अल्लाह की रहमत और मग़फिरत
1. रहमत
रहमत का मतलब है अल्लाह का अपने बंदों पर मेहरबान होना, उनके हाल पर करम फरमाना, उनके लिए आसानी पैदा करना, और उन्हें अपनी रहनुमाई से नवाज़ना।
2. मग़फिरत
मग़फिरत का मतलब है अल्लाह का गुनाहों को माफ कर देना, उन पर अज़ाब न देना, और बंदे को साफ़ और पाक कर देना।
3. क़ुरआन में अल्लाह की रहमत और मग़फिरत
i. “ऐ मेरे वो बंदों जिन्होंने अपने ऊपर ज़्यादती की है, अल्लाह की रहमत से मायूस न हो। बेशक अल्लाह तमाम गुनाह माफ कर देता है। वो बड़ा माफ करने वाला, निहायत मेहरबान है।” [सूरह ज़ुमर 39:53]
वज़ाहत: इस आयत से साबित होता है कि किसी भी गुनाह से तौबा की जा सकती है। अल्लाह की रहमत का दरवाज़ा कभी बंद नहीं होता। मायूसी हराम है।
ii. “जो शख्स कोई बुरा अमल करे या अपने ऊपर ज़ुल्म करे, फिर अल्लाह से माफ़ी माँग ले तो वो अल्लाह को बड़ा बख्शने वाला और मेहरबान पाएगा।” [सूरह निसा 4:110]
वज़ाहत: यानी अगर बंदा ग़लती करे भी तो उसका रास्ता बंद नहीं होता। अल्लाह के पास लौटने का दरवाज़ा हमेशा खुला है।
iii. “अल्लाह किसी शख्स पर उसकी हिम्मत से ज़्यादा बोझ नहीं डालता।” [सूरह बक़रह 2:286]
वज़ाहत: यानी अल्लाह हमेशा इंसान की हैसियत और ताक़त के मुताबिक़ इम्तेहान देता है। यह उसकी रहमत और इंसाफ़ का सबूत है।
iv. “मेरी रहमत हर चीज़ पर वसी है।” [सूरह अ’राफ़ 7:156]
वज़ाहत: अल्लाह की रहमत किसी ख़ास क़ौम या फर्द तक महदूद नहीं। हर इंसान, हर मख़लूक़ इसके दायरे में है।
v. “जो लोग तौबा करते हैं, ईमान लाते हैं, और नेक अमल करते हैं – अल्लाह उनके बुरे अमल नेकियों में बदल देता है।” [सूरह फुरकान 25:70]
वज़ाहत: सिर्फ़ गुनाह माफ नहीं किए जाते, बल्कि नेकियों में तब्दील कर दिए जाते हैं। यह सिर्फ़ अल्लाह की बेपनाह रहमत का इज़हार है।
vi. “क्या वो नहीं जानते कि अल्लाह अपने बंदों की तौबा क़बूल करता है और सदक़ात क़बूल करता है?” [सूरह तौबा 9:104]
वज़ाहत: इस आयत से मालूम होता है कि अल्लाह तौबा और सदक़ा दोनों को पसंद करता है। दोनों से गुनाह मिट जाते हैं।
vii. “जो लोग कोई फ़हश (बुरा) काम कर बैठते हैं या अपने ऊपर ज़ुल्म करते हैं, तो फ़ौरन अल्लाह को याद कर के माफ़ी माँग लेते हैं – अल्लाह उनके गुनाह माफ़ कर देता है।” [सूरह आल-इमरान 3:135-136]
वज़ाहत: तौबा में ताख़ीर नहीं करनी चाहिए। गुनाह के फ़ौरन बाद अगर बंदा अल्लाह से रुजू करे तो अल्लाह माफ कर देता है।
4. हदीस में अल्लाह की रहमत और मग़फिरत
i. “अल्लाह अपने एक बंदे की तौबा पर उस शख़्स से ज़्यादा खुश होता है जो सुनसान जगह पर अपना ऊँट खो दे, फिर मिल जाए।” [सहीह बुख़ारी: 6309]
वज़ाहत: अल्लाह इतना ज़्यादा खुश होता है तौबा पर कि इंसानी सोच भी उसका अंदाज़ा नहीं लगा सकती। उसके लिए तौबा एक खुशी का मौका है।
ii. “अल्लाह हर रात अपना हाथ फैलाता है ताकि दिन के गुनाह करने वाले तौबा करें, और हर दिन ताकि रात के गुनाह करने वाले तौबा करें।” [सहीह मुस्लिम: 2759]
वज़ाहत: हर वक़्त तौबा का दरवाज़ा खुला है। अल्लाह किसी वक़्त बंदे से रुजू होने पर रोकने वाला नहीं है।
iii. “अगर तुम लोग गुनाह न करते, तो अल्लाह ऐसे लोग लाता जो गुनाह करते और फिर तौबा करते।” [सहीह मुस्लिम: 2749]
वज़ाहत: अल्लाह तौबा को पसंद करता है। वो चाहता है कि बंदा अपनी कमजोरी माने और फिर उसकी तरफ लौट आए।
iv. “अल्लाह तुम्हारी तौबा से इतना राज़ी होता है जितना एक प्यासा शख़्स पानी मिलने पर होता है।” [सहीह मुस्लिम: 2744]
वज़ाहत: तौबा अल्लाह से क़ुर्ब का सबब है। बंदा जितना राज़ी होता है रहमत पर, अल्लाह उससे कहीं ज़्यादा राज़ी होता है तौबा पर।
v. “तौबा करने वाला ऐसा है जैसे उसने कभी गुनाह किया ही न हो।” [मुस्नद अहमद: 17395]
वज़ाहत: यह हदीस अल्लाह की मग़फिरत और करम का सबूत है। सच्ची तौबा पुराने गुनाहों का निशान मिटा देती है।
vi. “अगर किसी के पास पहाड़ों के बराबर भी गुनाह हो और वो अल्लाह से तौबा करे तो सब माफ़ हो जाते हैं।” [सहीह मुस्लिम: 2761]
वज़ाहत: गुनाह जितने भी बड़े हों, अल्लाह की रहमत उनसे बड़ी है। सिर्फ़ तौबा और नदामत चाहिए।
vii. “अल्लाह तौबा क़बूल करता है जब तक रूह हलक़ूम (गले) तक न पहुँच जाए।” [सुन्नन तिर्मिज़ी: 3537]
वज़ाहत: मौत से पहले तौबा का मौका दिया गया है। इसलिए तौबा में ताख़ीर नहीं करनी चाहिए।
viii. “जब बंदा गुनाह करता है तो उसके दिल पर स्याह निशान लगता है। अगर वो तौबा करे तो निशान मिट जाता है।” [तिर्मिज़ी: 2499]
वज़ाहत: तौबा सिर्फ माफ़ी का ज़रिया नहीं, बल्कि दिल की सफ़ाई का भी ज़रिया है। तौबा रूहानी ज़िंदगी का सबसे अहम अमल है।
ix. “जब बंदा एक क़दम अल्लाह की तरफ़ बढ़ता है, अल्लाह उसकी तरफ दो क़दम बढ़ता है।” [सहीह बुख़ारी: 7554]
वज़ाहत: अल्लाह सिर्फ़ हिदायत देता नहीं, बल्कि उसकी तरफ़ चलने वालों का साथी भी बनता है। हर क़दम पर वो मददगार है।
x. “अल्लाह ने रहमत को 100 हिस्सों में तक़सीम किया। दुनिया में सिर्फ़ 1 हिस्सा नाज़िल किया, 99 अपने पास रखा।” [सहीह बुख़ारी व मुस्लिम (मुत्तफ़क़ुन अलाईह)]
वज़ाहत: जितनी रहमत हमें दुनिया में मिलती है, वो सिर्फ़ 1% है। अल्लाह की असल रहमत तो आख़िरत में मिलेगी – वो बेपनाह है।
5. ख़ुलासा-ए-कलाम
- अल्लाह की रहमत हर मख़लूक़ को घेरे हुए है, उसकी कोई हद नहीं।
- हर शख़्स, चाहे जितना भी गुनहगार हो, तौबा से माफ़ी पा सकता है।
- क़ुरआन और हदीस दोनों ये साबित करते हैं कि अल्लाह सबसे ज़्यादा तौबा को पसंद करता है।
- अल्लाह का वादा है कि वह तमाम गुनाहों को माफ़ कर देता है अगर बंदा इख़लास से लौटता है।
- तौबा से सिर्फ़ गुनाह नहीं मिटते, बल्कि अल्लाह से क़ुर्ब भी हासिल होता है।
- हर वक़्त तौबा का दरवाज़ा खुला रहता है, मौत के क़रीब बंद होता है।
- अल्लाह तौबा पर इतना खुश होता है जितना कोई शख़्स ज़िंदगी मिलने पर होता है।
- सच्ची तौबा इंसान को एक नई पाक ज़िंदगी की तरफ ले जाती है।
- मायूसी और नाउम्मीदी शैतानी चाल है, जबकि अल्लाह की रहमत बेहद वसीअ (व्यापक) है।
- हर मुसलमान को चाहिए कि हर रोज़ अपनी ग़लतियों पर नादिम होकर तौबा करता रहे।
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