अन नाफिऊ, इसके रूट है ن ف ع , जिसका मतलब है फ़ायदा पहुंचने वाला, नफ़ा देने वाला, नफ़ा बख़्श, to profit, To Be Beneficial. अन नाफिऊ, वो ज़ात जो फ़ायदा पहुँचता है जिसे वो चाहता है और नुक्सान पहुँचाता है जिसे वो चाहता है। किसी इंसान के लिए ये मुमकिन नहीं के अल्लाह सुब्हान व तआला की मर्ज़ी के बिना कोई फायदा उठाये या उसको कोई नफ़ा हो। अल्लाह सुब्हान व तआला अपने बंदो में से जिसे चाहे नफा देकर इसे आज़माता है।
अन नाफिऊ ٱلْنَّافِعُ
अल्लाह ﷻ नाम सर्वशक्तिमान, सारी क़ायनात बनाने वाले ख़ालिक का वो नाम है, जो कि सिर्फ उस ही के लिए है और इस नाम के अलावा भी कई और नाम अल्लाह के हैं जो हमे अल्लाह की खूबियों से वाकिफ़ करवाते हैं। अल्लाह ﷻ के ही लिए हैं खूबसूरत सिफाती नाम। इन को असमा-उल-हुस्ना कहा जाता है। ये नाम हमें अल्लाह की खूबियाँ बताते हैं। अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक नाम है अन नाफिऊ।
इसके रूट है ن ف ع , जिसका मतलब है फ़ायदा, नफा, लाभ।अन नाफिऊ ٱلْنَّافِعُ का मायने फायदा पहुंचाने वाला, नफ़ा देने वाला, नफ़ा बख़्श, to profit, To Be Beneficial. अन नाफिऊ, वो ज़ात जो फ़ायदा पहुँचता है जिसे वो चाहता है और नुक्सान पहुँचाता है जिसे वो चाहता है। किसी इंसान के लिए ये मुमकिन नहीं के अल्लाह सुब्हान व तआला की मर्ज़ी के बिना कोई फायदा उठाये या उसको कोई नफ़ा हो। अल्लाह सुब्हान व तआला अपने बंदो में से जिसे चाहे नफा देकर उसे आज़माता है।
अल्लाह सुब्हान व तआला के नाम जोड़ियों में आतें हैं। अन नाफिऊ और अज़ - ज़ार्र, नाम साथ ही आता है। अल्लाह की दोनों खूबियों को एक साथ समझना ज़रूरी है। अन नाफिऊ और अज़ - ज़ार्र(पूरी तरह इन्साफ के साथ अकेला नफ़ा और नुक्सान पहुंचाने वाला ) यानि इंसान को जो भी नफा या नुक्सान होता है सब कुछ अल्लाह ही की तरफ से होता है। किसी दूसरे में ये ताक़त नहीं की अल्लाह की मर्ज़ी के बिना दूसरे को कोई फायदा या नुक्सान पहुंचाने के काबिल हो।
अल्लाह के 99 नाम में से 81 नाम कुर’आन में मौजूद है। बाकी 18 में अलग अलग स्कॉलर की अलग अलग राय है।अन नाफिऊ, उन 18 नाम में से है जो कुछ स्कॉलर की लिस्ट में नहीं है हालांकि इब्न अरबी र.अलै., इमाम बेहक़ी र.अलै., इमाम ग़जाली र.अलै. की लिस्ट में ये नाम शामिल है, मगर इब्न ए वज़ीर, इब्न हज्म की लिस्ट में नहीं है।
अन नाफिऊ, अल्लाह सुब्हान व तआला का वो नाम है जिसमे अल्लाह की नफा देने की खूबी को बताया गया है और अल्लाह सुब्हान व तआला की हर मखलूक को फायदा पहुंचने की सिफ़त है लेकिन अल्लाह सिर्फ नफा देने वाला नहीं बल्कि ज़र्र या नुकसान तकलीफ का भी मालिक है। यानि अल्लाह सुब्हान व तआला ने दुनिया में हर चीज़ बैलेंस बनायीं है सुख-दुःख, रौशनी- अँधेरा, अच्छा -बुरा, नफ़ा-नुक्सान। और हर एक चीज़ दूसरे के बिना अधूरी है। अगर दुःख न हो तो क्या सुख की कीमत और उसकी अहमियत इंसान जान पाता ? अगर अँधेरा न होता तो उजाले की क्या हैसियत होती ? अगर बुराई नहीं होती तो दुनिया में अच्छा होने की कोई वैल्यू न होती।
ये अल्लाह की हिकमत और परफेक्शन की वजह से हर तरह का बैलेंस दुनिया में है। तो अल्लाह अन नाफिऊ और अज़ - ज़ार्र दोनों है ( फायदा और नुक्सान पहुंचाने वाला ) अल्लाह सुब्हान व तआला के हर काम में हिकमत है। जो फायदा अल्लाह, अन नाफिऊ, हमें पहुँचता है वो तो हमारे लिए फायदेमंद होता ही है लेकिन जो अल्लाह , अज़ - ज़ार्र पंहुचाता है वो भी बहुत ही ज़रूरी और फायदेमंद होता है। जो हमे सामने से देखने में नुक्सान नजर आ रहा होता है, वो असल में अल्लाह सुब्हान व तआला की तरफ से आज़माइश और बातिनी तौर पे फायदा दोनों ही होता है।
अन नाफिऊ, वो ज़ात जिसमे इंसानो को नफ़ा पहुंचने की खुसूसियत मौजूद है। अन नाफिऊ, जितना इंसान को नफ़ा पहुँचता है वो तो कोई सोच भी नहीं सकता न गईं सकता है। एक एक सांस इंसान की अन नाफिऊ की ही बदौलत है। अन नाफिऊ हमे हर तरह की तमाम नेमतें देता है, कभी उसके बदले में कोई तकाज़ा नहीं करता। और हमे भी यही हुकुम देता है के दुसरो को फायदा पहुंचने वाले बने। नफ़ा यानि खैर पहुचाने वाला मदद करने वाला। ये नफ़ा माल, सेहत, इल्म ज़िन्दगी के हर चीज़ में हर फ़ैल में है।
हर चीज़ का देने वाला अल्लाह सुब्हान व तआला है। गोया फायदा हो या नुकसान। जी हाँ अल्लाह सुब्हान व तआला ही जालिमो और गुनहगारों को सज़ा देने वाला है और मुतक्कियों को आज़माइश में डालने वाला भी सिर्फ और सिर्फ अल्लाह सुब्हान व तआला है। अल्लाह सुभानवा तआला ही नाफ़रमानो को इन्साफ के दिन सज़ा सुनाने वाला है। हम सब को अल्लाह के गज़ब और नाराज़गी से डरना चाहिए और यक़ीनन अल्लाह सुब्हान व तआला किसी पर रत्ती बराबर भी जुल्म नहीं करता। इंसान अपने नफ़्स पर खुद ही ज़ुल्म करता है। जो गुनाह इंसान करता है वो उसके खुद के नफ़्स या जान पर ही जुल्म होता है।
अल्लाह अल- हकम (निष्पक्ष फैसला करने वाला) और अल अद्ल (इन्साफ क़ायम करने वाला ) भी है। हम में से कितने लोग ऐसी दुनिया में रहना चाहेंगे जो पूरी तरह से अराजक हो ? जहाँ किसी तरह का इन्साफ न हो? कोई इन्साफ कोई सँभालने वाला न हो ? हर इंसान जो चाहे करने के लिए आज़ाद हो चाहे इससे किसी दूसरे का नुक्सान हो ? इससे पैसा और ताक़त ही इन्साफ का पैमाना बन जायेगा और गरीब कमज़ोर मज़लूम सिर्फ दबे और कुचले जायेंगे। लेकिन अल्लाह पूरी दुनिया में हक़्क़ और इन्साफ क़ायम और मीज़ान अल्लाह की तरफ से हमे तोहफा है जिससे हमे भी इन्साफ और हक़्क़ का साथ नहीं छोड़ना है।
मेरे तो ये सब दुश्मन हैं, सिवाय एक रब्बुल-आलमीन के, जिसने मुझे पैदा किया, फिर वही मेरी रहनुमाई करता है। जो मुझे खिलाता और पिलाता है और जब बीमार हो जाता हूँ तो वही मुझे शिफ़ा (रोगों से मुक्ति) देता है।
क़ुरआन 77-80
इब्राहिम अलैहिसलाम ने इस आयत में हर चीज़ अल्लाह ही की तरफ निस्बत की है लेकिन बीमारी को नहीं बल्कि शिफा को अल्लाह की तरफ निस्बत किया है। और अल्लाह की शिफा देने की सिफ़ात बयां की है। सूरह निसा की एक आयत में अल्लाह फरमाता है :
रही मौत, तो जहाँ भी तुम हो वो हर हाल में तुम्हें आकर रहेगी, चाहे तुम कैसी ही मज़बूत इमारतों में हो। अगर इन्हें कोई फ़ायदा पहुँचता है तो कहते हैं कि ये अल्लाह की तरफ़ से है और अगर कोई नुक़सान पहुँचता है तो कहते हैं कि [ ऐ नबी] ये सब तुम्हारी वजह से है। कहो, सब कुछ अल्लाह ही की तरफ़ से है। आख़िर इन लोगों को क्या हो गया है, कोई बात इनकी समझ में नहीं आती।
4:78
और अल्लाह फरमाता है :
अंजाम न तुम्हारी आरज़ुओं पर निर्भर करता है और न किताबवालों की आरज़ुओं पर। जो भी बुराई करेगा उसका फल पाएगा और अल्लाह के मुक़ाबले में अपने लिये कोई हिमायती और मददगार न पा सकेगा।
क़ुरआन 4:123
जब हम बीमार पड़ते हैं, या उदास होते हैं ,या मुश्किलों में फसे हुए होते हैं, हमारी खटाओ को अल्लाह तआला हमे छोटी छोटी सजा देकर ख़तम देता है। और जिन गुनाहो की सजा इस दुनिया में अल्लाह सुब्हान व तआला नहीं देता उनकी सजा के लिए आख़िरत में तैयार है।
इससे ये ज़रूर अल्लाह सुब्हान व तआला अज ज़ार्र है मगर उसका हर हर काम हर फ़ैल हिकमत और इन्साफ से भरा है। तो एक मोमिन को चाहिए के मुश्किल अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगे और ईमान मज़बूती से जमे होने की दुआ करे।
अल्लाह सिर्फ रहमान और क़ादिरे मुतलक ही नही है बल्कि अल हक़ीम (the wise) भी है उसके हर काम मे हिकमत है। लिहाजा ये कहना कि इस दुनिया मे कोई भी मुसीबत नही आनी चाहिए थी तो वो हमें लगता है मुसीबत है हमारे लिए लेकिन उस मुसीबत में भी हमारे लिए भलाई और हिकमत मौजूद है और अल्लाह की मुकम्मल हिकमत हमे समझ आ जाये ये जरूरी नही है।
बिल्कुल ऐसे ही हम अभी उस स्तर (level) पर नही है कि हम अल्लाह की मुकम्मल हिकमत को समझ सके। ऐसे ही बहुत से लोगों पर जब कोई परेशानी या मुसीबत आती है। तो वह यह समझते है कि बनाने वाले ने उनके ऊपर जुल्म किया और वो अल्लाह की हिकमत को नही समझ पाते जैसा कि एक बच्चा अपने माँ बाप की हिकमत को नही समझ पाता।
इसको एक उदाहरण से और समझते है, हम ज़िंदगी मे बहुत बार बिना हिकमत को समझे अपनी कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए दूसरी की बात मानते है। जैसे आप किसी डॉक्टर के पास जाते है तो डॉक्टर आपको बताता है कि आपको फलां बीमारी है अब आपको बेहोशी का इंजेक्शन दिया जाएगा, आपके शरीर को काट कर अंदर से फलां चीज़ निकाल ली जाएगी और फिर उसको सिला जाएगा, आप होश में आएंगे फिर आपसे कहा जायेगा कि आपको रिकवरी में इतना समय लगेगा और आपको तखलीफ़ होगी। लेकिन कितनी मर्तबा ऐसा होता है कि वो आदमी जो मेडिकल फील्ड का नही है अपनी कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए डॉक्टर की बात को मान लेता है। जबकि उस आदमी को डॉक्टर की पूरी हिकमत का पता नही होता फिर भी यकीन कर लेता है। ऐसे ही हम ज़िंदगी मे बहुत बार अपने कम इल्मी और कम अक़्ली का ऐतराफ़ करते हुए बिना हिकमत को समझे दूसरे की बात मान लेते है।
ज़रा अब आप सोचिये की बच्चे को माँ बाप की हिकमत समझ नही आती, हमे डॉक्टर की हिकमत समझ नही आती, लेकिन इंसान ये मुतालबा कर रहा है कि हमे हमे खुदा की हिकमत समझ मे आ जाएं।
इमाम ग़ज़ाली रह. कहते हैं कोई भी चीज़ जो ( अच्छी या बुरी ) अल्लाह सुब्हान व तआला की मर्ज़ी के बिना नहीं होती। न ज़हर अपनी मर्ज़ी से मार सकता न खाना किसी को संतुष्ट सकता और न इंसान, राजा , शैतान या कोई भी मखलूक चाहे वो कोई सितारा सैय्यारा हो या कुछ और, किसी को नुक्सान नहीं पंहुचा सकते जब तक अल्लाह ससुब्हान व तआला न हो। जिसको अन नाफिऊ फायदा देने का फैसला कर ले तो उसे कोई चीज़ नुक्सान सकती। इसकी मिसाल आग है - आग न बुरी होती न अच्छी मगर जैसा अल्लाह चाहे। वही आग से हैं और सैकड़ों फायदा अल्लाह के हुकुम से और वही आग जला के ख़तम भी कर देती है। जब नमरूद ने इब्राहिम अलैहसलाम क़त्ल के इरादे से आग में डाल दिया तो अल्लाह सुब्हान व तआला ने फ़रमाया :
"ऐ आग ठंडी हो जा और सलामती बन जा इब्राहिम पर, और वो चाहते थे इब्राहिम के साथ बुराई करें मगर बुरी तरह कर दिया।
क़ुरआन 21 :69 - 70
अल्लाह सुब्हान व तआला के ये नाम जानना मोमिनो को फायदा पहुँचता है। जब भी कोई मुश्किल या परेशानी आती है तो मोमिन समझ जाती है के ये सिर्फ अल्लाह ही की तरफ से है और सिर्फ अल्लाह सुब्हान व तआला के पास उस परेशानी को ख़तम करने की ताकत है और जब कोई ख़ुशी और रहमत होती है तो मोमिन शुक्र अदा करता है क्युकी वो जनता है के ये सब हमारे रब के फज़ल से है।
इससे मोमिन का दिल मुत्मइन रहता है और परशानी में न सब्र का दमन छोड़ता है और न ख़ुशी में शुक्र से खाली होता है। अल्लाह का कोई काम चाहे वो कोई मुसीबत ही क्यों न हो खैर से खली नहीं होता। यानि जो कुछ मुसीबत और परेशानी हमें दिखाई देती है उसमे खैर ही छुपी होती है। तो अगर कोई मुश्किल हमारे सामने पेश आये तो कभी किसी और को अल्लाह के अलावा हमारी मदद के लिये नहीं पुकारना है वरना अल्लाह हमे उनही के भरोसे छोड़ देता है जो किसी पर कुछ भी क़ुदरत नहीं रखते।
और अल्लाह को छोड़कर किसी ऐसी हस्ती को न पुकार जो तुझे न फ़ायदा पहुँचा सकती है, न नुक़सान। अगर तू ऐसा करेगा तो ज़ालिमों में से होगा।
कुरआन 10:106
और अल्लाह फरमाता है -
ऐ नबी! इनसे पूछो : क्या हम अल्लाह को छोड़कर उनको पुकारें जो न हमें फ़ायदा पहुँचा सकते हैं, न नुक़सान? और जबकि अल्लाह हमें सीधा रास्ता दिखा चुका है तो क्या अब हम उलटे पाँव फिर जाएँ? क्या हम अपना हाल उस शख़्स का-सा कर लें जिसे शैतान ने रेगिस्तान में भटका दिया हो और वो हैरान व परेशान फिर रहा हो? जबकि हाल ये है कि उसके साथी उसे पुकार रहे हों कि इधर आ, ये सीधा रास्ता मौजूद है? कहो : हक़ीक़त में सही रहनुमाई तो सिर्फ़ अल्लाह ही की रहनुमाई है और उसकी तरफ़ से हमें ये हुक्म मिला है कि कायनात के मालिक के आगे फ़रमाँबरदारी के साथ सिर झुका दो।
कुरआन 6:71
अज़ - ज़ार Asma ul Husna अन नूर
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