क़ुबूल होने वाली तौबा की शर्तें
1. अल्लाह की मर्ज़ी और रहमत के उसूलों के मुताबिक़
i. गलती हो जाए तो फ़ौरन अल्लाह को याद करें, देर न करें:
अल्लाह फ़रमाता है: “और परहेज़गार वो हैं जो जब किसी बुरे काम में पड़ जाते हैं या अपने ऊपर ज़ुल्म करते हैं तो फ़ौरन अल्लाह को याद करते हैं और उससे अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं। गुनाह तो अल्लाह के सिवा कौन माफ़ कर सकता है? और वो अपने गुनाहों पर जान-बूझ कर ज़िद नहीं करते।” [सूरह आले-इमरान 3:135]
ii. अगर नादानी से गुनाह हो जाए तो फ़ौरन तौबा करें, मौत के वक़्त की तौबा क़बूल नहीं होती:
“अल्लाह के जिम्मे तौबा क़बूल करना उन्हीं लोगों के लिए है जो नादानी से कोई बुरा काम कर बैठते हैं और फिर जल्द ही तौबा कर लेते हैं। अल्लाह ऐसे लोगों की तौबा क़बूल करता है। लेकिन उन लोगों की तौबा क़बूल नहीं की जाती जो बुराइयों पर क़ायम रहते हैं, यहाँ तक कि जब मौत आ जाती है तो कहते हैं: अब मैं तौबा करता हूँ। और ना ही उनकी तौबा क़बूल होती है जो कुफ्र की हालत में मर जाते हैं। ऐसे लोगों के लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तय कर रखा है।” [सूरह अन-निसा 4:17–18]
iii. तौबा के बाद नेक अमल करें और गुनाह दोबारा न करें:
“जो शख़्स तौबा करे और नेक अमल करे तो वो वाकई अल्लाह की तरफ़ वापस लौट आता है जैसे कि वापस लौटने का हक़ है।” [सूरह अल-फुरकान 25:71]
“मगर वो लोग जो ज़ुल्म कर बैठे फिर बुरे काम के बाद नेक अमल कर लें, तो मैं उन्हें माफ़ करने वाला हूँ, बड़ा मेहरबान हूँ।” [सूरह अन-नम्ल 27:11]
iv. तौबा ख़ुलूस-ए-नीयत (सच्चे दिल) के साथ होनी चाहिए:
“ऐ ईमान वालों! अल्लाह से ख़ुलूस के साथ तौबा करो। शायद तुम्हारा रब तुम्हारे गुनाह मिटा दे और तुम्हें उन जन्नतों में दाख़िल करे जिनके नीचे नहरें बह रही हैं।” [सूरह अत-तहरीम 66:8]
v. गुनाह जितने भी हों, अल्लाह से मायूस न हो, उसी से माफ़ी चाहे:
“कह दो: ऐ मेरे वो बंदों जिन्होंने अपने ऊपर ज़्यादती की है, अल्लाह की रहमत से मायूस न हो। बेशक अल्लाह तमाम गुनाहों को माफ़ कर देता है। बेशक वो बड़ा माफ़ करने वाला, निहायत मेहरबान है।” [सूरह अज़-ज़ुमर 39:53]
vi. तौबा का इरादा ही काफ़ी बन जाता है:
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “बनी इस्राईल का एक शख़्स था जिसने 99 लोगों को क़त्ल किया। फिर एक राहिब से पूछा क्या मेरी तौबा क़बूल हो सकती है? उसने कहा नहीं, तो उसने राहिब को भी क़त्ल कर दिया। फिर एक आलिम से पूछा, उसने कहा हाँ, तौबा हो सकती है। उसने कहा फ़लाँ बस्ती में जाओ। रास्ते में ही उसका इंतिक़ाल हो गया। उसने मरने से पहले अपना सीना तौबा की बस्ती की तरफ़ मोड़ दिया। फ़रिश्तों में झगड़ा हुआ, अल्लाह ने हुक्म दिया: नेकी वाली बस्ती को क़रीब लाओ और बुरी बस्ती को दूर करो। जब फ़ासला नापा गया तो वो शख़्स एक बालिश नेकी वाली बस्ती के क़रीब था। अल्लाह ने उसे माफ़ कर दिया।” [सहीह बुख़ारी]
2. ख़ुलासा-ए-कलाम
- तौबा का दरवाज़ा हर वक़्त खुला है।
- गुनाहों का इज़हार और उनसे रुजू (वापसी) अल्लाह को पसंद है।
- तौबा से ज़िन्दगी में बरकत, सुकून, और आख़िरत में नजात मिलती है।
- सच्ची तौबा इंसान को अल्लाह के क़रीब कर देती है।
बिलाशुबा एक इंसान से बशरी तक़ाज़ों की बुनियाद पर ख़ताएं और ग़लतियाँ होती रहती हैं, लेकिन इन ख़ताओं और ग़लतियों से तौबा करना भी निहायत ज़रूरी है।
क़ुरआनी हिदायत: “ऐ ईमान वालों! अल्लाह के सामने सच्ची तौबा करो, उम्मीद है कि तुम्हारा रब तुम्हारे गुनाहों को माफ़ कर देगा और तुम्हें उन जन्नतों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी।” [सूरह अत-तहरीम 66:8]
हदीस-ए-नबवी ﷺ: “ऐ लोगो! अल्लाह के हुज़ूर में तौबा और इस्तिग़फार करो, क्यूंकि मैं ख़ुद हर रोज़ सौ बार तौबा और इस्तिग़फार करता हूँ।” [मुस्लिम]
3. तौबा की शरायत (शर्तें)
i. इख़लास (खुलूस): तौबा सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा और खुशी के लिए हो, इसमें कोई दुनियावी फ़ायदा या रिया (दिखावा) शामिल न हो।
ii. नदामत: गुज़श्ता गुनाहों पर दिल से शर्मिंदगी और पछतावा हो।
iii. पक्का इरादा: तौबा करने वाला दिल से इरादा करे कि वो दोबारा उसी गुनाह के क़रीब भी नहीं जाएगा।
iv. वक़्त का लिहाज़: तौबा उस वक़्त की जाए जब तौबा क़बूल होने का वक़्त हो (मौत की घड़ी और सूरज के मग़रिब से निकलने से पहले)।
v. हक़ूक़-उल-इबाद: अगर किसी बंदे का हक़ मारा गया हो तो उसका हक़ वापस दिया जाए या उससे माफ़ी माँगी जाए, जैसे माल चुरा लिया हो, किसी की ग़ीबत की हो या चुग़लख़ोरी की हो।
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