ईश्वर एक है या दो, तीन, या करोड़ों? जैसे एक कार में दो स्टेयरिंग लगाकर उसे दो लोगों को चलाने दिया जाए तो आप समझ सकते हैं कि उस कार का क्या हाल होगा। क्या आपने कभी सुना है कि एक स्कूल के दो हेडमास्टर हो? एक विभाग के दो डायरेक्टर हो? एक फ़ौज के दो कमांडर हो? और अगर कहीं ऐसा हो तो क्या आप समझते हैं कि एक दिन के लिए भी प्रबन्ध ठीक हो सकता है?
- क्या इस पूरी कायनात को एक ख़ुदा ने बनाया है?
- या बहुत से ख़ुदाओं ने मिलकर इस कायनात को बनाया है?
- क्या इस कायनात को चलाने वाला एक ख़ुदा है?
- या बहुत से ख़ुदा मिलकर इस कायनात को चला रहे हैं?
चलिए इन सवालों का जवाब हम ख़ुद इस कायनात से पता कर लेते हैं।अब आप ये सोच रहे होंगे कि आख़िर ये कायनात हमें इन सवालों के जवाब कैसे देगी? तो इसका जवाब ये है कि हम इस कायनात पर और इसमें मौजूद तमाम चीजों पर गौर ओ फ़िक्र (चिंतन-मनन) करेंगे और देखेंगे कि,
- क्या इस कायनात और इसमें मौजूद तमाम चीजों की व्यवस्था और मैनेजमेंट को एक ख़ुदा की ज़रुरत है या बहुत से ख़ुदाओं की?
- अगर बहुत से ख़ुदा इस कायनात को बनाने वाले और चलाने वाले होते तो क्या ये कायनात एक दिन भी चल पाती?
- या इस कायनात को चलाने के लिए सिर्फ एक ख़ुदा की ज़रुरत है?
Monotheism (एकेश्वरवाद) vs Polytheism (बहुदेववाद)
आइए अब हम चलते हैं एक ख़ुदा की तलाश में और देखते हैं कि इस कायनात का एक ख़ुदा हो सकता है? या बहुत से ख़ुदा?
आप में से हर व्यक्ति की अक्ल इस बात की गवाही देगी कि दुनिया में कोई भी काम छोटा हो या बड़ा, कभी सुव्यवस्थित और नियमित रूप से और बाकायदगी के साथ नहीं चल सकता, जब तक कि कोई एक व्यक्ति उसका ज़िम्मेदार न हो। जैसे एक कार में दो स्टेयरिंग लगाकर उसे दो लोगों को चलाने दिया जाए तो आप समझ सकते हैं कि उस कार का क्या हाल होगा।
एक व्यक्ति उस कार को एक दिशा में चलाना चाहेगा तो दूसरा अलग दिशा में चलाना चाहेगा,
एक व्यक्ति कार को स्पीड से चलाना चाहेगा तो दूसरा व्यक्ति स्पीड से नहीं चलाना चाहेगा,
एक व्यक्ति कार को रोकना चाहेगा तो दूसरा व्यक्ति उसे रोकने नहीं देगा,
अब आप बताइए कि ऐसी कार जिसका कंट्रोल दो व्यक्तियों को दे दिया जाए तो क्या उस कार का सुव्यवस्थित रूप से चल पाना मुमकिन है?
ऐसे ही अगर एक हुकूमत के दो बादशाह हो तब भी वह हुकूमत चल नहीं पाएगी क्यूंकि एक बादशाह चाहेगा मेरा हुक्म चले तो दूसरा बादशाह अपना हुक्म चलाना चाहेगा, एक बादशाह हुकूमत के लिए एक नीति (Policy) बनायेगा। तो दूसरा बादशाह उस नीति का विरोध करेगा, अब आप बताइए कि अगर एक हुकूमत को बराबर इख्तियार देकर दो बादशाहों को चलाने के लिया दिया जाए तो क्या वह हुकूमत एक दिन भी चल पायेगी?
एक विभाग के दो डायरेक्टर हो? एक फ़ौज के दो कमांडर हो?
और अगर कहीं ऐसा हो तो क्या आप समझते हैं कि एक दिन के लिए भी प्रबन्ध ठीक हो सकता है?
आप अपने जीवन के छोटे- छोटे मामलों में भी तजरबा करते हैं कि जहां एक काम को एक से अधिक लोगों की ज़िम्मेदारी पर छोड़ा जाता है, वहां अत्यन्त अव्यवस्था और बदनज़मी पैदा हो जाती है। लड़ाई झगड़े होते हैं और अन्त में साझे की हंडिया एक दिन चौराहे में फूटकर रहती है। इंतेज़ाम नियमित्ता, एकरूपता और सलीका दुनिया में जहां भी आप देखते हैं, वहां निश्चित रूप से किसी एक ताक़त का हाथ होता है कोई एक ही वुजूद इख्तियार और प्रभुत्व वाला होता है और किसी एक ही के हाथों में सारे कामों की बागडोर होती है उसके बिना इंतेज़ाम (प्रबंध) की कल्पना आप नहीं कर सकते।
यह ऐसी सीधी बात है कि कोई व्यक्ति जो थोड़ी अक्ल भी रखता हो इसे मानने में संकोच या हिचकिचाहट ना करेगा इस बात को ध्यान में रख कर ज़रा अपने आस पास की दुनिया पर नज़र डालिए। ये विशाल कायनात जो आपके सामने फैली हुई है उसमें 250 अरब से ज़्यादा गैलेक्सी मौजूद है और हर गैलेक्सी के अंदर 300 अरब से ज़्यादा सूरज मौजूद है और हमारा सूरज इस गैलेक्सी का सब से छोटा सितारा है जो कि हमारी प्रथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है। और इस सूरज के अंदर से हर सेकंड में 50 करोड़ परमाणु बम (Atomic Bomb) के बराबर एनर्जी निकल रही है, हमारी गैलेक्सी के पास जो सब से क़रीब गैलेक्सी दरयाफ़्त हुई है वो हमारी प्रथ्वी से 20 लाख प्रकाश वर्ष (Light Year) की दूरी पर है। ये करोड़ों - अरबों सितारे जो हमारे संसार में फैले हुए हैं लगातार गति कर रहे हैं। और अपनी गति के दौरान कभी ऐसा नहीं होता कि एक सितारा दूसरे सितारे से टकरा जाए, देखिए इन सब के घूमने में कैसी सख़्त और अटल नियामित्ता है।
कभी दिन अपने समय से पहले निकला?
कभी चांद प्रथ्वी से टकराया?
कभी सूरज अपना रास्ता छोड़कर हटा?
कभी किसी स्टार को आपने एक बाल बराबर भी अपनी गर्दिश की राह से हटते हुए देखा या सुना?
ये करोड़ों गृह (Planet) जिनमें से कुछ हमारी प्रथ्वी से लाख गुना बड़े हैं और कुछ सूरज से भी हजारों गुना बड़े हैं। ये सब घड़ी के पुर्जो की तरह एक ज़बरदस्त नियम में कसे हुए हैं और एक बंधे हुए हिसाब के अनुसार अपनी अपनी निश्चित गति के साथ अपने अपने निश्चित मार्ग पर चल रहे हैं। न किसी की रफ़्तार में ज़र्रा बराबर भी फर्क पड़ता है, न कोई अपने रास्ते से बाल बराबर भी टल सकता हैं। उनके बीच जो संबंध और निसबतें क़ायम कर दी गई हैं, अगर उनमें एक पल के लिए ज़रा सा भी अंतर आ जाए तो कायनात का समस्त प्रबन्ध ही छिन्न - भिन्न हो जाए। जिस प्रकार रेले टकराती है उसी प्रकार ग्रह एक दूसरे से टकरा जाएं। और इसी के साथ साथ हमारा पूरा यूनिवर्स लगातार फ़ैल भी रहा हैं और हमारे यूनिवर्स के फैलने की रफ़्तार को ज़र्रा बराबर भी कम कर दिया जाए या बढ़ा दिया जाए तो हमारे यूनिवर्स की सब चीज़ें आपस में टकरा जायेगी।
यह तो आकाश की बातें हैं अब ज़रा अपनी प्रथ्वी और ख़ुद अपने ऊपर नज़र डालकर देखिए, हमारी प्रथ्वी पर जीवन का यह सारा खेल जो आप देख रहे हैं यह सब कुछ बंधे हुए नियमों और जाबतों की बदौलत क़ायम है, जैसे हमारी प्रथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) के कारण ही सब चीज़ें इस प्रथ्वी पर रुकी हुई है अगर एक सेकेंड के लिए भी प्रथ्वी से गुरुत्वाकर्षण बल हटा लिया जाए तो प्रथ्वी पर मौजूद तमाम चीज़े स्पेस में उड़ने लग जाएं इस प्रथ्वी पर जितनी भी चीज़े काम कर रही है, सब की सब एक नियम में बंधी हुई हैं और इस नियम में कभी अंतर नहीं आता। हवा अपने नियम का पालन कर रही है, पानी अपने नियम में बंधा हुआ है, रोशनी के लिए जो नियम है उस पर वह चल रही है गर्मी और सर्दी के लिए जो नियम है उसकी वह पाबंद हैं। मिट्टी ,पत्थर, धातुएं, बिजली, भाप, पेड़ ,जानवर, किसी में यह मजाल नहीं कि अपनी हद से बढ़ जाए या अपनी फितरतों (स्वभाव) और गुणों को बदल दे या उस काम को छोड़ दें, जो उसे सौंपा गया है।
फ़िर अपनी - अपनी हद के अन्दर अपने - अपने नियम का पालन करने के साथ इस प्रथ्वी की सारी चीज़े एक दूसरे के साथ मिलकर काम कर रही हैं और दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है सब इसलिए हो रहा है कि ये सारी चीज़े और सारी ताकतें मिलकर काम कर रही है आप एक मामूली से बीज की ही मिसाल ले लीजिए जिसको आप धरती में बोते हैं वह कभी विकसित हो कर पेड़ बन ही नहीं सकता, जब तक कि धरती और आकाश की सारी शक्तियां मिलकर उसको पालने पोसने में हिस्सा न लें। धरती अपने खाज़ानो से उसको भोजन देती है, सूरज उसकी ज़रुरत के मुताबिक़ उसे गर्मी पहुंचाता है, पानी से वह जो कुछ मांगता है वह पानी दे देता है, हवा से वह जो कुछ चाहता है वह दे देती है, रातें उसके लिए ठंडक और ओस का इंतेज़ाम करती है, दिन उसे गर्मी पहुंचा कर पुख्तगी की ओर ले जाता है इस प्रकार महीनों और सालों तक लगातार एक नियम और कायदे के साथ ये सब मिल जुलकर उसे पालते - पोसते हैं। तब जाकर कहीं पेड़ बनता है और उसमें फल आते हैं। आपकी ये सारी फसलें जिनके बलबूते पर आप जी रहे हैं इन्हीं बेशुमार तरह - तरह की शक्तियों के मिलजुलकर काम करने ही की वजह से तैयार होती है। बल्कि आप ख़ुद ज़िन्दा इसी वजह से है कि धरती और आकाश की तमाम शक्तियां मिलकर आपके पालन-पोषण में लगी हुई है।
अगर सिर्फ़ एक हवा ही इस काम में अपना सहयोग देना छोड़ दें तो आप खत्म हो जाएंगे।
अगर सूरज अपना काम न करे तो आपकी प्रथ्वी ही खत्म हो जाएं।
यदि पानी, हवा और गर्मी के साथ सहयोग करने से इंकार कर दे तो आप पर बारिश की एक बूंद न बरस सके।
यदि मिट्टी पानी के साथ सहयोग करना छोड़ दे तो आपके बाग़ सूख जाएं। आपकी खेती कभी न पके, और आपके मकान कभी न बन सकें।
यदि लोहा आग के साथ सम्बंध रखने से इंकार कर दे तो आप रेलें और मोटरें तो दूर रही, एक छुरी और एक सूई तक न बना सकें।
यह जो कुछ मैंने आपसे बयान किया है, क्या इसमें कोई बात ग़लत या सच्चाई के ख़िलाफ़ है? शायद आप में से कोई भी इसे हरगिज़ ग़लत न कहेगा, अच्छा यदि यह सच है तो मुझे बताईए कि यह ज़बरदस्त इंतेज़ाम, यह आश्चर्यजनक नियमितता, यह उच्चकोटी की एकरूपता, यह आकाश और धरती की असीम एवम अनगिनत चीज़ों और शक्तियों में पूर्ण सामंजस्य तालमेल का आख़िर कारण क्या है?
इसका कारण इसके सिवा कुछ नहीं हो सकता है कि इस पूरी कायनात का चलाने वाला सिर्फ़ एक ही ख़ुदा हो सकता है अगर दस - बीस नहीं दो ख़ुदा भी इस कायनात के मालिक होते तो यह व्यवस्था इस नियमित रूप से कभी न चल सकती, इसी बात को अल्लाह ने अपने आख़िरी पैग़ाम क़ुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है कि:-
अगर आसमान और ज़मीन में एक अल्लाह के सिवा दूसरे ख़ुदा भी होते तो (ज़मीन और आसमानों) दोनों का निज़ाम बिगड़ जाता।
क़ुरआन 21:22
अल्लाह एक है
अल्लाह तआला का कुरआन में दलील देने का यह तरीका बहुत सीधा - सादा भी है और बहुत गहरा भी। सादा सी बात जिसको एक देहाती, एक मोटी समझ का आदमी भी आसानी से समझ सकता है, यह है कि एक मामूली घर का निज़ाम (व्यवस्था) भी चार दिन सही - सलामत नहीं चल सकता। अगर उस घर के दो मुखिया (Head) हो। और गहरी बात यह है कि कायनात का पूरा निज़ाम, ज़मीन की तहों से लेकर दूर - दूर के ग्रहों तक, एक हमागीर (विश्वव्यापी) क़ानून पर चल रहा है यह कायनात एक पल के लिए भी क़ायम नहीं रह सकती और न ही चल सकती है अगर इसकी अनगिनत अलग-अलग ताकतों और कायनात की बेहद और बेहिसाब चीज़ों के बीच सही तनासुब (अनुपात) और तवाजुन (संतुलन) और तालमेल और सहयोग न हो। और यह सब कुछ इसके बिना मुमकिन नहीं है कि कोई एक ज़बरदस्त ताक़त रखने वाली ज़ात मौजूद है जो इन अनगिनत चीजों को पूरे ताल - मेल के साथ चला रही है। और इसके साथ-साथ ही अनगिनत चीज़ों को एक-दूसरे का सहयोग करते रहने पर मजबूर भी कर रहा है।
अब यह किस तरह समझा जा सकता है कि बहुत से ख़ुदाओं की हुकूमत में कायनात का क़ानून इस बाकायदगी के साथ चल सके? नज़्म (अनुशासन) का पाया जाना ख़ुद ही यह लाज़िम करता है कि नज़्म को चलाने वाला एक अकेला है यह कायनात अरबों सालों से एक ही क़ानून पर चल रही है कभी ऐसा न हुआ कि इस कायनात के क़ानून में कोई तब्दीली आयी हो। ये कायनात ख़ुद इस बात की गवाही दे रही है कि इसको चलाने वाला सिर्फ़ एक ख़ुदा है दस-बीस नहीं, सिर्फ़ दो ही ख़ुदा इसको चलाने वाले होते तो यह कायनात कभी नहीं चल सकती थी। एक मामूली से स्कूल का प्रबंध तो दो हेड मास्टरों की हेड मास्टरी सहन नहीं कर सकता, एक देश तो दो हाकिमों को बर्दाश्त नहीं कर सकता, फ़िर भला इतनी बड़ी ज़मीन और आसमानों की सल्तनत दो ख़ुदाओं की खुदाई में कैसे चल सकती थी?
अगर इस कायनात को बनाने वाले और चलाने वाले एक से ज्यादा ख़ुदा होते तो ज़मीन और आसमानों का निज़ाम बिगड़ जाता क्योंकि इस कायनात में हर ख़ुदा अपनी मर्ज़ी पूरी करने की कोशिश करता और दूसरे ख़ुदा से लड़ बैठता जैसा कि अल्लाह ने अपने आख़िरी पैग़ाम में कहा है कि :-
अल्लाह ने किसी को अपनी औलाद नहीं बनाया है, और कोई दूसरा ख़ुदा उसके साथ नहीं है। अगर ऐसा होता तो हर ख़ुदा अपनी पैदा की हुई चीज़ों को लेकर अलग हो जाता, और फ़िर वो एक दूसरे पर चढ़ दौड़ते।
क़ुरआन 23:91
आख़िर ये किस तरह मुमकिन था कि कायनात की अलग-अलग ताकतों और अलग-अलग हिस्सों के बनाने वाले और मालिक अलग-अलग ख़ुदा होते और फ़िर उनके बीच ऐसा भरपूर सहयोग होता जैसा कि हम इस कायनात के पूरे निज़ाम (व्यवस्था) की अनगिनत ताकतों और बेहद और बेहिसाब चीज़ों में, और अनगिनत तारों और सय्यारों (ग्रहों) में पा रहे हैं। करोड़ों-अरबों सालों से यह कायनात यूंही क़ायम चली आ रही है, लाखों साल से इस धरती पर पेड़-पौधे उग रहे हैं। जीव-जन्तु पैदा हो रहे हैं। और न जाने इस धरती पर कब से इंसान जी रहा है। कभी ऐसा न हुआ कि चांद ज़मीन पर गिर जाता या ज़मीन सूरज से टकरा जाती। कभी रात और दिन के हिसाब में अंतर न आया कभी हवा की जल से लड़ाई न हुई, कभी पानी ने मिट्टी का साथ देने से मना नहीं किया, कभी गर्मी ने आग से नाता न तोड़ा इस कायनात में निज़ाम की बकायदगी और निज़ाम के हिस्से में तालमेल इस बात की दलील है कि इस कायनात पर हुकूमत करने वाला एक ही ख़ुदा है उसी के हाथ में कायनात के सब इकतिदार है, अगर कायनात के इकतिदार और ताक़त कई ख़ुदाओं के बीच बटी हुई होती तो इन इकतिदार और ताक़त रखने वाले ख़ुदाओं में इख्तिलाफ का सामने आना यक़ीनी तौर पर ज़रूरी था। और ये इख्तिलाफ़ उनके बीच जंग और टकराव तक पहुंचे बिना न रह सकता था। फ़िर हर ख़ुदा अपने हिस्से की पैदा की हुई चीजों को लेकर अलग हो जाता, और फ़िर वह एक दूसरे पर चढ़ दौड़ते। यही बात कुरआन में कुछ इस तरह बयान हुई है कि:-
अगर अल्लाह के साथ दूसरे ख़ुदा भी होते, जैसा कि ये लोग कहते हैं, तो अर्श (सिंहासन) के मालिक के मक़ाम पर पहुंचने की ज़रूर कोशिश करते।
क़ुरआन 17:42
अगर कायनात में एक अल्लाह के अलावा दूसरे ख़ुदा भी होते तो सब आपस में लड़ जाते और पूरी कायनात की बागडोर अपने हाथ में लेने की कोशिश करते यानि अर्श (सिंहासन) के मालिक बनने की कोशिश करते। इसलिए कि कुछ हस्तियों का खुदाई में शरीक (Partner) होना सिर्फ़ दो ही सूरतों में हो सकता है। या तो वे सब अपनी-अपनी जगह मुस्तकिल ख़ुदा हो या उनमें से एक असल ख़ुदा हो और बाक़ी उसके बन्दे हो जिन्हें उसने कुछ खुदाई अधिकार दे रखे हो।
पहली सूरत में ये किसी तरह मुमकिन न था कि ये सब आज़ाद और पूरा अधिकार रखने वाले ख़ुदा हमेशा हर मामले में एक-दूसरे के इरादे में तालमेल करके इस अथाह कायनात के इंतिजाम को इतने मुकम्मल तालमेल, यक्सानियत (समानता), और अनुपात और संतुलन के साथ चला सकते ज़रूरी था कि उन ख़ुदाओं के मंसूबों और इरादों में क़दम - क़दम पर टकराव होता और हर एक ख़ुदा अपनी खुदाई दूसरे ख़ुदाओं की मदद के बिना चलती न देख कर यह कोशिश करता की वह अकेला सारी कायनात का मालिक बन जाए। और इस वजह से उन ख़ुदाओं में आपस में ही जंग हो जाती।
दूसरी सूरत कि उनमें से एक असल ख़ुदा हो और बाक़ी उसके बन्दे हो जिन्हें उसने कुछ खुदाई अधिकार दे रखे हो। इस सूरत में भी कायनात का बकायदागी के साथ चल पाना मुमकिन नहीं हैं क्यूंकि बन्दे का हौसला खुदाई अधिकार तो दूर, खुदाई के ज़रा से इमकान को भी सहन नहीं कर सकता। अगर कहीं किसी जानदार को ज़रा-सी खुदाई भी दे दी जाती तो वह फट पड़ता, कुछ पलों के लिए भी बंदा बनकर रहने पर राज़ी न होता और फौरन ही पूरी कायनात का ख़ुदा बन जाने की फ़िक्र शुरू कर देता। जैसे कि अल्लाह ने इस दुनिया में इंसान की आजमाइश के लिए इंसान को कुछ अधिकार दे रखे हैं। ताकि अल्लाह इंसान को आजमाएं कि ये दुनिया में मेरे हुक्म को मानेगा या मुझसे बगावत करके इस दुनिया मे अपना हुक्म चलाएगा आप दुनिया में ख़ुद ही देख सकते हैं कि इंसान दुनिया में ख़ुदा से बगावत कर चुका है। दुनिया में अपना हुक्म चला रहा है और बहुत से अक्ल के अंधे इंसान तो ख़ुदा का ही इंकार कर रहे हैं।
जिस कायनात में गेंहू का एक दाना और घास का एक तिनका भी उस वक्त तक पैदा न होता हो, जब तक कि ज़मीन और आसमानों की सारी कुव्वते (ताकतें) मिल कर उसके लिए काम न करें, उसके बारे में सिर्फ़ एक इंतिहा दर्जे का जाहिल और कम अक्ल आदमी ही यह सोच सकता है कि उसका इंतेज़ाम एक से ज़्यादा ख़ुदा या पूरा या आधा अधिकार रखने वाले ख़ुदा चला रहे होंगे। वरना जिसने कुछ भी इस कायनात के निज़ाम को समझने की कोशिश की हो, वह तो इस नतीजे पर पहुंचे बिना नहीं रह सकता कि यहां खुदाई बिल्कुल एक ही की है और उसके साथ किसी दर्जे में भी किसी और के शरीक होने का बिल्कुल इम्कान नहीं हैं।
अगर दो खुदा होते सन्सार मे
इधर एक कहता मियाँ चुप रहो।
तो फिर दूसरा उसपे चढ़ दौड़ता।
मुसन्निफ़ (लेखक): अकरम हुसैन
2 टिप्पणियाँ
Waah subhan Allah 🙌
जवाब देंहटाएंAlhamduLILLAH
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।