ताग़ूत का इनकार [पार्ट-24]
(यानि कुफ्र बित-तागूत)
अज्ञेयवाद (Agnosticism) आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?
अज्ञेयवाद वो फलसफियाना नज़रिया है जिसमें इंसान ये दावा करता है कि अल्लाह के वुजूद के बारे में कतई इल्म हासिल करना मुमकिन नहीं है, यानी इंसान के पास ये सलाहियत नहीं कि वो खुदा के वुजूद या उसके अदम वुजूद (खुदा का न होना) के बारे में यक़ीन से कोई फैसला कर सके। ये नज़रिया दर-असल अल्लाह के वुजूद को शक और शुबहात में डालने और इंसान को हक़ से भटकाने की कोशिश है। इस्लाम की तालीमात के मुताबिक, ऐसी सोच ताग़ूत की तासीर में आती है, क्योंकि ये अल्लाह की हाकमियत को चैलेंज करती है और इंसान को अपनी अक़ल को हत्मी मयार बनाने पर उभारती है।
इस्लामी इस्तिलाह में "ताग़ूत" हर वो क़ुव्वत, निज़ाम या नज़रिया है जो अल्लाह की बंदगी के मुक़ाबले में इंसान को सरकशी और नाफ़रमानी की राह पर डाले।
अज्ञेयवाद (Agnosticism) का मतलब और इस्लामी उसूलों से टकराव
अज्ञेयवाद (Agnosticism) वह सूरत-ए-हाल है जिसमें शख्स यह मानता है कि अल्लाह के वुजूद का ना तो सबूत दिया जा सकता है और ना इनकार किया जा सकता है। यह उन लोगों की सोच है जो नास्तिकता (atheism) और आस्तिकता (theism) के दरमियान खड़े रहते हैं और अल्लाह पर यकीन के मामले में दो-दिल होते हैं।
इस्लाम एक वाज़ेह और मज़बूत ईमान की तलब करता है जिसमें अल्लाह पर पूरा यकीन, उसके रसूलों और आख़िरत पर ईमान होता है।
कुरान में अल्लाह ने फ़रमाया:
"हक़ीक़त में तो मोमिन वो हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए फिर उन्होंने कोई शक न किया और अपनी जानों और मालों से अल्लाह की राह में जिहाद किया वही सच्चे लोग हैं।" [कुरआन 49:15]
इस्लाम में शक़ की कोई गुंजाइश नहीं है, और अल्लाह पर ईमान के बग़ैर कोई शख्स सीधे रास्ते पर नहीं हो सकता।
अज्ञेयवाद (Agnosticism) और ताग़ूत का ताल्लुक़
अज्ञेयवाद (Agnosticism) दर-असल इंसान को इस हकीकत से दूर करता है कि अल्लाह ही हक़ीक़ी माबूद है और वही हर चीज़ का ख़ालिक और मालिक है। अज्ञेयवाद (Agnosticism) के पैरोकार ये मानने से इनकार करते हैं कि अल्लाह के वुजूद को जाना जा सकता है, और इससे ये तसव्वुर पैदा होता है कि इंसान अपनी अक़ल से खुद फैसला करे कि क्या दुरुस्त है और क्या ग़लत, जबकि इस्लाम ये तालीम देता है कि इंसान की अक़ल महदूद है और वो अल्लाह के बताए बग़ैर हक़ीक़त को मुकम्मल तौर पर नहीं समझ सकता।
अल्लाह तआला ने कुरआन में उन लोगों की मज़म्मत की है जो अपनी ख़्वाहिशात और अक़ल को ख़ुदा का दर्जा देते हैं:
"क्या तुमने उस शख़्स को देखा जिसने अपनी ख़्वाहिश को अपना माबूद बना लिया?" [कुरआन 45:23]
अज्ञेयवाद (Agnosticism) इसी तर्ज़-ए-फिक्र की एक शक्ल है, जहां इंसान अपनी महदूद अक़ल को मयार बनाता है और अल्लाह की ज़ात और उसकी सिफ़ात को मानने में शक और शुबहात का इज़हार करता है।
नबी करीम ﷺ ने फरमाया: "ईमान ये है कि तुम अल्लाह पाक के वुजूद और उसकी यकताई पर ईमान लाओ और उसके फ़रिश्तों के वुजूद पर और इस (अल्लाह) की मुलाक़ात के हक़ होने पर और उसके रसूलों के हक़ पर होने पर और मरने के बाद दोबारा उठने पर ईमान लाओ।" [सहीह बुखारी : 50]
लोग सवालात करते रहेंगें हत्ता कहेंगे कि ये सब मखलूक अल्लाह ने पैदा की है तो फिर अल्लाह को किसने पैदा किया है? तो जो कोई इस तरह की बात करे या वहम पाए तो उसको चाहिए यूं कहे: "मैं अल्लाह पर ईमान लाया।" [अबू दाउद :4721, सहीह मुस्लिम : 134]
ये हदीस वाज़ेह करती है कि ईमान शक और शुबहात से ख़ाली होता है और अल्लाह के वुजूद और उसकी हाकमियत पर मुकम्मल यक़ीन पर मबनी होता है, जबकि अज्ञेयवाद (Agnosticism) इसके बरअक्स अल्लाह के वुजूद को शक में डालता है।
1. शक और शक़ की सोच:
अज्ञेयवाद (Agnosticism) इंसान को एक ऐसे रास्ते पर ले जाता है जहां वह अल्लाह की मौजूदगी के बारे में शक में मुबतला हो जाता है। कुरान में अल्लाह ने शक करने वालों को गुमराह क़रार दिया है।
"हक़ीक़त ये है कि इनमें से ज़्यादातर लोग सिर्फ़ अटकल और गुमान के पीछे चले जा रहे हैं। हालाँकि गुमान हक़ की ज़रूरत को कुछ भी पूरा नहीं करता। जो कुछ ये कर रहे हैं, अल्लाह उसको ख़ूब जानता है।" [कुरआन 10:36]
2. अल्लाह के हुकूमात का इनकार:
अग्नौष्टिक (Agnostic) शख्स अल्लाह के वाज़ेह हुकूमात और उसके वुजूद को शक्की मान लेता है, जबकि इस्लाम में अल्लाह के वुजूद और उसके हुकूमात को पूरा यकीन के साथ क़बूल करना ईमान का बुनियादी हिस्सा है। कुरान कहता है:
क्या इन लोगों ने आसमानों और ज़मीन के इन्तिज़ाम पर कभी ध्यान नहीं दिया और किसी चीज़ को भी, जो अल्लाह ने पैदा की है, आँखें खोलकर नहीं देखा? और क्या ये भी उन्होंने नहीं सोचा कि शायद इनकी ज़िन्दगी की मोहलत पूरी होने का वक़्त क़रीब आ लगा हो? फिर आख़िर पैग़म्बर की इस चेतावनी के बाद और कौन-सी बात ऐसी हो सकती है जिसपर ये ईमान लाएं? [कुरआन 7:185]
अज्ञेयवाद (Agnosticism) के ख़तरनाक असरात
1. ईमान की कमज़ोरी:
अज्ञेयवाद (Agnosticism) की वजह से इंसान का ईमान कमज़ोर हो जाता है और वह अल्लाह पर शक करने लगता है। इस्लाम में मज़बूत ईमान सबसे ज़रूरी चीज़ है।
2. आख़िरत की तैयारी में ढील:
अग्नौष्टिक (Agnostic) शख्स आख़िरत और क़यामत के दिन पर शक करता है, जिस से वह अपनी ज़िम्मेदारियों से ग़ाफिल हो जाता है। कुरान कहता है:
हक़ीक़त ये है कि जो लोग हमसे मिलने की उम्मीद नहीं रखते और दुनिया की ज़िन्दगी ही पर राज़ी और मुतमइन हो गए हैं, और जो लोग हमारी निशानियों से ग़ाफ़िल हैं, उनका आख़िरी ठिकाना जहन्नम होगा, उन बुराइयों के बदले में जिन्हें वो (अपने इस ग़लत अक़ीदे और ग़लत रवैये की वजह से) करते रहे।" [कुरआन 10:7-8]
इस्लाम में तौबा और वापसी
इस्लाम में अल्लाह के हुकूमात से दूर चले जाने पर तौबा का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता है। इंसान को हर क़िस्म के शक और अग्नौष्टिक (agnostic) सोचों से बचना चाहिए और अल्लाह के रास्ते पर लौटना चाहिए। कुरान कहता है:
(ऐ नबी) कह दो कि ऐ मेरे बन्दो, जिन्होंने अपनी जानों पर ज़्यादती की है, अल्लाह की रहमत से मायूस न हो जाओ, यक़ीनन अल्लाह सारे गुनाह माफ़ कर देता है, वो तो माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।" [कुरआन 39:53]
अज्ञेयवाद (Agnosticism) आज के दौर का ताग़ूत है क्योंकि यह इंसान को अल्लाह की इबादत और उसके वाज़ेह हुकूमात से दूर कर रहा है। इस्लाम में ईमान और अल्लाह के हुक्म की पूरी पाबंदी ज़रूरी है, और अज्ञेयवाद (Agnosticism) इसके ख़िलाफ़ है।
- मुवाहिद
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।