Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-23

Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut | taghoot)


ताग़ूत का इनकार [पार्ट-23]

(यानि कुफ्र बित-तागूत)


एनार्किज़्म (Anarchism) आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?

अनार्किज़्म को आज के दौर का ताग़ूत इस लिए है क्योंकि यह सिर्फ़ एक सियासी नज़रिया नहीं, बल्कि इस्लाम के बुनियादी अकीदा और सामाजिक निज़ाम के खिलाफ़ एक चुनौती है। ताग़ूत की एक वाज़ेह तहरीर यह है कि हर वह चीज़ जो इंसान को अल्लाह तआला के दीन से दूर करे और अल्लाह के कानून के अलावा किसी और चीज़ की इबादत, हुकूमत, या इताअत करने पर मजबूर करे।

अब हम देखते हैं कि अनार्किज़्म का निज़ाम किस तरह से इस्लाम के खिलाफ़ जाता है और इसे क्यों ताग़ूत कहते हैं:


1. हुकूमत का इंकार:

अनार्किज़्म का असल मंसूबा यह है कि किसी किस्म की हुकूमत का इंतिज़ाम ना हो, यानी कि कोई भी अथॉरिटी या पावर स्ट्रक्चर ना हो जो लोगों पर हुकूमत करे। इस्लाम इस बात की तालीम देता है कि हुकूमत एक ज़रूरी हिस्सा है इंसानों के लिए, ताकि इंसाफ़ का निफाज़ हो और ज़ालिमों और फसाद पैदा करने वालों को रोका जा सके। अल्लाह तआला क़ुरआन नेक लोगों के बारे में फरमाते हैं:

"ये वो लोग हैं जिन्हें अगर हम ज़मीन में इक़्तिदार (हुकूमत) दें तो वो नमाज़ क़ायम करेंगे, ज़कात देंगे, भलाई का हुक्म देंगे और बुराई से रोकेंगे। और तमाम मामलों का अंजाम अल्लाह के हाथ में है।" [कुरआन 22:41]

"अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतों को उनके अहल (हकदार) के हवाले करो, और जब तुम लोगों के दरमियान फैसला करो तो इंसाफ़ के साथ करो।" [कुरआन 4:58]

इन आयतों से वाज़ेह होता है कि अल्लाह तआला हुकूमत को क़ायम करने और इंसाफ़ करने का हुक्म देते हैं। जबकि अनार्किज़्म किसी भी किस्म की हुकूमत का इंकार करता है, और इसे ज़ुल्म समझता है। इस्लाम का निज़ाम हुकूमत और अथॉरिटी को शरी'ई उसूलों के तहत इंसानी मसलेह और फ़लाह का ज़रिया बनाता है।


2. अदल और कानून का ख़ात्मा:

अनार्किज़्म के नज़दीक कोई कानून नहीं होना चाहिए जो लोगों को रोके या उन पर पाबंदी लगाए। यह बिल्कुल इस्लाम के कानून और शरियत के खिलाफ़ है, क्योंकि इस्लाम में कानून का एक अहम मक़ाम है। शरियत का कानून इंसानी ज़िंदगी के हर पहलू को गाइड करता है, जिसमें इबादत, मुआशरात, सियासत और अदालत भी शामिल हैं। क़ुरआन में अल्लाह तआला फरमाते हैं:

"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! बात मानो अल्लाह की और बात मानो रसूल की और उन लोगों की जो तुममें से हुक्म देने का अधिकार रखते हों। फिर अगर तुम्हारे बीच किसी मामले में झगड़ा हो जाए तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ़ फेर दो।" [कुरआन 4:59]

यहां पर कानून और अथॉरिटी की अहमियत को वाज़ेह किया गया है। जब लोग कानून के बगैर रहते हैं, तो ज़ुल्म और फसाद बरपा होता है। अनार्किज़्म लोगों को अपनी मर्ज़ी से जीने का दर्स देता है, जबकि इस्लाम एक मुनसिफ़ाना और कानून के निज़ाम को क़ायम करता है ताकि इंसान फितरी तौर पर इंसाफ़ और अमल के तहत जी सके।


3. जमाअती निज़ाम का इंकार:

अनार्किज़्म इंडिविज़ुअलिज़्म का पैगाम देता है, यानी कि हर शख्स अपनी ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक गुज़ारे, बिना किसी जमाअती निज़ाम के। जबकि इस्लाम में एक जमाअती और इत्तिहादी निज़ाम को बहुत अहमियत दी गई है। मुसलमानों को एक जमाअत में रहने, एक हुकूमत के ज़ैर रहने और इताअत करने का हुक्म है।

नबी ﷺ ने फरमाया: "मैं तुम्हें अपने सहाबा की पैरवी की वसीयत करता हूँ  फिर उनके बाद आने वालों (यानी ताबेईन) की फिर उनके बाद आने वालों (यानी तबअ ताबेईन) की  फिर झूट आम हो जाएगा  यहाँ तक कि क़सम खिलाए  बग़ैर आदमी क़सम खाएगा और गवाह गवाही तलब किये जाने से पहले ही गवाही देगा  ख़बरदार!  तुम लोग जमाअत को लाज़िम पकड़ो और  पार्टीबन्दी से बचो क्योंकि शैतान अकेले आदमी के साथ रहता है।  दो के साथ  उसका रहना निस्बतन ज़्यादा दूर की बात है।  जो शख़्स जन्नत के दरमियानी हिस्से  में जाना चाहता हो वो जमाअत से लाज़िमी तौर पर जुड़ा रहे।" [सुनन तिरमिजी : 2165)

इस्लाम का निज़ाम फरदी नहीं, बल्कि जमाअती है। अनार्किज़्म इस जमाअती निज़ाम का इंकार करता है और फर्द को सब कुछ समझता है, जो इस्लाम के इत्तिहादी निज़ाम के खिलाफ़ है।


4. हुकूमत के खिलाफ़ बगावत:

अनार्किज़्म का एक अहम पहलू यह है कि यह लोगों को हुकूमत के खिलाफ़ बगावत और खिलाफ़वर्ज़ी करने पर उभारते हैं। अनार्किज़्म के नज़दीक अगर कोई हुकूमत या कानून मौजूद हो, तो उसके खिलाफ़ उठने का हक हर शख्स को है। जबकि इस्लाम हुकूमत के खिलाफ़ बगावत को मना करता है, जब तक हुकूमत अल्लाह के अहकाम के खिलाफ़ ना हो। क़ुरआन में अल्लाह तआला फरमाते हैं:

"और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो, और उन लोगों की भी जो तुम में हुकूमत करते हैं।"  [कुरआन 4:59]

यह आयत हुकूमत की इताअत को ज़रूरी क़रार देती है सिवाय इसके कि हुकूमत जालिम हो, मगर अनार्किज़्म इसका इंकार करता है और बगावत और फसाद की तरग़ीब देता है।


5. अल्लाह के कानून का इनकार:

अनार्किज़्म में राज्य और कानून के किरदार का इनकार किया जाता है, जो इस्लाम के बुनियादी उसूलों के खिलाफ है। इस्लाम में, कानून की पाबंदी अल्लाह की शरीअत के मुताबिक की जाती है। क़ुरआन में इरशाद है:

"फैसले का इख़्तियार सिर्फ अल्लाह के लिए है..." [क़ुरआन 6:57]

जब किसी नज़रिया में अल्लाह के कानून को नजरअंदाज किया जाता है, तो वह ताग़ूत के ज़ुमरे में आता है।


6. ग़ैरअखलाक़ियात और इन्तिशार:

अनार्किज़्म के उसूलों पर अमल करने से समाज में इन्तिशार और ग़ैरअखलाक़ियात बढ़ सकती है। अगर किसी समाज में कोई केंद्रीय कानून या हुक्मरानी न हो, तो लोग अपनी खुदगर्ज़ियों के मुताबिक अमल करेंगे, जिससे समाज में इख़्तिलाफ और बे-तरतीबी बढ़ेगी। क़ुरआन में इरशाद है:

"क्या तुमने उसे देखा, जिसने अपनी इच्छा को अपना माबूद (खुदा) बना लिया है?" [क़ुरआन 25:43]

इस आयत में अल्लाह तआला उन लोगों की बात कर रहे हैं जो अपनी इच्छाओं के पीछे चलते हैं, सही और गलत का फैसला अपनी इच्छाओं के आधार पर करते हैं, और अल्लाह के हुक्म को नजरअंदाज करते हैं।


7. ताग़ूत की पहचान:

ताग़ूत का असल मतलब है हर वह चीज़ जो अल्लाह के दीन और हुक्म के खिलाफ़ हो और लोगों को गुमराही की तरफ़ ले जाए। अनार्किज़्म एक ऐसे निज़ाम का हवाला है जो लोगों को अल्लाह के निज़ाम और उसके अहकाम से दूर करता है, और उन्हें अपनी मर्जी और खुद इख्तियारी की तरफ बुलाता है। अल्लाह तआला फरमाते हैं:

"वह लोग जो ताग़ूत का इंकार करते हैं और अल्लाह पर ईमान लाते हैं, वह मज़बूत रस्सी को पकड़ते हैं।" [कुरआन 2:256]

ताग़ूत का इंकार और अल्लाह के अहकाम का इताअत ही हिदायत का रास्ता है। अनार्किज़्म एक ऐसे निज़ाम का नाम है जो लोगों को अल्लाह के निज़ाम से दूर करता है और अपनी खुदी का दर्स देता है।

अनार्किज़्म की असल सोच अल्लाह की अथॉरिटी, हुकूमत, और कानून को चैलेंज करती है, जो इस्लाम के क़ानूनी और मुआशरती निज़ाम के बिल्कुल खिलाफ़ है। इस लिए, यह एक ऐसे फ़ितने का ज़रिया है जो लोगों को अल्लाह के दीन से गुमराह करता है, और इसे ताग़ूत के तौर पर समझा जा सकता है।

इस्लाम हमें सिखाता है कि हमें अल्लाह की इबादत करनी चाहिए और उसके आदेशों का पालन करना चाहिए। एनार्किज़्म जैसी विचारधाराओं से दूर रहकर मुसलमानों को अपनी पहचान और इस्लामी उसूलों पर कायम रहना चाहिए।


- मुवाहिद


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