Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-26

Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut | taghoot)


ताग़ूत का इनकार [पार्ट-26]

(यानि कुफ्र बित-तागूत)


पोस्ट मॉडर्निज़्म (Postmodernism) आज के दौर का तागूत कैसे है?

पोस्ट मॉडर्निज़्म एक विचारधारा और सांस्कृतिक आंदोलन है जो बीसवीं सदी के बीच में शुरू हुआ। इसका मुख्य विचार यह है कि "सच" या "हकीकत" जैसी चीजें स्थायी नहीं होतीं, बल्कि हर व्यक्ति और समाज इसे अपनी स्थिति और दृष्टिकोण के अनुसार समझता है। इसमें नैतिकता, सच्चाई, धर्म, और सांस्कृतिक मान्यताओं को "सापेक्ष" यानी "रिलेटिव" माना जाता है। यह विचार किसी एक वैश्विक सच्चाई को स्वीकार नहीं करता और हर चीज को संदिग्ध और चुनौतीपूर्ण मानता है।

इस्लाम में सच्चाई और हकीकत की एक स्पष्ट, यकीनी और सार्वभौमिक परिभाषा दी गई है, जो अल्लाह के आदेश और क़ुरआन की शिक्षाओं पर आधारित है। इस्लाम मानता है कि सच एक ही है, और वह अल्लाह की तरफ से तय किया गया है:

"तुम्हारे रब की बात सच्चाई और इन्साफ़ के पहलू से मुकम्मल है, कोई फ़रमानों को बदलनेवाला नहीं है और वो सब कुछ सुनता और जानता है।" [क़ुरआन 6:115]

इस्लाम में सच और झूठ के बीच स्पष्ट अंतर है, और यह नहीं माना जाता कि हर किसी का अपना-अपना सच हो सकता है। पोस्ट मॉडर्निज़्म का यह दृष्टिकोण, जो हर व्यक्ति के लिए सच्चाई को सापेक्ष और बदलने योग्य समझता है, इस्लाम की इन बुनियादी शिक्षाओं के खिलाफ है। इसलिए, पोस्ट मॉडर्निज़्म को तागूत की एक शक्ल है, क्योंकि यह इंसान को अल्लाह की सच्चाई से हटा कर धोखा और गुमराही की ओर ले जाता है।


पोस्ट मॉडर्निज़्म क्यों तागूत है?

1. सच्चाई का सापेक्ष होना और अल्लाह के आदेश का इनकार:

पोस्ट मॉडर्निज़्म के अनुसार, कोई भी सच्चाई आखिरी नहीं है और हर चीज को संदिग्ध नजर से देखना चाहिए। यह इस्लामी शिक्षाओं के साथ सीधे टकराव में है, क्योंकि इस्लाम में अल्लाह का सच ही एकमात्र सच है। क़ुरआन में कहा गया है:

"कहो: 'सच तुम्हारे रब्ब की तरफ से है।' तो जो चाहे माने और जो चाहे इनकार करे।" [क़ुरआन 18:29]

यह आयत बताती है कि सच अल्लाह की तरफ से है और इसमें कोई शक या सापेक्षता नहीं हो सकती। पोस्ट मॉडर्निज़्म का यह विचार कि सच्चाई को व्यक्तिगत नजरिये की बुनियाद पर बदला जा सकता है, तागूत की एक स्पष्ट निशानी है, क्योंकि यह इंसान को अल्लाह की एक ही सच्चाई से दूर करता है।


2. नैतिकता का सापेक्ष होना:

पोस्ट मॉडर्निज़्म यह भी कहता है कि नैतिकता और मूल्य सार्वभौमिक नहीं हैं, बल्कि हर समाज और व्यक्ति के अनुसार बदलते रहते हैं। इस्लाम में नैतिकता अल्लाह के आदेश और नबी मुहम्मद (ﷺ) की शिक्षाओं पर आधारित होती हैं, और ये सभी के लिए समान होती हैं। जैसे कि चोरी, झूठ, और ज़िना हर युग और समाज में इस्लाम के अनुसार गुनाह हैं, जबकि पोस्ट मॉडर्निज़्म कहता है कि यह गुनाह नहीं, बल्कि हालात पर निर्भर कर सकते हैं।

क़ुरआन में अल्लाह ने स्पष्ट रूप से कुछ नैतिक मूल्यों को निर्धारित किया है:

"रमज़ान वो महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया, जो इन्सानों के लिये सरासर रहनुमाई है और ऐसी वाज़ेह तालीमात पर मुश्तमिल [ आधारित] है जो सीधा रास्ता दिखानेवाली और सच और झूठ का फ़र्क़ खोलकर रख देनेवाली हैं।" [क़ुरआन 2:185]

यह आयत बताती है कि नैतिकता और धर्म का आधार अल्लाह के आदेशों से निर्धारित होता है, और इसे किसी व्यक्तिगत या सांस्कृतिक दृष्टिकोण पर नहीं बदला जा सकता।


पोस्ट मॉडर्निज़्म के खतरनाक प्रभाव

1. दीनी कमजोरी और धोखा:

 पोस्ट मॉडर्निज़्म का दृष्टिकोण व्यक्ति को दीनी और नैतिक मजबूती से दूर कर देता है। जब सच, नैतिकता, और मूल्य सब कुछ सापेक्ष और संदिग्ध हो जाते हैं, तो इंसान दीन की बुनियादी शिक्षाओं पर यकीन नहीं कर पाता। इससे वह धोखा और गुमराही का शिकार हो जाता है। 


2. सामाजिक और नैतिक पतन:

पोस्ट मॉडर्निज़्म के प्रभाव से समाज में नैतिकता और मजबूती की कमी हो जाती है। अगर हर व्यक्ति और समाज अपना अपना नैतिक मानक तय करने लगे, तो इससे सामाजिक व्यवस्था टूटने लगती है। इस्लाम में एक सामाजिक नैतिकता और व्यवस्था की बहुत अहमियत है, ताकि समाज में न्याय और समानता कायम हो सके।

क़ुरआन में कहा गया है:

"मुसलमानो! अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है की अमानतें अमानतवालों के सुपुर्द करो और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो तो इन्साफ़ के साथ करो, अल्लाह तुमको निहायत अच्छी नसीहत करता है और यक़ीनन अल्लाह सब कुछ सुनता और देखता है।" [क़ुरआन 4:58]

पोस्ट मॉडर्निज़्म की नजरिया इस्लामी समाज को कमजोर करती है और इसे अराजकता और नैतिक पतन की ओर धकेलती है, जो तागूत की एक स्पष्ट निशानी है।


इस्लाम में तौबा और वापसी का तरीका

इस्लाम हमेशा व्यक्ति और समाज को सच की ओर लौटने और गुमराही से बचने की सलाह देता है। जो लोग पोस्ट मॉडर्निज़्म के विचार से प्रभावित होते हैं, उन्हें तौबा करनी चाहिए और अल्लाह की सच्चाई और न्याय पर विश्वास करना चाहिए। क़ुरआन और हदीस में तौबा और सुधार की खास अहमियत बताई गई है:

"जो शख़्स तौबा भला रवैया अपनाता है वो तो अल्लाह की तरफ़ पलट आता है जैसा कि पलटने का हक़ है।" [क़ुरआन 25:71]

पोस्ट मॉडर्निज़्म आज के दौर का तागूत इस लिए है, क्योंकि यह इंसानों को अल्लाह की एकमात्र सच्चाई से दूर कर देता है और उन्हें धोखा, शक, और सापेक्ष नैतिकता की ओर ले जाता है। इस्लाम में सच और नैतिकता के सार्वभौमिक उसूल हैं, जिन्हें बदला नहीं जा सकता, जबकि पोस्ट मॉडर्निज़्म इन उसूलों को चुनौती देता है। यह तागूत की एक खासियत है, जो इंसान को अल्लाह के रास्ते से भटकाकर गुमराही की ओर ले जाती है।


- मुवाहिद


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