ताग़ूत का इनकार [पार्ट-16]
(यानि कुफ्र बित-तागूत)
कम्युनिज़्म (Communism) आज के दौर का ताग़ूत कैसे है?
इस्लाम के मुताबिक़, "ताग़ूत" वो हर चीज़ है जो अल्लाह के इलाह होने का इंकार करके इंसान को अपनी हुकूमत या फ़िक्र का ग़ुलाम बना लेती है। ताग़ूत सिर्फ़ बुत-परस्ती तक महदूद नहीं, बल्कि हर वो सिस्टम, सोच, या शख्स जो इंसान को अल्लाह की दी हुई हिदायत से दूर करने का ज़रिया बने, ताग़ूत की कैटेगरी में आता है।
कम्युनिज़्म एक राजनीतिक और आर्थिक विचारधारा है जो समाज में वर्गहीनता और संपत्ति के सामूहिक स्वामित्व को बढ़ावा देती है। इसका उद्देश्य श्रमिकों की मेहनत का फल उन्हें दिलाना और पूंजीपतियों द्वारा शोषण को खत्म करना है। हालाँकि, इस विचारधारा का इस्लामिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने पर यह ताग़ूत की श्रेणी में आता है।
कम्युनिज़्म का मूल और इस्लामी उसूलों का टकराव:
कम्युनिज़्म की परिभाषा:
कम्युनिज़्म का मानना है कि सभी संपत्तियाँ समाज की हैं और व्यक्तिगत स्वामित्व को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य एक वर्गहीन समाज बनाना है, जिसमें सभी लोगों को समान अधिकार और संसाधनों तक पहुँच हो।
इस्लामी उसूल:
इस्लाम में, अल्लाह ने मानवता को व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार दिया है। कुरआन में कहा गया है:
"और तुम लोग न तो आपस में एक-दूसरे के माल ग़लत तरीक़े से खाओ और न हाकिमों के आगे उनको इस मक़सद से पेश करो कि तुम्हें दूसरों के माल का कोई हिस्सा जान-बूझकर ज़ालिमाना तरीक़े से खाने का मौक़ा मिल जाए।" [कुरआन 2:188]
इस्लाम व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार को मान्यता देता है और उसे सुरक्षित रखने के लिए नियम निर्धारित करता है। इसलिए, कम्युनिज़्म का व्यक्तिगत संपत्ति के खिलाफ होना इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
कम्युनिज़्म के ताग़ूत होने के कारण
1. अल्लाह के कानून का इनकार:
कम्युनिज़्म धर्म को सामाजिक मुद्दों से अलग करता है। इसका मानना है कि धार्मिक मान्यताएँ और विचारधाराएँ समाज की प्रगति में बाधा डालती हैं। इस दृष्टिकोण से, यह अल्लाह के कानून और उसके आदेशों को अनदेखा करता है। इस्लाम में, अल्लाह का कानून समाज के सभी पहलुओं को कवर करता है:
"फैसले का सारा इख्तियार अल्लाह को है..." [कुरआन 6:57]
जब कोई विचारधारा अल्लाह के कानून को नकारती है, तो यह सीधे तौर पर ताग़ूत की परिभाषा में आती है।
2. शिक्षा और संस्कृति का अवमूल्यन:
कम्युनिज़्म में शिक्षा और संस्कृति को एक विशिष्ट तरीके से नियंत्रित किया जाता है। इसका उद्देश्य एक सामूहिक सोच का निर्माण करना है, जिससे व्यक्तिगत और धार्मिक पहचान को मिटाया जा सके। इस्लाम में, हर व्यक्ति को अपनी पहचान बनाए रखने का अधिकार है और इसे धार्मिक शिक्षाओं के माध्यम से सुरक्षित किया गया है।
कम्युनिज़्म के खतरनाक असरात
1. सामाजिक विभाजन:
कम्युनिज़्म में, जब व्यक्तिगत संपत्ति और अधिकार छीन लिए जाते हैं, तो इससे समाज में विभाजन पैदा होता है। इस्लाम में, समाज की एकता और भाईचारा बहुत अहमियत रखता है। कुरआन में कहा गया है:
"और अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थामे रहो और आपस में विभाजित न हो जाओ।" [कुरआन 3:103]
इस आयत में अल्लाह तआला ने मुसलमानों को एकता बनाए रखने का आदेश दिया है और विभाजन से बचने की हिदायत दी है। यह आयत बताती है कि समाज में एकता और भाईचारा कायम रखना इस्लाम में अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन जब कम्युनिज़्म व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार को खत्म करता है, तो इससे समाज में दूरी और फूट बढ़ती है, जो इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है।
2. अखलाक़ी पतन:
कम्युनिज़्म की विचारधारा में, श्रमिकों को सामाजिक वर्गों के खिलाफ खड़ा किया जाता है, जो अंततः सामाजिक और नैतिक पतन की ओर ले जाती है। इस्लाम में, नैतिकता और आचार-व्यवहार की बहुत अहमियत है। जब इंसान अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को छोड़ देता है, तो यह समाज में अनैतिकता को बढ़ावा देता है।
इस्लाम में तौबा और वापसी
इस्लाम हमें सिखाता है कि हमें अल्लाह की इबादत करनी चाहिए और उसकी राह पर चलना चाहिए। कम्युनिज़्म जैसी सोचों से दूर रहकर मुसलमानों को अपनी पहचान, नैतिकता, और इस्लामी उसूलों पर कायम रहना चाहिए।
कम्युनिज़्म इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है क्योंकि यह अल्लाह के कानून को नकारता है, व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकारों को समाप्त करता है, और समाज में विखंडन और अनैतिकता को बढ़ावा देता है। इसलिए, ये आज के दौर का एक ताग़ूत है, जो मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश करता है।
- मुवाहिद
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