हिजाब - क़ुरआन दिलों को बदल देता है
अल्लाह तआला सूरह अहज़ाब में फ़रमाता है -
वही है जो तुमपर रहमत करता है और उसके फ़रिश्ते तुम्हारे लिये रहमत की दुआ करते हैं, ताकि वो तुम्हें अंधेरों से निकालकर रौशनी में ले आए, वो ईमानवालों पर बहुत मेहरबान है।
कुरआन 33:43
मेरे लिए कुरान की आयत और उसका तर्जुमा ही रहनुमाई का सबब बनीं।
मेरा ताल्लुक़ एक छोटे से गांव से है जहां 20 साल पहले जिंदगी बहुत मुश्किल हुआ करती थी,
मेरे बाबा आर्मी में थे इसलिए मेरी प्राथमिक शिक्षा शहर में हुई जब मैं चौथी क्लास में थी तो बाबा की पोस्टिंग सिक्किम में हो गई इसलिए बाबा हमें गांव वापस ले आए दीनी तालीम घर पर ही हुई अम्मी गांव की लड़कियों को कुरआन सिखाया करती थी इस लिय हम ने भी कुरान और नमाज़ घर पर ही सीखा, मेरा गांव इतना पिछड़ा था की मुस्लिम बच्चियों को सिर्फ़ 5वीं जमात तक ही दुनियावी तालीम दी जाती थी और मैं अपने मुआस्रे की पहली लड़की थी जिसने हाई स्कूल, इंटर मीडिएट पास किया।
मेरी सारी दोस्त गैर मुस्लिम ही थीं। एक आर्मी वाले की बेटी होने के नाते मेरे मन मस्तिष्क में सेकुलरिज्म और देश भक्ति कूट कूट कर भरी थी, जाहिर है स्कूल का माहौल भी वैसा ही था।
उस वक्त के हिसाब से 12वी पास करना पोस्ट ग्रेजुएट के बराबर था कम से कम अपने गांव की लडकियों के लिए तो मै रोल मॉडल थी। मगर दुसरी जानिब गांव की औरतें पुराने ख्यालात की थी उन्हें मेरा पढ़ना अच्छा नहीं लगता था,
लोग तरह तरह की बाते करते थे हमारी फैमिली ज्वाइंट थी इसलिए मेरे लिए एजूकेशन का सफ़र आसन नहीं था ताया अब्बू आगे तैयार न थे की मैं पढू 12वी पास करते ही शादी के रिश्ते आने लगे, मेरा कोई भाई नहीं था हम चार बहने थी इसलिए दादी ने मेरा रिश्ता मेरे कज़िन से तय कर दिया। मेरे सामने बड़े मुश्किल हालात थे लोग कहते थे इतना पढ़ाया है घर में शादी नहीं करेंगी अम्मी इस रिश्ते के लिए तैयार न थी। मगर बाबा अपने भाइयों के प्यार में डूबे हुए थे। बाबा ने निकाह की डेट फिक्स कर दी मैं अजीब कैफियत से गुजर रही थी। सज्दे में गिर कर अल्लाह से दुआ करती ऐ अल्लाह मेरे हक जो बेहतर हो वही करना।
जिस इंसान को कभी इस नज़रिए से देखा नहीं था बचपन जिसके साथ बीता था मगर दिल और दिमाग में बतौर ए जीवन साथी गुमान तक न था, और उसी के साथ मेरे मुकद्दर की डोर बांध दी गई। मैने खुद को कैद कर लिया अपनी दोस्त और जान पहचान के लोगों से मिलना छोड़ दिया।
शायद अल्लाह को यही पसंद था । मैंने ख़ामोशी से इस रिश्ते को रजामंदी दे दी शर्म और हया दिमाग में इतनी थी कि बाबा से कुछ नहीं कह पाई बस पढ़ना चाहती थीं इस लिय अम्मी से ये शर्त रखी कि मैं आगे भी पढ़ाई जारी रखूंगी । अम्मी ने बाबा तक मेरी बात पहुंचा दी और बाबा राजी हो गए...
जिदंगी का सफ़र आसान न रहा जिंदगी में इतने उतार चढ़ाव आए कि कोई आज की लड़की ये झेल न पाती। मगर यहां इसका ज़िक्र उचित नहीं है।
हर इंसान अपनी जिन्दगी में एक जंग लड़ रहा होता है, जिंदगी किसी के लिऐ भी आसान नहीं होती
बाज लोग नाजायज़ ख़्वाहिशात में गिरफ्तार हो कर खुद को अंधेरे के गर्त में धकेल देते हैं, उन्हें अपने ज़मीर की आवाज़ सुनाई नहीं देती, जीत उसे हासिल होती है जो अपने ख़्वाहिशात पर गालिब हो कर अपने मकशद को पूरा करने के लिए हक पर डटे रहते हैं , और अपने अल्लाह पर भरोसा रखते हैं।
मैं मायके से बधी डोर थी अपनी बहनों में सबसे बड़ी थी ,भाई नहीं था इसलिए एक बेटे का फर्ज़ निभाना भी था, अम्मी heart patient थीं उनकी देख भाल भी करना था । इस वजह से सुसराल और मायका में balance बना पाना मुश्किल था...
गांव के रिवाज़ के मुताबिक़ हिजाब की शुरुआत निकाह के बाद ही हुई क्यों की गांव का रिवाज़ था की शादी के बाद ही पहना जाता है। लोग दीन से काफ़ी दूर थे।
अल्लाह बचाए
फिर शादी के बाद ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन, जिंदगी यूंही आगे बढ़ती रही वक्त बीतता गया अल्लाह ने एक प्यारा सा औलाद से भी नवाजा। अल्हम्दुलिल्लाह।
इसके बाद आगे की study के लिए बीएड में एडमिशन लिया वहां रूम लेकर रहना सही नहीं था इसलिए हॉस्टल ले लिया। वहा भी दो सौ लडकियों में बस दो ही मुस्लिम्स थी एक मैं और दुसरी लडकी जो सिया थी।
मेरी जो रूम मेट्स थीं सब गैर मुस्लिम, पहले भी मैं गैर मुस्लिम के साथ रह चुकी थी इस लिय ज्यादा परेशानी नहीं हुई होस्टल में रहते हुए भी मैंने नमाज़ नहीं छोड़ा। अल्लाह की शुक्र गुजार हू कि इस दौरान shirk से बचाए रखा क्यों की वो रोज़ सुबह साम एक कोने में मन्दिर बना कर पूजा पाठ किया करती थीं। मैं उस वक्त खुद को दूसरे कामों में मसरूफ़ कर लेती,
कॉलेज के रूल्स के मुताबिक़ यूनिफार्म में साड़ी कपल्सरी था इसलिए माहौल के हिसाब से हिजाब सूटकेस में बंद हो गया, और एक सीधी साधी लड़की मॉर्डन स्टाइल में ढल गई सेक्युलरिज्म का कीड़ा जो सो चुका था फिर से सुगबुगाने लगा अब रोज़ की रूटीन बन गई साड़ी, बांधना हेयर स्टाइल में जुड़ा करना, और कॉलेज में सबके सामने बेपर्गी से क्लास, कालेज, फंक्शन और सेमिनार में पार्टिसिपेट करना धीरे इन सब चीजों की आदि हो गई, एक साल कब बीत गए पता ही नहीं चला B .ed पूरा हुआ और वापस आकर मैंने जिस स्कूल में अपनी पढ़ाई की थी उसी में टीचिंग शुरू किया। इस दौरान B. Ed Tet 2011qualified भी किया मगर अल्लाह की मर्ज़ी सिलेक्शन नहीं हुआ। नौकरी के लिये अप्लाई करती रही...
अपनी तमाम जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखी M.ed के लिय entrance exams दी मेरिट में नाम आ भी आ गया मगर फिर अपने बच्चे से दूर जाकर रहना सही नहीं लगा सो शिक्षा शास्त्र में फिर M.A किया , फिर हिस्ट्री में M. A अब इन बेकार की डीग्रीयो से मन भर गया अब तो जॉब करने का भी मन नहीं करता जब से कुरान का तर्जुमा पढ़ना शुरू किया बार बार सोचती हूं...
या अल्लाह ये पहले क्यूं नहीं हुआ
सूरह अहज़ाब की ये आयत मेरे दिल वा दिमाग़ में रस घोलती हैं:
ऐ नबी! अपनी बीवियों और बेटियों और ईमानवालों की औरतों से कह दो कि अपने ऊपर अपनी चादरों के पल्लू लटका लिया करें। ये ज़्यादा मुनासिब तरीक़ा है ताकि वो पहचान ली जाएँ और न सताई जाएँ। अल्लाह माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।
कुरआन 33:59
इससे पहले बुर्खा बस ट्रेवलिंग क्लोथ्स ही रहा कोई पाबंदी नहीं ,मार्केट और स्कूल जाते वक्त पहन लेती, और कहीं बाहर जाना होता तो बस, इसके अलावा कोई पाबंदी नहीं...
मगर अल्लाह का शुक्र है जब से सूरह अहज़ाब की ये आयते को सुनी अल्लाह ने हिदायत दे दी।
आज दीन पर चलना कितना मुश्किल है ना...
यह हकीकत है जब आप दीन के रास्ते पर चलते हैं तो समाज से कटकर रह जाते हैं अलग-थलग पड़ जाते हैं ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ 2 साल हो गए मैं किसी भी शादी समारोह, मैरिज सेरिमनी या बर्थ दे पार्टी मैं नहीं जाती...
इस वजह से मेरी कुछ गर्ल स्टूडेंट्स नाराज रहती हैं.....
और रिलेटिव तो और भी ज्यादा. खफा होते हैं.…
लोगों की तो छोड़ें मेरी बहने कहती हैं, "तुम किसी में नहीं जाती तुम्हारे बेटे में कौन आएगा"
मैं कहती हूं मैं अपने बेटे का निकाह सुन्नत तरीके से करूंगी इंशा अल्लाह।
बस सारी बातों को इग्नोर करती हूं अल्लाह ने हिदायत दी है सोचती हूं अल्लाह को राजी करने के लिए कोई कुछ भी कहे अब पीछे नहीं हटना है ऐसा नहीं हुआ है कि बीते दिनों में मुझसे गुनाह नहीं हुए है, बस अपने रब्बे कायनात से माफी की तलब गार हूं।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की प्यार भरी तसल्ली:
जब आपका दिल दुनियावी दुशवारियाँ और आज़माइशो से परेशान और बेचैन हो जाये, जब रूह ज़ख्मी हो तो इस आयत पर ग़ौर व फ़िक्र करें,! दिल को इत्मिनान और तसल्ली हासिल हो जायेगी।
وَٱصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ فَإِنَّكَ بِأَعْيُنِنَا
और तुम अपने परवरदिगार के फ़ैसलों पर सब्र करो क्योंकि तुम हमारी निगाहों मे हो।
क़ुरआन 52 : 48
और वाकई तसल्ली हासिल होती है
अलहम्दुलिल्लाह!
10 साल के टीचिंग पीरियड में हर नेशनल फेस्टिवल पर गर्ल स्टूडेंट के रिक्वेस्ट पर साड़ी पहनकर जाती थी इस साल भी 15 अगस्त पर साड़ी पहनकर आने के लिए मेरे कॉलेज की स्टूडेंट्स मचल गई बार-बार रिक्वेस्ट कर रही थी मैंने बचने के लिए मैंने कह दिया मेरे पास कोई साड़ी नहीं है।
कुछ बच्चियां अपने घर से साड़ी ले आईं।
अब कोई बहाना नहीं!
दरअसल साड़ी पहनना तो इतना बुरा भी नहीं है अगर नुमाइश ना की जाए मगर वहां तो स्कूल ग्राउंड में नुमाइश ही करनी पड़ती सबके सामने साड़ी पहन कर जाना और मेरा जमीर गवाही नहीं दे रहा था वहां मौजूद लोगों के हाथों में मोबाइल होता वीडियो बनाते पिक्चर क्लिक करते और यह सब मुझे बहुत बुरा लगता है अल्लाह से दुआ कर रही थी या अल्लाह कुछ तो ऐसा हो जिसे साड़ी ना पहनना पड़े बारिश ही हो जाए ....फिर अल्लाह ने मेरी दुआ कुबूल करली और मेरे पैर में मोच आ गई...
सुबह हुई तो हसबैंड अपने स्कूल चले गए
फिर एक सादा सा ड्रेस पहन कर पड़ोस के भांजे से बोली मुझे स्कूल छोड़ दो... उसने अपनी बाइक से मुझे मेरे स्कूल छोड़ दिया।
इन सब में मेरी बच्चियों का दिल दुखा!
मगर पैर में आई मोच को जान कर सब मान गई। दुआ करती हूं मेरा अल्लाह मुझ से राजी हो बाकी मैं सह लूंगी। क्यू कि दुनियां की जिन्दगी तो थोड़े दिनों तक है। आखिर लौट कर अल्लाह के पास ही जाना है। और अपने अमाल का हिसाब भी देना है। अल्लाह की मेहरबानी है कि जिंदगी धीरे धीरे आसन होती चली गई जिस किसी का भी रवैया पत्थर का था वो भी नर्मी से पेश आने लगे जिंदगी अब पुरसुकून है ये अल्लाह पर भरोसा का ही नतीज़ा है।
कौन कहता है की पत्थर पिघलता नहीं है,
उस रब ए कायनात से जरा लौ लगा कर तो देखो।।
कौन कहता है कि बिगड़ी सवरती नहीं है,
जरा उस खालिक ए कायनात के आगे सर झुका कर तो देखो।।
-आपकी दीनी बहन
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जज़कल्लाह खैरुन कसीरा
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