Abdul Qadir Jilani RA (Gaus Pak) Aur Gyarvi Shareef

Abdul Qadir Jilani RA (Gaus Pak) Aur Gyarvi Shareef


अब्दुल क़ादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) और ग्यारवीं (11वीं) शरीफ़ 


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ग्यारवीं (11वीं) शरीफ़ 


ग्यारवीं शरीफ़ ये वो अमल है जिसको अहले बिदअत शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) के नाम पर रबी उस सानी (Rabi ul Thani) की 11 तारीख़ को मनाते हैं। इस महीने की पूरी तारीख फातेहा का सिलसिला चलता है।


शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) तार्रुफ़


  • पूरा नाम: अब्दुल का़दिर बिन अबी सालेह अब्दुल्ला (जंगी दोस्त) अल जिलानी
  • कुनियत: अबु मुहम्मद
  • लक़ब: मोईनुद्दीन (दीन को जिंदा करने वाला) और शेख उल इस्लाम
  • नसब: हसन बिन अली (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ)


आप (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) 470 हिजरी में ईरान के एक शहर जिलान या गिलान में पैदा हुए इसलिए आपको जिलानी या गिलानी कहा जाता है। आप 18 साल की उम्र में इल्म हासिल करने के लिए बगदाद आए थे। इमाम ज़हबी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) बताते हैं उन्होंने क़ाज़ी अबु सईद मख़्ज़ूमी, अबु ग़ालिब (मुहम्मद बिन हसन), बाक़िलानी, जफ़र बिन अहमद अल-सर्राज, अबू तालिब यूसुफ़ी वगैरह से तालीम हासिल की। 

आपकी वफ़ात 99 साल की उम्र मे 561 हिजरी में बग़दाद में हुई। 

तफ्सील से जानने के लिए 'सियार आलम अल-नुबुला: 20/439-440' पढ़ें। 


ग्यारवीं शरीफ़ कब और कैसे शुरू हुई? 


अल्लामा याफी, क़ुर्रत-उन-नाज़िरह पेज 11 पर लिखते हैं:

"पीरान ए पीर हर चांद की ग्यारह (11) को नबी (ﷺ) की नियाज़ (उर्स) दिलवाया करते थे। यह नियाज़ इतनी मशहूर व मकबूल हुई के पीरान ए पीर हर माह की 11 तारीख को नबी (ﷺ) की नियाज़ दिलवातें। धीरे-धीरे यही नियाज खुद शेख अब्दुल कादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) की नियाज़ क़रार पाई।"

[तआरुफ़ सय्यदना ग़ौस-ए-आज़म,ग्यारवीं शरीफ पेज 15-16]

शेख की किसी किताब से यह साबित नहीं बहुत से मनगढ़त किस्से शेख की तरफ मंसूब है। 


ग्यारवीं मनाने के असबाब


कई वजह है जिनकी बुनियाद पर कुछ मुसलमान ग्यारवीं मनाते हैं। शेख अब्दुल जिलानी से जुड़े हुए कुछ वजूहात और मकासिद ये हैं -


1. मोहब्बत

शेख अब्दुल कादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) की बेइंतेहा मोहब्बत में 11वीं मनाई जाती है। 

जबकि अल्लाह ताला का फरमान है,

"कुछ लोग ऐसे हैं जो अल्लाह के सिवा दूसरों को उसके बराबर और मद्दे-मुक़ाबिल ठहराते हैं, और उनके ऐसे गिर्वीदा(मोहब्बत )हैं, जैसी अल्लाह के साथ गिर्वीदगी होनी चाहिये। हालाँकि ईमान रखनेवाले लोगों को सबसे बढ़कर अल्लाह महबूब होता है। काश! जो कुछ अज़ाब को सामने देखकर उन्हें सूझनेवाला है, वो आज ही इन ज़ालिमों को सूझ जाए कि सारी ताक़तें और सारे इख़्तियार अल्लाह ही के क़ब्ज़े में हैं और ये कि अल्लाह सज़ा देने में भी बहुत सख़्त है। [कुरान 2:165]


2. उम्मीद

शेख अब्दुल कादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) से उम्मीदें बांधते हैं कि वह इनकी सारी जरूरतें पूरी करेंगे। ज़रूरतें तो सिर्फ अल्लाह पूरी करता है। सूरह युसूफ में अल्लाह ताला फरमाता है:


تَایۡئَسُوۡا مِنۡ رَّوۡحِ اللّٰہِ ؕ اِنَّہٗ لَا یَایۡئَسُ مِنۡ رَّوۡحِ اللّٰہِ اِلَّا الۡقَوۡمُ الۡکٰفِرُوۡنَ
"अल्लाह की रहमत से मायूस न हो। उसकी रहमत से तो बस काफ़िर ही मायूस हुआ करते हैं।” [कुरान 12:87]

उम्मीदें सिर्फ अल्लाह से होनी चाहिए शेख अब्दुल कादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) का यही अकी़दा था और यही अक़ीदा हर मुस्लमान का होना चाहिए।


3. अल्लाह से सिफ़ारिश

ग्यारवीं जैसी बिदअत पर अमल करने और कराने वालों का यह अकीदा है कि शेख कयामत के दिन सिफारिश करेंगे। अल्लाह ताला फरमाता है,


قُلۡ لِّلّٰہِ الشَّفَاعَۃُ جَمِیۡعًا
कहो, "सिफ़ारिश सारी की सारी अल्लाह के अधिकार में है।" [कुरान 39:44]


4. इसाल ए सवाब

रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया,

जब कोई इंसान मर जाता है तो उसके नेक आमाल बंद कर दिए जाते हैं सिवाय 3 तरह के-

(1) सदका ए जारिया (अल्लाह की राह में लगाया गया माल जो लोगों को फायदा पहुंचा रहा है।
(2) जो इल्म लोगों को सिखाया हो और कोई उससे फायदा उठा रहा हो।
(3) नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करें।

[सही मुस्लिम-4223; तिर्मिजी-1376; दाऊद-2880; नसई-3681]

इस हदीस से यह पता चलता है कि वली अल्लाह ने जो भी अपनी जिंदगी में इस हदीस के मुताबिक किया उसका सवाब उन्हें मिल रहा है, उनकी नेक औलादें उनके लिए दुआ करती हैं, उनकी लिखी हुई किताबों से जो फायदे उठाए जा रहे हैं उसका सवाब भी उन्हें पहुंच रहा है। 


ग्यारवीं मनाना विदअत है


ग्यारवीं मनाना विदअत है। 470 हिजरी तक शेख अब्दुल कादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) की विलादत नहीं हुई थी तो यह दीन का हिस्सा नहीं है और जो अमल कुरान और सुन्नत से साबित नहीं वह अमल रद्द है यानी वह अमल विदअत है।


كُلُّ مُحْدَثَةٍ بِدْعَةٌ وَكُلُّ بِدْعَةٍ ضَلَالَةٌ وَكُلُّ ضَلَالَةٍ فِي النَّارِ
"दीन में हर नया काम बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही जहन्नुम में ले जाने वाली है।"
[सुन्नान अन नसाई-1578 सहीह]


مَنْ أَحْدَثَ فِي أَمْرِنَا هَذَا مَا لَيْسَ مِنْهُ فَهُوَ رَدٌّ
"जिसने हमारे दीं में खुद कोई ऐसी चीज़ निकली जो इसमें नहीं थी तो वो रद्द (मरदूद) है।"
[सही बुखारी-2697; मुस्लिम- 1718]


शेख अब्दुल कादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) फरमाते हैं:

"सुन्नत ए नबवी की पैरवी करो, विद्अत में ना पढ़ो। अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो।"
[फुतूह उल गैब: मका़ला नं. 2 पेज नं. 17]

हर बिदअत गुमराही है चाहे उसे बिदअत ए हसना के नाम से ही क्यों न दे दिया गया हो। बिदअत ए हसना जैसी कोई बात शेख ने अपनी कुतुब में नहीं बनाई है। 

जैसा के हम जानते हैं शेख़ की पैदाइश 470 हिजरी में हुई इससे ज़ाहिर है के दीन से इसका कोई ताल्लुक़ नहीं है। 


शेख अब्दुल कादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) की आखिरी वसीयत


561 हिजरी बग़दाद में 99 साल की उम्र मे शेख ने मारजुल मौत में अपने बेटे अब्दुल वहाब को वसीयत की के, 

"तुम अपने ऊपर अल्लाह के तक्वा व इताअत को लाज़मी पकड़ो, उसके सिवा ना किसी से डरो और ना किसी से उम्मीदवारी करो। और अपनी कुल हाजतों को अल्लाह की तरफ सौंपो और हाजतें उसी से तलब करो। और उसके सिवा किसी पर भरोसा ना करो। और तुम्हारा एतमाद उसी पर हो। तौहीद को लाज़मी पकड़ो, तौहीद को लाज़मी पकड़ो, तौहीद को लाज़मी पकड़ो। तमाम इबादतों का मजमूआ तौहीद है।

[अल फतहे अल रब्बानी पेज नं. 778, तर्जुमा इब्राहिम क़ादरी]
[अल फतहे अल रब्बानी पेज नं. 670, तर्जुमा आशिक इलाही]
[फुतूह उल गैब: मका़ला नं. 79 पेज नं. 153, तर्जुमा फारुख क़ादरी]
[फुतूह उल गैब: मका़ला नं. 79 पेज नं. 152, तर्जुमा राजा रशीद महमूद]


शेख ने अपनी जिंदगी तौहीद और सुन्नत पर अमल करने और तौहीद और सुन्नत को फैलाने में लगाई और आज आवाम उनके नाम पर सबसे ज्यादा शिर्क और विद्अत फैला रही है। शेख ने अपने आखरी वक्त पर भी तौहीद की बात की। अपनी तमाम हाजतों का ज़िक्र सिर्फ अल्लाह से करने के लिए कहा लेकिन आज आवाम शेख को "अल मदद या गौसे आजम दस्तगीर" कहती है जो कि शिर्क है।


یٰعِبَادِ فَاتَّقُوۡنِ
"ऐ मेरे बन्दो! मेरा ख़ौफ़ दिल में रखो।" [कुरान 39:16]


शेख अब्दुल कादिर जिलानी (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) फरमाते हैं:

"अल्लाह के सिवा हर वो चीज़ जिस पर तेरा ऐतमाद है वो वसूक़ हो वो तेरा बुत है तुझको ज़ुबानी तौहीद शिर्क ए क़ल्बी के साथ नफा न देगी।" 

[अल फतहे अल रब्बानी: मजलिस नं. 38, पेज नं. 351]


शेख अब्दुल कादिर जिलानी से मोहब्बत रखने वालों को चाहिए कि उनकी आखिरी वसीयत को कुबूल करें और शिर्क और विद्अत को छोड़ दें और सुन्नत पर अपनी जिंदगी गुजारें। 

अल्लाह ताला हमें अपने वालियों की तालीमात पर अमल करते हुए तौहीद और सुन्नत पर ज़िन्दगी गुजरने वाला बना और शिर्क और बिदअत से बचने वाला बना। इस पोस्ट को लिखने में मुझसे जो भी गलतियां हुई हों उसके लिए मेरी मगफिरत फर्मा और इसे लोगों की हिदायत का जरिया बना।

आमीन 


Islamic Theology


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