Kya Sharm Aur Haya Ka Talluq Sirf Aurat Se Hai?


Kya Sharm Aur Haya Ka Talluq Sirf Aurat Se Hai?


क्या शर्म व हया का ताल्लुक सिर्फ़ पर्दे से है और क्या ये सिर्फ़ औरतों के लिए है? आइए जानते हैं,

अबू दाऊद में एक हदीस है जहां नबी करीम (ﷺ) फरमाते हैं: "हर दीन का एक मिजाज होता है और इस्लाम का मिजाज हया है

इस्लाम में हया की बात सुनकर पहली बात हमारे जेहन में क्या आती है, या अल्लाह बुरखे की बात फिर आ गई। हया का हमारी जिंदगी में बहुत बड़ा ख़ास मकाम है क्या आपने रोशनी की किरण देखी है, किस रंग की होती है सफेद मगर हकीकत में उसमें बहुत सारे रंग होते हैं ऐसे ही हया के भी बहुत सारे रंग होते हैं कुरान और सुन्नत की रोशनी में भी हया आपकी बहुत सारे इंसान के अंदरूनी शख्सियत में भी नजर आती है


सच तो ये है कि हया आपके बिहेवियर में, हाव-भाव में, आपकी बातों में, आपकी इबादत में, आप के कपड़ों में, आप के पहनावे से लेकर लोगों से मिलने जुलने में भी दिखती है। फिर हया का ताल्लुक उस कैफियत से भी है जो इंसान किसी गलती के बाद पछतावे की शक्ल में महसूस करता है। अक्सर हमारे साथ ऐसा होता है कि कुछ बोल कर या कुछ करके ख्याल आता है, उफ! मुझे यह नहीं करना चाहिए था, ऐसा नहीं बोलना चाहिए था यह हया ही तो है जब कभी भी हम गलती करते हैं तो दूसरे लोगों से हम हया की वजह से ही उसे छुपाते हैं हमारे मन में बहुत बुरे और नापाक ख्याल आते हैं। हम बिल्कुल नहीं चाहते कि यह हमारे साथ ऐसा कुछ हो जो लोगों के सामने जाहिर हो यह हया की वजह से ही तो होता है लेकिन जब इंसान में हया खत्म हो जाए तो फिर कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरों के सामने क्या एक्सपोज हो रहा है और क्या नहीं, जिस्म हो चाहे कोई गंदी सोच


हया एक सर्किट ब्रेकर की तरह है अल्लाह के तरफ़ से। सर्किट ब्रेकर क्या करता है? जब बिजली का सर्किट ब्रेक होती है और वोल्टेज अचानक बढ़ जाता है तो ये सर्किट ब्रेकर अप्लाइंसेस को जलने से बचा लेता है। ऐसे ही हया हमें बहुत से अमल से बचा लेती है जो आखिरत में हमें जला सकते हैं। कुरान में अल्लाह ने सबसे पहले मर्दों को मुखातिब किया है। फरमान ए इलाही है:

1. "ऐ नबी, मोमिन मर्दो से कह दो की वह अपनी नजरे बचाकर रखे।" [क़ुरआन 24:29]

2. "मोमिन मर्दों से कह दो अपनी नज़रें नीची रखा करें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त किया करें, ये इनके लिए बड़ी पाकीज़गी की बात है और ये जो काम करते है खुदा इनसे ख़बरदार है।" [क़ुरआन 24:30]

3. नबी करीम (ﷺ) ने फरमाया, "ऐ अली अजनबी औरत पर एक मर्तबा नजर पड़ जाने के बाद दोबारा मत देखो क्योकी पहली नजर तो माफ है जबकी दूसरी नजर की तुझे इजाजत नहीं।"  [अबू दाऊद- 2148]

फिर औरतों से मुखातिब होते हुए अल्लाह फरमाता है:

"और ऐ नबी, ईमानवाली औरतों से कह दो कि अपनी नज़रें बचाकर रखें, और अपनी शर्मगाहों कि हिफ़ाज़त करें, और अपना बनाव-सिंगार न दिखाएँ सिवाय उसके जो ख़ुद ज़ाहिर हो जाए, और अपने सीनों पर अपनी ओढ़नियों के आँचल डाले रहें। वो अपना बनाव-सिंगार न ज़ाहिर करें मगर इन लोगों के सामने - शौहर, बाप, शौहरों के बाप, अपने बेटे, शौहरों के बेटे, भाई, भाइयों के बेटे, बहनों के बेटे, अपने मेल-जोल कि औरतें, अपनी मिलकियत में रहनेवाले (लौंडी-ग़ुलाम), वो मातहत मर्द जो किसी और तरह की ग़रज़ न रखते हों, और वो बच्चे जो औरतों कि छिपी बातों को अभी जानते न हों। वो अपने पाँव ज़मीन पर मारती हुई न चला करें कि अपनी जो ज़ीनत उन्होंने छिपा रखी हो, उसका लोगों को पता चल जाए। ऐ ईमानवालो, तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, उम्मीद है कि कामयाबी पाओगे।" [क़ुरआन 24:31]


फिर कुरान और सुन्नत की रोशनी में देखें तो हया का ताल्लुक मर्द और औरत दोनो से है तो अगर आप का हाल हुलिया मुसलमानो वाला नहीं है फिर ये हया की सदीद कमी का इज़हार है। अपने इमान के लेबल को बढ़ाएं और अल्लाह से हया तो दीन की बुनियाद है तो हमे शर्म आनी चाहिए कि हम कोई ऐसा काम करें जो अल्लाह को पसंद न हो। ख़ास तौर पर जब हम अकेले हो हम सब को अपने आप से पूछने की जरुरत है कि क्या हम अल्लाह को अपनी जिंदगियों से बाहर रख सकते हैं, अपने दिलों से तो बाहर रखा हुआ है ही।

दुआ है, अल्लाह मुसलमानो को दीन के सही रास्ते पर चलने की तौफीक अता फरमाए। आमीन

जज़ाक अल्लाह खैर




मुसन्निफ़ा (लेखिका): फ़िरोज़ा खान

 

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