Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-6

Tagut ka inkar (yaani kufr bit-tagut) part-6


ताग़ूत का इनकार [पार्ट-6]

(यानि कुफ्र बित-तागूत)


ताग़ूत का सबसे बड़ा रूप - हुकूमत का ताग़ूत होना

आज के दौर में, कई राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाएं ताग़ूत का रूप ले चुकी हैं। ऐसी हुकूमतें, जो अल्लाह की शरीयत को लागू नहीं करतीं, बल्कि अल्लाह के खिलाफ अपने कानूनों और नियमों को लागू करती हैं, ताग़ूत के सबसे बड़े रूपों में से एक हैं। यह ताग़ूत इंसान को अल्लाह की इबादत और उसके हुक्म से दूर ले जाता है और अपने बनाए हुए कानूनों को लागू करता है।

कुरआन में अल्लाह साफ़ तौर पर कहता है कि हुकूमत अल्लाह की होनी चाहिए, और जो लोग अल्लाह के कानूनों को छोड़कर इंसानी कानूनों की पैरवी करते हैं, वो गुमराही में हैं:

"अगर ये ख़ुदा के क़ानून से मुँह मोड़ते हैं तो क्या फिर जाहिलियत का फ़ैसला चाहते हैं? हालाँकि जो लोग अल्लाह पर यक़ीन रखते हैं उनके नज़दीक अल्लाह से बेहतर फ़ैसला करनेवाला कोई नहीं है।[कुरआन 5:50]

इस आयत से साफ़ है कि अल्लाह के कानून से बेहतर कोई कानून नहीं हो सकता, और जो लोग अल्लाह के कानून के बजाय इंसानी कानूनों का पालन करते हैं, वो ताग़ूत की पैरवी कर रहे हैं।


ताग़ूत का इनकार और हुकूमत की तबदीली:

अगर हुकूमत खुद ताग़ूत का रूप ले चुकी हो, तो उस ताग़ूती हुकूमत का इनकार करना और उसको बदलने की कोशिश करना भी तौहीद का हिस्सा ही है।

इसलिए उस ताग़ूती हुकूमत की तबदीली जरूरी है क्योंकि यह ताग़ूत इंसान को गुमराही की तरफ ले जा रहा है। और इसका इनकार किए बिना हमारी तौहीद भी ना मुकम्मल है।

कुरआन (2:257) में अल्लाह ताग़ूत और उसकी गुमराही के बारे में साफ तौर पर बयान करता है:

"जो लोग ईमान लाते हैं, उनका हिमायती और मददगार अल्लाह है और वो उनको अंधेरों से रौशनी में निकाल लाता है। और जो लोग कुफ़्र का रास्ता अपनाते हैं, उनके हिमायती और मददगार ताग़ूत [बढ़े हुए सरकश और फ़सादी] हैं, और वो उन्हें रौशनी से अंधेरों की तरफ़ खींच ले जाते हैं। ये आग में जानेवाले लोग हैं, जहाँ ये हमेशा रहेंगे।"

इस आयत से यह साफ़ हो जाता है कि अगर कोई इंसान या समाज ताग़ूत की बंदगी में फंस जाता है, तो वो अंधेरे (गुमराही) में डूब जाता है, और इसका अंजाम जहन्नम है। इसके बरअक्स, जो लोग अल्लाह को अपना सरपरस्त मानते हैं, वो रौशनी (हिदायत) की तरफ आते हैं। अल्लाह का कानून ही सबसे बेहतर और सबसे सही है, और ताग़ूत का इनकार किए बिना इंसान सही मायनों में तौहीद को नहीं समझ सकता।


हुकूमत का ताग़ूत बन जाना:

कुरआन और हदीस के मुताबिक, अगर कोई हुकूमत अल्लाह के कानूनों के खिलाफ काम करती है, इंसान की आज़ादी छीनती है और उसे अल्लाह की इबादत से रोकती है, तो वो ताग़ूत का रूप ले लेती है। ऐसी हुकूमत अल्लाह के खिलाफ बगावत करने वाली ताकतों का प्रतिनिधित्व करती है, और उसे बदलना जरूरी हो जाता है, क्योंकि ये हुकूमत खुद तौहीद के खिलाफ काम कर रही होती है।

कुरआन (5:44) में अल्लाह कहता है: "और जिसने अल्लाह के नाजिल किए हुए हुक्म के मुताबिक़ फैसला न किया, वही लोग काफिर हैं।" 

इसका मतलब है कि अगर कोई हुकूमत या सत्ता अल्लाह के कानूनों को नजरअंदाज करके ताग़ूतियत में लग जाती है, तो उसे इंकार करके बदला जाना चाहिए।

हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) का फिरौन के खिलाफ जिद्दोजेहद इस बात की एक अहम मिसाल है। फिरौन खुद को अल्लाह मानता था और अपनी सत्ता से लोगों को अल्लाह की राह से भटका रहा था। 

कुरआन (79:24): "(फिर फिरौन) ने कहा, 'मैं तुम्हारा सबसे बड़ा रब हूँ।"

इस तरह, फिरौन की सत्ता ताग़ूत का सबसे बड़ा रूप बन गई थी और हज़रत मूसा (अ.) का मकसद इस सत्ता को खत्म करना और अल्लाह की इबादत को कायम करना था।


- मुवाहिद



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