Mera sachcha saathi kaun?

Mera sachcha saathi kaun? true friend


मेरा सच्चा साथी कौन?

हर शख्स के आगे और पीछे वो निगरान (फ़रिश्ते) मुकर्रर है जो अल्लाह के हुक्म से बारी बारी उसकी हिफाज़त करते हैं,  

"यकीन जानो की अल्लाह उस कौम की हालत नहीं बदलता जब तक वो अपने हालात में तब्दीली ना ले आये और जब अल्लाह किसी कौम पर कोई आफ़त लाने का इरादा कर लेता है तो उसका टालना मुम्किन नहीं, और ऐसे लोगो का खुद उसके सिवा कोई रखवाला नहीं हो सकता।" [क़ुरआन 13: 11]

जिन्दगी का पुरसकून होना भी एक नेमत है अगर सब कुछ होते हुए आप जिन्दगी से मुतमईन नहीं हैं तो ये नफ़्स की ख़्वाहिशात का नतीज़ा है। आज हम जिस दौर से गुज़र रहे है उसमे कोई इंसान ऐसा नहीं रह गया जिसकी ज़िन्दगी पुरसुकून हो। कोई अपनों से परेशान है तो कोई गैरों से। 

होता ये है कि हम गैरों के दिए चोट को तो जैसे तैसे सह जाते हैं मगर जब कोई अपना तक़लीफ़ देता है तो तक़लीफ़ में कई गुना इज़ाफ़ा हो जाता है ख़ास कर तब जब हम सामने वाले से गहरी उम्मीदें रख लें। ये उम्मीदों के घाव बड़े तकलीफ़ देह होते हैं, हम बार-बार उम्मीद के टूटने पर खुद को तन्हा पाते हैं और फिर हम खुद भी अपनी परेशानियों के ज़िम्मेदार होते हैं। जो ग़म हमें मिलता है वो हमारी अपनी नफ़्स की तरफ से होता है।

अल्लाह तआला का फ़रमान है, "तुझे जो भलाई पहुँचती है, वह अल्लाह की तरफ से है और जो बुराई पहुँचती है, वो तेरे अपने नफ़्स की तरफ से है।" [क़ुरआन 4: 78]

यानी जो भी भलाइयाँ हमें पहुँचती है वो हमारे अपने अमाल, इबादत, नेकी या इताअत की वजह से नहीं पहुँचती बल्कि जब अल्लाह चाहता है तब हमारे सारे कामों में आसानियाँ पैदा हो जाती है और उसका बेहतरीन अज्र मिलता है इसके अलाव जो बुराई हमें मिलती है वो भी अल्लाह की मर्ज़ी से मिलती है पर उसके ज़िम्मेदार हम खुद होते हैं यानि हमारी अपनी गलतियों, कोताहियों, गुनाहों या किसी बुराई का सिला होती है। इंसान गुनाहों का पुतला है मगर अल्लाह माफ़ करने वाला, हमारे बहुत से गुनाहों की पर्दा पोशी करने वाला है।

इस पुरे कायनात में कोई चीज़ अल्लाह के इल्म से बाहर नहीं है यहां तक कि कोई पत्ता भी अल्लाह की मर्जी के बगैर नहीं गिरता, जब अल्लाह को एक पत्ते के गिरने का इल्म है तो उसे हमारे गिरने का भी इल्म है और अल्लाह ही हमें ऊपर उठा सकता है। अल्लाह पर तवक्कल करने का ये हरगिज़ मतलब नहीं है कि हम पर मुश्किलें और परेशानियां नहीं आयेगी। मुश्किले तो आनी है लेकिन आसानी मिलेगी, अल्लाह के आगे सज्दे में रोने से।

अल्लाह तआला का फ़रमान है,

اِنَّ مَعَ الۡعُسۡرِ یُسۡرًا 

"बेशक तंगी के साथ आसनी है भी है।" [क़ुरआन 94: 6] 

अकसर ऐसा होता है, जब हम परेशान होते हैं तो हमारे सामने बहुत सी चीजें आती हैं जो हमारी परेशानियों को कम करने की जगह और बढ़ा देती हैं। हम लोगों से उम्मीद करते हैं कि वो हमारे ग़म को कम करने में हमारी मदद करें पर ये भी हमारी भूल होती है। ये दुनियां फानी है और लोग मतलब परस्त, इस मतलबी दुनिया में सिवाए अल्लाह के कोई सच्चा दोस्त और राज़दार नहीं है। और वही कदम-कदम पर हमारी रहनुमाई करता रहता है। जब हम किसी से मिलते हैं तो कुछ ऐसी बातें होती हैं जिससे थोड़ी राहत मिलती है, या सोशल मीडिया पर अचानक से हमारे सामने कुछ ऐसे कुरान और हदीस की पोस्ट या वीडियो आ जाते हैं जिन्हे देख कर लगता है ये तो हमारे लिए ही है। और हकीकत तो यही है कि अल्लाह हमें इसी के ज़रिए नसीहत दे रहा होता है ये किसी इंसान की तरफ से नहीं बल्कि अल्लाह की तरफ से होता है। लोग हमारी तक़लीफ़ को नहीं समझते पर हमारा रब हर तरह से हमारे लिए आसानी करता है। 

अगर मै अपनी बात करूँ तो अक्सर मेरे साथ यही होता रहा कि जब भी मै ख़ुश हुई तो मेरे सामने ऐसे पोस्ट आये जिन्हे पढ़ के मुझे अल्लाह की नेमतों का एहसास हुआ, उससे मोहब्बत बढ़ती गई और जब भी मै ग़मज़दा होती हूँ तब ऐसी पोस्ट सामने आती हैं जिन्हे पढ़ के मुझे हिम्मत मिलती है मेरे ग़म मुझपर हल्के महसूस होते हैं, ऐसा लगता है जैसे अल्लाह मुझसे खुद ये बातें कह रहा है, मुझसे तसल्ल्ली दे रहा है, मुझे बता रहा  साथ हूँ, ये ग़म कुछ दिनों के लिए है उसके बाद आसानी होगी, इस परेशानी में मेरी भलाई है। मेरे लिए ऐसी आयतें सामने आ जाती हैं जिन्हे सुन कर राहत महसूस होती है या ऐसी वीडियो सामने आती हैं जिन्हे देख कर लगता है मेरा ग़म दूसरों के ग़म के आगे कुछ भी नहीं है। लोगों की बातें, उनके ताने, उनका हर एक अमल मुझे अल्लाह के और क़रीब कर देता है। अल्हम्दुलिल्लाह   

इतना कुछ लिखने का असल मक़सद ये हैं कि, 

  • हज़ारों की भीड़ में भी आप रह लें पर सुकून सिर्फ अल्लाह के ज़िक्र में है। 
  • आपकी नज़रों के सामने जो कुछ भी आता है वो इत्तेफ़ाक़ नहीं बल्कि अल्लाह की तरफ से होता है। 
  • कितने भी लोग आपके करीब हों पर मुसीबत में सिर्फ अल्लाह साथ होता है। 
  • आपकी मुसीबत में  आपके सबसे ज़्यादा क़रीब रहने वाले लोग भी आपको तनहा छोड़ देंगे पर अल्लाह कभी नहीं छोड़ता। 
  • आपका सच्चा दोस्त सिर्फ अल्लाह है जो कभी आपके ख़िलाफ़ नहीं बोलता, कभी आपके राज़ नहीं खोलता न कभी आपको धोखा देता है। 
  • लोग सिर्फ सुख के साथी होते हैं पर अल्लाह दुःख में साथ होता है और उसे दूर भी करता है। 
  • हर मुसीबत, हर परेशानी का हल सिर्फ अल्लाह के पास है तो फिर उससे किस बात की दूरी। 
  • लोग आपको नीचा दिखाने के लिए बहुत कुछ करते हैं पर वाहिद अल्लाह आपको इज़्ज़त देता है। 
  • आपकी तौबा से वो आपको माफ़ कर देता है पर लोग माफ़ करके भी बदला ले लेते हैं। 

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फ़रमान है, "सब्र और नमाज़ से मदद लो।" [क़ुरआन 02: 45] 

बेशक अल्लाह सबसे बड़ा रहमान है, इसलिए सिर्फ अल्लाह से ही मदद मांगने की जरुरत है। इंसान तो बस ज़रिया होता है। लोग चाहे जितना आपके करीब हों पर मुसीबत में सिर्फ अल्लाह साथ होता है। आपकी मुसीबत में आपके सबसे ज़्यादा क़रीब रहने वाले लोग भी आपको तनहा छोड़ देंगे पर अल्लाह कभी नहीं छोड़ता। 

इसके अलावा बहुत कुछ है रब ए तआला की शान में लिखने को, जिसे लिखा जाये तो वक़्त कम पड़ जायेगा। उसकी रहमतें बेशुमार हैं, उसकी दी हुई हर एक चीज़ हमारे लिए नेमत है जिसका हमें शुक्र अदा करते रहना चाहिए, उसकी इब्बादत का हक़्क़ अदा करते रहने में ही हमारी भलाई है। उसके बताये रास्तों पर चल कर ही हमें जन्नत हासिल होगी। अल्लाह हम सब के लिए जन्नत के रस्ते आसान कर दे, इस फानी दुनिया की मोहब्बत को दिल से निकल कर दीन की मोहब्बत भर दे। 

आमीन


By Islamic Theology 

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