ताग़ूत का इनकार [पार्ट-27]
(यानि कुफ्र बित-तागूत)
निहिलिज़्म (Nihilism) आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?
निहिलिज़्म एक ऐसी विचारधारा है जिसमें यह माना जाता है कि जीवन का कोई उद्देश्य, अर्थ, या मूल्य नहीं होता। निहिलिस्ट इस बात में यक़ीन रखते हैं कि नैतिकता, धर्म, और अस्तित्व का कोई वास्तविक आधार नहीं है और इनका कोई ठोस महत्व नहीं है। इसके अनुसार, दुनिया और इंसान के जीवन का कोई वास्तविक उद्देश्य नहीं है, और यह सोच इंसान को निराशा और नकारात्मकता की ओर ले जाती है।
इस्लाम के अनुसार, इंसान का जीवन उद्देश्यपूर्ण और अर्थपूर्ण है। अल्लाह ने इंसान को एक विशेष मकसद के साथ पैदा किया है, जो उसकी इबादत करना और आखिरत की तैयारी करना है। कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है:
"और मैंने जिन्न और इंसानों को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।" [कुरआन 51:56]
यह आयत साफ़ तौर पर बताती है कि इंसान का जीवन उद्देश्यहीन नहीं है, बल्कि उसका असली मकसद अल्लाह की इबादत और उसकी बंदगी है। निहिलिज़्म इस्लाम के इस बुनियादी उसूल का इनकार करता है और इंसान को उद्देश्यहीनता की ओर ले जाता है, जो ताग़ूत का एक रूप है।
निहिलिज़्म क्यों ताग़ूत है?
1. अल्लाह के बनाए उद्देश्य से इनकार:
निहिलिज़्म का मानना है कि इंसान और इस दुनिया का कोई उद्देश्य नहीं है। यह सोच अल्लाह के बनाए उद्देश्य का इनकार करती है, जबकि इस्लाम में जीवन का हर पहलू, चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक, एक विशिष्ट उद्देश्य के तहत होता है। कुरआन में अल्लाह तआला ने साफ़ किया है कि इस दुनिया की हर चीज़ एक मकसद के साथ बनाई गई है:
"क्या तुमने ये समझ रखा है कि हमने तुम्हें यूँ ही बेकार (बेमकसद) पैदा किया है और तुम्हें हमारी तरफ़ लौटकर नहीं आना है?" [कुरआन 23:115]
निहिलिज़्म इंसान को इस मकसद से हटा कर निरर्थकता और भ्रम की ओर ले जाता है, जो कि इस्लामी तालीमात के बिल्कुल खिलाफ़ है। यह इंसान को अल्लाह के बनाए हुए कायदे और हुक्म से दूर करता है, और ताग़ूत का काम ही यही होता है कि वह इंसान को अल्लाह की राह से भटकाए।
2. आख़िरत की अनदेखी:
निहिलिज़्म के विचार में आखिरत का कोई महत्व नहीं होता क्योंकि यह जीवन को ही निरर्थक मानता है। इसके विपरीत, इस्लाम हमें सिखाता है कि असली जीवन आखिरत का है, और हमें अपने हर काम का हिसाब देना होगा। कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है:
"हक़ीक़त ये है कि जो लोग आख़िरत को नहीं मानते उनके लिये हमने उनके करतूतों को लुभावना बना दिया है, इसलिये वो भटकते फिरते हैं।" [कुरआन 27:4]
निहिलिज़्म का मानना है कि किसी भी चीज़ का अंत में कोई मूल्य नहीं होता, और यह इंसान को अल्लाह के सामने जवाबदेही से दूर कर देता है। ताग़ूत की यही निशानी है कि वह इंसान को अल्लाह की इबादत और आखिरत की सोच से दूर कर दे।
निहिलिज़्म के खतरनाक असरात
1. नैतिक पतन:
निहिलिज़्म में नैतिकता की कोई जगह नहीं होती। इस विचारधारा में यह माना जाता है कि नैतिकता इंसानों द्वारा बनाई गई है और इसका कोई वास्तविक आधार नहीं है। इसके चलते लोग नैतिक मूल्यों को महत्व नहीं देते और यह समाज में अनैतिकता और गुनाह को बढ़ावा देता है। इस्लाम में नैतिकता का बहुत महत्व है और इंसान के हर अच्छे और बुरे कर्म का हिसाब लिया जाएगा। कुरआन में आता है:
"उस रोज़ लोग मुतफ़र्रिक़ हालत में पलटेंगे ताकि उनके आमाल उनको दिखाए जाएं। फिर जिसने ज़र्रा-बराबर नेकी की होगी वो उसको देख लेगा। और जिसने ज़र्रा-बराबर बदी की होगी वो उसको देख लेगा।"[कुरआन 99: 6-8]
निहिलिज़्म की सोच इंसान को नैतिक ज़िम्मेदारियों से दूर करके गुमराही की तरफ़ धकेलती है।
2. डिप्रेशन और मानसिक तनाव:
जब इंसान यह मान ले कि उसके जीवन का कोई उद्देश्य या मूल्य नहीं है, तो यह उसे निराशा और डिप्रेशन की ओर ले जाता है। इस्लाम ने इंसान को मानसिक सुकून और संतुलन के लिए एक मकसद दिया है। कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है:
"जो लोग ईमान लाए और जिनके दिल अल्लाह की याद से इत्मीनान पाते हैं, याद रखो अल्लाह की याद ही से दिलों को इत्मीनान मिलता है।" [कुरआन 13:28]
निहिलिज़्म की सोच इंसान को इस्लामी इत्मीनान से दूर करती है और उसे मानसिक और भावनात्मक परेशानी में डाल देती है, जो एक ताग़ूत की निशानी है।
इस्लाम में तौबा और वापसी
इस्लाम हमें सिखाता है कि अगर कोई इंसान ताग़ूत के रास्ते पर चल निकले, तो उसे अल्लाह की तरफ़ लौट आना चाहिए और तौबा करनी चाहिए। निहिलिज़्म जैसी नकारात्मक सोचों से बचने के लिए इंसान को अल्लाह की इबादत करनी चाहिए और उसकी रहमत की ओर लौटना चाहिए। अल्लाह तआला तौबा करने वालों को पसंद करता है:
"ये और बात है कि कोई (इन गुनाहों के बाद) तौबा कर चुका हो और ईमान लाकर अच्छे काम करने लगा हो। ऐसे लोगों को अल्लाह भलाइयों से बदल देगा। और वो बड़ा माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।" [कुरआन 25:71]
निहिलिज़्म आज के दौर का ताग़ूत इसलिए है क्योंकि यह इंसान को अल्लाह के बनाए हुए उद्देश्य और कायदे से हटाकर निरर्थकता, नकारात्मकता, और गुमराही की ओर ले जाता है। यह सोच इंसान को नैतिकता, धर्म, और आख़िरत की ज़िम्मेदारी से दूर कर देती है और उसे मानसिक तनाव और निराशा में धकेल देती है। इस्लाम में जीवन का एक उद्देश्य है, जो अल्लाह की इबादत और आखिरत की तैयारी है, और निहिलिज़्म इस उद्देश्य का इनकार करके इंसान को भटका देता है।
- मुवाहिद
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