Walidain Ke Saath Husn-e-Sulook Karna Kaise Sikhein?


Walidain Ke Saath Husn e Sulook Karna Kaise Sikhein


क़ुरान पर अमल: वालीदैन के साथ हुस्न ए सुलूक करना 


वालीदैन से हुस्ने सुलूक के बारे में बातें करना बहुत आसान है।

इस मौज़ू (topic) पर तकरीर का बंदोबस्त करना भी कोई मुश्किल काम नहीं है, मगर हकीकत में वालीदैन की खिदमत करना, उनसे नेक सुलूक करना इतना आसान नहीं। उसके लिए अल्लाह पर गहरा और मजबूत ईमान चाहिए, सब्र व बर्दाश्त चाहिए। सबसे बढ़कर एक बेटी के लिए जरूरी है कि वह अपने मां-बाप के लिए मीठी जुबान का इस्तेमाल करे। अल्लाह ताला ने मां-बाप के साथ लगातार हुस्न सुलूक का हुक्म दिया है।




वालीदेन से अच्छा बर्ताव एक ऐसा अमल है जिससे मोहब्बत की खुशबू महकती है। यह अल्लाह की मुस्तकिल फरमाबरदारी करने का सबूत है, मतलब यह कि वालीदैन से हुस्ने सुलूक का सुमार उन बुनियादी खूबियों में होता है जिन की तरबियत मुस्लिम कौम के तमाम लोगों को मिलनी चाहिए। न सिर्फ कुरान मजीद ने बल्कि रसूले करीम (ﷺ) ने भी वालीदैन के साथ हुस्ने सुलूक की ताकिद फरमाई है।

हमने हफ्ता वार दरस ए कुरान मजीद में यह तय किया है कि हम इस बार इरशाद ए इलाही पर अमल करेंगे,


فَلَا تَقُلۡ لَّہُمَاۤ اُفٍّ وَّ لَا تَنۡہَرۡہُمَا
[कुरान 17:23]
"उन्हें उफ़ तक ना कहो ना उन्हें झिड़ककर जवाब दो।"


हमने अपने दस्तूर के मुताबिक इस आयत को खोलकर बयान किया। इस पर मुकम्मल बात की फिर यह तय पाया गया कि हम में से कोई भी ना तो अपने मां बाप को झिड़के और ना ही उन्हें तकलीफ पहुंचाए चाहे वह कुछ भी करें या कहें।

जब कुछ अरसा बाद तजुर्बा बयान करने का वक्त आया तो दर्स में शरीक होने वाली औरतों में से पांच औरतों ने कुरान ए करीम की आयत के इस मुक्तसर हिस्से पर अमल करने के लिए अपने तजुर्बा से आगाह किया।


आमिल के बजाय अल्लाह


मेरी अम्मी मुझसे मिलने के लिए मेरे घर आई हुई थी। वह मायूस और परेशान नजर आ रही थी। मैंने खैरियत पूछा तो कहने लगी तेरी बहन की शादी में काफी देर हो चुकी है, मुझे कुछ लोगों ने बताया है कि इस गैर मामूली देरी की वजह यह है कि उस पर जादू किया गया है। कोई कहता है कि इस पर कोई जिन का कब्जा है जो इसकी शादी नहीं होने देता इसलिए बेटी आप मेरे साथ चलें ताकि लोग जिस अमल करने वाले का बताते हैं हम उसके पास जाएं ताकि वह हमारी मदद करें और तेरी बहन की शादी जल्दी हो जाए मेरी अम्मी ने जब यह बात कही तो मुझे बहुत सदमा पहुंचा। मैंने उन्हें यह आयत पढ़कर सुनाई,


وَ اِنۡ یَّمۡسَسۡکَ اللّٰہُ بِضُرٍّ فَلَا کَاشِفَ لَہٗۤ اِلَّا ہُوَ ؕ وَ اِنۡ یَّمۡسَسۡکَ بِخَیۡرٍ فَہُوَ عَلٰی کُلِّ شَیۡءٍ قَدِیۡرٌ 
[कुरान 6:17]
"अगर अल्लाह तुम्हें किसी किस्म का नुकसान पहुंचाए तो उसके सिवा कोई नहीं जो तुम्हें इस नुकसान से बचा सके और अगर वह तुम्हारे साथ भलाई करें तो वह हर चीज पर कादिर है।"


वालिदा गुस्से में थीं, वह कहने लगी: "मैं अपनी बेटी को नुकसान से बचाने जा रही हूं उस में क्या हर्ज है। मैं किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रही, किसी का नुकसान नहीं कर रही। मगर तुम अपनी बहन की मदद नही करना चाहती, उसके फायदे में खुश नहीं हो।" 

इस पर हम दोनों मां बेटी में झगड़ा होने लगा। 

मैंने यह समझा कि मैं हक पर हूं, मेरी मां बातिल पर है। मुझे हक की हिमायत करना है लेकिन अफसोस कि मैं शैतान की उकसाहट पर हक की हिमायत बातिल तरीके से करने लगी। मैंने अपनी वालिदा का ख्याल न किया और हक की हिमायत के जोश में अपनी आवाज अम्मी की आवाज से तेज कर ली। फौरन मुझे ख्याल आया कि हमने मजलिस दरस ए कुरान में क्या तय किया था।

मुझे आयत याद आ गई मैंने अपनी आवाज बिल्कुल धीमी कर ली। मुझे अब सुकून महसूस होने लगा, जज़्बात की कठोरता खत्म हो गई। वालिदा का एहतराम गालिब आ गया। मैंने आगे बढ़कर अपनी वालिदा का हाथ चूम लिया, गुस्ताखी पर माफी मांगी और उन्हें राजी करने के लिए भरपूर कोशिश करने लगी। अब मम्मी भी खामोश और शांत हो गई। कुछ देर के बाद उन्होंने मुझसे कहा, अच्छा तू मेरे साथ कब चलेगी यह आमिल बड़ा मशहूर है दूर-दूर तक उसकी शोहरत पहुंच चुकी है, मुझे उम्मीद है कि यह बंदा तेरी बहन की शादी के सिलसिले में हमारी मदद करेगा मैं उसको इस काम के पैसे दूंगी। मैंने बड़ी मोहब्बत और चाहत से कहा लेकिन एक और साहिब भी हैं जो की मदद भी करेंगे और आपसे कोई फीस भी नहीं मांगेंगे उनका अमल भी यकीनी है उनके काम की पूरी गारंटी है बल्कि जब तक आपका यह काम हो नहीं जाता वह जाती तौर पर आप को सुकून और इत्मीनान देते रहेंगे।

यह सुनकर मेरी वालीदा ने बे सांखता सुभानल्लाह कहा और बोली, मेरी सहेलियों और जानने वाली औरतों ने मुझे ऐसे आमिल के बारे में कुछ नहीं बताया लेकिन अगर तुझे उस पर भरोसा है यकीन है तो कोई बात नहीं हम उसी के पास चले जाएंगे इसमे कोई मुश्किल नहीं।

मैंने अर्ज किया अम्मी जान उस आमिल का क्या कहना उसकी जानकारियों का कोई हद नहीं है बल्कि उसका तो यह हाल है कि जब वह किसी काम के करने का इरादा कर लेता है और कह देता है कि हो जा तो वह काम फौरन हो जाता है, वह आपसे पैसे भी नहीं लेगा क्योंकि वह खुद मालदार है, उसमें लालच नहीं, वह दानी है, खुद लोगों को देता है। अम्मी जान आप उसी से मिलिए और उससे दरख्वास्त कीजिए। 

मेरी वालीदा मेरी यह बातें सुनकर बहुत खुश हुई, कहने लगी वल्लाह मैं इस आमिल के बारे में तुम्हारी यह बातें सुनकर बहुत खुश हूं, मगर मेरी प्यारी बेटी हमें अब देर नहीं करनी चाहिए तुम उससे मिलने का वक्त ले लो हम उसके पास जाएंगे इस बात का खयाल रखना कि वक्त पर मुलाकात हो जाए। 

मैंने कहा ठीक है हम देर नहीं करेंगे हम उसके पास चलते हैं देखिए वह तो हमारे पास ही आ गए हैं। अम्मी ने हैरान परेशान होकर दाएं-बाएं देखा, मैंने फौरन किबला की तरफ रुख कर लिया और दुआ करने लगी मैं रो-रोकर गिड़गिड़ा-गिड़गिड़ा कर दुआ करती रही, अल्लाह ताला से मदद मांगती रही, उसके सामने बहन के लिए दुआएं करती रही मेरी वालीदा जारो कतार रो रही थी वह सजदे में गिर पड़ी थी तौबा अस्तगफार मॆ मशगूल हो गई थी अल्लाह से मांग रही थी। जब मांगने वाला इस तरह मांगता है तो उसकी मांग पूरी की जाती है वह दानी पालनहार कब किसी की झोली को खाली जाने देता है।

जब यह बहन अपना ईमान अफरोज वाक्य सुना रही थी तो हर किसी के आंख से आंसू बह रहे थे


वालीदैन में तब्दीली



जब यह बहन अपना ईमान अफरोज वाक्य सुना चुकी तो महफिल में से एक आवाज आई क्या मैं कुछ कह सकती हूं? क्या आप लोग मेरा वाकया सुनना पसंद करेंगे? हम सबकी नजरें उस आवाज की तरफ उठी तो एक शहजादी खड़ी थी उसकी उमर अभी 20 साल भी ना हुई थी। उसने अपना वाक्य यू सुनाया:

मैं अपने मां-बाप की इकलौती बेटी हूं मेरा कोई और बहन भाई नहीं इसलिए वालीदैन मेरा बहुत ख्याल करते हैं, बहुत प्यार करते हैं। उन्होंने मुझे बहुत लाड प्यार से पाला है और मेरी हर बात मानी है। मेरी जिंदगी बहुत मजे से गुजर रही थी। मेरे वालिद जो कमा कर लाते हम हलाल हराम की तमीज किए बिना बहुत मजे से खाते। जिंदगी इसी डगर पर चल रही थी की अल्लाह ने मुझे आप जैसी मोहतरमा की महफिल में शिरकत की तौफीक दी, यूं मुझे एक अच्छी और मीठी चीज़ का ज़ायका चखने का मौका मिला यह प्यारी और मीठी चीज क़ुरआने करीम है। अल्लाह रहमान का कलाम इसकी मिठास और लज्जत का क्या कहना। मेरी इससे बड़ी क्या खुशनसीबी हो सकती है कि मैं अपने आप को आयते कुरानी के हवाले कर दूं और इस पर अमल करूं और लोगों को मेरे जरिए यह मालूम हो कि कुरान पर अमल करने का तजुर्बा कैसे होता है।

यह खुशनसीबी तो बहुत बड़ी है मगर हमारे घर में एक कशमकश शुरू हो गई, मेरे और मेरे वालीदैन के दरमियान एक लड़ाई की सूरत पैदा हो गई वह चाहते थे कि मैं उनकी मर्जी पर चलूं, वह काम करूं जो वह अपने ख्यालों के मुताबिक मेरे इस्लामी फायदे के लिए चाहते थे। हलाल और हराम, जायज और नाजायज का फर्क ना करूं। वह मुझे मजबूर करना चाहते थे कि मैं उनके साथ क्लब जाया करूं, वहां दोस्त बनाऊं, वहां जाकर दोस्तों से खेलूं, वर्जिश करूं और दूसरे खेलों में हिस्सा लूं। 

मैं क्लब जाने के लिए उनकी पसंद के कपड़े पहना करूं ताकि सबकी नजरों में अच्छी लगू। सब मुझे पसंद करें क्लब के खेलों में जरूर जाया करूं ताकि वहां नौजवान मुझे देखें और पसंद करें। उनकी ख्वाहिश थी कि मेरे जिस्म का ज्यादातर हिस्सा बिना कपड़ों के हो वह मुझे मजबूर करते थे कि मैं फिल्में देखूं, ड्रामे देखूं चाहे उसमें कितने ही बेहूदा और बेशर्मी वाली चीज क्यों ना हो। वालीदैन की जरूरत और उनकी ज़िद इस मजलिस दरस ए कुरान से बिल्कुल अलग थी।

मैंने आपकी इस मुबारक महफिल में शिरकत न की होती तो शायद मैं अपने वालीदैन की जिद पर और उनकी मांगों को मान लेती मगर मेरी खुशकिस्मती थी कि मुझे इस मुकद्दस मजलिस में शिरकत करने का मौका मिला। शुरु शुरु में तो मैं वालीदैन के सामने चिल्ला चिल्ला कर बोलती थी।

मैं उनके साथ क्लब और थिएटर में जाने से इंकार कर देती और अपने कमरे में घुसकर अंदर से दरवाजा बंद कर लेती। मैं जब भी उनसे मिलती निहायत नरम रवैया के साथ रूखे फीके अंदाज में मैं समझती थी कि मेरा अपने वालदैन के साथ इस तरह नरम रवैया से पेश आना अल्लाह की फरमाबरदारी की मेराज और जेहादे अकबर है।

मगर जब आप की तरफ से,


فَلَا تَقُلۡ لَّہُمَاۤ اُفٍّ وَّ لَا تَنۡہَرۡہُمَا
"उन्हें उफ़ तक ना कहो ना उन्हें झिड़ककर जवाब दो।"


इस आयत पर अमल करने का काम तै हुआ तो सूरते हाल बिल्कुल बदल गई। मैं गुस्सा होने की बजाएं मुस्कुराने लगी, दरवाजा बंद करने के बजाए मैं उनके साथ बैठने लगी, मैं उनसे मोहब्बत और एहतराम से बात करती, उनकी मदद करती, मैं उनका शुक्रिया अदा करती कि उन्होंने मेरे लिए इतनी तकलीफें बर्दाश्त की है और इतना माल खर्च किया है। मैं तो हुक्म ए इलाही की पाबंदी कर रही थी मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपनी नई सहेलियों से वाकिफ करवाया। मैंने उन्हें बताया कि यूं करें तो अल्लाह खुश होता है, फला काम करें तो अल्लाह राजी होता है, अल्लाह ताला का फला चीज के बारे में यह हुक्म है, अल्लाह ने फला काम से रोका है। मैंने देखा कि मेरी वालिदा काफी बदल गई है वह मुझसे कुराने हकीम और इस्लाम के बारे में मालूमात लेने की ज्यादा दिलचस्पी ले रही है। वह अपने पिछले ख्यालात और आमाल पर शर्मिंदा है यह पछतावा उनके चेहरे पर दिख रहा था।

मैं आप सब को यह बता कर हैरान करना चाहूंगी कि मेरी अम्मी मेरे साथ बैठी है। मां ने उठकर अपनी बेटी को गले लगाया और वह उसके चेहरे को लगातार चूमने लगी। हम सबने यह देखा तो अल्लाह ताला की कुदरत पर हैरान थी कि वह किस तरह दिलों को बदल देता है, अपने बंदों पर किस कदर मेहरबान है।


एक बहन का अजीब तजुर्बा


यह यकीन बढ़ाने वाला मंजर अभी खत्म नहीं हुआ था की एक खातून खड़ी हुई, उन्होंने हसरत भरी नजर मां बेटी पर डाली और फिर यू बोली सुभान अल्लाह! यह सब कुछ कैसे हो गया मेरी अम्मी तो मेरी कोई बात नहीं मानती मैंने उन्हें मनाने और राजी करने की भरपूर कोशिश की है मगर कुछ ना हुआ।

हमने उस बहन को बताया कि इसके लिए सब्र और बर्दाश्त चाहिए, हमें मेहनत करनी चाहिए, शांति से काम लेना चाहिए, आपको आयत पर अमल करने के साथ-साथ दुआ से भी काम लेना चाहिए इसलिए कि दिल तो अल्लाह ताला के कब्जे में है, वह जिस तरफ चाहे दिलों को फेर देता है। आपका काम अमल करना है, दुआ करना है और रहमत ए इलाही से कभी भी मायूस ना होना है। उसके बाद तमाम महफिल में आने वालों ने वादा किया कि सब रात की तन्हाइयों में इस बहन की वालिदा के लिए दुआ होगी।

महफिल खत्म होने के बाद हमने यह तय किया कि अभी इस आयत पर ही अमल रहेगा इसके साथ इस आयत के साथ यह अल्फाज भी शामिल हुए,


فَلَا تَقُلۡ لَّہُمَاۤ اُفٍّ وَّ لَا تَنۡہَرۡہُمَا وَ قُلۡ لَّہُمَا قَوۡلًا کَرِیۡمًا
[कुरान, बनी इस्राईल 17:23]
"उन्हें उफ़ तक ना कहो ना उन्हें छिड़ककर जवाब दो बल्कि उनसे अदब के साथ बात करो।"


अब हम इस आयत के साथ हफ्ता गुजारेंगे, हम इस आयत को दोहराते रहेंगे जब तक कि यह आयत हमारे दिलों में उतर जाए, फिर हम तन मन धन से इस आयत पर अमल करेंगे। हम अपने होश भी इस आयत पर अमल करने के लिए इस्तेमाल करेंगे और आइंदा मुलाकात में इस आयत के तजुर्बात बयान होंगे।

यह बात तो देखने में बहुत आसान मालूम होती है मगर इंसान की कुछ व्यक्तिगत आदत होती है जिन पर इसकी परवरिश हुई होती है उन आदतों को छोड़ना बहुत मुश्किल होता है। वालीदेन के साथ बात करने और आम इंसान के साथ बात करने में बहुत फर्क होता है। कोई तो अपने वालीदैन के साथ अफसोस के साथ बात करता है, उनकी हर बात को रद्द कर देता है, लापरवाही से जवाब देता है, कोई अपने मां बाप से आमतौर के तरीके के मुताबिक बात करता है जबकि कोई आदमी अपने वालीदैन के साथ सख्ती से पेश आता है और उसे उसका एहसास भी नहीं होता, कोई ऐसा भी है जिसे यह बात याद नहीं की उसने अपनी पूरी जिंदगी में कभी एक बार भी अपने वालिद या वालिदा का हाथ एक बार भी चुमा हो नीचे दिए गए कुछ तजुर्बा लिखे जाते हैं जिससे बात साफ हो जाएगी:


वालीदैन से मोहब्बत का इज़हार


जब मैं अल्लाह ताला का यह इरशाद बल्कि उनसे एहतराम से बात को दोहराया करती थी तो मैं समझती थी कि यह तो सिर्फ थोड़े चुने हुए अल्फाज दोहरा देने की बात है वालीदैन के सामने कुछ नपे तुले जुमले कह दिए जाएं तो उनका एहतराम हो जाता है मगर यह मेरा सिर्फ वहम साबित हुआ इसका हकीकत से कोई ताल्लुक न था। मैं एक बार अपनी वालिदा के पास गई पहले से ही कुछ बातें सोच लिए थे इरादा यह था कि यह जुमले दोहरा दूंगी, मैंने वालिदा के सामने जाकर रटी हुई बातें कहना चाहा मगर मेरी जुबान बंद हो गई। मुझे सख्त सदमा पहुंचा कि मैं अपनी वालिदा के सामने चंद जुमले ना कह पाई और पहली ही कोशिश में नाकाम हो गई। फिर मैंने थोड़ी हिम्मत जमा किया और चाहा कि अपने वालिद के सामने अदब और एहतराम का इजहार कर पाऊं उनको यह एहसास करा दूं कि मुझे उनसे कितना प्यार और ताल्लुक है मगर इस बार भी मेरे जुमले धरे के धरे रह गए।


इस बार मैंने अपने आप से कहा अल्लाह चाहेगा तो नाकाम नहीं रहूंगी बात तो मामूली सी है, मुझे क्या हो गया है मेरे अंदर से आवाज आई जब तू यह बात उन से कहेगी तो तेरे मां-बाप हैरान हो जाएंगे हो सकता है तू हंस पड़े और अपने बहन भाइयों के सामने मजाक बने। इस पर मैंने ऐसी दुआ की कि,

"या अल्लाह अपनी आयत पर अमल की हिदायत अता फरमा।"

फिर मुझे एक ख्याल आया मैं बाजार गई जहां फूल वाले फूल बेचते हैं मैंने वहां से अपनी अम्मी और अब्बा के लिए फूल खरीदें। घर आकर पहले मैंने अपनी मम्मी को फूल दिए और साथ में यह अल्फाज कहे,

"मेरी प्यारी मां यह आपके लिए है"

इस पर मेरी अम्मी मुस्कुराई, मैं उनकी इस मुस्कुराहट को कभी भूल ना सकूंगी, मरते दम तक याद रखूंगी। वह मुझे कह रही थी क्या मैं तुम्हारे नजदीक ऐसी हूं?

मैंने जवाब दिया: मम्मी आप मुझे पूरी दुनिया से ज्यादा प्यारी हैं, आप मुझे पूरे जहान से ज्यादा अजीज हैं, आप मेरे नजदीक इस कायनात में सबसे ज्यादा कीमती है, मेरे लिए आपके बगैर पूरी दुनिया एक वहम है।

मैंने यह अल्फाज कह दिए और अपनी अम्मी का एक्सप्रेशन जानने का इंतजार नहीं किया। सीधे अपने वालिद के पास चली गई और उन्हें फूल पेश करते हुए कहा: 

"मेरी तरफ से आपके लिए कुछ फूल, मैं आपके लिए बहुत दुआएं करती हूं।"

अब्बा जी ने मुझसे कहा: खैर हो, खैरियत है। आज आप बहुत खुश हैं। क्या बात है?

मैंने जवाब दिया: जी हां! मैं आप दोनों से बहुत खुश हूं।

मैंने फौरन अपने कमरे का रुख किया। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था। 

मैंने अपने आप से कहा: "बात तो बहुत आसान थी।" 

अब मैं कितनी खुश हूं। मेरे वालीदैन ने मेरे इजहार ए मोहब्बत को कुबूल कर लिया है। अब मैं वालीदैन के हाथों को चूम लेती हूं। मुझे जिंदगी का इससे पहले कभी इतना लुत्फ नहीं आया था। मैं आप सबसे यही दरख्वास्त करती हूं कि कुरान ए करीम के इस हुक्म पर अमल कीजिए और सादते दारेन हासिल कीजिए।


एक भाई का वालीदैन से हुस्न ए कलाम


उसके बाद एक खातून ने कहा जिस बहन ने अभी-अभी अपना वाक्या सुनाया है वह बहुत खुशनसीब है। मैंने तो अपने वालीदैन के सामने इतने अच्छे जुमले कभी नहीं बोले, अलबत्ता मेरा एक भाई है वह मेरा इंतजार करता रहता है, मैं जैसे ही दरस ए कुरान सुनकर घर जाती हूं वह फौरन मेरे पास आता है और मालूम करता है कि आज के दर्श में अमल और हरकत के लिए कौन सी आयत चुनी गयी है। मैं उस आयत की तफसीर बयान करती हूं उसके मायने और नाजिल होने की वजह बताती हूं, चुनांचे उसने मुझसे अमल के लिए यह आयत ले ली,


فَلَا تَقُلۡ لَّہُمَاۤ اُفٍّ وَّ لَا تَنۡہَرۡہُمَا وَ قُلۡ لَّہُمَا قَوۡلًا کَرِیۡمًا
"उन्हें उफ़ तक ना कहो ना उन्हें छिड़ककर जवाब दो बल्कि उनसे अदब के साथ बात करो।"


यह आयत उसकी जबान पर जारी हो गई और उसके अमल का ज़रिया बनी। उसके बाद वालीदैन के साथ उसका रवैया बिल्कुल बदल गया है। वह अपनी बातचीत और चाल चलन में उनके लिए बहुत ज्यादा नरम हो गया है और मेरे मां-बाप उसके लिए हर वक्त दुआएं करते रहते हैं। मैं कुछ दिनों पहले मम्मी को यह कहते हुए सुन चुकी हूं कि शायद अल्लाह ताला मुझे यह नेक और फरमाबरदार बेटा बनने की वजह से जन्नत में दाखिल फरमाएगा मुझे समझ नहीं आ रही कि अब क्या करूं मेरा भाई मुझसे आगे निकल गया।

उस पर एक खातून ने उस वक्त हिम्मत देते हुए मशवरा दिया कि आप बार-बार कोशिश करें हम सबको क़ुरआने करीम पर अमल के लिए मेहनत और कोशिश से काम लेना चाहिए। क़ुरआने करीम के मुताबिक अमल करना ही सबसे ज्यादा बेहतर है।




मुसन्निफ़ा (लेखिका): सुमैय्या रमज़ान 
हिंदी तरजुमा: मरियम फातिमा अंसारी 

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2 टिप्पणियाँ

  1. बेशक... हमें अपने वालदैन से कुरान और सुन्नत की रोशनी में निहायत नर्मी और आजीजी से पेश आना चाहिए....
    अल्लाह पाक हमें नेक अमल की तौफिक अता फरमाए आमीन

    जवाब देंहटाएं

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