सलात उल् कुसूफ
सूर्य ग्रहण के मौके पर सुन्नत नमाज़ पढ़ी जाती है जिसे सलात उल् कुसूफ कहते हैं। ये मुसलमानों के लिए अल्लाह तआला की ताकत की याददीहानि है।
वही है जिसने सूरज को उजियाला बनाया और चाँद को चमक दी और चाँद के घटने-बढ़ने की मंज़िलें ठीक-ठीक मुक़र्रर कर दीं, ताकि तुम उससे वर्षों और तारीख़ों के हिसाब मालूम करो। अल्लाह ने ये सब कुछ खेल के तौर पर नहीं बल्कि मक़सद के साथ ही बनाया है। वो अपनी निशानियों को खोल-खोलकर पेश कर रहा है उन लोगों के लिये जो इल्म रखते हैं।
कुर’आन 10:5
अल्लाह की निशानियों में से हैं ये रात और दिन और सूरज और चाँद। सूरज और चाँद को सज्दा न करो, बल्कि उस ख़ुदा को सजदा करो जिसने उन्हें पैदा किया है, अगर सचमुच तुम उसी की इबादत करनेवाले हो।
कुरआन 41:37
यकीनन अल्लाह की तरफ़ से ये एक याददीहानी है और निशानी है, ना सूरज ना चांद ना कोई और रब है, बल्कि हमारा रब वो है जिसने इन्हें बनाया, और इनको चला रहा, इनको मिटाने की कुव्वत रखने वाला। और सजदा सिर्फ और सिर्फ अल्लाह ही को करना है।
आप ﷺ की अहद मुबारक (lifetime) में सूरज को ग्रहण लगा, तो आप ﷺने दो रकअत नमाज़ पढ़ी थी।
(बुख़ारी 1062)
अल्लाह के नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी में सूर्यग्रहण लगने के मौके पर, आप ﷺ मस्जिद की तरफ जल्दी में चादर घसीटते हुए रवाना हुए, और 2 रकअत नमाज पढ़ाई तब तक सूरज साफ़ हो गया, उन्होंने फरमाया सूरज और चांद पर ग्रहण किसी की मौत और हलाकत से नहीं लगता, लेकिन जब तुम ग्रहण देखो तो नमाज और दुआ करते रहो, जब तक ग्रहण खुल न जाए” [बुखारी 1040]
ग्रहण अल्लाह की निशानियों में से है जिससे अल्लाह लोगों को सज़ा की चेतावनी देता है। आप ﷺ ने ग्रहण के वक़्त अल्लाह के ग़ज़ब से बचने के लिए नमाज पढ़ने की ताकीद की, अल्लाह से तौबा करने और माफ़ी मांगने, और रहम की दुआ करने की, सदक़ा और गुलाम आज़ाद करना और ऐसी नेकिया जो आने वाले अज़ाब को टाल दें। ग्रहण लोगों के लिए निशानियों में से है, के लोग अल्लाह को याद करें और लौट कर अल्लाह की तरफ़ आ जाए।
जाहिलियत के ज़माने में बहुत से अंधविश्वास लोगों में फैले हुए थे ग्रहण के बारे में, लोगों का मानना था के ग्रहण ख़ास लोगों की ज़िन्दगी और मौत पर होता है। कुछ लोग ये मानते थे के हज़रत इब्राहिम (नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बेटे) की वफात की वजह से सूर्य ग्रहण हुआ था, जो उनकी वफात के बाद हुआ।
आप नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन सारे अंध विश्वास को खत्म किया और लोगों को अंधविश्वास से निकाला। आज भी हमारे देश में अंध विश्वास फैले हुए हैं – जैसे अशुभ होना, कोई शुभ काम ना करना, गर्भवती का बाहर ना निकालना, खाना ना पकाने, चाकू से कुछ न काटना वगैराह-वगैराह ये सब बेबुनियाद बातें हैं इस्लाम से इनका कोई ताल्लुक नहीं।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसे किसी भी अंध विश्वास से इंकार किया और साफ बताया के ये अल्लाह की तरफ से है। बाकी शैतानी बहकावे हैं जो इंसान को गुमराह करते हैं और शिर्क की तरफ धकेल देते हैं। जिस तरह इस दुनिया को अल्लाह ने चलायमान रखा है, ये भी अल्लाह की कुदरत का हिस्सा है। और अल्लाह की नाराजगी को टालने के लिए अल्लाह को याद करना सबसे बेह्तरीन है। विज्ञान से साबित है के सूर्य ग्रहण से सेहत पर बुरे असर होते हैं-
- थकान और सुस्ती
- आँखों पर दुष्प्रभाव
- पाचनतंत्र पर दुष्प्रभाव
- मानसिक प्रभाव
चाँद ग्रहण (सलात उल खुसुफ़) की नमाज
सूर्य और चंद्र ग्रहण
सूर्य और चंद्र ग्रहण को एक खगोलीय घटना है। सूर्य ग्रहण तब लगता है जब चांद सूरज को पूरी तरह से ढक लेता है ऐसी स्थिति में सूर्य की किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाती है। इस घटना को ही सूर्य ग्रहण या फिर पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है। वहीं जब चांद सूरज के कुछ हिस्सों को ही ढक पाता है तो इसे आंशिक सूर्य ग्रहण कहते हैं। इस स्थिति में सूरज की कुछ किरणें धरती तक पहुंचती तो नहीं। और जब चांद सूरज के बीच वाले भाग को ढकता है तो सूरज एक रिंग की तरह दिखाई देता है। इसे वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
पृथ्वी के चांद से सूरज 400 गुना बड़ा है। और पृथ्वी से सूर्य के बीच की दूरी, पृथ्वी से चांद के बीच की दूरी से 400 गुना अधिक है। जिस कारण पृथ्वी से चांद और सूरज बराबर नजर आता है। सौर मंडल में 8 ग्रह हैं और सभी के अपने अपने चंद्रमा है, जिनके आकार अलग अलग हैं। पृथ्वी के सिवा दूसरे किसी ग्रह और उसके चंद्रमा का ऐसा तालमेल नहीं। यकीनन ये लोगों के लिए निशानियों में से है।
सलात उल् कुसूफ का तरीका
नमाज़ का वक़्त – ग्रह शुरू होने से ख़तम होने तक
रकत: दो तवील रकत, दो या दो से ज़्यादह रुकू के साथ
1. पहली रकत:- क़ियाम
- तक़बीर (अल्लाहु अकबर)
- दुआ ए इस्तिफताह (सना)
- सूरह फातिहा
- कोई लंबी सूरह
- लंबा रुकू
- दोबारा खड़े होकर सूरह फातिहा और लंबी सुरह (पहली सुरह से छोटी)
- दोबारा लंबा रुकू (पहले रुकू से छोटा)
- समी अल्लाह हू लिमन हमीदह और रब्बना व लकल हम्द
- 2 लंबे सजदे
2. दूसरी रकअत: पहली रकत का तरीका दोहराएं
[नमाज़ का तरीका बुखारी 1046 की हदीस में है। ]
नोट:
- ग्रहण खत्म होने के बाद ये नमाज अदा नहीं की जा सकती ,
- नमाज़ 2 रकअत अदा की जाती है और दोनों रकअत में कई रुकू किये जा सकते हैं ,
- चंद्र ग्रहण में सलात उल ख़ुसूफ़ का तरीका भी यही है।
ये जानकारी ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुचाएं क्योकि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया- "पहुँचा दो मेरी तरफ से अगरचे एक आयत ही क्यों न हो।" [सहीह बुख़ारी-3461]
- फ़िज़ा खान
2 टिप्पणियाँ
विरासत के बारे में पोस्ट डालें.
जवाब देंहटाएंIn Sha ALLAH
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।