ताग़ूत का इनकार [पार्ट-22]
(यानि कुफ्र बित-तागूत)
मैटेरियलिज़्म (Materialism) आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?
मैटेरियलिज़्म एक ऐसी सोच है जिसमें इंसान की ज़िंदगी का मकसद सिर्फ़ दुनिया की चीज़ें, दौलत, और आराम पाना होता है। इसमें इंसान सिर्फ़ दुनिया के मज़े और पैसा इकट्ठा करने में लगा रहता है, और आखिरत (परलोक) की फिक्र नहीं करता। यह इस्लाम की शिक्षा के ख़िलाफ़ है, जिसमें इंसान को अपने जीवन का असली मकसद अल्लाह की इबादत और आखिरत की तैयारी करना बताया गया है।
मैटेरियलिज़्म का इस्लामी उसूलों से टकराव:
1. इस्लामी नज़रिया:
इस्लाम में ज़िंदगी का मकसद सिर्फ़ दौलत और दुनिया के मज़े पाना नहीं है, बल्कि अल्लाह की इबादत करना और नेक काम करना है ताकि आखिरत में कामयाबी मिले। कुरआन में कहा गया है:
"जो लोग बस इसी दुनिया की ज़िन्दगी और उसकी लुभावनी चीज़ों की तलब रखते हैं, उनके किए-धरे का सारा फल हम यहीं उनको देते हैं और इसमें उनके साथ कोई कमी नहीं की जाती। मगर आख़िरत में ऐसे लोगों के लिये आग के सिवा कुछ नहीं है। [वहाँ मालूम हो जाएगा कि जो कुछ उन्होंने दुनिया में बनाया, वो सब मिट्टी में मिल गया और अब उनका सारा किया-धरा सिर्फ़ बातिल है।" [कुरआन 11:15-16]
इस आयत में साफ़ कहा गया है कि अगर इंसान सिर्फ़ दुनिया के पीछे भागेगा, तो आखिरत में उसके पास कुछ भी नहीं रहेगा।
2. दौलत की इबादत
एक हदीस का माफहूम नबी (ﷺ) ने,
"उस शख्स की तबाही हो जिसने दीनार (सोने के सिक्के) और दिरहम (चांदी के सिक्के) को अपना माबूद (इबादत का पात्र) बना लिया।" [सहीह बुखारी 2886]
इस हदीस से पता चलता है कि अगर इंसान दौलत को अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मकसद बना लेता है, तो वह ताग़ूत की राह पर है। जब इंसान अपने दिल की ख्वाहिशों के पीछे दौड़ता है और दौलत को अल्लाह से ज़्यादा अहमियत देने लगता है, तो वह गुमराह हो जाता है।
मैटेरियलिज़्म क्यों ताग़ूत है?
1. अल्लाह की बजाय दुनिया की इबादत:
मैटेरियलिज़्म में इंसान दुनिया की चीज़ों को इतनी अहमियत देता है कि अल्लाह की याद और इबादत से दूर हो जाता है। कुरआन में कहा गया है:
"तुम लोगों को ज़्यादा-से-ज़्यादा और एक-दूसरे से बढ़कर दुनिया हासिल करने की धुन ने ग़फ़लत में डाल रखा है, यहाँ तक कि तुम कब्र तक पहुँच गए।" [कुरआन 102:1-2]
इस आयत से पता चलता है कि जब इंसान सिर्फ़ दुनिया की चीज़ों में खो जाता है, तो वह अल्लाह को भूल जाता है। यह उसे ताग़ूत की तरफ़ ले जाता है, क्योंकि वह सिर्फ़ दुनिया के आराम के पीछे भागता है और आखिरत की फिक्र नहीं करता।
2. आखिरत की अनदेखी:
मैटेरियलिज़्म इंसान को सिर्फ़ दुनिया के मज़ों में लगा देता है, और वह आखिरत को भूल जाता है। इस्लाम में बताया गया है कि असली ज़िंदगी आखिरत की है, और दुनिया की ज़िंदगी सिर्फ़ एक इम्तिहान है।
कुरआन में कहा गया है:
"ख़ूब जान लो कि ये दुनिया की ज़िन्दगी इसके सिवा कुछ नहीं कि एक खेल और दिल-लगी और ज़ाहिरी टीप-टॉप और तुम्हारा आपस में एक-दूसरे पर फ़ख़्र जताना और माल व औलाद में एक-दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश करना है। दुनिया की ज़िन्दगी एक धोखे के समान के सिवा कुछ नहीं।" [कुरआन 57:20]
दुनिया की मोहब्बत और उसकी चमक-धमक ताग़ूत का ही एक रूप है, क्योंकि यह इंसान को अल्लाह के रास्ते से भटका देती है।
मैटेरियलिज़्म के नुकसान:
1. अखलाकी गिरावट:
जब इंसान सिर्फ़ दौलत और आराम के पीछे भागता है, तो वह अपनी अच्छाई और ईमानदारी को भूल जाता है। वह हर वह काम करने लगता है, जिससे उसे पैसा मिले, चाहे वह गलत हो या सही। इससे समाज में धोखाधड़ी, रिश्वतखोरी और बेईमानी जैसी बुराइयाँ बढ़ जाती हैं।
2. आखिरत से दूरी:
मैटेरियलिज़्म इंसान को आखिरत से दूर कर देता है, और वह सिर्फ़ इस दुनिया की फिक्र में लगा रहता है। अल्लाह ने ऐसे लोगों के लिए कहा है:
"जो दुनिया की ज़िन्दगी को आख़िरत पर तरजीह देते हैं, जो अल्लाह के रास्ते से लोगों को रोक रहे हैं और चाहते हैं कि ये रास्ता [ उनकी ख़ाहिशों के मुताबिक़] टेढ़ा हो जाए। ये लोग गुमराही में बहुत दूर निकल गए हैं।" [कुरआन 14:3]
3. दिल की सख्ती:
जो लोग सिर्फ़ दौलत और दुनिया के मज़ों के पीछे भागते हैं, उनके दिल सख्त हो जाते हैं और उनका ईमान कमजोर हो जाता है। कुरआन में कहा गया है:
"ये इसलिये कि उन्होंने आख़िरत के मुक़ाबले में दुनिया की ज़िन्दगी को पसन्द कर लिया, और अल्लाह का क़ायदा है कि वो उन लोगों को नजात (मुक्ति) का रास्ता नहीं दिखाता जो उसकी नेमत को झुठलाएँ।" [कुरआन 16:107]
इस्लाम में तौबा का दरवाजा हमेशा खुला रहता है। जो लोग दुनिया की मोहब्बत में खो जाते हैं, उन्हें तौबा करके अल्लाह की तरफ़ लौट आना चाहिए और अपनी गलतियों से सबक लेना चाहिए। अल्लाह ने कहा है:
"जो शख़्स तौबा भला रवैया अपनाता है वो तो अल्लाह की तरफ़ पलट आता है जैसा कि पलटने का हक़ है।" [कुरआन 25:71]
नतीजा:
मैटेरियलिज़्म आज का ताग़ूत है क्योंकि यह इंसान को अल्लाह की इबादत और आखिरत की तैयारी से दूर कर देता है। यह इंसान को दुनिया की मोहब्बत और ऐशो-आराम का गुलाम बना देता है, जिससे वह अल्लाह की हिदायतों से भटक जाता है। इस्लाम हमें सिखाता है कि असली कामयाबी आखिरत में है, इसलिए हमें अपनी ज़िंदगी का मकसद अल्लाह की इबादत और आखिरत की तैयारी बनाना चाहिए, न कि सिर्फ़ दुनिया की चीज़ों को पाना।
- मुवाहिद
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