अय्याम-ए-तशरीक़
अय्याम-ए-तशरीक़ इस्लामी महीने ज़िलहज्ज की 11वीं, 12वीं और 13वीं तारीख़ों को कहा जाता है। ये दिन हज के खास दिन होते हैं जिनमें हाजी लोग मिना में रहते हैं, जमरात (शैतान को कंकरियां मारना) करते हैं और हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद तकबीर-ए-तशरीक़ पढ़ते हैं।
दिन कौन-कौन से होते हैं?
- 10 ज़िलहज्ज: ईद-उल-अज़हा (क़ुर्बानी का दिन)
- 11 ज़िलहज्ज: पहला अय्याम-ए-तशरीक
- 12 ज़िलहज्ज: दूसरा अय्याम-ए-तशरीक
- 13 ज़िलहज्ज: तीसरा अय्याम-ए-तशरीक
क्या करना होता है इन दिनों में?
- क़ुर्बानी (10 से 12 तारीख़ तक हो सकती है)
- हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद तकबीर पढ़ना
- मिना में रहना (हाजियों के लिए)
- जमरात (शैतान को पत्थर मारना)
तकबीर-ए-तशरीक़:
اللّٰهُ أَكْبَرُ، اللّٰهُ أَكْبَرُ، لَا إِلٰهَ إِلَّا اللّٰهُ وَاللّٰهُ أَكْبَرُ، اللّٰهُ أَكْبَرُ وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ
"अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द"
ये तकबीर 9 ज़िलहज्ज़ की फ़ज्र से लेकर 13 ज़िलहज्ज़ की अस्र तक, हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है।
क़ुरआन से दलील:
सुरह अल बकरह – आयत 203
"और अल्लाह को याद करो गिने हुए दिनों में। फिर जो दो दिनों में जल्दी चला गया, उस पर कोई गुनाह नहीं और जो रुक गया, उस पर भी कोई गुनाह नहीं, उस पर जो तक़वा रखे।"
(यहाँ “गिने हुए दिन” से मुराद अय्याम-ए-तशरीक़ के दिन हैं)
हदीस से दलील:
सहीह मुस्लिम – हदीस नंबर 1141
हज़रत नुबैशा अल-हुधली रज़ि. से रिवायत है:
"अय्याम-ए-तशरीक खाने, पीने और अल्लाह को याद करने के दिन हैं।"
तकबीर-ए-तशरीक़ का हुक्म:
मुसन्नफ इब्न अबी शैबा– हदीस नंबर 5633
इस हदीस में बयान है कि तकबीर-ए-तशरीक़ 9 ज़िलहज्ज की फज्र से 13 ज़िलहज्ज की अस्र तक हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ी जाती है।
गैर-हाजी मुसलमान क्या कर सकते हैं
जो मुसलमान हज पर नहीं हैं, उनके लिए भी अय्याम-ए-तशरीक़ (11, 12, 13 ज़िलहज्ज) के दिन इबादत और ज़िक्रुल्लाह के लिए बहुत फ़ज़ीलत वाले हैं। नीचे बताया गया है कि इन दिनों में गैर-हाजी मुसलमान क्या कर सकते हैं:
1. तकबीर-ए-तशरीक़ पढ़ना:
हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद ये तकबीर ज़रूर पढ़ें:
"अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द"
कब से कब तक:
9 ज़िलहज्ज़ की फ़ज्र से लेकर 13 ज़िलहज्ज की अस्र तक हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद।
2. नफ्ल इबादत:
- ज़िक्र (अस्तग़फ़ार, दरूद शरीफ़, तस्बीहात)
- नफ्ल नमाज़ें (तहज्जुद, इशराक़, चाश्त, अव्वाबीन)
- कुरआन की तिलावत
- गुनाहों से तौबा
3. रोज़ा:
- 9 ज़िलहज्ज (यानी यौमे अराफ़ा) को रोज़ा रखना सुन्नत है (ग़ैर-हाजियों के लिए)।
- लेकिन 10 से 13 ज़िलहज्ज़ के बीच रोज़ा रखना मकरूह है। अय्याम-ए-तशरीक़ में रोज़ा रखना मना है।
4. क़ुर्बानी देना:
अगर आप पर क़ुर्बानी वाजिब है, तो 10 से 12 ज़िलहज्ज़ के बीच (तीन दिन) में क़ुर्बानी करें।
5. अच्छे अमल:
- रिश्तेदारों और पड़ोसियों की मदद
- गरीबों को खाना खिलाना
- ग़ुस्सा और बदअख़लाक़ी से बचना
- बच्चों को अल्लाह की बातें सिखाना
हदीस:
“अल्लाह के नज़दीक सबसे बड़े और पसंदीदा दिन अय्याम-ए-तशरीक के दिन हैं।”
(सुना अबी दाऊद 2413)
इस टॉपिक पर क्विज़ अटेम्प्ट करें 👇
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।