Udhaar lena aur na chukana (Buy-Borrow-Die)

Udhaar-lena-aur-na-chukana

आज उधार, कल फरार

आजकल कई मुसलमान अपनी ज़िंदगी को दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार लेकर लक्ज़री में जीते हैं। उन्हें केवल अभी का मज़ा चाहिए, और यह सोचते हैं कि बाद में पैसे आएंगे तो चुकाएंगे, या कभी वापस करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

इस आदत का इस्लाम, समाज और व्यक्तिगत नैतिकता पर गंभीर असर पड़ता है। इसे समझना बेहद जरूरी है।


Buy, Borrow, Die: मतलब क्या है?

“Buy, Borrow, Die” एक अंग्रेज़ी मुहावरा है जिसका अर्थ है: “उधार लेकर खरीदो, खर्च करो, और अंत में मर जाओ बिना लौटाए।”

इस आदत में इंसान सिर्फ मौज-मस्ती और दिखावा पर केंद्रित होता है। अपनी जिम्मेदारी, दूसरों के हक़ और नैतिकता से दूर रहता है।

आजकल मुसलमान लग्ज़री लाइफस्टाइल के लिए दोस्तों रिश्तेदारों से उधार लेते हैं और वापस करने की फिक्र नहीं करते।


उधार लेकर वापस न करने की सामाजिक और नैतिक हकीकत: 

i. भरोसा और प्रतिष्ठा खोना

  • जब कोई बार-बार उधार लेकर वापस नहीं करता, तो समाज में उसकी विश्वसनीयता ख़त्म हो जाती है।
  • दोस्त, रिश्तेदार, सप्लायर और पार्टनर उसके साथ कोई बिजनेस या लेन-देन करने से बचने लगते हैं।

नबी करीम ﷺ ने फरमाया “अमीर का कर्ज़ जानबूझकर न लौटाना ज़ुल्म है।” सही बुख़ारी 2400

और अल्लाह कुरआन (2:282) में हुक्म देता है, “ऐ ईमान वालों! जब कर्ज़ लिया जाए तो उसे लिखो और गवाह रखो।”

मतलब: कर्ज़ न लौटाना सिर्फ पाप है, बल्कि मुआशरे में भरोसा और इज़्ज़त खोना भी है।


ii. दूसरों के पैसे की फिक्र न करना

दूसरों के पैसों को हल्के में लेना सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं लाता, बल्कि रिश्तों और नैतिकता पर भी गहरा असर डालता है। यह आदत झूठ और बहानों को जन्म देती है।

नबी करीम ﷺ ने फरमाया “शहीद के हर गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं, मगर कर्ज़ नहीं।” सहीह मुस्लिम 1886

मतलब: चाहे शहादत जैसी बुलंद नेमत क्यों न हो, दूसरों का पैसा लौटाना जरूरी है।

और अल्लाह कुरआन (4:29) में हुक्म देता है, “एक-दूसरे का माल नाहक तरीके से न खाओ।”

 मतलब: दूसरों का पैसा हल्के में लेना सीधे पाप और ज़ुल्म है।


बिजनेस और भरोसा (Trust) पर असर

i. सप्लायर और पार्टनर का भरोसा टूटता है। बार-बार उधार लेने वाला व्यक्ति रिस्क बन जाता है, कोई भी उसके साथ क्रेडिट या बिजनेस नहीं करना चाहता।

ii. ग्राहक की निष्ठा खतरे में पड़ती है। लोग सोचते हैं कि “अगर कंपनी/दुकानदार अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएगा, तो नुकसान मेरा होगा।”

iii. साख और प्रतिष्ठा खराब होती है। व्यवसाय या लाइफस्टाइल चाहे कितना भी ग्लैमरस दिखे, सामाजिक प्रतिष्ठा और भरोसा ही टिकाऊ पूँजी है।

नबी करीम ﷺ ने फरमाया “जो लोगों का माल उस नीयत से ले कि वह उसे लौटाएगा, अल्लाह उसकी मदद करेगा; जो उसे नष्ट करने की नीयत से ले, अल्लाह उसे नष्ट कर देगा।” सही बुखारी 2387

मतलब: कर्ज़ को हल्के में लेना या धोखे से लेना अल्लाह के सामने गुनाह है, चाहे इंसान कितना भी अमीर या सफल क्यों न हो।


 मानसिक और नैतिक असर

1. झूठ और बहानों की आदत।

2. धोखे और चालाकी की प्रवृत्ति बढ़ती है।

3. रिश्तों और समाज से दूरी बढ़ती है।

4. तनाव और चिंता हमेशा बनी रहती है।

सिर्फ़ पैसों का नहीं, बल्कि व्यक्तित्व और नैतिकता का नुकसान भी होता है।


इस्लामी सबक और समाधान

1. उधार केवल जरूरत के लिए, मज़ाक या दिखावे के लिए नहीं।

2. समय पर चुकाना सर्वोच्च प्राथमिकता।

3. ईमानदारी और भरोसा आदत बनाएं।

4. सोच-समझ कर खर्च करें।

5. सामाजिक जिम्मेदारी समझें।


उधार लौटाना - हूकूकुल इबाद

अल्लाह कुरआन (4:36) में हुक्म देता है, “अल्लाह की इबादत करो और माँ-बाप, रिश्तेदारों, यतीमों, गरीबों और पड़ोसियों के हक़ का ख्याल रखो।”

हर इंसान के हक़ को निभाना और उनका सम्मान करना वाजिब है।

नबी करीम ﷺ ने फरमाया, “जो अपने भाई के हक़ को नजरअंदाज करता है, वह असली मुसलमान नहीं।” सहीह मुस्लिम 155

  • इंसानों के अधिकारों की अवहेलना सीधे गुनाह है।
  • उधार को मजबूरी और बुरा समझें, उधार से बचने की कोशिश करें, वापस करने को फर्ज़ समझें।
  • दुनिया ही में हिसाब चुकता कर दें वरना याद रखें - क़यामत में हिसाब मुश्किल हो जाएगा। 

याद रखें - "और तुम्हारा रब भूलने वाला नहीं है।” कुरआन 19:64


जितनी चादर, उतने पैर फैलाओ, 
दिखावे के चक्कर में अपनी जान न जलाओ।

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