अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-7)
सैयदना शुऐब अलैहिस्सलाम
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1- मदयन की तरफ़
शोऐब अलैहिस्सलाम अल्लाह के नबी थे जिन्हें अल्लाह ने मदयन और ऐका वालों की तरफ़ भेजा था यह तिजारत करने वाले लोग थे। यमन व शाम तथा इराक़ और मिस्र के दरमियान लाल सागर के तट पर उनकी बड़ी बड़ी मंडियां थीं।
यह अल्लाह के साथ दूसरों को शरीक करते थे जैसे कि अंबिया की उम्मतों ने हर दौर में किया। उन्होंने इसमें और ज़्यादा यह किया कि नापतौल में कमी करते थे, वज़न में डंडी मारते थे। क़ाफ़िलों के सामने खड़े हो जाते, उन्हें धमकियां देते, डराते और ज़मीन में उन अमीरों और ताक़तवर लोगों की तरह फ़साद मचाते जिन्हें न हिसाब किताब का यक़ीन होता है और न वह अज़ाब से डरते हैं।
अल्लाह ने उनकी जानिब शुऐब अलैहिस्सलाम को रसूल बनाकर भेजा। वह क़ौम को दावत देते, डराते और उनसे कहते "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की इबादत करो, उसके इलावा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है और नाप तौल में डंडी न मारो, मैं तुम्हारी भलाई चाहता हूं, मुझे डर है कि कहीं किसी दिन घेरने वाला अज़ाब न आ जाय।
"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! नाप तौल में इंसाफ़ के साथ पूरा पूरा दो, लोगों को उनकी चीज़ें कम कर के न दो और ज़मीन में फ़साद न मचाओ।" (1)
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1, सूरह 11 हूद आयत 84, 85
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2- शुऐब अलैहिस्सलाम की दावत
शुऐब अलैहिस्सलाम अपनी बात विस्तार से बताते और क़ौम के दिल में माल व दौलत की मुहब्बत और बढ़ोतरी की जो फांस बैठी हुई थी उसे खोलना चाहते, वह कहते थे कि पूरे नाप तौल के बाद जो लाभ तुम को मिलता है वह उस माल से बेहतर है जो लोगों के साथ ज़ुल्म व ज़्यादती और ख़यानत से हासिल किया गया हो। अगर तुम अपने जीवन के बारे में सोच विचार करोगे तो पाओगे कि इसी ज़िंदगी में वह लोग भी तो थे जो बड़े प्रभावशाली थे, उन्होंने दौलत इक्ट्ठी की, जो कुछ उन्होंने नाप तौल में कमी, धोखा और ख़यानत के ज़रिए कमाया उसका अंजाम भी नुक़सान और बर्बादी ही है या बिगाड़ और मुसीबत की शक्ल में सामने आया है। उसे चुरा लिया गया या लूट लिया गया या वहां ख़र्च किया गया जहां अल्लाह की मर्ज़ी न थी या ऐसा व्यक्ति मुसल्लत कर दिया गया जो उससे खेलता और बर्बाद करता था। वह थोड़ा माल जो फ़ायदा दे उस ज़्यादा माल से बेहतर है जो फ़ायदा न दे। "ऐ पैग़म्बर, इनसे कह दो कि पाक और नापाक बहरहाल बराबर नहीं हैं, चाहे नापाक माल की रेलपेल तुम्हें कितना ही लुभाने वाली हो।" (1)
मेरी नसीहत तुम्हारे लिए ख़ास और बेग़र्ज़ है और अकेले अल्लाह तुम्हारी रखवाली और सुरक्षा कर रहा है, वह नरमी, हिकमत, इल्म और बसीरत से कहते, "अल्लाह की दी हुई बचत तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम ईमान वाले हो जाओ। बहरहाल मैं तुम्हारे ऊपर कोई पहरेदार नहीं हूँ।" (2)
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1, सूरह 05 अल मायेदा आयत 100
2, सूरह 11 हूद आयत 86
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3- मेहरबान पिता, अक़्लमंद गुरु
शुऐब अलैहिस्सलाम अपनी क़ौम को अलग अलग अंदाज से समझाते और एक मेहरबान पिता और अक़्लमंद गुरु की तरह मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से नसीहत करते। वह कहते,
"ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है, तुम्हारे पास तुम्हारे रब की स्पष्ट रहनुमाई आ गई है, इसलिए नाप तौल में पूरा पूरा दो। लोगों को चीज़ें देते हुए उसमें डंडी न मारो और ज़मीन में बिगाड़ न पैदा करो जबकि उसका सुधार हो चुका है। इसी में तुम्हारी भलाई है अगर तुम वास्तव में ईमान वाले बनो। और ज़िन्दगी के हर रास्ते पर डाकू और लुटेरे बनकर न बैठ जाओ कि लोगों को ख़ौफ़ज़दा करने और ईमान लाने वालों को अल्लाह के रास्ते से रोकने लगो और सीधी राह को टेढ़ा करने पर उतर आओ। याद करो वह ज़माना जबकि तुम थोड़े थे, फिर अल्लाह ने तुम्हें बहुत कर दिया, और आँखें खोलकर देखो कि दुनिया में बिगाड़ पैदा करने वालों का क्या अंजाम हुआ है।" (1)
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1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 85, 86
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4- क़ौम का जवाब
क़ौम के ज़हीन लोगों ने इस दावत के बारे में गहन चिंतन किया फिर बड़े ही घमंड और ग़ुरूर से कहने लगे जैसे उन्होंने कोई छुपा हुआ राज़ ढूंढ लिया हो या कोई तीर मार लिया हो, बोले
“ऐ शुऐब! क्या तेरी नमाज़ तुझे यह सिखाती है कि हम इन सभी माबूदों को छोड़ दें जिनकी इबादत हमारे बाप-दादा करते थे? या यह कि हमें अपने माल को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ इस्तेमाल करने का इख़्तियार न हो? बस तू ही तो एक फ़राख़ दिल और सत्यवादी इन्सान रह गया है” (1)
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1, सूरह 11 हूद आयत 87
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5- शुऐब अलैहिस्सलाम अपनी दावत की व्याख्या (तशरीह) करते हैं
क़ौम के लोग जो बुरे अख़लाक़ और ज़ुल्म के काम करते थे शुऐब अलैहिस्सलाम ने उनपर न तो सख़्ती की और न ग़ुस्सा हुए बल्कि लंबी ख़ामोशी के बाद मुख़ालिफ़त से बचते हुए उन्हें बड़ी मेहरबानी के साथ उस दावत और नसीहत को समझाना चाहा जिसकी ज़िम्मेदारी वह उठाये हुए थे। अंत में अल्लाह ने उन्हें नबूवत और वही के ज़रिए इज़्ज़त से नवाज़ा, उनका सीना खोल दिया और उन्हें अपने पास से नूर अता किया,
शुऐब अलैहिस्सलाम को किसी पर हसद नहीं आता था क्योंकि अल्लाह ने उन्हें बेनियाज़ कर दिया था, उन्हें हलाल रिज़्क़ अता किया इसीलिए वह ख़ुश बख़्त थे, मुतमईन और हर तरह से आराम में थे और ज़बान व दिल दोनों से अल्लाह का शुक्र अदा करते थे।
वह ऐसे नहीं थे कि दूसरों को किसी काम से रोकें और ख़ुद वही काम करें, किसी चीज़ से मना करें और वही चीज़ खुद करें, वह ऐसे भी नहीं थे कि लोगों को भलाई का हुक्म दें और ख़ुद को भूल जाएं और जो कहते हों वह करते न हों। बल्कि वह तो सुधार और भलाई चाहते थे और क़ौम को उस अज़ाब से बचाना चाहते थे जो उनके सिर पर मंडला रहा था। बेशक तमाम फ़ज़ल (नेकी) अल्लाह की तरफ़ लौटता हैं और उसी पर शुऐब अलैहिस्सलाम को भरोसा था।
शुऐब ने कहा, “भाइयो! तुम ख़ुद ही सोचो कि अगर मैं अपने रब की तरफ़ से एक खुली गवाही पर था और फिर उसने मुझे अपने यहाँ से अच्छी रोज़ी भी दी तो इसके बाद मैं तुम्हारी गुमराहियों और हरामख़ोरियों में तुम्हारा साथी कैसे हो सकता हूँ? और मैं हरगिज़ नहीं चाहता कि जिन बातों से मैं तुम्हें रोकता हूँ, उन्हें ख़ुद करूँ। मैं तो सुधार करना चाहता हूँ जहाँ तक भी मेरा बस चले। और यह जो कुछ मैं करना चाहता हूँ उसका दारोमदार अल्लाह की तौफ़ीक़ पर है। उसी पर मैंने भरोसा किया और हर मामले में उसी की तरफ़ मैं पलटता हूं।" (1)
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1, सूरह 11 हूद आयत 88
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6- हमें तुम्हारी ज़्यादातर बातें पल्ले नहीं पड़तीं
क़ौम ने शुऐब अलैहिस्सलाम की बात पर जिहालत दिखाई जैसे कि शुऐब अलैहिस्सलाम उनसे किसी और ज़बान में बात कर रहे हों हालांकि वह उन्हीं के मुल्क और क़ौम के रहने वाले थे या फिर उनकी बात स्पष्ट और साफ़ न थी जबकि वह उनमें सबसे ज़्यादा प्रभाव डालने और स्पष्ट बात रखने वाले व्यक्तिथे। लोग ऐसे ही कहते हैं जब उनको नसीहत बोझ लगने लगे और काम मुश्किल और सख़्त हो।
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7- शुऐब अलैहिस्सलाम की अपनी क़ौम पर हैरानी
क़ौम ने शुऐब अलैहिस्सलाम के अकेले होने और कमज़ोरी का अंदाज़ा कर लिया अगर वह उनके क़बीले वाले और रिश्तेदार न होते तो उन्हें कब का पत्थर मार कर हिलाक कर चुके होते। शुऐब को यह बात अच्छी नहीं लगी उन्हें सख़्त तअज्जुब हुआ कि अल्लाह जो ग़ालिब, क़ुदरत वाला ताक़तवर और ज़बरदस्त है और कहां उनका वह क़बीला जो बीमारी, हिलाकत, कमज़ोरों और मजबूरी का सामना कर रहा है।
"उन्होंने जवाब दिया, “ऐ शुऐब! तेरी बहुत-सी बातें तो हमारी समझ ही में नहीं आतीं। और हम देखते हैं कि तुम हमारे बीच एक कमज़ोर आदमी हो तेरी बिरादरी न होती तो हम कभी का पथराव करके तुझे मार डालते, तेरा बलबूता तो इतना नहीं है कि हमपर भारी हो।
शुऐब अलैहिस्सलाम ने कहा "ऐ मेरी क़ौम! क्या मेरी बिरादरी तुमपर अल्लाह से ज़्यादा भारी है कि तुमने बिरादरी का तो डर रखा और अल्लाह से मुंह मोड़ लिया? याद रखो कि जो कुछ तुम कर रहे हो, वह अल्लाह की पकड़ से बाहर नहीं है।" (1)
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1, सूरह 11 हूद आयत 91, 92
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8- आख़िरी तीर
जब उनकी दलीलें बेकार गईं तो उन्होंने फिर आख़िरी तीर फेंका जैसे हर उम्मत के घमंडी अपने नबियों और उनके फ़ॉलोअर्स पर फेंकते रहे हैं।
"उसकी क़ौम के घमंडी लोगों ने कहा ऐ शुऐब हम तम्हें और तुम्हारे साथियों को यहां निकाल बाहर करेंगे वरना हमारी मिल्लत में लौट आओ।" (1)
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8, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 88
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9- निर्णायक सुबूत
उनका जवाब ऐसे शख़्स का जवाब था जिसे अपने दीन पर गर्व हो और जिसे अपने अक़ीदे और ज़मीर पर नाज़ (ईर्ष्यालु) हो।
शुऐब ने जवाब दिया, “क्या ज़बरदस्ती हमें फेरा जाएगा, चाहे हम राज़ी न हों? हम अल्लाह पर झूठ घड़ने वाले होंगे अगर तुम्हारी मिल्लत में पलट आएँ, जबकि अल्लाह हमें उससे छुटकारा दे चुका है। हमारे लिए तो उसकी तरफ़ पलटना अब किसी तरह भी मुमकिन नहीं, मगर अल्लाह, हमारा रब, ही ऐसा चाहे। हमारे रब का इल्म हर चीज़ पर छाया हुआ है। उसी पर हमने भरोसा कर लिया। ऐ रब ! हमारे और हमारी क़ौम के बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर दे और तू ही सबसे अच्छा फ़ैसला करने वाला है।” (1)
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1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 88, 89
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10- क़ौम ने तो वही कुछ कहा जो उनसे पहले के लोग कह चुके थे
यह नसीहत उनको कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा सकी बल्कि उन्होंने तो वही सब कुछ कहा जो उनसे पहले के लोग कह चुके थे, तुम तो केवल एक जादूगर हो और तुम कुछ नहीं है मगर हमारे जैसे ही एक इन्सान, और हम तो तुझे बिल्कुल झूठा समझते हैं। अगर तुम सच्चे है तो हमपर आसमान का कोई टुकड़ा गिरा दो।” (1)
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1, सूरह 26 अश शुअरा आयत 185 से 187
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11- अपने नबी को झुठलाने वाली क़ौमों का अंजाम
जिन क़ौमों ने भी अपने नबी को झुठलाया और अल्लाह की नेअमत का इंकार किया उनका अंजाम यही हुआ कि "एक दहला देनेवाली आफ़त ने उनको आ लिया और वह अपने घरों में औंधे पड़े के पड़े रह गए।" (1)
"जिन लोगों ने शुऐब को झुठलाया, वह ऐसे मिट गए कि जैसे कभी उन घरों में बसे ही न थे। शुऐब के झुठलाने वाले अन्ततः बरबाद होकर रहे।" (2)
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1, 2, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 91, 92
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12- पैग़ाम पहुंचा दिया और अमानत अदा कर दी
शुऐब अलैहिस्सलाम ने तमाम अंबिया की तरह लोगों को पैग़ाम पहुंचा दिया, अमानत अदा कर दी और हुज्जत पूरी कर दी।
"शुऐब यह कहकर उनकी बस्तियों से निकल गया कि “ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैंने अपने रब के पैग़ाम तुम्हें पहुँचा दिया और तुम्हारी ख़ैरख़ाही का हक़ अदा कर दिया। अब मैं उस क़ौम पर कैसे अफ़सोस करूँ जो हक़ को क़ुबूल करने से इनकार करती है।” (1)
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1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 93
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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