Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-25

Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut | taghoot)


ताग़ूत का इनकार [पार्ट-25]

(यानि कुफ्र बित-तागूत)


शक़परस्ती (Skepticism) आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?

शक़परस्ती का मतलब है कि हर चीज़ पर शक़ करना और बिना पक्के सबूत के किसी चीज़ को नहीं मानना। इस सोच से इंसान को धर्म, नैतिकता, और सच्चाई के बारे में यकीन करने में दिक्कत होती है। इस्लाम में ईमान बहुत जरूरी है और शक़ को ईमान के खिलाफ माना जाता है। अल्लाह ने कुरआन में कहा:

"ये किताब (कुरआन) जिसमें कोई शक़ नहीं, ईमान वालों के लिए हिदायत है।" [कुरआन 2:2]

इसका मतलब है कि इस्लाम यकीन और सच्चाई पर खड़ा है, और शक़ इंसान को इस बुनियाद से दूर कर देता है, जो ताग़ूत का एक रूप है।


शक़परस्ती क्यों ताग़ूत है?

शक़परस्ती इंसान को अल्लाह और कुरआन पर शक़ करने पर मजबूर करती है। अगर इंसान अल्लाह की किताब या उसकी सत्ता पर शक़ करने लगे, तो वह ताग़ूत के रास्ते पर जा रहा है। कुरआन कहता है:

"ऐ नबी, इनसे कहो, कभी तुमने ये भी सोचा कि अगर सचमुच ये क़ुरआन ख़ुदा ही की तरफ़ से हुआ और तुम इसका इनकार करते रहे, तो उस शख़्स से बढ़कर भटका हुआ और कौन होगा जो इसकी मुख़ालिफ़त में दूर तक निकल गया हो?" [कुरआन 41:52]

इस तरह, शक़ इंसान को सच्चाई से दूर ले जाता है, और यह ताग़ूत के जाल में फंसने का रास्ता बनता है।


शक़परस्ती के नुकसान

1. गुमराही:

जब इंसान हर चीज़ पर शक़ करने लगता है, तो वह अल्लाह की हिदायत और सच्चाई को मानने में मुश्किल महसूस करता है। हदीस का मफहुम है कि:

"जब तुम में से कोई ऐसा महसूस करे कि उसके दिल में संदेह पैदा हो रहा है, तो उसे चाहिए कि वह अल्लाह से मदद मांगे।" [सहीह मुस्लिम : 134]

इसका मतलब है कि शैतान इंसान के दिल में शक़ डालकर उसे गुमराह करता है।


2. रूहानी कमजोरी:

शक़परस्ती से इंसान का ईमान कमजोर हो जाता है, और उसे अल्लाह की इबादत में दिक्कत महसूस होती है। कुरआन कहता है:

"ख़बरदार रहो, अल्लाह की याद ही वो चीज़ है जिससे दिलों को इत्मीनान मिला करता है।" [कुरआन 13:28]

शक़परस्ती इंसान के दिल को अल्लाह से दूर कर देती है, जो ताग़ूत का हिस्सा है।


तौबा और वापसी का तरीका

इस्लाम हमें सिखाता है कि अगर दिल में शक़ आ जाए, तो अल्लाह से माफी मांगकर यकीन की तरफ लौट आना चाहिए। अल्लाह हमेशा अपने बंदों की तौबा कबूल करता है। हदीस में कहा गया है:

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "गुनाह से तौबा करने वाला उस शख़्स की तरह हो जाता है जिसका कोई गुनाह नहीं।" [इब्न माजाह : 4150]

इसलिए, इंसान को शक़ से दूर होकर अल्लाह पर यकीन करना चाहिए।

शक़परस्ती आज के दौर का ताग़ूत इसलिए है, क्योंकि यह इंसान को अल्लाह और उसकी सच्चाई से दूर ले जाती है। इस्लाम में यकीन की बहुत अहमियत है, और शक़ को ईमान का दुश्मन माना गया है। ताग़ूत का काम इंसान को अल्लाह की राह से भटकाना है, और शक़परस्ती इसी रास्ते पर ले जाती है।


- मुवाहिद


पार्ट-24

अज्ञेयवाद आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?

पार्ट-26

पोस्ट मॉडर्निज़्म आज के दौर का तागूत कैसे है?

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