسٰی مِنۡہُمُ الۡکُفۡرَ قَالَ مَنۡ اَنۡصَارِیۡۤ اِلَی اللّٰہِ 
"बस जब ईसा अ० ने उनके कुफ्र (उनकी साज़िश) को महसूस कर लिया तो पूछा (अपने शिष्यों से); अल्लाह की राह में कौन उनका मददगार बनेंगा ?" 
[क़ुरआन 3:52]


★ उनके सारे हवारी (शिष्य), उनके लिये जान न्योछावर करने को तैयार हो गये और जवाब दिया,


 قَالَ الۡحَوَارِیُّوۡنَ نَحۡنُ اَنۡصَارُ اللّٰہِ ۚ اٰمَنَّا بِاللّٰہِ ۚ وَ اشۡہَدۡ بِاَنَّا مُسۡلِمُوۡنَ 
" हवारियों ने कहा; हम अल्लाह के मददगार है। भरोसा है हमें अल्लाह पे, और गवाह रहिये कि हम ताबेदार है।" [क़ुरआन 3:52]


★ बस इनमें से एक हवारी को अल्लाह पाक ने ईसा अ० का हमशक्ल बना दिया,


 لٰکِنۡ شُبِّہَ لَہُمۡ 
"लेकिन उनके लिये इसका हमशक्ल (तैयार हो गया)।" 
[क़ुरआन 4:157]


★ यहीं पे ईसा अ० को अल्लाह पाक ने वाह्य के जरिये खबर दी कि अब वों उनके साथ क्या मामला करने वाले है। इसी पशेमंज़र में दर्जेजील आयत का नुज़ूल हुआ,


اِذۡ قَالَ اللّٰہُ یٰعِیۡسٰۤی اِنِّیۡ مُتَوَفِّیۡکَ وَ رَافِعُکَ اِلَیَّ وَ مُطَہِّرُکَ مِنَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا وَ جَاعِلُ الَّذِیۡنَ اتَّبَعُوۡکَ فَوۡقَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡۤا اِلٰی یَوۡمِ الۡقِیٰمَۃِ ۚ ثُمَّ اِلَیَّ مَرۡجِعُکُمۡ فَاَحۡکُمُ بَیۡنَکُمۡ فِیۡمَا کُنۡتُمۡ فِیۡہِ تَخۡتَلِفُوۡنَ
"जब अल्लाह पाक ने इरशाद फरमाया कि “ऐ ईसा! अब मैं तुझे पूरा का पूरा (कब्जे में) ले लूँगा और तुझको अपनी तरफ़ उठा लूँगा, और जिन्होंने तेरा इनकार किया है उनसे [यानी उनकी संगति से और उनके गन्दे माहौल में उनके साथ रहने से] तुझे पाक कर दूँगा और तेरी पैरवी करने वालों को क़यामत तक उन लोगों पर हावी रखूँगा जिन्होंने तेरा इनकार किया है। फिर तुम सबको आख़िरकार मेरे पास आना है, उस वक़्त मैं उन बातों का फ़ैसला कर दूँगा जिनमें तुम्हारे बीच इख़्तिलाफ़ हुआ है।" 
[क़ुरआन 3:55]


इस आयत में एक लफ्ज़ مُتَوَفِّیۡکَ आया है जो 3 रुट वर्ड्स و ف ی से मिलकर बना है। और इन्हीं तीन रुट वर्ड्स و ف ی से लफ्ज़ वफात भी बनता है। इसलिये इन लोगों को ये मुगालता हो गया कि आयत में आये लफ्ज़ - مُتَوَفِّیۡکَ का मायना Permanent वफात देना है। यानी अल्लाह आयत में ये कह रहा है कि मैं तुम्हें Permanently वफात देने वाला हूँ।


जबकि इसी मुगालते को पैदा होने से रोकने के लिये अल्लाह पाक ने इसी आयत में مُتَوَفِّیۡکَ के साथ وَ رَافِعُکَ का भी इस्तेमाल किया। जों इससे पहले किसी और अम्बियाँ के लिये इस्तेमाल नहीं किया गया, मगर ये लोग फिर भी अपनी जिद्द पे जमे रहते है कि (مُتَوَفِّیۡکَ का मायना तुझे Permanently वफात देने वाला) ही है।


■ इन लोगों का ध्यान मैं क़ुरआन ऐ करीम की एक आयत की ओर खींचना चाहूँगा,


اَللّٰہُ یَتَوَفَّی الۡاَنۡفُسَ حِیۡنَ مَوۡتِہَا وَ الَّتِیۡ لَمۡ تَمُتۡ فِیۡ مَنَامِہَا ۚ فَیُمۡسِکُ الَّتِیۡ قَضٰی عَلَیۡہَا الۡمَوۡتَ وَ یُرۡسِلُ الۡاُخۡرٰۤی اِلٰۤی اَجَلٍ مُّسَمًّی ؕ اِنَّ فِیۡ ذٰلِکَ لَاٰیٰتٍ لِّقَوۡمٍ یَّتَفَکَّرُوۡنَ
" अल्लाह ही वफात देता है किसी मुतनफ्फिस को, इसकी मौत के वक़्त और जिनकी मौत अभी तय नहीं उनको नींद के वक़्त, (और दोनों ही कंडीशन में कब्ज की गई रूहों के साथ ये होता है।) फिर रोक लेता है उन रूहों को जिन पर मौत का वक़्त तय है। और (जिनकी मौत का वक़्त अभी नहीं आया) भेज देता है बाकियों को अपनी मुकर्रर मुद्दत ऐ जिंदगी पूरी करने को। यक़ीनन इसमें गौरों फिक्र करने वालों के लिये बड़ी निशानियाँ है।" 
[क़ुरआन 39:42]


इस आयत से पता चलता है कि बन्दे की वफात सिर्फ मौत के वक़्त ही नहीं होती बल्कि नींद में भी उसकी रूह कब्ज़ कर ली जाती है। जिसे मौत ऐ असगर भी कहा जाता है।


ईसा अ० के साथ भी यहीं मामला हुआ। उनको नींद की शक्ल में वफात दे दी गयी यानी उन पर नींद तारी करके उनकी रूह temporary तौर पे कब्ज़ कर ली गयी और उनके सोये हुये जिस्म को भी फ़रिश्ते आसमानों में उठा ले गये।


इसीलिये आयत (3:55) में दोनों अल्फ़ाज़ مُتَوَفِّیۡکَ وَ رَافِعُکَ साथ-साथ आये है। مُتَوَفِّیۡکَ का मायना नींद में रूह कब्ज़ करना और رَافِعُکَ का मायना फ़रिश्तों के जरिये उनके जिस्म को उठा लेना है।


इब्ने अबी हातिम में हज़रत हसन रह० से اِنِّیۡ مُتَوَفِّیۡکَ की तफ़्सीर यूँ मरवी हूं कि - ईसा अ० पर नींद डाली गई और नींद की ही हालात में इन्हें ऊपर उठा लिया गया। फिर आयत के आगे के जुज़ के मुताल्लिक फरमाते है कि मैं तुझे पाक करने (यानी काफिरों की गिरफ्त से दूर) करने वाला हूँ और तेरे ताँबेदारो को काफिरों पे ग़ालिब रखने वाला हूँ कयामत तक के लिये।


ईसा अ० का नींद से बेदार होना


एक आयत में नींद से बेदार होने को दोबारा जिंदा होना करार दिया गया है,


وَ ہُوَ الَّذِیۡ یَتَوَفّٰىکُمۡ بِالَّیۡلِ وَ یَعۡلَمُ مَا جَرَحۡتُمۡ بِالنَّہَارِ ثُمَّ یَبۡعَثُکُمۡ فِیۡہِ لِیُقۡضٰۤی اَجَلٌ مُّسَمًّی ۚ ثُمَّ اِلَیۡہِ مَرۡجِعُکُمۡ ثُمَّ یُنَبِّئُکُمۡ بِمَا کُنۡتُمۡ تَعۡمَلُوۡنَ 
"और वहीं है जो वफात देता है तुम्हें रात को और वों जानता है कि दिन में तुम क्या करते रहे हो, फिर जिंदा कर उठाता तुम्हें इसमें ताकि तुम अपनी तयशुदा वक़्त (उम्र) पूरी कर सको, फिर तुम्हें इसी की ओर लौटाया जायेंगा। फिर वों तुम्हें बता देंगा जो कुछ अमल तुम करते रहे हो।" 
[क़ुरआन 6:60]


इस आयत के पशेमंज़र में हम ईसा अ० के आसमानों पे उठाये जाने को समझते है, ईसा अ० भी बेदारी की हालत में जो मिशन चला रहे थे तो उन्हें temporary मौत यानी कयामत के थोड़ा पहले तक की नींद सुला कर, वापस उसी मिशन को complete करने के लिये और अपनी उम्र पूरी करने के लिये, उस नींद से बेदार कर दिया जायेगा। तब वों अपने मिशन के साथ-साथ, अपनी उम्र भी पूरी करेंगे।

☆ उनके मिशन पूरा होने का सबूत आयत 4:159 है।

☆ और उम्र पूरी होने का सबूत आयत 19:33 है।


ईसा अ० का कयामत के थोड़ा पहले तक आसमानों में सुसुप्तावस्था (नींद) में रहना और फिर बेदार होकर second inning में मौत पाना कोई नई बात नहीं है। 

क़ुरआन ने इस मिस्ल की 2 और घटनाओं का भी बड़े वाज़ेह अंदाज़ में जिक्र पेश किया है,

  1. नींद की हालत में असहाब ऐ कहफ़ को 307 साल तक गार में सुलाये रखा फिर बेदार करके second inning में उन्हें मौत दी। [क़ुरआन 18 : 9 -19]
  2. नींद की हालत में उज़ैर अ० और उनके गधे को 100 साल सुलाये रखा फिर जिंदा कर दिया और second inning में उन्हें मौत दी। [क़ुरआन 2:259]


तो फिर ईसा अ० को कयामत के थोड़ा पहले तक सुला के फिर जिंदा कर देना, अल्लाह के लिये, कौन सी नयी बात होंगी जबकि ऐसा करना उनकी सुन्नत रहा है, जो असहाबे कहफ़ और उज़ैर अ० के केस में हम देख चुके है।


क़ुरआन कहता है कि,


وَ مَا کَانَ لِنَفۡسٍ اَنۡ تَمُوۡتَ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰہِ کِتٰبًا مُّؤَجَّلًا 
" और नहीं है मुमकिन किसी इंसान का मर जाना सिवाय अल्लाह की ईजाज़त से। सब का मुकर्रर वक़्त (मौत) लिखा हुआ है।" 
[क़ुरआन 3:145]


इस आयत में 2 नुक्ते बयान किये गये है-

  1. किसी मुतनफ्फिस को अल्लाह की ईज़ाज़त के बगैर, मौत छू भी नहीं सकती है।
  2. अल्लाह पाक ने सारे मुतनफ्फिस की एक उम्र मुतय्यन की है।

हम बारी-बारी इन नुक्तों पे चर्चा करेंगे-

नुक्ता -1:-
°°°°°°°°°


पूरी रोमन एम्पायर और यहूदी समाज ईसा अ० के कत्ल पे आमादा थे। उनके पास एक विशाल फौज थी और समाज के रसूखदार और इज़्ज़तदार लोगों का सपोर्ट भी था। वों गिरफ्तार भी कर लिये गये यानी अब ईसा अ० का सूली पे दम तोड़ना तक़रीबन तय था।

अब अगर उन्हें कोई ताक़त इन Evil Powers से बचा सकती थी तों वों थी Allah Almighty की Power, जिसका कोई तोड़ नहीं।

★ अल्लाह पाक का तो दावा है,


अगर अल्लाह तुझे मुसीबत में डाले तो ख़ुद उसके सिवाय कोई नहीं जो इस मुसीबत को टाल दे, और अगर वो तेरे हक़ में किसी भलाई का इरादा करे तो उसकी मेहरबानी को फेरने वाला भी कोई नहीं है। वो अपने बन्दों में से जिसको चाहता है अपने फ़ज़ल से नवाज़ता है और वो माफ़ करने वाला और रहम करने वाला है।” 
[क़ुरआन 10:107]


"इनसे पूछो : कौन है जो तुम्हें अल्लाह से बचा सकता हो, अगर वो तुम्हें नुक़सान पहुँचाना चाहे? और कौन उसकी रहमत को रोक सकता है, अगर वो तुम पर मेहरबानी करना चाहे? अल्लाह के मुक़ाबले में तो ये लोग कोई हिमायती या मददगार नहीं पा सकते हैं।" 
[क़ुरआन 33:17, 39:38, 48:11]


★ और वों अल्लाह जिसनें अपने इस पैगम्बर को कयामत की निशानी करार दिया है वों इसे इस तरह कैसे मिट जाने देता,


"मरियम का बेटा इसके सिवा कुछ ना था कि एक बन्दा था जिस पर हमने ईनाम किया और बनी-इसराईल के लिये अपनी क़ुदरत का एक नमूना बना दिया।" 
[क़ुरआन 43:59]


"और वो असल में क़यामत की एक निशानी है, तो तुम इसमें शक ना करो और मेरी बात मान लो, यही सीधा रास्ता है।" 
[क़ुरआन 43:61]


नुक्ता -2 :-
°°°°°°°°°°


अब आया सबकी उम्र का तय होना। किसकी कितनी उम्र अल्लाह पाक ने तय की है ये कोई नहीं जानता। कदीम नबियों की तूल उमरी का भी जिक्र मिलता है। आदम अ० की 2 हज़ार साल उम्र और नूह अ० की साढ़े 9 सौ साल उम्र बड़ी मशहूर है।

अब ईसा अ० का लंबी आयु प्राप्त करना कौन सा मुश्किल काम है। जब मेरा रब इब्ली को कयामत तक जिंदा रहने की मोहलत दे सकता तो अपने उस पैगम्बर, जिससे एक बड़ा काम लेना था उसे तवील उम्र क्यों नहीं दे सकता है?


और इस कायनात में अल्लाह पाक ने सबको एक खास मक़सद के लिये वों उम्र दी है और जब तक वों मक़सद पूरा नहीं हो जाता, मौत का फरिश्ता उस मुतनफ्फिस की रूह कब्ज़ नहीं करता। और ईसा अ० को जिस मक़सद के साथ भेजा गया था, उसके पूरे हुए बगैर उन्हें सलीब पे मौत कैसे आ सकती थी? और वों मक़सद क्या था? 

ये समझने के लिये दर्जेजील आयत पे गौर करें,


وَ اِنۡ مِّنۡ اَہۡلِ الۡکِتٰبِ اِلَّا لَیُؤۡمِنَنَّ بِہٖ قَبۡلَ مَوۡتِہٖ ۚ وَ یَوۡمَ الۡقِیٰمَۃِ یَکُوۡنُ عَلَیۡہِمۡ شَہِیۡدًا 
" और अहले किताब में से कोई ऐसा ना होगा जो उसकी मौत से पहले उस पर ईमान ना ले आयेगा और क़यामत के दिन वों उस पर गवाही देगा।" 
[क़ुरआन 4:159]


मैं इन हज़रात को उपरोक्त आयत के जरिये ये पूछना चाहूँगा कि अगर वाक़ई बा-कौल इनके, ईसा अ० को मौत आ चुकी है, तो दर्जे जील आयत के हिसाब से सारे अहले-किताब को उन पर ईमान ले आना चाहिये था।

मगर सूरत ऐ हाल साफ बयान कर रही है कि ये अहले-किताब कभी भी उन पर ईमान लाये ही नहीं थे। ना ईसा अ० की जिंदगी में और ना आज। अगर ये वाक़ई ईमान लाये होते तो ईसा अ० के खिलाफ साज़िशें, गलत प्रोपेगंडे और Crucifixion होता ही नहीं।

यानी साबित होता है कि आयत का मफ़हूम मुस्तक़बिल के जिम्न में पेश किया गया है। यानी सही से समझने के लिये इस आयत का मफ़हूम ये होंगा,


"और अहले किताब में से कोई ऐसा ना होगा जो [second inning में जब वों धरती पर लौटेंगे, सलीब को तोड़ेंगे, खिंज़ीर का कत्ल करेंगे और जज़िया को मिटाकर इस्लामी शरीयत को तक़वीयत देंगे और दज़्ज़ाल का खात्मा करेंगे फिर 40 साल मज़ीद जिंदा रहकर जब वफात पायेंगे तो उनकी इस वक़्त की) मौत से पहले उस पर ईमान ना ले आयेगा और क़यामत के दिन वो उस पर गवाही देगा।" 
[क़ुरआन 4:159]


★ क़ुरआन गवाह है कि जब-जब नबियों पे ऐसी विषम परिस्थितियॉं आयी है तो अल्लाह की जानिब से मोअज़ज़्ज़ात का जहूर हुआ है-


1. इब्राहिम अ० को नमरूद की सत्ता की ताकत और पूरी कौम का सपोर्ट मिलकर भी आग में जलाने में कामयाब ना हो सका। अल्लाह ने आग को ठंडा और सलामती वाला बना के अपने नबी की हिफाज़त की,


वो चाहते थे कि इब्राहिम अ० के साथ बुरा करें, मगर हमने उनको बुरी तरह नाकाम कर दिया।" 
[क़ुरआन 21:70]


"फिर उसकी क़ौम का जवाब इसके सिवाय कुछ ना था कि उन्होंने कहा, “क़त्ल कर दो इसे या जला डालो इसको।” आख़िरकार अल्लाह ने उसे आग से बचा लिया, यक़ीनन इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिये जो ईमान लाने वाले हैं।" 
[क़ुरआन 29:24]


2.  मूसा अ० जब अल्लाह के हुक्म से बनी इस्राइल को रातों रात लेकर निकल पड़े तो फिरौन की फौज ने इनका पीछा किया। ये लोग एक समुंदर के किनारे जाकर रुक गये। आगे रास्ता बंद था पीछे फिरौन का लश्कर, सबको अपनी मौत सिर पे नाचती दिख रही थी। अल्लाह पाक ने अपनी शक्ति से समुंदर को फाड़ कर मूसा अ० की कौम को उससे गुज़ार दिया और इसी समुंदर में फिरौनी लश्कर को गर्क कर दिया।


"याद करो वो वक़्त जब हमने समुद्र फाड़कर तुम्हारे लिये रास्ता बनाया, फिर उसमें से तुम्हें बख़ैरियत गुज़रवा दिया, फिर वहीं तुम्हारी आँखों के सामने फ़िरऔनियों को डुबो दिया।" 
[क़ुरआन 2:50]


तो अल्लाह के लिये अपने नबी ईसा अ० को सलीब से बचा लेना कौन सा मुश्किल काम था? और वहीं बचाने की पूरी सई का जिक्र दर्जेजील आयत में आया है,


[वो अल्लाह की ख़ुफ़िया तदबीर ही थी] जब उसने कहा कि “ऐ ईसा! अब मैं तुझे वापस ले लूँगा और तुझको अपनी तरफ़ उठा लूँगा, और जिन्होंने तेरा इनकार किया है उनसे [ यानी उनकी संगति से और उनके गन्दे माहौल में उनके साथ रहने से] तुझे पाक कर दूँगा और तेरी पैरवी करनेवालों को क़ियामत तक उन लोगों पर हावी रखूँगा जिन्होंने तेरा इनकार किया है। फिर तुम सबको आख़िरकार मेरे पास आना है, उस वक़्त मैं उन बातों का फ़ैसला कर दूँगा जिनमें तुम्हारे बीच इख़्तिलाफ़ हुआ है।"
[क़ुरआन 3:55]




तवालत के पेशेनज़र इस पार्ट को यहीं मोअख्खर करता हूँ ...

जुड़े रहे...

ये चर्चा इंशा अल्लाह यूँ ही जारी रहेगी...

अल्लाह से दुआँ गों हूँ कि मालिक दुनियाँ वालों को इस मामले में सही अक़ीदा कायम करने और क़ुरआनी सच पे ईमान लाने की तौफ़ीक़ अता फरमाये!

आमीन या रब्बुल आलमीन



आपका दीनी भाई
इम्तियाज़ हुसैन


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